एक दूसरे की बुराई में उलझे सपा नेता व कार्यकर्ता

समाजवादी पार्टी के पास पर्याप्त संख्या में वोटर है। प्रचुर मात्रा में कार्यकर्ता है। इसके नेताओं में संघर्ष करने का माद्दा और सहनशक्ति है। विषम से विषम परिस्थितियों में वह खुद और समाजवादी पार्टी की राजनीति को जिंदा रख सकता है। इसके अलावा उसके पास एक ऐसा नेता है। जिस पर अभी तक कोई लांछन नही लगा है। वह बेदाग है। और उत्तर प्रदेश की राजनीति की जब भी चर्चा होती है, तो एक अच्छे और सच्चे नेता के रूप में अखिलेश की चर्चा जरूर होती है। उनके मुख्यमंत्रित्व काल की भी चर्चा होती है। मुख्यमंत्रित्व काल मे उनके द्वारा किये गए विकास कार्यों की चर्चा होती है। लेकिन इसके बावजूद भी समाजवादी पार्टी आज सत्ता से बाहर बैठी है। और 2022 में सरकार बनाने का सपना देख रही है। 351 विधानसभा सीटों पर चुनाव जीतने की घोषणा भी कर चुकी है। लेकिन तभी विश्व के अन्य देशों की तरह भारत भी कॅरोना संक्रमण की चपेट ।के आ गया। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉक डाउन लागू कर सम्पूर्ण गतिविधियों को स्थगित करने का फैसला लिया। लगभग तीन महीने तक पूरा देश स्वेच्छा से अपने अपने घरों में कैद हो गया। इसके बाद अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हुई और अब बहुत कुछ सामान्य हो गया है। हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक संक्रमित लोगों की संख्या में निरंतर इजाफा हो रहा है। और संक्रमण से मरने वालों की संख्या भी निरंतर बढ़ रही है। लेकिन भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार दोनो आश्वस्त हैं। उनका कहना है कि सरकार द्वारा की जा रही अधिक जांचों की वजह से संक्रमित मरीजों की संख्या में लगातार वृध्दि हो रही है। लेकिन संक्रमित मरीजों की संख्या में ठीक होने की दर भी अधिक है। इसलिए घबराने की अधिक जरूरत नही है।
कॅरोना संक्रमण का असर जनता पर हो या न हो। लेकिन राजनीतिक दलों पर बहुत है। जब मैं उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी को इस कसौटी पर कसता हूँ, तो कथन शत प्रतिशत सही साबित होता है। जब से कॅरोना का संकट भारत में आया है। राजनीतिक दलों की समस्त क्रियाएं बाधित हुई है। वैसे तो कॅरोना संक्रमण की वजह से कई मौते उत्तर प्रदेश में हुई है। लेकिन समाजवादी पार्टी में कॅरोना संक्रमण ने उसका सबसे मजबूत स्तम्भ विधान परिषद सदस्य एस आर एस बाबूजी को अपना शिकार बना लिया। जिनके ऊपर समाजवादी पार्टी की सारी कार्यविधि टिकी हुई थी। कॅरोना संक्रमण से उबर कर जैसे ही समाजवादी पार्टी के कार्यालय अखिलेश यादव ने जाना शुरू किया। नेताओं ने सड़क पर उतर कर धरना प्रदर्शन, ज्ञापन आदि शुरू किया। तभी सपा कार्यालय के कुछ लोग संक्रमित हो गए । कार्यालय कुछ दिनों के लिए बंद कर दिया गया। लेकिन एस आर एस बाबू की मौत के बाद फिर समाजवादी पार्टी की गतिविधियां बाधित हो गई हैं। जबकि अब समाजवादी पार्टी को आंदोलनों और अपने कार्यों के माध्यम से जनता के बीच मे होना चाहिए। लेकिन नही है। उत्तर प्रदेश की सात सीटों पर उप चुनाव होने जा रहे हैं। भाजपा और बसपा ने तैयारियां शुरू कर दी। लेकिन समाजवादी पार्टी की ओर से अभी तक कोई विचार भी नही बन पाया है। इस समय मैं अपनी कॅरोना - पर्यावरण जागरूकता अभियान, शहीद सम्मान सायकिल यात्रा पर हूँ। इस दौरान नेताओं / कार्यकर्ताओं से भेंट भी हो रही है, चर्चा भी हो रही है। और अभी तक मैं जिन जिलों से गुजरा, उसमें कहीं विशेष सक्रियता दिखाई नही पड़ रही है।
अपनी यात्रा के दौरान जिन कार्यकर्ताओं से बात हो रही है। वे अपनी ही पार्टी के किसी अन्य नेताओं की बुराई करता है। अपनी यात्रा के तहत अभी तक 14 जिलों का भ्रमण कर चुका हूं। अगर इक्का दुक्का नेताओं को छोड़ दूं । तो हर नेता का यही हाल है। बुराई करने वाले नेताओं की भी अपनी कैटेगरी बनी हुई । कई नेताओं ने तो अपने आसपास ऐसे लोगों का जमावड़ा कर रखा है। जो उनको छोड़ कर अपने जिले के सभी नेताओं की बुराई करते हैं । हद तो तब हो जाती है, जब लोग आप के जिले के नेताओं की बुराई करते करते आप के राष्ट्रीय अध्यक्ष को भी नही छोड़ते। उत्तर प्रदेश का कोई जिला हो, समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच एक दूसरे की बुराई करने का दौर कर रहा है। जिसकी वजह से समाजवादी पार्टी जबरदस्त फूट का शिकार हो चुकी है। समाजवादी पार्टी और उसका कार्यकर्ता और नेता कमज़ोर नही है। अपने किसी भी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी से अकेले लोहा ले सकता है। अगर उसके लोग उसके साथ खड़े हों। लेकिन ऐसा देखने मे आया है कि हर समाजवादी पार्टी का नेता किसी दूसरे नेता के पीछे पड़ा हुआ है। अपनी इसी प्रवृत्ति के कारण 2017 का जीता हुआ चुनाव हार कर बैठे नेताओं को अब भी अक्ल नही आई। समाजवादी पार्टी का नेता बुरा है, यह मैं नही कहता। लेकिन समाजवादी पार्टी का नेता किसी के कहने में जल्दी आ जाता है। यह सही है। यानी वह भोला है। उसे कोई बेवकूफ बना सकता है। समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं के इसी भोलेपन का फायदा उठा कर विरोधियों ने इनके बीच के लालचियों को तलाश किया। जो पैसे और सहूलियत की लालच में अपनी बहन, बेटी, पत्नी का भी दांव लगा सकता हो। अक्सर लोग पैसे के लिए गिरते हुए देखे गए है। ऐसे लोगों का एक ही काम होता है कि जिला स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक के नेताओं का भरवाना। साथ ही युद्ध स्तर पर प्रतिस्पर्धी नेताओं या विजातीय नेताओं का विरोध करवाना। यह प्रक्रिया जब एक नेता के यहां से शुरू होती है, तो झट से दूसरी ओर से भी शुरू हो जाती है। इस प्रकार सपा नेताओं में बुराई युद्ध हमेशा चलता रहता है। अपने अनुभवों में मैंने यह भी पाया कि कुछ पढ़े लिखे, और हराम से कमाए हुए पैसे के बल पर धनाढ्य बने लोग समाजवादी पार्टी के यादव लड़कों को शराब, शबाब का लालच देकर, उनकी जेबों में सौ रुपये का एक नोट डाल कर बुराई का सिलसिला चलाते रहते हैं। वह भोला भाला सपा कार्यकर्ता यह समझ ही नही पाता है कि जिस अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव की वह जयकारा लगा रहा है, जिस डाल पर वह बैठा है, उसी डाल को काट रहा है। उसके हार की बुनियाद भर रहा है। और शाम की एक पौव्वा के लिए यह सब कुछ करता रहता है। उसके बीबी बच्चे अन्न अन्न को मोहताज रहते हैं। बिलबिलाते हैं, लेकिन उन्हें इसका कोई असर नही पड़ता है।
जिस समाजवादी पार्टी में इस हद तक बुराई हो, उसमे लोग एक दूसरे को पंचायत से लेकर विधानसभा - लोकसभा चुनाव में हराने की कोशिश करें, तो कौन सी आश्चर्य की बात होगी । दरअसल 2017 की जीत इसी बुराई पुराण की भेंट चढ़ गई। अखिलेश यादव को हराने की ताकत किसी मे नही थी। लेकिन पैसे के लिए किसी हद तक गिरने वाले एक तरफ समाजवादी पार्टी जिंदाबाद के नारे भी लगाते रहे और जय जय जय जय अखिलेश करते रहे और उन्हीं अखिलेश यादव और उनकी पार्टी को हराने के लिए प्रयास करते रहे। हार के बाद पूरी पार्टी सकते में रही। लेकिन ऐसे लोगों पर कोई फर्क नही पड़ा। वे आज भी समाजवादी पार्टी में है। उनके सारे धंधे पहले जैसे चल रहे है। दलाली से लेकर मक्कारी तक। वे आज भी मजे में हैं और अपने बेनामी आकाओं के इशारे पर बुराई पुराण का वाचन और श्रवण का सिलसिला चला रहे हैं। समाजवादी पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं को उसी में मजा आ रहा है। 2022 में अखिलेश यादव के 351 सीट जीतने और सरकार बनाने के मंसूबों पर जब वे पानी फेर देंगे, तब उन्हें होश आएगा।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट