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राशन वितरण प्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचार

राशन वितरण प्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचार
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पिछले सात महीने से सम्पूर्ण विश्व कॅरोना संक्रमण के संकट से गुजर रहा है। जैसे ही इसके भारत में आने की पुष्टि हुई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश मे लॉक डाउन की घोषणा कर दी। सम्पूर्ण लॉक डाउन का अर्थ सम्पूर्ण रूप से सारी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक गतिविधियां बंद। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक आह्वान पर सभी ने खुद को अपने परिवार सहित घरों में बंद कर लिया। सारी आर्थिक गतिविधियां बंद होने के कारण ऐसे परिवारों के सामने भुखमरी का संकट उत्पन्न हो गया, जो रोज कमाते खाते थे। या जो गरीबी रेखा के नीचे जी रहे थे। शुरुआती दौर में तो समाजसेवियों ने मोर्चा संभाला। जगह जगह कच्चे अनाज से लेकर पके भोजन तक वितरित किये गए। लेकिन उनकी भी अपनी सीमा थी। इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश मे गरीबी रेखा के नीचे जी रहे सभी लोगों को प्रति यूनिट पांच किलो गेहूं या चावल देने के निर्देश दिए। इसे बांटने का जिम्मा अपने अपने प्रदेशो में बंटवाने का जिम्मा मुख्यमंत्रियों को दिया गया। चूंकि गरीबों को हर महीने राशन देने की व्यवस्था पहले से सुचारू रूप से चल रही थी। इस कारण प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने राशन वितरण की जिम्मेदारी कोटेदारों को दी। कोटेदारों ने अपने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के निर्देशों को अमली जामा पहनाने का निर्णय लिया और विगत मार्च माह से लगातार माह में दो बार राशन वितरण कर रहे हैं। केके बार निर्धारित शुल्क लेकर और एक बार मुफ्त।

पिछले 73 दिनों से मैं कोरोना पर्यावरण जागरूकता अभियान शहीद सम्मान यात्रा पर हूँ। और एभी तक कानपुर नगर, कानपुर देहात, औरैया, इटावा, मैनपुरी, कन्नौज, फर्रूखाबाद, बदायूँ, संभल, मुरादाबाद, अमरोहा, रामपुर, बरेली, शाहजहांपुर, खीरी, हरदोई, सीतापुर की यात्राएं कर चुका हूं। इस समय यात्रा लखनऊ पहुंच चुकी है। कल सुबह लखनऊ के देहाती भागों में भ्रमण कार्यक्रम करते हुए उन्नाव पहुँचेगी और इसके बाद जहां से यात्रा चली थी, यानी कानपुर में ही इसका समापन होगा। यह यात्रा अपने जन जागरण अभियान के दौरान लोगों के मन में किसी विषय से संबंधित जो सवाल होते थे। उसका भी उत्तर देने का प्रयास करती है। यात्रा का विषय कोरोना होने के कारण देश के प्रधानमंत्री द्वारा फ्री राशन वितरण की चर्चा करना स्वाभाविक है। जब मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मुफ्त राशनिंग प्रणाली की प्रशंसा करता था। तो समर्थन तो सभी करते थे। लेकिन कई जगह अभियान में शामिल व्यक्तियों ने कम राशन देने की चर्चा की । हालांकि उस समय मैंने उन लोगों द्वारा किये गए सवालों का उत्तर तो नही दिया। लेकिन यात्रा के दौरान मैं कोटेदारों के घर भी जाने लगा। उनसे बातचीत करने की कोशिश के बजाय उनकी राशन वितरण प्रणाली को बड़े ही गौर से देखता। जो लोग भी राशन लेने आता। उसके राशन कार्ड का नंबर वे उस मशीन में फीड करते। परिवार का जो सदस्य राशन लेने आता, उसका नाम फीड करते। इसके बाद उससे अंगूठा लगवाते और फिर इलेक्ट्रॉनिक मशीन पर तौल कर राशन देते। इसके बाद राशन प्राप्त होने का हस्ताक्षर करवाते। यह प्रक्रिया मैंने एक दर्जन से अधिक कोटेदारों के यहाँ देखी। मेरा मन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की इस व्यवस्था की प्रशंसा करता । कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने राशन वितरण प्रणाली की ऐसी व्यवस्था की है कि कोई कोटेदार भ्रष्टाचार कर ही नही सकता। लेकिन जनता द्वारा किया गया सवाल अब बीबी जस का तस था। उसका उत्तर मुझे नही मिल पाया। अब यह ऐसा सवाल था कि कोटेदार से मैं सीधे यह कैसे पूंछ सकता था कि जो राशन आप राशन कार्ड धारक को देते हो, वह तौल में कम होता है। लेकिन मैंने यह सच्चाई जानने के लिए दूसरा तरीका अपनाया। इसके बाद मैंने कोटेदारों से यह पूछना शुरू किया कि पूरा राशन बांटने के बाद आपके पास कुछ राशन तो बच जाता होगा। उन्होंने कहा कि मान लीजिए दो लोग राशन नही लेने आये, तो अगले महीने दो लोगों का राशन कम आएगा। अब तो राशन वितरण के लिए इलेक्ट्रॉनिक मशीन का उपयोग होता है। इस कारण राशन में घपला हो ही नही सकता। और वह मशीन जब तक राशन कार्ड धारक अंगूठा नही लगाएगा तब तक फंक्शन कंप्लीट नही करेगी। यानि इंट्री नही करेगी। फिर आज कल उतना ही राशन आता है, जितने लोगों को राशन देने की स्वीकृति होती है। इसलिए राशन वितरण में हेराफेरी सम्भव नही है। अभी तक मेरी समस्या का समाधान नही हुआ है। इसके बाद मैंने कोटेदारों से आत्मीय संबंध बनाना शुरू किया। फिर उनसे पूरी प्रक्रिया समझने की कोशिश की । तब जाकर इस बात का पता चला कि कोटेदार राशन कम क्यों देता है ? दरअसल कोटेदार के पास बोरे के हिसाब से राशन आता है। यानी अगर राशन के रूप में गेहूं या चावल है, तो बोरे सहित उसका वजन 100 किलोग्राम होता है। अगर बोरा जूट का बना हुआ है, तो उसका वजन 500 ग्राम से लेकर 750 ग्राम तक होता है। अगर 100 बोरा राशन आया, तो करीब 50 किलोग्राम गेहूं या चावल कम होता है। चूंकि हर कोटेदार को 100 कुंतल राशन बांटना है। लेकिन एक्चुअल राशन में वह 50 किलोग्राम कम होता है। अब कोई कोटेदार अपने घर से उतने राशन की भरपाई तो करेगा नही । इस कारण एक हिसाब से घटतौली करने के लिए बाध्य हो जाता है। इससे कभी कभार दो चार किलो राशन बच भी जाता है। लेकिन उतना राशन तो घर और खेतों के चूहे खा जाते हैं।

लेकिन कोटेदार द्वारा इस घटतौली का कारण जानने के लिए हमने अपनी यात्रा के दौरान जो प्रयास किया। उससे राशन वितरण प्रणाली में व्याप्त घोर भ्रष्टाचार भी प्रकाश में आया। विभागीय अधिकारियों द्वारा हर कोटेदार से आज आधुनिक युग में भी वसूली की जाती है। और इस अवैध वसूली की फिर बंदरबांट होती है। जिसमें क्षेत्रीय एसडीएम से लेकर विभागीय अधिकारी व कर्मचारी शामिल होते हैं । यह बंदरबांट कैसे होती है, इन भ्रष्टाचारी अधिकारियो ने उसका भी तरीका बना रखा है। मान लीजिए कि किसी तहसील क्षेत्र में 100 कोटे है। हर कोटेदार से हर महीने एक हजार रुपये की वसूली की जाती है। इस तरह से एक लाख रुपये इकट्ठा होते हैं। उसका पचास प्रतिशत तथाकथित रूप से एसडीएम को पहुंचा दिया जाता है। शेष पचास प्रतिशत विभागीय इंस्पेक्टर से लेकर बाबू और चपरासियों में बांट दिया जाता है। सभी कोटेदारों ने यह भी बताया कि अगर कोई देने में आनाकानी करता है तो कोई न कोई एलिगेशन लगा कर उसका कोटा निरस्त कर दिया जाता है। स्थानीय लोगों ने यह भी बताया कि इस समय कोई भी जनप्रतिनिधि हो, चाहे वह सांसद व विधायक ही क्यों न हो? उसकी नही चलती है। इसलिये अधिकारियों पर कोई दबाव भी नही बन पाता है। दूसरे इस प्रकार से जप भ्रष्टाचार किये जाते हैं, उनका कोई प्रमाण नही होता है। जिससे उसे साबित किया जा सके। आज स्थिति यह है कि कोई कोटेदार महीने में 20 दिन पूरा समय देने के बाद भी लगभग 5 हजार या उससे कम ही बचा पाता है। क्योंकि उसे प्रति किलोग्राम 70 पैसे कमीशन मिलता है। इस प्रकार 7 हजार से अधिक कम ही कोटेदारों को प्राप्त होते हैं। इसी में उसे रखरखाव से लेकर स्टेशनरी तक खरीदनी पड़ती है और अधिकारियों की आवभगत से लेकर चढ़ावा तक चढ़ाना पड़ता है। विभाग द्वारा मशीन अगर खराब हो गई तो उसे ठीक कराने की जिम्मेदारी भी कोटेदार की ही है। बातचीत में कोटेदारों ने जो कमीशन उन्हें मिलता है, वह दूसरे राज्यों की अपेक्षा कम है। उन्होंने मुख्यमंत्री से मांग की कि उनका कमीशन बढ़ाया जाए ।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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