सपा विधायकों व नेताओं की सेवा अनीति : 2022 जीत का सबसे बड़ा रोड़ा

विगत 12 जुलाई, 2020 से मैं उत्तर प्रदेश के गावों में कोरोना - पर्यावरण जागरूकता अभियान शहीद सम्मान सायकिल यात्रा के तहत भ्रमण कर रहा हूँ। इस दौरान विश्व स्वास्थ्य संगठन, भारत सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी गाइड लाइन के तहत लोगों को जागरूक कर रहा हूँ। पर्यावरण के प्रति लोगों से सजग रहने का अनुरोध कर रहा हूँ। साथ ही पर्यावरण को क्षति पहुंचाने, प्रदूषित करने की मनाही भी कर रहा हूँ। साथ ही यह भी बता रहा हूँ कि मनुष्य द्वारा अंधाधुंध विकास के नाम पर जो प्रकृति का दोहन हुआ है, उसी की परिणिति के रूप में कोरोना महामारी आई है। जब तक इसकी कोई दवा या बैक्सीन नही बन जाती है, तब तक हम सभी को दो गज की दूरी और मास्क है, जरूरी का पालन करना चाहिए। विशेष कर जब हम किसी से बात कर रहे हों, तो मास्क और और दूरी का ध्यान जरूर रखें। लेकिन गावों में मुझे कम से कम दो जगह कार्यक्रम करना पड़ रहा हैं। इस दौरान मैंने महसूस किया कि लोगों के इस तरह के सामाजिक बिलगाव के पीछे राजनीति है। ऐसे में जब कभी कभी यादवों के गावों में दो जगह कार्यक्रम करना पड़ता है। जहां मैं लोगों के मन की शंकाओं और कुशंकाओं को दूर करता हूँ, वह दो जगह करना पड़ता हूं। ऐसा होने पर मुझे लगा कि यह कोई सामान्य प्रक्रिया तो है नही, इसके पीछे कोई न कोई कारण अवश्य है। जब मैंने अपने मन मे चल रहे इस सवाल का उत्तर स्थानीय लोगों में खोजना शुरू किया, तो पता चला कि गांव की हर जाति में दो गोल है। इसके पीछे जो कारण हैं, वे बेहद चौकाने वाले हैं। आज के लेख में उन्हीं कारणों का विश्लेषण कर रहा हूँ ।
इस संबंध में गांव वालों ने बताया कि अधिकतर गावों के प्रधान भी राजनीतिक दलों में बंटे हुए हैं। जहां तक समाजवादी पार्टी के मूल वोटरो में यादवों का सवाल है, आज से दस साल पहले तक वे आपस मे भले लड़ते झगड़ते रहे हों, लेकिन जब विधानसभा का चुनाव आता, तो सभी आपसी मनमुटाव से ऊपर उठ कर वोट करते। आज भी प्रधानी और प्रधानों से हम गाँव वालों को कोई शिकवा - शिकायत नही है। जो शिकवा शिकायत है, वह समाजवादी पार्टी के विधायकों से है। इन विधायकों ने यादव बाहुल्य गावों में खेमेबाजी शुरू कर दी। गांव वालों ने बताया कि जब गांव के किसी दो लोगों के बीच मे कोई झगड़ा या फसाद हो, और समाजवादी पार्टी के विधायक को इसका पता चले, तो उसका पहला दायित्व यह बनता है कि जब वे चुनाव में खड़े हुए थे, तब सभी ने मिल कर उन्हें वोट दिया था । जिसकी वजह से वे माननीय बने । लेकिन विधायक बनने के बाद इन विधायकों की दृष्टि संकुचित हो गई। और अपने कुछ नजदीकी लोगों के दबाव में वे एक का पक्ष लेने लगे और दूसरे पर पुलिस और अपने लोगों से अनावश्यक अत्याचार कराने लगे। जिसके कारण विधायक जी से एक पक्ष दूरी बनाने लगा। इस तरह से समाजवादी पार्टी के अधिकांश विधायको की इस कार्यशैली की वजह से राजनीतिक स्तर पर दो गुट बन गए। यादवों में दो गुट हो गए। विधायक और उसके गुट से अलग दूसरी पार्टी की मदद करने लगे। चुनाव में वोट करने लगे। इस संदर्भ में जब मैंने यादव बाहुल्य गावों की जांच की, तो पाया कि विगत लोकसभा और विधानसभा चुनाव में हर ऐसे गांव में भी समाजवादी पार्टी के पक्ष में पूरे वोट नही पड़े। कहीं कहीं इस प्रकार के वोटों का प्रतिशत 30 से लेकर 60 तक पाया। 2022 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए अगर यही स्थिति रही, तो समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 351 प्लस सीटों का जो लक्ष्य निर्धारित किया है, वह काफी दुष्कर होगा। अगर वाकई 2022 के विधानसभा चुनाव को लेकर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संवेदनशील है, तो उन्हें अपने सभी विधायकों को यह नसीहत देने पड़ेगी कि जिन गावों में सभी वोटर समाजवादी पार्टी के वोटर हों, यानी समाजवादी के मूल वोटर हों, अमूमन उनके निजी झगड़ों में फंसना नही चाहिए और अगर इन्वाल्व होना पड़े, तो दोनों पक्षों को बुलाकर समझौता करा देना चाहिए। अन्यथा समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का चुनावी गणित एक बार फिर फेल हो जाएगा। वैसे भी राजनीति अंकगणित के हिसाब से नही चलती है।यहां 2 प्लस 2 चार नही होता है, कभी कभी माइनस चार भी हो जाता है। यानी जहां जुड़ना चाहिए, जरा सी गलती पर वे माइनस हो जाते हैं। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के विधानसभा चुनाव के समय जो गठबंधन किया, उसका परिणाम नकारात्मक आया। वोट जुड़ने के बजाय कम हो गया
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने दल के नेताओं और पिछड़ा व अनुसूचित जाति के पैरोकारो की सलाह और दबाव पर बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया। लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात। इस गठबंधन में जहां क्लीन स्वीप जी बात की जा रही थी वहां समाजवादी पार्टी के कई ऐसे दिग्गज हार गए, जिनके हार की किसी ने कल्पना नही की थी। नामसमझ नेताओं ने एक दूसरे पर हार का ठीकरा फोड़ कर अलग हो लिए।
दरअसल समाजवादी पार्टी के जो सलाहकार रहे, उन्हें जमीनी जानकारी नही रही, उनका ज्ञान फेसबुक से लिया गया उधार ज्ञान रहा। समाजवादी पार्टी के इस तरह के सलाहकार विद्वानों ने हर क्षेत्र के कुछ पियक्कड़ फेसबुकियों से दोस्ती कर रखी थी। अपनी प्रमाणिकता के रूप जिसका समय समय पर इस्तेमाल करते। कभी कभी उनका इस्तेमाल भी करते। और अखिलेश यादव को दिग्भ्रमित करते। अखिलेश यादव के इर्द गिर्द जो नेता रहे, वे महंगी और बड़ी गाड़ियों से चलने वाले लोग रहे। सरकार होने की वजह से उन्हें अपने क्षेत्र की जनता भी कीड़े मकोड़े से कुछ अधिक प्रतीत नही होती। उन्होंने अपने क्षेत्र की जनता से कभी मिलना दूर, उसकी आंख में धूल का गुबार बिखरते आगे बढ़ जाते। इसकी वजह से जनता ने मन ही मन उनसे बदला लेने का मंसुबा बना लिया। और किसी को इसकी भनक नही लगने दी।
समाजवादी पार्टी के विधायकों ने जो मूल वोटरों में विभेद किया, वह उनके ही गले की फांस बन जाएगी, इसका विचार नही किया। जिसकी वजह से 2017 का परिणाम नकारात्मक आया। समाजवादी पार्टी का प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी ने विधायको की इस गलती को अपना हथियार बनाया। ऐसे लोगों के पास पहुंचे, जो सपा विधायकों के अत्याचार के शिकार बने थे। उन्हें सुरक्षा और न्याय का आश्वासन दिया और अपने पक्ष मे वोट करने को राजी कर लिया। जबकि इसके पहले ऐसा नही होता था। लोग स्थानीय स्तर पर कितना लड़ते रहे हों, लेकिन जब बात विधानसभा के चुनाव की आती, तो एक हो जाते। अखिलेश यादव ने इसी आधार पर राजनीति के गणित का सवाल साधा था , लेकिन भाजपा की सहयोगी संघ ने उनकी रणनीति पर पानी फेर दिया। ऐसी दुश्मनी जो विधानसभा चुनाव में प्रभावी नही होती थी, उसे स्थाई बना दिया।
यही नही, गांव में जब कोई कार्यक्रम होता, तो सभी सक्रिय सपा नेताओं, बुजुर्गों को मंच पर न बुलाने की वजह से भी गांव में दो पक्ष बनने लगे। स्थानीय विधायक उन्हीं को मंच पर स्थान देता, जो उसके नजदीक होते। या जिनका नाम वे रिकमेंड करते। उनकी इस हरकत से राजनीतिक स्तर पर गांव दो पक्षों में बंट गए। विधायको की गलती और उपेक्षा की वजह से गावों की आपसी दुश्मनी राजनीतिक दुश्मनी में बदल गई। जिन गावों में कभी केवल समाजवादी झंडा लहराता था, भाजपा का झंडा भी लहराने लगा। अन्य जातियों को समाजवादी पार्टी के मूल वोटरों से अलग करने के बाद सपा विधायको की गलतियों का अध्ययन कर उनमे से एक गुट को भारतीय जनता पार्टी अपने पक्ष में करने में सफल रही । जो उसकी जीत का मुख्य आधार बना। इस नई समस्या की पहेली को अखिलेश यादव कैसे सुलझाते हैं, भविष्य में देखने को मिलेगा।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट