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राष्ट्रकवि गया प्रसाद शुक्ल 'सनेही' जी की जयंती पर विशेष

राष्ट्रकवि गया प्रसाद शुक्ल सनेही जी की जयंती पर विशेष
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#Unnao-कलम से राष्ट्र में राष्ट्रवाद की अलख जगाने वाले राष्ट्रकवि गया प्रसाद शुक्ल 'सनेही' जी की आज जयंती है जिन्होंने अपनी कलम से लोगों में राष्ट्रप्रेम की भावना को जगाने का काम किया।

राष्ट्रकवि गया प्रसाद शुक्ल 'सनेही' जी की लिखी पंक्तियां

जो भरा नही है भावों से जिसमे बहती रसधार नही

वो हृदय नही है पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नही

सदा के लिए अमर हो गयी..

जनपद के हड़हा गाँव में 21 अगस्त 1883 को पंडित अवसेरी लाल के घर में जन्म हुआ था।और उनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई थी, आगे की शिक्षा के लिए वह कानपुर चले गए जहाँ वह क्रांतिकारी गणेश शंकर विद्यार्थी के संपर्क में आये।और समाचार पत्र "प्रताप" में अपनी लेखनी से राष्ट्रवाद की आवाज बुलंद करने लगे।सनेही की कविताओं ने देश में आज़ादी की आवाज को जबरदस्त हवा दी तो ब्रिटिश सरकार ने प्रताप अखबार और सनेही की रचनाओं पर पाबंदी लगा दी।साहित्य में गहरी आस्था में डूबे सनेही 'त्रिशूल' उप नाम से क्रांति का उदघोष करते हुए रचनाएं लिखने लगें।जिसका आम जनमानस पर जबरदस्त असर हुआ।सनेही जी ने सैकड़ों रचनाएं लिख कर राष्ट्र की सेवा की।इनकी लिखी किताबों का का प्रकाशन हिंदी साहित्य संस्थान दिल्ली द्वारा किया गया।सनेही जी की अंतिम रचना बुझने का मुझे कोई दुःख नही,पथ सैकड़ो को दिखला चुका हूं।

स्वाधीनता मिलने के बाद भारत सरकार ने स्वाधीनता सेनानी का दर्जा दिया।सनेही जी की स्मृति में उनके पैतृक गांव हड़हा में एक पार्क, पुस्तकालय, और उनकी मूर्ति की स्थापना की गई जहाँ हर वर्ष प्रदेश भर के साहित्यिक प्रेमी, कवि, समाजसेवी,राजनेता, और प्रशासनिक लोग माल्यर्पण कर सनेही जी को याद करते हैं।

जन व प्रशासनिक उपेक्षा के शिकार राष्ट्रकवि की स्मृतियां

देश प्रेम में राष्ट्र के लिए न्यौछावर राष्ट्रकवि की स्मृतियां आज प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार हैं।राष्ट्र के लिए सर्वस्व न्योछावर करने वाले सनेही जी के वंशज बेहद मुश्किल हालातों में जी रहे हैं, उनकी स्मृति में निर्मित पुस्तकालय आज अपनी उपेक्षा पर आशू बहा रहा है, पुस्तकालय की देखभाल करने वाला कोई नहीं है,बिल्डिंग जर्जर हालत में है।किताबें गायब हैं।कभी कोई वहाँ किताबें पढ़ने नही आता है।पार्क भी वीरान पड़ा है जहाँ आवारा पशु अक्सर चरते हुए आपकों दिख जाएंगे।राजनीतिक लोगों द्वारा हर साल बड़ी बड़ी घोषणा की जाती है लेकिन यहाँ के हालात आज भी जस के तस है।

सनेही जी की अंतिम रचना बुझने का मुझे कोई दुःख नही,पथ सैकड़ो को दिखला चुका हूं थी। राष्टवाद और क्रांतिकारी कलम का यह सूर्य इसी रचना के साथ इस संसार से अस्त हो गया।

लेकिन पंडित गया प्रसाद शुक्ल 'सनेही'की लिखी पंक्तियाँ "जो भरा नही है भावों से...... आज भी हर भारतीय के दिल में धड़क रही है।

......सुमित यादव

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