आजम खां का प्यार या आतंक ?

इन दिनों कोरोना पर्यावरण जागरूकता अभियान शहीद सम्मान सायकिल यात्रा रामपुर के कस्बों से लेकर गांव गांव भ्रमण कर रही है। इस यात्रा के दौरान मेरा फोकस मुख्य रूप से लोगों को कोरोना से बचने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी ऐतिहातों से अवगत कराना है। साथ ही उनके मन मे कोरोना से संबंधित जो सवाल हैं, उनका उत्तर देना है। इसके साथ साथ पर्यावरण को कैसे संरक्षित रखा जाए, इस पर चर्चा होती है। लेकिन सायकिल से यात्रा करने की वजह से अधिकांश लोग मुझे समाजवादी पार्टी का कार्यकर्ता ही समझते है । इस कारण जब औपचारिक बातचीत होने लगती है, तो सारी चर्चा अंत मे समाजवादी पार्टी के इर्द गिर्द सिमट जाती है। समाजवादी चिंतक होने के नाते अपने ज्ञान को अपडेट करने के लिए समाजवादी पार्टी की जमीनी राजनीति को समझने का कार्य भी साथ साथ चलता है। साथ ही समाजवादी पार्टी से अगर कोई सवाल होते हैं, तो उसका भी जवाब देना पड़ता है। 12 जुलाई को शुरू हुई अपनी यात्रा के दौरान अभी तक मैंने 2 हजार किलोमीटर से अधिक दूरी तय की है। कानपुर नगर से शुरू हुई यह यात्रा कानपुर देहात, औरैया, इटावा, मैनपुरी, कन्नौज, फर्रूखाबाद, बदायूँ, संभल, मुरादाबाद, अमरोहा के बाद रामपुर पहुंची है। इन जिलों की अधिकांश विधानसभाओं के गावों में भ्रमण के साथ चर्चा भी हुई। लेकिन रामपुर जिले मे पिछले चार दिनों से जो अनुभव हो रहा है, वह अलग है । आज के लेख में उसी की चर्चा कर रहा हूँ ।
समाजवादी राजनीति के संदर्भ में जब जब रामपुर की चर्चा होती है, तब तब आजम खां की भी चर्चा होती है । समाजवादी पार्टी में आजम खां का क्या कद रहा है, या है, यह किसी से छिपा नही है। इस जिले में बूथ से लेकर जिला स्तर की राजनीति आजम खां के इशारे पर ही चलती रही है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव हों, या संस्थापक अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव हों ? रामपुर के मामले में आज तक कोई फैसला आजम खां से बिना सलाह मशविरा के नही किया। इसके पीछे सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के प्रति घोर श्रद्धा रही है। जौहर विश्वविद्यालय बनाने के पूर्व छोटे से छोटे और बड़े से बड़े हर कार्यक्रम में सपा सांसद आजम खां ने नेताजी की अनुपस्थिति में भी कई बार नाम लेते रहे है । पार्टी और नेताजी के प्रति अपनी निष्ठा के कारण आजम खां ने मुलायम सिंह और उनके परिवार का विश्चास जीत लिया। मुलायम सिंह की सभी सरकारों में आजम खां ने उप मुख्यमंत्री की भूमिका का निर्वहन किया। बिना पद के काम किया। अखिलेश यादव की सरकार में उनकी गणना चार मुख्यमंत्रियों में की जाती थी। उनकी इसी प्रकार की निष्ठा के कारण रामपुर के संदर्भ में वही होता रहा, जो आजम खां चाहते। नेताजी और अखिलेश यादव को भी यही लगता कि आजम खां किसी भी परिस्थिति में पार्टी का अहित नही कर सकते हैं। इस प्रकार मुस्लिम समुदाय के वे सबसे बड़े समाजवादी नेता बन गए। रामपुर से लेकर सहारनपुर यानी सम्पूर्ण पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वही होता, जो आजम खां चाहते। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की संख्या अधिक होने के कारण अधिकांश सीटों पर वे मुसलमान प्रत्याशियों को जीता भी लाते थे। लेकिन आजम खां ने जिन नेताओं को सरपरस्ती दी, उन लोगों ने हिंदुओं पर बेइंतहा जुल्म भी ढाए। समाजवादी पार्टी के मूल वोटर माने जाने वाले वोटरों यादवों की भैंसे और गायें खुली, उन्हें मार डाला गया, उसका मांस बेच दिया गया, जिसकी वजह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी अस्मिता और संपत्ति की रक्षा के लिए एक हो गए। इसी कारण पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ज्यादातर चुनाव हिन्दू मुस्लिम आधार पर लड़े जाते है। और जहां सत्तर फीसदी से कम मुसलमान हैं, वहां भारतीय जनता पार्टी की जीत होती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जितनी इस प्रकार की घटनाएं होती हैं, सभी आरोपियों को छुड़ाने या एफआईआर न दर्ज होने के पीछे आजम खां का हाथ है, पश्चिमी उत्तर प्रदेश का हर हर पशुपालक उनके नाम शामिल होने की बात कहता है। इसका भी भारतीय जनता पार्टी ने लाभ उठाया और हिन्दू हो या मुसलमान, सभी पशुपालकों को अपने पक्ष में कर लिया। उत्तर प्रदेश में चाहे कितनी भी वर्तमान सरकार की आलोचना हो रही हो, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश का पशुपालक समाज राहत का अनुभव कर रहा है। जिसकी लाखों रुपये की भैंस घर के खूंटे से चली गई हो, वह यादव होने के बाद भी समाजवादी पार्टी को कभी वोट नही करेगा। कर सकता है, लेकिन इसके लिए अखिलेश यादव को खुद उनके बीच मे जाकर यह कहना पड़ेगा कि अगर इस बार हमारी सरकार आई, तो किसी की भी गाय और भैंस नही छूटेगी। अगर ऐसा करने की किसी ने हिमाक़त की, तो उसे जेल की सींकचों के पीछे भेज दिया जाएगा और उस किसान को वैसी ही भैंस या गाय हमारी सरकार देगी, हो सकता है, तब कुछ सम्भव हो जाये।
इसमें कोई दो राय नही है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में आजम खां की गहरी पैठ है और उनके ही इशारे पर विधानसभा और लोकसभा चुनाव के टिकट तय होते हैं । पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में आजम खां के प्रभाव और परिणाम पर आंशिक चर्चा के बाद मैं रामपुर की समाजवादी पार्टी की राजनीति की चर्चा करता हूँ । जौहर विश्वविद्यालय और अपने बेटे की मार्कशीट की वजह से रामपुर के मैदान से सीतापुर की जेल में पहुंचे आजम खां का जलवा आज भी रामपुर की समाजवादी पार्टी की राजनीति में बरकरार है। जब से आजम खां जेल में गए हैं, समाजवादी पार्टी का बड़े से बड़ा और छोटे से छोटा नेता अपने घर मे बैठा है। सपा कार्यालय से लेकर नेताओं कार्यकर्ताओं के घर तक मातम फैला हुआ है। कोई भी कार्यकर्ता जनता के बीच नही जा रहा है। सपा जिला अध्यक्ष से लेकर बूथ लेवल का कार्यकर्ता इसलिए नही निकल रहा है कि उसे ऐसा लगता है कि कहीं आजम खां उसकी इस कार्यविधि से नाराज नही हो जाएं । बातचीत के दौरान इस जिले के सभी नेताओं ने इस बात को स्वीकार किया कि अगर चुनाव या उपचुनाव में आजम खां बाहर नही आते हैं, तो यहां की एक भी सीट भी सपा नही जीतेगी । स्वार टाण्डा विधानसभा में उप चुनाव का भी जब मैं हवाला देता हूँ कि अगर आप लोग सक्रिय नही होंगे, तो उप चुनाव कैसे जीतेंगे? तो भी उनका उत्तर हां में नही होता है। जब मैंने यहां के लोगों से यह पूंछा कि अगर हर फैसले आजम खां ही लेते हैं, तो आप सीतापुर जेल जाकर उनसे भेंट करके उनकी रजामंदी क्यों नही ले लेते ? तो वे लोग यह कहते हैं कि इस समय कॅरोना संक्रमण की वजह से किसी की मिलाई नही हो रही है। तमाम चिंतन के बाद भी मैं इस निर्णय पर नही पहुंच पाता कि यह आजम खां का प्रेम है कि आतंक ? जो उनके और उनके परिवार की अनुपस्थिति में सपा कार्यकर्ताओं और नेताओं को जनता के बीच मे जाने नही दे रहा है।
जब मैं इसे प्रेम के संदर्भ में लेकर लोगों से संवाद करता हूँ, तो ऐसा लगता है कि यह प्रेम है। जितने भी हिन्दू या मुस्लिम सपा कार्यकर्ताओं और नेताओं तक मैं पहुंच सका, उन सभी ने इस बात को स्वीकार किया कि हमारे न आने जाने की वजह से, या किसी और बात की वजह से भले ही डांटा हो, लेकिन अगर हमारा काम उन्हें उचित समझ में आया, जरूरी समझ मे आया, तो उन्होंने किया जरूर। किसी को भी निराश किया नही। बस वे यही देखते थे कि यह काम कानूनी रूप से हो सकता है कि नही ? वे बड़े कानूनी आदमी हैं। उन्होंने लॉ की पढ़ाई भी के रखी है। बस उनका अंदाज चुटीला है, अगर किसी व्यक्ति ने पार्टी के साथ गद्दारी की, या किसी कार्यकर्ता नेता के कहने पर पार्टी के दिशा निर्देशों का पालन नही किया, तो उस पर चुटीले अंदाज में व्यंग जरूर कसते रहे। लेकिन उसका काम कभी नही रोका। जुबान से मारते जरूर थे, पर पेट पर किसी के लात नही मारी। जो नेता या कार्यकर्ता उनके पास आता जाता रहा, उसे वह समझाते भी रहे कि कैसे काम करना है। उनकी एक आदत रही कि वे अपने को सदा कम आंकते, और इसी कारण अंतिम पल तक अपने नेताओं, नजदीकी लोगों से कहते कि यहां से वोट कम मिलने की सम्भवना है, इसे ठीक करो। इतना ही नही, आजम खां अपने परिचितो के घर चले जाते और वहीं पर सभी लोगों को बुलाकर दावत करते और चर्चा करते। धन्यवाद भी देते, और आगे के लिए सचेत करते। जो लोग उनका विश्वास जीत लेते, बिना कहे, उनका टिकट करवा कर लाते। और चुनाव प्रबंधन से लेकर चुनावी रणनीति खुद तय करके उस उम्मीदवार को समझाते, साथ मे खुद लग कर चुनाव जिताते। आम कार्यकर्ताओं के साथ भी उनका व्यवहार बेहद संजीदा होता। उनसे केवल काम की बातें करते। लेकिन जो लोग अपनी निष्ठा के कारण उनका विश्वास अर्जित कर लेते, उनसे खूब हंसी मजाक भी करते। इस तरह की बातें जब यहां की जनता, नेताओं, कार्यकर्ताओ के मुंह से सुनता हूँ, तो ऐसा प्रतीत होता है कि यहां के लोगों का आजम खां से प्रेमपूर्ण रिश्ता है। इसी कारण लोग उन्हें मान देते हैं और हर काम के पूर्व उनकी रजामंदी चाहते हैं।
अब आतंक के परिप्रेक्ष्य में भी आजम खां की चर्चा कर लेते हैं। अपने जीवन मे सिद्धांतवादी और कानूनी व्यक्ति होने के कारण वह किसी के साथ भी बेवजह समय जाया नही करते। घर का हो, या बाहर का, सभी के साथ उतना ही समय बिताते हैं, जितनी उसको जरूरत होती है। अपने स्वभाव के अनुसार दो टूक बातें करना और दो टूक बातें सुनना पसंद करते हैं । इस कारण भी उन्हें न जानने वालों को उनका आतंक समझ मे आता है। कोई गलत या हवा हवाई नेता, दलाली या मक्कारी करने वाला युवा उनके आसपास फटकने की जुर्रत नही कर सकता । रामपुर के ऐसे ही समाजवादी कार्यकर्ता लोगों पर उनका आतंक है, ऐसा कहते सुने जाते हैं।
पाठकों को यह बात चुभ सकती है कि जो व्यक्ति अपने विश्वविद्यालय और बेटे की कूटरचित मार्कसीट की वजह से आरोपी गेन, और जेल में बंद हैं, उसका प्रेम नहीं, आतंक हो सकता है। ऐसे समय मे जब वे जेल में हैं, उनके बारे में लोग बेलाग और बेबाक होकर अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। जिसकी सत्यता पर संदेह नही किया जा सकता है। आलोचक वे हो सकते हैं, जो सुनी सुनाई बातों पर कल्पना का संसार रचते हैं ।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट