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बेरोजगारों की व्यथा और अखिलेश का प्लान - 2020

बेरोजगारों की व्यथा और अखिलेश का प्लान - 2020
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बदले हुए माहौल में समाजवादी पार्टी की राजनीति की दिशा क्या होगी? वह धीरे धीरे समझ मे आने लगी है। पहले आह्वान पत्र, फिर समाजवादी अगस्त क्रांति और फिर 9 सितंबर, 2020 को रात्रि 9 बजे 9 नौ मिनट के लिए लाइट ऑफ कर मशाल के रूप में मोमबत्ती जला कर बेरोजगारी के खिलाफ आगाज किया । इस कार्यक्रम में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और उनकी पत्नी पूर्व सांसद डिम्पल यादव भी शामिल हुई। पूरे उत्तर प्रदेश में एक साथ उत्तर प्रदेश के सपा कार्यकर्ताओं ने अपने अपने घरों की बत्तियां बुझाई और बेरोजगारी के खिलाफ 2022 की सरकार बनने के पूर्व ही उसके खिलाफ बिगुल फूंक दिया।

कोरोना संकट काल मे लॉक डाउन की वजह से जब सभी कल कारखाने बंद हो गए । सभी कार्यालय बंद हो गए। सभी रचनात्मक कार्य ठप्प पड़ गए। पढ़े लिखे हों, या अनपढ़ सभी अपने घरों की ओर लौटे । कॅरोना को जिस तरह से प्रस्तुत किया गया, उसकी वजह से भयावह स्थिति उत्पन्न हो गई। पूरे देश की जनता को लगा कि अब जरा सी भी लापरवाही हुई, तो उसके और उसके परिवार का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। इसलिये पूरे देश की जनता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी गाइड लाइन का अनुपालन किया। जिसकी वजह से भारत मे कॅरोना महामारी का रूप नही ले सकी। भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार ने भी परिस्थितियों को समझा और देश की गाड़ी पटरी पर लाने के लिए अनलॉक की शुरुआत की चौथे अनलॉक के बाद एक बार फिर सभी प्रकार की बंदिशें समाप्त कर दी गई। हर आदमी आम जीवन जीने लगा। लेकिन फिर भी प्रशासन और सरकार की ओर से जारी गाइड लाइन के अनुसार दो गज की दूरी मास्क है जरूरी । का पालन करना जरूरी है।

इस कॅरोना संक्रमण काल मे सबसे बड़ा संकट बेरोजगारी का हुआ। उत्तर प्रदेश सहित सम्पूर्ण भारत पहले से ही बेरोजगारी से कराह रहा था। युवाओं की बढ़ती संख्या की वजह से सरकार की ओर से किये जाने वाले हर उपाय नाकाफी साबित हो गए । कोरोना की वजह से हर हाथ का काम छिन गया। बेरोजगारी विस्फोट की स्थिति उत्पन्न हो गई। हालांकि सरकार की ओर से प्रवासी मजदूरों के लिए मनरेगा योजना को खोल दिया गया। लेकिन काम ही इतना नही था कि उन्हें महिनों रोजगार दिया जा सकें ।

बेरोजगारों की इस पीड़ा को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पहचाना । और कोरोना संक्रमण काल के दौरान ही कई बार इस मसले को अपने बयानों और ट्वीट के माध्यम से उठाया। लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उनके बयान का संज्ञान नही लिया। उस पर कोई प्रतिक्रिया भी व्यक्त नही की । अपने हिसाब से रोजगार देने का सिलसिला चलाते रहे। इसके अलावा कई सरकारी नौकरियां भी न्यायालय में फंसी हुई हैं। इस वजह से इस समय उत्तर प्रदेश में दो तरह को बेरोजगारी है। एक पढ़े लिखे लोगों की बेरोजगारी और दूसरे अनपढ़ लोगों की बेरोजगारी। एक हुनरमंद लोगों की बेरोजगारी, दूसरे मजदूर क्लास की बेरोजगारी। पूरे प्रदेश के युवाओं के मन मे एक छटपटाहट है। इस छटपटाहट को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने महदूस किया और खिलाफ बिगुल बजाया। जहां तक मेरे पास सूचना है। उसके अनुसार अखिलेश यादव का यह राजनीतिक स्टंट नही है। बल्कि उत्तर प्रदेश के युवाओं की बेरोजगारी दूर करने की एक सोची समझी रणनीति है। अपनी इस रणनीति के अनुसार अखिलेश यादव दो स्तरों पर काम कर रहे है। पहला नौकरी और दूसरा रोजगार। अभी जब वे सत्ता से बाहर हैं । इस बात का गुणा गणित लगा रहे हैं, कि किस विभाग में कितनी रिक्तियां हैं। कितने युवाओं का समायोजन हो सकता है। दूसरा सरकार आने के बाद किन किन क्षेत्रों में रोजगार सृजित किया जा सकता है। और उनमें कितने लोगों को समायोजित किया जा सकता है। नौकरी के क्षेत्र में युवाओं का समायोजन करने के लिए वे दो दिशाओं में काम कर रहे है। पहला किन किन औद्योगिक समूहों को यहां आमंत्रित करके उन्हें अपनी इकाइयां लगाने की सहूलियत देना है। और उनके द्वारा कितने लोगो की नौकरी और रोजगार दिया जा सकता है।

इसी तरह से प्रदेश के युवाओं की हाथ पकड़ कर एक ओर तो वे 2022 की सत्ता पर काबिज होना चाहते हैँ और सत्ता प्राप्ति के बाद उन्हें रोजगार और नौकरी देने की दिशा में अपना कदम आगे बढ़ाना चाहते हैं। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 9 सितंबर को 9 बजे 9 मिनट के लिए जो मशाल कार्यक्रम चलाया । उसमे उन्होंने बेरोजगार युवाओं का आह्वान किया था। लेकिन अधिक प्रचार प्रसार न हो पाने की वजह से यह पार्टी के कार्यकर्ताओं, नेताओं तक ही सीमित रह गया। आम बेरोजगार लोगों को इस कार्यक्रम से जोड़ने का प्रयास नही किया गया। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के इस प्रकार के जो आह्वान किये जा रहे हैं। उसे पूरी तरह सफल बनाने के लिए समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं को प्रचार प्रसार कर आम आदमी, आम युवा को जोड़ने का भी अभियान चलाना पड़ेगा। तभी उसका लाभ मिलेगा। इस समय मैं कोरोना पर्यावरण जागरूकता अभियान शहीद सम्मान यात्रा के तहत बरेली जिले में हूँ । थके होने के बावजूद इस कार्यक्रम की सफलता असफलता देखना चाहता था। लेकिन मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि समाजवादी पार्टी आम बेरोजगारों सहित आम जनता को अखिलेश यादव के इस समाजोपयोगी कार्यक्रम में जोड़ने में असफल रही । लेकिन इस कार्यक्रम के माध्यम से अखिलेश यादव इतना संदेश देने में कामयाब रहे कि वे बेरोजगारों की पीड़ा को समझते हैं और अगर 2022 में प्रदेश की जनता ने उन्हें सरकार बनाने का मौका दिया, तो उत्तर प्रदेश की बेरोजगारी दूर करने के लिए वे अवश्य ही कोई कदम उठाएंगे।

यह बात तो सही है कि आज हर माँ बाप अपने बच्चे के भविष्य को लेकर चिंतित है। कोरोना संक्रमण से उपजी स्थिति के कारण वह बेहद चिंतित हैं। उन्हें इस संकट का कहीं निदान नजर नही आ रहा है। ऐसे में उत्तर प्रदेश के तमाम ऐसे माता पिता, जिनकी संतानें रोजगार और नौकरी के लिए संघर्ष कर रही है, अपनी पिछली सरकार की तरह अखिलेश यादव उन्हें बेरोजगारी भत्ता देंगे, जिससे माँ बाप के कंधों से थोड़ा बोझ जरूर हल्का होगा। साथ ही यह आशा भी बनी रहेगी कि भविष्य में उसे नौकरी या रोजगार जरूर मिलेगा। अखिलेश यादव ने मुद्दा तो सही चुना है । लेकिन इसका लाभ 2022 के चुनाव में तभी मिलेगा। जब उनके कार्यकर्ता घर घर जाकर अखिलेश यादव को इस दूरदर्शिता की चर्चा करेंगे।

: प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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