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गोवर्धन पूजा-अन्नकूट का क्या महत्व, जानिए पूजा का पूरा विधि-विधान

गोवर्धन पूजा-अन्नकूट का क्या महत्व, जानिए पूजा का पूरा विधि-विधान
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पण्डित अनन्त पाठक:-

कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को अन्नकूट-गोवर्धन पूजा की जाती है। यह प्रतिपदा अमावस्या के बादवाली ( पूर्वविद्धा ) ली जानी चाहिए। क्योंकि जिस दिन चन्द्रदर्शन हो, उस दिन गोवर्धन पूजा निषेध है। दीपावली की तरह इसमें भी दीपोत्सव का विधान है।

दीपावली के अगले दिन अन्नकूट मनाया जाता है और गोवर्धन की पूजा की जाती है। इस दिन बलि पूजा, और मार्गपाली आदि उत्सव भी मनाये जाते है।

अन्नकूट के दिन भगवान् कृष्ण ने इंद्र देव की पूजा समाप्त करवा कर गोवर्धन की पूजा करने की प्रथा शुरू करवाई थी, जिससे रुष्ट होकर इंद्र ने मूसलाधार बारिश करवाई, बरसात से बचाने और इंद्र का घमंड तोड़ने के लिए कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को ही अपनी छोटी ऊँगली पर उठा लिया और समस्त ब्रजवासियों को उस पर्वत के नीचे शरण दी। सात दिन तक कृष्ण पर्वत उठाये खड़े रहे और आंठवे दिन इन्द्र देव द्वारा क्षमा मांगने पर कृष्ण ने पर्वत नीचे रखा और ब्रजवासियो को आज्ञा दी कि अब से हर साल गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का त्योंहार उत्साह के साथ मनाया जाए। इस याद में ही गोवर्धन और गौ पूजन का विधान है।

इस दिन लोग गाय के गोबर से गोवर्धन महाराज की प्रतिमा बनाकर, जल, मौली, रोली, चावल, फूल, दही और तेल के दीपक के साथ पूजा करते है और उनकी परिक्रमा लगाते है। इस दिन अन्नकूट का भगवान् को भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करने की भी मान्यता है।

गुजरात, महाराष्ट्र राज्यों में इसी दिन से नव वर्ष की शुरूआत होती है। यह वैष्णवों का मुख्य पर्व है और इसका आयोजन कृष्ण मन्दिरों एंव विष्णु मन्दिरों और आस्तकि गृहस्थों के घर में किया जाता है। यह पर्व वज्र भूमि में अधिक लोकप्रिय है। इस पर्व को दो भागों में विभक्त किया गया है।

गोवर्धन पूजा की विधि:-

इस दिन घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन का चित्र बनाकर उसकी पूजा रोली, चावल, खीर, बताशे, चावल, जल, दूध, पान, केसर, पुष्प आदि से दीपक जलाने के पश्चात की जाती है। गायों को स्नानादि कराकर उन्हें सुसज्जित कर उनकी पूजा करें। गायों को मिष्ठान खिलाकर उनकी आरती कर प्रदक्षिणा करनी चाहिए।

अन्नकूट

अन्नकूट शब्द का अर्थ होता है अन्न का समूह। विभिन्न प्रकार के अन्न को समर्पित और वितरित करने के कारण ही इस उत्सव या पर्व को नाम अन्नकूट पड़ा है। इस दिन अनके प्रकार का पक्वान, मिठाई आदि का भगवान को भोग लागायें। सभी नैवेद्यों के बीच भारत का पहाड़ अवश्य बनायें। भोग सामग्री की इतनी विविधता और विपुलता होनी चाहिए, जितनी बनाई जा सकें। अन्नकूट के रूप में अन्न और शाक-पक्वानों को भगवान को अर्पित किये जाते है तथा भगवान को अर्पण करने के पश्चात वह सर्वसाधारण में वितरण किया जाता है। कृषिप्रधान देश का यह अन्नमय यज्ञ वास्तव में सर्वसुखद है। अन्नकूट और गोवर्धन की यह पूजा आज भी कृष्ण और बिष्णु मन्दिरों में अत्यन्त उत्साह से की जाती है।

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