गांव को गंवार बनाती ऑन लाइन शिक्षा पद्धति

पिछले छः महीने से अधिक हो रहे है, पूरा विश्व कोरोना महामारी की चपेट में है। इस बीमारी की कोई दवा या वैक्सीन न होने की वजह से सावधानी ही बचाव है, विश्व स्वास्थ्य संगठन से लेकर भारत सरकार और सभी प्रांतीय सरकारों के मुख्यमंत्री और राज्यपाल और उपराज्यपाल कह रहे हैं । भारत की स्थिति तो दिन पर दिन खराब होती जा रही है । मीडिया और सरकार द्वारा रोज जो आकड़ें प्रस्तुत किये जा रहे हैं, उन्हें पढ़ कर, देख कर, सुन कर आम आदमी तो सहम सा गया है । भारत मे हर दिन संक्रमित व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि हो रही । उत्तर प्रदेश सहित सभी सरकारें अधिक संख्या के लिए अधिक जांच का सहारा ले रही हैं। ठीक होने के प्रतिशत का हवाला देकर अधिक संक्रमित व्यक्तियों के ठीक होने का ढिढोरा भी पीट रही हैं । जिस समय भारत मे पहले कोरोना मरीज की पुष्टि हुई, उसी दिन से भारत सरकार सतर्क हो गई । देश के प्रधानमंत्री कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने किये लिए बिना किसी पूर्व तैयारी के ही लॉक डाउन की घोषणा कर दी। कोरोना संक्रमण के फैलने की जो स्थिति अन्य देशों में हो रही थी, उसे देख कर, सुनकर कोई भी देश का मुखिया यही करता। इससे देश की जनता को कष्ट जरूर हुआ। लेकिन अपने दुख से ऊपर उठ कर पूरा देश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ खड़ा हो गया। प्रवासी भारतीयों को लेकर देश और विदेश में तमाम विषमताएं भी उपस्थित हुई, लेकिन देश की जनता के सहयोग से सब कुछ ठीक हो गया। दूसरे प्रदेशों और दूसरे देशों में रह रहे लोग अपने अपने घर पहुँचाये गए। प्रदेश सरकारों के दिशा निर्देश पर स्थानीय प्रशासन ने उन लोगों के क्वारन्टीन की व्यवस्था की । इसी बीच देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस संकट से लड़ने और गरीबों को भुखमरी से बचाने के लिए आर्थिक और व्यवहारिक दोनों स्तरों पर काम किया। तीन महीने लॉक डाउन में रहने के बाद भयावह स्थिति के बावजूद अनलॉक डाउन की शुरुआत हुई। अगर उत्तर प्रदेश की बात करें, तो इस समय सप्ताह में दो दिनीं लॉक डाउन हो रहा है। शनिवार और रविवार को लोग अगर कोई बहुत जरूर काम नही है, तो बाहर नही निकलते हैं । बाजार और दुकानें पूरी तरह बंद कर दिए जाते हैं । आवश्यक सेवाओं को छोड़ कर सब कुछ बंद रहता है, इस वजह से भी कोई बाहर नही निकलता है।
लेकिन इस कोरोना काल मे सबसे बुरा प्रभाव अगर पड़ा है, तो वह अबोध माने जाने वाले बालकों और बालिकाओं पर पड़ा है। खेलने से लेकर उनकी पढ़ाई तक बंद हो गई। कोरोना संक्रमण से बच्चों को बचाने के लिए सरकार ने तत्काल प्रभाव से स्कूल कालेज सहित सभी शिक्षण और कोचिंग संस्थान बंद करने के आदेश निर्गत कर दिए। फाइनल ईयर की परिक्षाओं को छोड़ कर अन्य कक्षाओं के छात्रों को प्रमोट कर दिया गया। पढ़ाई पूरी तरह से ठप्प पड़ गई। अगस्त चल रहा है, कोरोना संक्रमण के बढ़ने की रफ्तार अभी कम नही हुई । ऐसे स्कूल खोलने का निर्णय सरकार कैसे ले सकती है । लेकिन सरकार ने विदेशों की देखा देखी एक उपाय किया - ऑनलाइन शिक्षा। जिसमें किसी को स्कूल आने की जरूरत नही होती है। शिक्षक हर क्लास का एक ग्रुप बना लेता है, और स्कूल में बैठ कर एक लेक्चर देता है, या यों कहें कि अध्यापन करता है। जिसे सभी छात्र सुनते हैं । इसके लिए हर छात्र के पास एंड्रॉयड मोबाइल और इंटरनेट कनेक्शन होना जरूरी है। इस तरह की ही क्लासें इस समय चलाई जा रही हैं। पिछले 12 जुलाई से मैं कोरोना - पर्यावरण जागरूकता अभियान शहीद सम्मान सायकिल यात्रा पर हूँ। गावों और कस्बे के लोगों को कोरोना से बचने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी गाइड लाइन की जानकारी देता हूँ । उनके मन मे अगर कोरोना और उसके संक्रमण को लेकर अगर कोई सवाल होते हैं, तो उनका उत्तर देता हूँ । इस दौरान शिक्षकों और छात्रों से भी भेंट होती है, बातचीत होती है। उनसे भी बातचीत होती है। ऑनलाईन शिक्षा पर भी बात होती है । उसी के आधार पर मैं आज के लेख में अपनी बात कह रहा हूँ । अगर इस संदर्भ में हमें विषय के साथ न्याय करना है, मुकम्मल सच के रूप में इसे समझना है, तो उत्तर प्रदेश को पूर्वांचल, मध्यांचल, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, बुंदेलखंड को बांट कर समझना होगा। अपनी बात मैं बुंदेलखंड से शुरू करता हूँ । यहां दो वर्ग ही हैं, एक धनी और दूसरे निर्धन। धनी लोगों के बच्चे बाहर महानगरों के अच्छे स्कूलों में पढ़ते हैं, सभी के पास पहले से एंड्रॉयड फोन हैं । उन्हें एंड्रॉयड फोन चलाने की समझ है, और इंटरनेट का मूल्य वहन करने की क्षमता भी । लेकिन बुंदेलखंड में ऐसे लोगों की संख्या 2 प्रतिशत है। यानी 98 प्रतिशत बच्चों के पास एंड्रॉयड मोबाइल फोन नही है। जिनके पास है, वे उस पर गाने सुनने, फ़िल्म देखने के अलावा कुछ करते ही नही। दूसरे यहां इतनी गरीबी है कि इनमें से अधिकांश लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में ही पढ़ने के लिए भेजते हैं। जहां शिक्षा के साथ साथ भोजन भी मिलता है। वे शिक्षा प्राप्त करने के लिए कम खाने के लिए ज्यादा जाते हैं। बुन्देलखण्ड के कस्बे और जिला मुख्यालय को छोड़ दिया जाए, तो कुकुरमुत्ते की तरह खुले डिग्री कालेजों में बच्चे सिर्फ परीक्षा देने ही जाते हैं। अपनी दूकान चलाने के नाम पर शिक्षकों का अप्रूवल करा लिया गया है, उन्हें एकमुश्त कुछ रुपये दे दिए जाते हैं। उन्हें भी आने की जरूरत नही । इस प्रकार बुन्देखण्ड के कस्बों और जिला मुख्यालयों को छोड़ दिया जाए, तो गावों में रहने वाले बच्चों के ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त करने का प्रतिशत एक के भी नीचे है।
अब हम उत्तर प्रदेश के दूसरे भूभाग पूर्वांचल की बात कर लेते हैं। यहां की स्थिति बुन्देलखण्ड से थोड़ी भिन्न है। यहां अमीर गरीब के अलावा माध्यम वर्ग के लोग भी हैं। जिनका शिक्षा के प्रति विशेष रुझान है। यहां की खेती तो उपजाऊ है, लेकिन लोगों के पास खेत का जोत बहुत कम है । इस क्षेत्र में ऐसे 70 प्रतिशत मध्यम वर्ग के लोग हैं, जिनके पास एक एकड़ भी जमीन नही है। इस क्षेत्र के लोग नौकरी न करते तो यहां के लोगों की स्थिति बुंदेलखंड जैसी होती। लेकिन इस क्षेत्र के हर घर का कोई न कोई व्यक्ति बाहर नौकरी करता है। इस कारण यहां के लोगों के लिए शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। अगर सरकारी नौकरियों में भागीदारी का प्रतिशत निकाला जाए, तो इस क्षेत्र का प्रतिशत इसी कारण अधिक है । यहां के भी जो धनी लोग हैं, उनकी स्थिति ठीक है, उनके बच्चे ऑनलाइन एजुकेशन ले रहे हैं। मध्यम वर्ग का व्यक्ति के करीब 40 प्रतिशत बच्चे ऑनलाइन एजुकेशन ले रहे हैं । लेकिन अगर गावों और शहरों को अलग बांट कर इसका मूल्यांकन करेंगे, तो गांव का प्रतिशत 10 से नीचे है । गरीब के बच्चों के पास न तो एंड्रॉयड मोबाइल फोन है, न वे ऑनलाइन एजुकेशन ही ले रहे हैं।
मध्य उत्तर प्रदेश में कमोवेश स्थिति थोड़ी ठीक है। यहां के 60 प्रतिशत बच्चे ऑनलाइन एजुकेशन का लाभ पा रहे हैं, लेकिन उनमें गावों का प्रतिशत 20 से अधिक नही हैं। बाकी 40 प्रतिशत बच्चे महानगरों, नगरों और कस्बो के हैं । दिल्ली की सीमाओं से लगे क्षेत्रों का प्रतिशत 70 है । यहां के ग्रामीण लोग सम्पन्न हैं। अधिकांश बच्चों के पास एंड्रॉयड मोबाइल फोन भी है। लेकिन उनकी पढ़ने में रुचि नही है। यहां के ग्रामीण बच्चे पढ़ना ही नही चाहते। जो नगर, महानगर और कस्बे हैं, वहां के अधिकांश बच्चे ऑनलाइन एजुकेशन का लाभ ले रहे हैं।
अब ऑनलाइन एजुकेशन को शहरी और ग्रामीण आधार पर बांट कर देख लेते हैं । जब इस आधार पर अपने अनुभवों को विषय की कसौटी पर कसता हूँ, तो पाता हूँ कि उत्तर प्रदेश में नगरों, महानगरों और बड़े कस्बों में रहने वालों के 60 प्रतिशत बच्चे ऑनलाइन एजुकेशन से जुड़े हैं। उन्हें समझ मे कितना आता है, यह दूसरा विषय है, इस पर फिर कभी लिखूंगा । लेकिन जब गांव की तरफ देखता हूँ , तो गांव के बच्चों का कुल प्रतिशत 10 के अंदर बैठता है। हालांकि इसमें भी बाजीगरी की गई है। बच्चों ने अपने नाम और रोल नंबर किसी न किसी नंबर से अपना नाम एनरोल करवा रखा है, पर पढ़ाई होती नही है। इस प्रकार ऑनलाइन एजुकेशन सिस्टम से गांव फिर से गवार बनने की दिशा में अग्रसर हो रहा है । गावों की मेधा संसाधन और तकनीकी ज्ञान के अभाव में दम तोड़ रही है। बच्चे कुंठित हो रहे हैं । मातापिता बेबस हैं । वे बच्चों को पढ़ाएं की जिंदा रखें, उनके सामने बड़ा सवाल है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस दिशा में कोई ऐसा समाधान देना चाहिए, जिससे गांव के बच्चे भी कोरोना संकट में शिक्षा ग्रहण कर सकें ।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट