माता-पिता का सबसे बड़ा दायित्व है कि बच्चों धर्म ज्ञान दें, संस्कार दें।

यज्ञ में आये ऋषियों को बूढ़ी और बीमार गायें दी जाने लगीं तो नचिकेता ने पिता को टोका," यह पाप है तात! दान के रूप में अनुपयोगी वस्तु देना घोर अधर्म होता है।" अपने कार्य में लगे नचिकेता के पिता ऋषि वाजिश्रवा ने पुत्र की बात पर ध्यान नहीं दिया तो पुत्र ने पुनः पुनः कहा, "यह घोर अधर्म है। इससे अच्छा है कि आप मुझे किसी को दान कर दें"
वाजिश्रवा ने चिढ़ कर कहा, "जाओ! मैंने तुम्हें यमराज को दान किया..." यमराज को दिए जाने का अर्थ है मृत्यु को प्राप्त होना। नचिकेता ने पिता को प्रणाम किया और यमराज के पास जाने को तैयार हो गया।
यह भारत भूमि और सनातन धर्म की महानता है कि एक नन्हा बालक कर्तव्य परायणता में हुई अपने पिता की भूल का प्रतिरोध करता है। और उसका आचरण इतना मर्यादित है कि पिता के अधर्म का प्रतिरोध करने के बाद भी पिता की प्रतिष्ठा को चुनौती नहीं देता, बल्कि क्रोध में बोले गए उनके वचन का भी पालन करने के लिए मृत्यु के सम्मुख पहुँच जाता है। यह पितृभक्ति की पराकाष्ठा है।
पुत्र यदि पिता की भूल का प्रतिकार करने लगे तो यह पिता की विजय होती है। यज्ञ के समय नचिकेता के पिता के मन में लोभ आना एक सहज मानवीय विकृति है, पर पुत्र का ऐसा धर्मज्ञानी होना उनके हर अपराध को धो देता है। बच्चे के अंदर के संस्कार माता-पिता की ही देन होते है। नचिकेता यदि उतना धर्मनिष्ठ था तो उसके अंदर वह निष्ठा उसी पिता ने भरी होगी। यह उस पिता के संस्कारों की विजय है।
बच्चे यदि संस्कारी हों तो माता-पिता की प्रतिष्ठा बनते हैं, और यदि कुसंस्कार मिल गए तो कुल का नाश करते हैं। हमारे समाज का एक संस्कारी व्यक्ति अकेले ही समाज के असँख्य पापों का प्रायश्चित कर देता है तथा इतिहास की अनेक भूलों को सुधार देता है। भारत का धर्म यदि लम्बी पराधीनता के बाद भी समाप्त नहीं हुआ तो इसका प्रमुख कारण यही था कि भारतीय अभिभावकों ने अपने बच्चों में धार्मिक संस्कार डाले। और यदि हमारा वर्तमान अव्यवस्थित और भविष्य अंधकारमय दिख रहा है, तो इसका कारण भी यही है कि वर्तमान के अविभावक अपने बच्चों को धार्मिक संस्कार नहीं दे रहे। अपने बच्चों के प्रति माता-पिता का सबसे बड़ा दायित्व यही है कि वे उसको धर्मज्ञान दें, संस्कार दें।
आजकल हम देखते हैं कि लोग दान के लिए सस्ते और गुणवत्ताहीन वस्तु खरीदते हैं। जैसे सस्ती साड़ी, सस्ता कम्बल, सस्ती धोती। यह अधर्म है। यह स्वयं के साथ किया गया छल है। इस कुरीति से मुक्ति पानी होगी। नचिकेता से इतना तो हमें सीखना ही होगा।
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।