श्रीमद् देवी भागवत महापुराण का विनियोग:- (निरंजन मनमाडकर)

भगवान कृष्णद्वैपायन व्यासजीने समस्त मनुष्य जाति के उद्धार हेतू भिन्न भिन्न पुराणों की रचना की है.
इस पुराणसंहिताओंको महापुराण, उपपुराण तथा औपपुराण में विभाजित किया जाता है जो लक्षणोंसे निश्चित होता है! तथापि मत्स्य महापुराण एवं स्कंदपुराण के प्रभास खण्डके अनुसार देवी भागवत को महापुराणोंकी सूची में समाहित किया है!
सारस्वतस्य कल्पस्य मध्ये ये स्युर्नरोत्तमः |
तद्वृत्तान्तोद्भवं लोके तद्भागवत मुच्यते ||
[मत्स्य महापुराण ५५-११
स्कंद महापुराणम् ७-२-४० प्रभास खं]
हर एक पुराण की कथा होती है, उस कथा का प्रतिपाद्य विषय रखने केलिए एक ऐतिहासिक पार्श्वभूमी कही जाती है, एक हेतू होता है, उद्देश होता है! उस उद्देश की पूर्तीहेतू मुख्य प्रतिपाद्य विषयको बडे विस्तारपूर्वक, विभिन्न कथाओंके माध्यमसे वक्ता श्रोता को सुनाते है, ऐसा परीपाठ हर पुराणसंहिता में देखने को मिलता है.
देवी भागवत माहात्म्यम् स्कंदपुराण के अनुसार - १-१८ से १-२२ तक
स्वयं तु श्रावयामास जनमेजयभूपतिम् |
पूर्वमस्यपिता राजा परीक्षित्तक्षकाहिना ||
सन्दष्टस्तस्य संशुद्ध्यै राज्ञा भागवतं श्रुतम् |
नवभिर्दिवसैःश्रीमद्वेदव्यासमुखाम्बुजात् ||
त्रैलोक्यमातरं देवी पूजयित्वा विधानतः |
नवाह यज्ञे संपूर्णे परीक्षिदपि भूपतिः ||
दिव्यरूप धरो देव्याः सालोक्यं तत्क्षणादगात् |
पितुर्देव्याः गतिंराजा विलोक्य जनमेजयः ||
हम सब को ज्ञात है की कलियुग के प्रभावसे प्रमादवश मुनि की अवहेलना करने के कारण महाराजा परीक्षित को मुनिपुत्र ने शाप दिया की तुम्हारी मृत्यु सर्पदंश के कारण होगी!
शास्त्रोंके अनुसार जिसकी भी मृत्यू साँप के काटने से होती है उसे अधोगती प्राप्त होती है. इस निवारण हेतू बहोत सारे कठिण व्रत एवं तपानुष्ठान विभिन्न पुराणों में कहे गए है..... अस्तु!
मुख्य देवी भागवत महापुराण का प्रवचन भगवान कृष्णद्वैपायन व्यासजीने महाराज जनमेजय को किया है!
शास्त्र वचनों के अनुसार अपने पिता महाराज परीक्षित की मृत्यू सामान्य नही थी उनकी अकालमृत्यु एवं असामान्य मृत्यू हुई थी, इस कारण परीक्षितपुत्र राजा जनमेजय चिंतित थे! व्यग्र थे! पुत्र का पुत्रत्व तभी सिद्ध होता है जब वह अपने पितरों को गती प्रदान कर सके, उन्हे अधोगतीसे बचा सके..! इसी कारण वे महाराज जनमेजय व्यास जी की शरण में आकर पूँछते है "ब्रह्मन्! किस उपाय से मेरे पिता की उर्ध्व गती होगी?" तभी जनमेजय की शंका समाधान हेतू वेदव्यास जी देवी भागवत कथा का प्रवचन सुनाते है! नौं दिन नवरात्र विधान से माँ भगवती की विधिविधानसे पूजा एवं कथा श्रवण करने के बाद महाराज परीक्षित को देवी माता की सालोक्य मुक्ति प्राप्त होती है! उस नवाहयज्ञसे राजा परीक्षित को दिव्यदेह की प्राप्ती होती है एवं जनमेजय का पुत्र दायित्व फलीभूत होता है.....
राजा परीक्षित की सर्पदंश से अपमृत्यू, जनमेजय का प्रतिशोध, सर्पसत्र एवं व्यासोपदेश युक्त देवी भागवत प्रवचन यह कथा बडे विस्तार से द्वितीय स्कंध में आती है...
और व्यास भगवान स्वयं राजा जनमेजय को यह कथा सुनाते है.
देवी भागवत में आने वाले भिन्न आख्यानों, स्तोत्रं एवं उपदेशों के पाठ से पितरों को परमपद की प्राप्ती का वरदान या फल बताया है...
श्राद्ध काले पठेदेतद् ब्राह्मणानां समीपतः |
तृप्तास्तत्पितरः सर्वे प्रयान्ति परमं पदम् ||, ७-४०-३७
अगर श्राद्ध के समय पाठ किया तो पितरों को परम गती प्राप्त होती है
सहस्रकल्पपर्यन्तं ब्रह्मलोके महत्तरे |
वसन्ति पितरस्तस्य ब्रह्मलोके महत्तरे ||
७-३०-९४
सहस्र कल्पोंतक उसके पितर ब्रह्मलोककों प्राप्त होते है.
श्राद्धकाले पठेदेतन्नामाष्टशतमुत्तमम् |
तृप्तास्तत्पितरः सर्वे स याति परमां गतिम् || ७-३०-१००
देवी भागवत में कहे गये १०८ शक्तिस्थानोंका स्मरण, यदि श्राद्ध काल में किया जाय तो पितरों की तृप्ती हो कर परमगती प्राप्त होती है.
पायसं पूर्णिमातिथ्यामपर्णायै प्रयच्छति |
ददाति च द्विजाग्र्याय पितॄनुद्धरते खिलान् ||
८-२४-२०
पौर्णिमा तिथी को जो भी माँ भगवती को पायस का भोग लगाता है उसके अखिल पितरों का उद्धार होता है
स्तोत्रमेतच्छ्राद्धकाले यः पठेत्प्रयतो भवेत् |
पितॄणामक्षया तृप्तिर्जायते कल्पवर्तिनी || ८-२४-६०
इस देवी स्तोत्रम् का पाठ यदि श्राद्ध काल में किया जाए तो पितरों की कल्पवर्तिनी अक्षय तृप्ती होती है.
श्राद्धकाले स्वधास्तोत्रं यः श्रृणोति समाहितः |
स लभेच्छ्राद्धसम्भूतं फलमेवं न संशयः ||९-४४-२९
आदि प्रमाणोंसे स्पष्ट होता है की देवी भागवत महापुराणम् का पाठ पितरोंको उत्तम गती प्रदान करता है!
जब यह पुराण पूर्ण हुआ तब अंत मे स्वयं देवर्षी नारदजी उस प्रवचन स्थलपर आएं एवं उन्होने कहा...
पितां ते दुर्गतिं प्राप्तो निजकर्मविपर्ययात् |
राजन्! तुम्हारे पिता को अपने कर्मों के कारण दुर्गती प्राप्त हुई थी, वे अभी दिव्यरूप को प्राप्त हुए है..
देवीभागवतस्यास्य श्रवणोत्थफलेन च |
अम्बामखफलेनापि पितां ते सुगतिं गता ||
हे राजन् आपने जो देवी भागवत की कथा सुनी एवं माँ भगवती का जो यज्ञ किया उसके फलस्वरूप महाराज परीक्षित को यह दिव्य गती प्राप्त हुई है १२-१३-१३-से २०
आपका जन्म सफल हुआ आप धन्य हो! आपकी किर्ती कल्पोंतक रहेगी!
आपकी देवी भागवत महापुराणम् कथा के कारण पितरोंका उद्धार हुआ!
अतः मनुष्य को चाहिए की अपने पितरों की गती केलिए एवं तृप्ती केलिए देवी भागवत महापुराणम् का पारायण करना या करवाना चाहिए.
पितरों की अपमृत्यू दोष के कारण जो वंशवृद्धी में बाधा आती है, जैसे की शादी नही होना, बच्चों कि अचानक मृत्यू, गर्भधारणा न होना आदि....!
इन सभी प्रकारकें संकटोसे निवृत्त होने के लिए माँ भगवती के प्रीत्यर्थ देवी भागवत महापुराणम् पारायण, पूजा एवं अंबा मख करना चाहिए.
नौ दिन पारायण संपूर्ण कर दसवे दिन यज्ञ करना चाहिए, ब्राह्मणोंको तथा देवीभक्तोंको भोजन देना चाहिए.
देवी भागवत पुस्तक का दान करना चाहिए. यथाशक्ती दक्षिणा, वस्त्र दान करना चाहिए.
यह कथा नवरात्र विधान से करनी चाहिए
प्रथम दिन
१-१-१ से ३-३-५६ (३५ अध्याय)
दुसरे दिन
३-४-१ से ४-८-४८
तिसरे दिन
४-९-१ से ५-१८-७०
चौथे दिन
५-१९-१ से ६-१८-६२
पाँचवे दिन
६-१९-०१ से ७-१८-५८
छठवे दिन
७-१९-०१ से ८-१७-२९
सातवे दिन
८-१८-०१ से ९-२८-३०
आठवे दिन
९-२९-०१ से १०-१३-१२७
नववे दिन
११-०१-०१ से १२-१४-३१
ऐसा पारायण क्रम होना चाहिए! पश्चात हवन एवं पूजन का विधान है!
पर्व काल? देवी भागवत पाठ का पूर्वकाल नवरात्र पर्व या फिर कृष्णपक्ष में करना चाहिए!
हर तीन सालों बाद अधिक मास आता है! अधिक मास को पुरूषोत्तम मास कहा है वह भगवान का स्वरूप माना जाता है! किंतु जब कभी, सामान्यतः१९-२१ सालों में एकबार अधिक-अश्विन आता है की जो माँ भगवती को अत्यंत प्रिय है, उसे नारायणी का मास कहते है अतः इस मास में देवी भागवत महापुराणम् का पारायण करने से माँ भगवती की विशेष कृपा सिद्धी प्राप्त होती है! अतः मूल पितरों की गती केलिए इस अधिक अश्विन योग में देवी भागवत महापुराणम् का पारायण करना चाहिए या करवाना चाहिए!
ॐ नमश्चण्डिकायै
लेखन व प्रस्तुती
©निरंजन मनमाडकर पुणे महाराष्ट्र