चीन की धूर्तता और भारत सरकार की रणनीति

पिछले चार महीने से देश विषम परिस्थितियों से गुजर रहा है। सरकार और जनता देश के अंदर कोरोना से जूझ रही है। और सीमा पर पाकिस्तान, चीन और नेपाल का सामना कर रहा है। चाहे कोरोना का मसला हो, या सीमावर्ती देशों की नापाक कोशिशें हो, पूरा देश एकमत है। और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हर निर्णय में उनके साथ खड़ा है। चार महीने के पहले देश केवल पाकिस्तान की नापाक हरकतों का जवाब दे रहा था। सीमा पर पाकिस्तान की हर नापाक हरकत का जवाब दे रहा था और देश के अंदर उनके द्वारा प्रायोजित आतंकवादी गतिविधियों को नेस्तनाबूद कर रहा था। लेकिन जबसे चीन भी भारत की सीमा पर अतिक्रमण करने और अपनी सीमाओं का विस्तार करने के लिए विध्वंसक गतिविधियां करने लगा, तो भारत सरकार के निर्देश पर मोर्चा संभाल लिया। उसकी नापाक हरकतों पर लगाम लगाने के लिए देश के कई जवानों को अपने प्राण भी न्योछावर करने पड़े। सम्पूर्ण देश ने उनकी शहादत को नमन किया और सरकार और सेना के साथ खड़े रहने की अभिव्यक्ति की।
चीन और भारत के 1962 के जिस धूर्तता का परिचय दिया था। उससे भारत की जनता, सेना और भारत सरकार अनजान नही थी। लेकिन भारत एक शान्ति प्रिय देश है। वह महात्मा गांधी की अहिंसा में सिर्फ विश्वास ही नही करता है, बल्कि उसका अनुपालन और आचरण भी करता है। अपनी इसी नीति के तहत भारत सरकार और भारतीय सेना ने बातचीत का रास्ता अपनाया। लेकिन पिछले चार महीने से चीन एक तरफ बातचीत का स्वांग कर रहा है। दूसरी तरफ वह अंदर ही अंदर भारत को परेशान करने और शिकस्त देने के सपने भी देख रहा है। उसकी धूर्तता की तब हद हो जाती है, जब वह पाकिस्तान को भी अपने साथ मिला लेता है, और भारत मे आतंकवादी गतिविधियों को और तेज करने को कहता है। सिर्फ कहता ही नही, वल्कि भारत के खिलाफ हर गतिविधि के लिए उसकी आर्थिक और सामरिक मदद भी करता है। इसके अलावा पाकिस्तान की आर्थिक विपन्नता का लाभ उठा कर उसे और भी मदद के नाम पर पैसे देता है, जिससे वह उसके चंगुल में फंसा रहे। वहां की हुकूमत भी यही चाहती है। क्योंकि भारत के खिलाफ लगातार आतंकवादी गतिविधियों को संचालित करने के लिए उसने जो शिविर, प्रशिक्षण और हथियार की व्यवस्था करना होता है। आतंकवादियों को मजहव के नाम पर उकसाने के बावजूद भारी मात्रा में धन भी मुहैया कराना पड़ता है। भारत विरोधी इन सारी विध्वंसक गतिविधियों को संचालित करने में अपार धन की जरूरत होती है। इस कारण जनोपयोगी गतिविधियों, और विकास कार्यों को उसे दरकिनार रखना पड़ता है। पाकिस्तान की इसी दुर्भावना को भांप चीन उसकी मदद कर रहा है। उसे यह लग रहा है कि भारत को पाकिस्तान के साथ उलझा कर वह भारत की जमीन हड़पने में कामयाब हो जाएगा। अपने इस मंसूबे को पूरा करने के चक्कर मे चीन यह भूल जाता है कि आज का भारत 1962 का भारत नही है। विगत 60 सालों में उसने अतुलनीय प्रगति की है। सामरिक दृष्टि में अब भारत इतना मजबूत हो चुका है कि एक साथ चीन और पाकिस्तान दोनों से हर मोर्चे पर जंग कर सकता है। ऐसा नही है कि चीन भारत की सामरिक सुदृढ़ता से परिचित नही है। भारत की सेना उसकी सेना से अधिक कुशल, परिपक्व और किसी भी स्थिति में लोहा ले सकती है। यह भी वह जानता है। लेकिन इसके बाद भी वह बाज नही आ रहा है। वह लगातार अपनी धूर्तता का परिचय दे रहा है।
हद तो तब हो जाती है, जाव वह भारत के अभिन्न अंग अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा ठोक देता है। भारत ही नही, पूरी दुनिया जानती है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है। और वह आजादी के दिनों से ही भारत गणराज्य का एक प्रदेश है। जहां पर लोकसभा से चुन कर सांसद जाते है, और देश की हिफाजत और विकास की बहसों में हिस्सा लेकर अपनी देशभक्ति प्रकट करते हैं। इसके अलावा भारत के संविधान के मुताबिक ही यहां पर चुनाव होता है, और सरकार का गठन होता है। विकास निधि भी भारत की उत्तरदायी संस्थाओं से प्राप्त होती है। कई मौकों पर कई बार शिकस्त खा चुके चीन का अरुणाचल प्रदेश पर दावा हास्यास्पद है। और अरूणाचल प्रदेश पर उसके दावा भी कितना खोखला है। वह उसे तिब्बत का अंग बता कर दुनिया को गुमराह कर रहा है। जबकि वहां के दलाई लामा ने कई वार उसके इस दावे को झूठा करार दिया है। लेकिन वह मनाने वाला नही है। लेकिन भारत सरकार और भारतीय सेना भी पूरी तरह मुस्तैद है।
चीन की नापाक हरकतों को नियंत्रित करने के लिए भारतीय सेना के एक अधिकारी और कुछ जवानों को धोखे से मार डाला । इसके बावजूद हमारे देश की सेना के जांबाजों ने उनका डट कर मुकाबला किया । इसकी भनक जब और भारतीय जवानों को लगी, तो आये और चीन के 78 जवानों को मौत के घाट उतार कर उन्हें पीछे घकेल दिया। इस घटना में चीन की कमजोरी दुनिया के सामने न आ जाये, इस कारण उसने अपने यहां हताहत सैनिकों की सूची नही जारी की । लेकिन देर सवेर हकीकत सामने आ ही जाती है। इसकी जानकारी जब दुनिया को मिली, तो चीन और तिलमिला उठा। उसकी नीचता की हद तब हो जाती है, जब उसने स्थानीय जनता का अपहरण कर लिया। जब इस संबंध में भारत की सेना की ओर से सवाल पूछे गए, तो वे उत्तर देने के बजाय, अपना अपराध स्वीकार करने के बजाय धूर्तता पूर्ण उत्तर देते हुए अरुणाचल प्रदेश पर ही अपना दावा ठोक दिया।
उसकी धूर्तता की तब और हद हो जाती है, जब वह धोखे से भारतीय सैनिकों को मारने की योजना पर काम करने लगा। उसने ऐसे हथियारों से अपनी सेना को सुसज्जित किया, जिससे लड़ाई हुई, यह साबित नही किया जा सके। भाले, लाठी और नुकीले हथियारों से लैस अपने सेना के आत्मघाती दस्ते को उतार दिया। लेकिन आज कल उपग्रह से सब कुछ देखा जा सकता है। चीन की उस नापाक हरकत को देख लिया गया और सेना को समय रहते सूचित कर दिया गया। अपनी इस धूर्ततापूर्ण हरकत को विफल जानकर पाकिस्तान की सेना ने चार महीने में पहली बार भारतीय जवानों पर गोलीबारी की। जिसका भारतीय सेना ने मुंहतोड़ जवाब दिया। दरअसल इन चार महीनों में भारतीय सेना उन सभी स्थानों पर मोर्चा संभाल लिया है, जहां से चीन की सेना का विध्वंस किया जा सकता है। भारतीय सेना की स्थिति के कारण चीन और बौखला उठा है। और एक न एक ऐसी हरकत करते जा रहा है, जो कभी भी युद्ध का रूप धारण कर सकता है।
लेकिन साथ मे चीन यह भी जानता है कि भारत ने कूटनीतिक स्तर पर बढ़त बना ली है। भारत चीन के विवाद में विश्व के अधिकांश देशों को अपने पक्ष में कर लिया है। दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश उसके साथ खड़ा है। उसका पुराना मित्र रूस भी भारत के पक्ष में है। चीन के 13 और पड़ोसी देश, जिन्हें वह लगातार परेशान करता आ रहा है, वे भी भारत के पक्ष में हैं । उसके साथ उंगलियों पर गिने जा सकने वाले चंद देश है। चीन के खिलाफ भारत की तैयारी पूर्ण है। जल, वायु और थल, हर मोर्चे पर भारत की सेना ने दुरूह चक्रव्यूह रचना कर रखी है। वह तो बस एक इशारे के इंतजार में है। जैसे ही आदेश मिलेगा, वह चीन पर टूट पड़ेगी ।
लेकिन इसके बाद भी मैं यही कहना चाहूंगा कि युद्ध किसी समस्या का समाधान नही है। जहां तक हो सके, बातचीत से इस मसले को सुलझाना चाहिए। लेकिन साथ ही चीन अपनी धूर्ततापूर्ण रवैये में सफल न हो जाये, इसके लिए सावधान भी रहना चाहिए।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट