किसानों पर प्राकृतिक, प्रशासनिक और सरकारी आपदा।

ऐसे समय में जब सम्पूर्ण विश्व को खाद्यान्न उपजाने की किसानों के कंधों पर जिम्मेदारी है । जिसे उसने चैलेंज के रूप में लिया है । कोरोना संक्रमण जैसी विषम परिस्थितियों में भी वह घर पर बैठने की बजाय पहले की अपेक्षा चौगुनी मेहनत कर रहा है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अपील पर रात दिन कृषि कार्यों में लगा हुआ है । उसे किसी से किसी प्रकार के सहयोग की अपेक्षा नही है। इस पृथ्वी पर वही एकमात्र ऐसा मर्द है, जिसे अपनी भूख के साथ साथ हर नागरिक के भोजन की चिंता है। इसी कारण उसे विश्वपिता कहा गया । क्योंकि प्रकृति या भगवान ने पृथ्वी पर स्थित जीवधारियों के पालन पोषण की जिम्मेदारी उसी को दे रखी है । और अभी तक वह अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाता आया है।
कोरोना संक्रमण का पूरी दुनिया पर प्रभाव पड़ा है। कोरोना संक्रमण कक रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो लॉक डाउन का कदम उठाया, उससे देश की सारी व्यवस्था चरमरा गई है । सारी गतिविधियां ठप हो गई थी। लेकिन इसके बावजूद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आवश्यक वस्तुओं के निर्माण और वितरण पर कोई रोक नही लगाई थी। अगर उत्तर प्रदेश की बात करें, तो अनलॉक डाउन के दौरान भी यहां शनिवार और रविवार दो गईं का लॉक डाउन चल रहा है। कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा लगातार मानीटरिंग की जा रही है । हर हफ्ते मीटिंग या चर्चा करके मूल्यांकन किया जा रहा है। और अगर कहीं सुस्ती या कमी दिख रही है, तो उसका निस्तारण किया जा रहा है। कोरोना संक्रमण के क्षेत्र में किये जा रहे प्रयासों से आम जनता को कोई परेशानी नही है। अगर उसका कहीं विरोध हो रहा है, तो वह विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा हो रहा है। जो उनका राजनीतिक धर्म है उनके इस राजनीतिक धर्म के कारण ही सत्ता पक्ष और चुस्त दुरुस्त होकर कार्य कर रहा है। लेकिन जब हम कोरोना संक्रमण की विषम परिस्थितियों में उत्तर प्रदेश के किसानों से चर्चा करते हैं। अपनी चल रही कोरोना पर्यावरण जागरूकता अभियान शहीद सम्मान सायकिल यात्रा के दौरान उनकी बातें सुनता हूँ, तो ऐसा प्रतीत होता है कि उसकी हर कोई परीक्षा लेने पर तुला है। हर कोई उसे परेशान करने पर तुला है। हस्र कोई उसकी उसकी जरूरत न समझने का नाटक कर रहा है। हर कोई उसके जज्बातों से खेल रहा है।
अब मैं अपने लेख के मुख्य विषय पर आता हूँ । और क्रमवार किसानों की समस्यायों की बात करता हूँ। यह बरसात का समय है। खूब बारिश हो रही है। जिसकी वजह से किसान के घर द्वार और गांव तो बाढ़ की चपेट में आ ही गए हैं । उसकी पूरी की पूरी फसल भी बाढ़ के पानी के अंदर जल समाधि ले चुकी है
यानी पूरी तरह नष्ट हो गई। जिस किसान पर कोरोना संक्रमण काल मे पूरी दुनिया को खिलाने की जिम्मेदारी थी, अब उसे इस बात की चिंता है कि उसके बच्चों के पेट कैसे भरेंगे। उसे किसी की चिंता नहीं है न सरकार की ओर से उसकी कोई चिंता करने वाला है, न ही प्रशासन उसकी दशा से सरकार को अवगत कराने वाला है । इस कारण बाढ़ की चपेट में आया किसान परेशान है। इस समय मैं कोरोना पर्यावरण जागरूकता अभियान शहीद सम्मान सायकिल यात्रा पर हूँ। यह यात्रा इस समय पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले में भ्रमण कर रही है। यहां मैं दूसरे तरह की भी समस्यायों को भी देख रहा हूँ । यह गन्ना क्षेत्र है। चारो तरफ गन्ना ही गन्ना दिखाई पड़ रहे हैं । लेकिन मैंने देखा कि इन गन्ना खेतों से पानी निकलने की व्यवस्था नही है। बारिश अच्छी होने की वजह से खेतों में पानी भर गए हैं। तेज हवा चलने की वजह से गन्ना के खेत के खेत बिछ से गये हैं । इसकी वजह से गन्ना किसानों के चेहरे पर चिंता की लकीरें दिखाई दे रही हैं। लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नही है। इस कारण पश्चिमी उत्तर प्रदेश का किसान भी प्रकृति के प्रकोप का शिकार हो गया है।
इस प्रकार चाहे पूर्वांचल का किसान हो, पश्चिमी उत्तर प्रदेश का किसान हो, मध्यांचल का किसान हो, सभी बाढ़ की विभीषिका से किसी न किसी रूप में प्रभावित है। लेकिन उत्तर प्रदेश के किसान को प्रकृति की मार की उतनी चिंता नही है। क्योंकि प्रकृति उसे बर्बाद नही करती । किसी न किसी रूप में उसे इतना दे देती है, जिससे उसके परिवार का भरण पोषण होने के साथ उसकी जरूरत भी पूरी हो जाती है। प्रकृति की इस बाढ़ विभीषिका के बाद भी उसे अपने अपने भगवान पर विश्वास है कि ऊपर वाला उसे भूखा नही रखेगा।
लेकिन उसके ऊपर अन्य दो आपदाएं हैं, वह मानव जनित हैं । वह प्रशासन और सरकार की देन है । जिसकी वजह से उसे कष्ट है। जिसकी वजह से उसमें आक्रोश है। जिसकी वजह से उसे चिंता है। सरकार और प्रशासन से उसकी बहुत बड़ी अपेक्षा नही होती है । वह उचित होती है । जिसे पूरा करना सरकार और प्रशासन का कर्तव्य होता है । किसान की सरकार से केवल इतनी अपेक्षा होती है कि वह उसे समय पर बीज, खाद, पानी, बिजली, सस्ता डीजल और अन्य आवश्यक वस्तुएं उपलब्ध करा दे । लेकिन सरकार और प्रशासन उसकी इन उचित जरूरतों को भी पूरा नही कर पाता है । या सरकार और प्रशासन को इसकी चिंता नही होती है। या जानबूझ कर सरकार और प्रशासन ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न कर देता है, जिससे काला बाजारी करने अवसर मिले । उचित मूल्य से अधिक पर उसे खाद और बीज खरीदना पड़े। जिससे वह विपन्न का विपन्न बना रहे। खेती में बीज, खाद, पानी देने का एक निश्चित समय होता है। इसलिए प्रशासन और सरकार को समय से इनकी व्यवस्था करना चाहिए। चाहे जो भी सरकार हो, सभी निश्चित समय पर आदेश भी निर्गत करती है। लेकिन उसे अमली जामा न पहनाने के कारण वह केवल कागजी कार्रवाई तक सीमित हो जाती हैं । इस समय भी ऐसा ही देखने को मिल रहा है। किसान यूरिया यूरिया चिल्ला रहा है । लेकिन उसे यूरिया नही मिल रही है । कुछ लोग उसकी काला बाजारी कर रहे हैं । ऊंचे दामों पर छुप छुप कर बेच रहे हैं । किसान इस संबंध में चिल्ला रहा है। उसकी यह पीड़ा समाचार पत्रों में भी अभिव्यक्त हो रही है । लेकिन फिर भी उसकी इस समस्या का निदान नही हो रहा है। सरकार को सोचना चाहिए, प्रशासन को आत्मचिंतन करना चाहिए कि अगर समय से यूरिया खेतों में नही डाली जाएगी तो उपज प्रभावित होगी । ऐसे समय मे जब देश को अधिक अन्न की जरूरत है। अगर सरकार और प्रशासन द्वारा इसी प्रकार हीला हवाली की गई तो फिर किसान क्या करेगा ? जब समय से फसलों को खाद, पानी और कीटनाशक ही नही मिलेगा, तो किसान क्या करेगा ।
ऐसे में सरकार और प्रशासन दोनो का यह कर्तव्य बनता है, कि कोरोना संक्रमण काल मे भुखमरी की स्थिति न उत्पन्न हो, इसके लिए सरकार और प्रशासन दोनो को इस विषम परिस्थितियों में भी बीज, खाद, पानी को समय से उपलब्ध कराना चाहिए। देश के संवेदनशील प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के संत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को किसानों को कोई समस्या हो ही नहीं, इस तरह का प्रबंध करना चाहिए।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट