कार्यालय प्रभारी के चयन पर बहुत कुछ निर्भर सपा की 2022 की जीत

विगत दिनों समाजवादी पार्टी के कार्यालय प्रभारी एस आर एस बाबूजी का निधन हो गया । जिसके बाद समाजवादी पार्टी की ऐसी गतिविधियां जरूर प्रभावित हुई है, जो एस आर एस बाबू अपने स्तर पर निपटाते थे। वे एक अवकाश प्राप्त अधिकारी थे, उन्हें समाजवादी पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने चुना था, और एक लंबे समय तक प्रशिक्षित करने के बाद उनके ऊपर पार्टी का पूरा दायित्व छोड़ा था। सपा संस्थापक मुलायम सिंह एक ऐसे नेता थे, जिनके गाँव गाँव तक व्यक्तिगत संबंध थे। जिनका राजनीति से बहुत कुछ लेना देना नही था। लेकिन उनके माध्यम से वे नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा प्राप्त सूचनाओं की तस्दीक करते थे। नेताजी के संरक्षण में एस आर एस बाबू ने भी ऐसे ही रिश्ते बनाएं, जिसे बनाने में उन्हें दशकों लग गए। लेकिन जब नेताजी ने अपने पुत्र अखिलेश यादव को पार्टी की बागडोर सौंपी, तब वे परिपक्व हो चुके थे। नेताजी का अखिलेश यादव के प्रति आश्वस्ति का कारण ही यह रहा कि उनके साथ काम करने वालों की एक लंबी फौज कार्यालय में मौजूद रही। सभी से नेताजी ने यह कह भी रखा था कि आप लोग इस प्रकार से काम करें, जिससे आपके अनुभवों का अखिलेश को लाभ मिल सके । नेताजी के सहयोगियों ने बड़ी ही ईमानदारी और तत्परता से अपने दायित्व का निर्वहन किया। जहां तक एस आर एस बाबू का सवाल है, वे कार्यालय प्रभारी होने के साथ साथ पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता भी रहे। इसके अलावा उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे मुलायम सिंह हों, या अखिलेश यादव हों, उनके मनोभाव को अच्छी तरह समझते थे। कौन सी बात आवश्यक है, कौन सी अनावश्यक है, इसका विभेदीकरण वे अच्छी तरह करते थे। इसके साथ साथ कौन सी बात किस समय प्रस्तुत करना चाहिए, उसकी टाइमिंग में उन्हें दक्षता प्राप्त थी। इसी कारण वे पूरे उत्तर प्रदेश के हर क्षेत्र की नेताओं, कार्यकर्ताओं से प्राप्त सूचनाओं को जब समय होता था, तभी प्रस्तुत किया करते थे। उनमें गजब की मेधा थी। इसी कारण वे सफल रहे। लेकिन अपने कार्यकाल में वे एक भी ऐसा कार्यकर्ता नही बना पाए, जो उनकी अनुपस्थिति में उनका दायित्व निभा सके। शायद कार्यालय में काम करने वाला कोई कर्मचारी उनके जैसी प्रचुर योग्यता का व्यक्ति भी नही है। इसी कारण उनके जाने के बाद आज समाजवादी पार्टी में एक अभाव के दर्शन हो रहे हैं।
ऐसा नही है कि यह धरती वीरों से खाली है। एस आर एस बाबू के निधन से खाली हुआ यह पद भरा नही जा सकता। लेकिन अब वह रिटायर्ड अधिकारी या कर्मचारी से नही भरा जा सकता है। क्योंकि उसके पास प्रशासनिक अनुभव तो बहुत होता है। लेकिन पार्टीगत जमीनी अनुभव बिलकुल नही होता है। हो सकता है कि अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री काल के भी कुछ अधिकारी अवकाश प्राप्त कर चुके हों, उस समय अखिलेश यादव की ट्यूनिंग भी काफी अच्छी रही हो। लेकिन समाजवादी पार्टी शैव दर्शन पर काम करने वाली पार्टी है। उसके कार्यकर्ता शिव के बाराती की तरह है। जितने कार्यकर्ता हैं, उतने प्रकार के उनके स्वभाव है। जरा सा सम्मान को ठेस लग जाये, तो मुंह फुला कर या तो घर बैठ जाएंगे, या फिर अपनी ही बगिया को उजाड़ने लगेंगे। इस समय मैं पिछले 72 दिनों से कोरोना पर्यावरण जागरूकता अभियान शहीद सम्मान यात्रा पर हूँ। इस यात्रा के दौरान कानपुर नगर, कानपुर देहात, औरैया, इटावा, मैनपुरी, कन्नौज, फर्रुखाबाद, बदायूँ, संभल, मुरादाबाद, अमरोहा, रामपुर, बरेली, शाहजहांपुर, खीरी, हरदोई, सीतापुर की यात्रा कर चुका हूं। इन जिलों में मुझे जो अनुभव हुआ है। उसके आधार पर मैं कह सकता हूँ कि आपसी वैमनस्य की वजह से अपनी ही बगिया उजाड़ने में लगे हुए हैं। ऐसा नही कि उनके साथ कोई बहुत बड़ा अन्याय हो गया है। इन क्षेत्रों का यह हालात है कि जो कार्यकर्ता या नेता एक दो बार लखनऊ आये, और उनकी राष्ट्रीय अध्यक्ष से भेंट नही हो पाई, तो रोज वह चौराहे पर बैठ कर पार्टी की खिल्ली उड़ाते हैं। इस प्रवृत्ति की दिवंगत एस आर एस बाबू बहुत अच्छी तरह जानते थे। इसी कारण उनसे जो भी मिलने आता, तमाम कार्यालयीन कार्यों को करते हुए भी उन्हें संतुष्ट करते रहते। इतना प्रेम से मिलते, ऐसी बात करते कि वह लौट कर जब अपने क्षेत्र में पहुँचता, तो किसी चौराहे चट्टी पर बैठ कर बुराई नहीं करता। उल्टे दुगुने उत्साह से फिर अपने काम में लग जाता। मेरे कहने का अर्थ यह है कि ऐसे व्यक्ति को कार्यालय प्रभारी बनाना चाहिए। जो सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश के नेताओं और कार्यकर्ताओं के स्वभाव और उनकी जमीनी हकीकत से परिचित हो। इसके साथ साथ उसे हर विधानसभा वाइज जमीनी नेताओं और कार्यकर्ताओं की जानकारी होना चाहिए। हर विधानसभा की सामाजिक संघटना की जानकारी होना चाहिए। किस क्षेत्र में सपा के मूल वोटरों के अलावा कौन कौन सी जातियाँ सपा समर्थक रही हैं, अगर वे डोर छिटक गई हों, तो उन्हें फिर से पार्टी के साथ कैसे जोड़ा जा सकता है। इसकी भी जानकारी होना चाहिए। पार्टी का लिखित संविधान तो कोई पढ़ या रट सकता है। लेकिन उसका व्यवहारिक प्रयोग कब और कैसे करना है। इसका ज्ञान होना चाहिए।
समस्त कार्यालयीन उत्तरदायित्वों को निभाते हुए एस आर एस बाबू की प्रमुख भूमिका नेता, कार्यकर्ता और राष्ट्रीय अध्यक्ष के बीच समन्वय और उसकी अनुपस्थिति में उसके ही शब्दों में संवाद करने की रही है। तमाम दबाओ के बाद वह बात कहना, जो पार्टी के कल्याण के लिए हो । ऐसे में जब 2022 के चुनाव के हिसाब से समाजवादी पार्टी की ओर से तैयारी शुरू हो गई है। 351 प्लस विधानसभा सीट जीतने का लक्ष्य निर्धारित कर दिया गया। हर विधानसभा में दर्जनों प्रत्याशी चुनाव लड़ने के लिए ताल ठोक रहे हों। सभी को लग रहा है कि 2022 में समाजवादी पार्टी की सरकार बन रही है। जनता उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार से ऊब चुकी हैं। बिना मेहनत के मेवा खाने की प्रवृत्ति के कारण इस समय सभी विधानसभाओ में दर्जनों उम्मीदवारों की फेहरिस्त दिखाई पड़ रही है। ऐसे में कार्यालय प्रभारी की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह ऐसे नेता का नाम राष्ट्रीय अध्यक्ष के सामने प्रस्तुत करे, जिसको टिकट मिलने के बाद उस क्षेत्र के मतदाताओं के को लगे कि अखिलेश यादव ने सही नेता को टिकट दिया है। कहने का तात्पर्य यह है कि सपा के कार्यालय प्रभारी को सिर्फ क्षेत्र के नेताओं और उम्मीदवारों की समझ नही होना चाहिए बल्कि उस क्षेत्र के मतदाताओं की भी समझ होना चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि समाजवादी पार्टी कार्यालय प्रभारी पद पर ऐसे समर्पित व्यक्ति की नियुक्ति होनी चाहिए। जिसके हर श्वास से समाजवाद की गंध आती हो। जो लिखने पढ़ने के साथ सपा नेताओं, कार्यकर्ताओं, मतदाताओं की नब्ज जानता हो । जो सच को सच कहने की सामर्थ्य रखता हो। समयानुकूल प्राप्त तथ्यों को प्रस्तुत करना जानता हो। विधानसभा चुनाव के समय योग्यतम उम्मीदवार की सूची क्रमवार प्रस्तुत कर सकता हो। ईमानदार और चरित्रवान हो। छिपाने जैसी सूचनाओं को छिपाना और उदघाटित करने योग्य सूचनाओं को उदघाटित करने का तरीका जानता हो, जिससे राष्ट्रीय अध्यक्ष को बुरा भी नही लगे, और सच भी उनके मुंह से निकल जाए।
वैसे एस आर एस बाबू की खाली हुई जगह को अखिलेश यादव ने चुनौती के रूप में लिया है। कई नाम भी उनके जेहन में चल रहे हैं। लेकिन अगर सही और योग्यतम व्यक्ति का चुनाव इस पद के लिए नही हुआ, तो 2022 के चुनाव में सत्ता में वापसी करना कठिन हो जाएगा। एक बार फिर अखिलेश यादव के सामने जो तथ्य प्रस्तुत किये जा रहे हैं, वे भ्रामक हैं। अपनी यात्राओं के दौरान मैंने खुले कानों से जो देखा और खुली आँखों से जो सुना, वह उन तथ्यों से मेल नही खाती। जो राष्ट्रीय अध्यक्ष के पास पहुंच रही है। अगर सही तथ्य नही पहुचेंगे, तो जो चुनावी रणनीति बनेगी, वह व्यवहारिक कम, आभासी ज्यादा होगी। जिसका परिणाम भी आभासी ही होगा। इस आभासी तथ्यों में से सही तथ्य निकालने की जिसकी क्षमता हो, उसे एस आर एस बाबूजी की जगह देनी चाहिये।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट