संपत्ति क्षति दावा अधिकरण से समाजवादी आंदोलन पर योगी नकेल

योगी सरकार ने सरकारी और निजी संपत्ति क्षति दावा अधिकरण की स्थापना और क्रियान्वयन की अनुमति देकर उत्तर प्रदेश की राजनीति ही बदल दी । अगर साफ शब्दों में कहें, तो समाजवादी पार्टी के आंदोलन की मार कुंद कर दी। जनता के हक में अभी तक जितने राजनीतिक आंदोलन हुए, सभी मे समाजवादी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने आक्रामक तेवर दिखाते हुए उग्र आंदोलन किये। पुलिस की लाठी खाई, अपने नेताओं की लाठी से पिटता देख कार्यकर्ता बेकाबू हो जाते और सरकारी संपत्ति का भी नुकसान कर देते। लेकिन राजनीति जैसे जैसे आगे बढ़ती गई, नेताओं ने उसे साम्प्रदायिक रंग दिया। या ऐसे साम्प्रदायिक नेताओं को राजनेताओं और सरकारों ने प्रश्रय दिया। जिसकी वजह से ऐसे लोगों का मन बढ़ गया और छोटे छोटे मसलों को इश्यू बना कर एक सम्प्रदाय दूसरे सम्प्रदाय पर हमलावर हो गया, सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुचाने लगा ।
धीरे धीरे यह प्रचलन हो गया कि हर राजनीतिक दल, संगठन अपनी मांग मनवाने के लिए आंदोलन के माध्यम से सरकारी और निजी संपत्तियों को नुकसान पहुचाने लगा। ऐसा वह जानबूझ कर करता हो, कई बार परिस्थितियां ऐसी बन जाती की उनका गुस्सा सरकारी संपत्तियों पर ही फुट पड़ता। सरकारी संपत्तियों का नुकसान और आम जनता का कष्ट देख केंद्र हो या राज्य सरकारें हो, झुक जाती और उनकी बातें मान लेती । लेकिन राज संपत्तियों का जो नुकसान होता, उसकी भरपाई सरकार को ही करना पड़ता। सभी राजनीतिक दल, जो भी सत्ता में रहे, उसने विपक्षी दलों की इन हरकतों को नजरअंदाज किया और यह सब चलता रहा।
इसी बीच उत्तर प्रदेश सहित कई प्रदेशों में साम्प्रदायिक दंगे हुए। जिसमें दोनों पक्षों की ओर से जान माल दोनो को नुकसान पहुचाया जाता। बेकसूर गरीब और आम जनता पर बेतहासा जुल्म ढाए जाते, उनकी अस्मत लूट ली जाती और उनके घरों, दूकानों और प्रतिष्ठानों को आग के हवाले कर दिया जाता। जिससे जो लोग बच भी जाते, वे भूख और अभाव में मर जाते। ऐसा नही है कि इसके पहले की सरकारों ने उनके खिलाफ कार्रवाई न की हो, उन्हें जेल में न डाला हो । लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक कदम आगे बढ़ कर सरकारी संपत्ति के लिए एक अभिकरण की स्थापना को मंजूरी दे दी। बल्कि लखनऊ और मेरठ में दो अभिकरण की स्थापना की प्रक्रिया शुरू कर दिया। अभिकरण की स्थापना का निर्णय उन्होंने हाईकोर्ट की एक टिप्पणी के बाद शुरू की ।
इस अभिकरण में कोई भी व्यक्ति या खुद सरकार राजकीय या निजी संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई के लिए वाद दाखिल कर सकती है। जिसकी सुनवाई होने के बाद पर्यवेक्षक के द्वारा आकलन की हुई क्षतिपूर्ति का अभिकरण आदेश देगा, वह भरपाई आरोपी को करना होगा। इस अभिकरण में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने यह भी प्रावधान कराया है कि अभिकरण के दिए गए निर्णय के खिलाफ कोई आरोपी देश की किसी अदालत में अपील भी नही कर सकता । उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इस इसमें इस बात का भी प्रावधान कराया है कि क्षति पूर्ति का दावा करने के पश्चात वह अपनी कोई भी चल अचल संपत्ति की बिक्री नही कर सकता। इसके लिए उसके पोस्टर चिपकाए जाएंगे, होर्डिंग लगाई जाएगी कि गलती से भी कोई आरोपी की चल अचल संपत्ति खरीद न ले ।
यह तो रही अभिकरण की बात। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इससे सिर्फ दंगाइयों और बलवाइयों पर ही नकेल नही कसी है, अपितु समाजवादी पार्टी को भी नियंत्रित करने का प्रयास किया है। उत्तर प्रदेश में कम्युनिस्ट आंदोलन धीरे धीरे समाप्त हो गए। मुलायम सिंह द्वारा स्थापित समाजवादी पार्टी में राजनीति में कम्युनिस्ट नेताओं ने आश्रय लिया। इस कारण समाजवादी पार्टी में दो तरह के लोग हो गए। एक भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाषचंद्र बोस की तरह क्रांतिकारी लोग और दूसरे महात्मा गांधी की तरह अहिंसात्मक आंदोलन करने वाले लोग। तीसरा एक और ग्रुप प्रकाश में आया। आत्मघाती दस्ता। समाजवादी पार्टी के कुछ युवा देश के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और मुख्यमंत्री का अपनी मांगों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए काला झंडा दिखाते हुए उनकी गाड़ियों के आगे कूद पड़ते है। जिन्हें सुरक्षा कर्मी से लेकर पुलिस वाले खूब प्रताड़ित करते हैं । विभिन्न धाराओं में निरुद्ध कर जेल भेज देते रहे।
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी की कमान जब से अखिलेश यादव के हाथ मे आई। सरकारी सम्पतियो को नुकसान पहुंचाने वाले आंदोलनों में कमी आई । लेकिन आत्मघाती दस्तों में बढ़ोत्तरी हुई। इसके लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपील करना पड़ा। तब जाकर उनकी पार्टी के युवा समाजवादियों की इस प्रकार की गतिविधियों पर विराम लगा।
समाजवादी पार्टी की 2022 के विधानसभा चुनाव को लेकर जो रणनीति थी, उस पर दो लोगो ने आघात लगाया। एक कोरोना और दूसरे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ । कोरोना की वजह से न तो वे कोई आन्दोलन कर सकते हैं और न कोई कार्यक्रम। हालांकि समय की मांग को देखते हुए उन्होंने आह्वान पत्रक और अगस्त क्रांति के बहाने समाजवादी नेताओं को जगाने का काम किया। लेकिन वे कितना जागे, इसका आभास मुझे मेरी कोरोना पर्यवारण जागरूकता अभियान शहीद सम्मान यात्रा के दौरान हो रहा है । सभी नेता और कार्यकर्ता निष्क्रिय पड़े हुए हैं। सोच रहे है कि अखिलेश यादव कोई ऐसी जादुई छड़ी घुमाएंगे जिससे 351 विधानसभा चुनाव में अपनेआप जीत हो जाएगी । कोई कुछ करना नही चाहता है। लोगों को लगता है कि जनता योगी सरकार से इतना नाराज हो जाएगी कि अखिलेश यादव के सिवा उसके पास कोई विकल्प नही बचेगा। इधर सपाई सिर्फ ख्याली पुलाव पका रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उनकी जनता तक पहुचने का हर मार्ग अवरुद्ध करते जा रहे हैं । क्षतिपूर्ति दावा अधिनियम अध्यादेश मार्च 2020 और अब अभिकरण की लखनऊ और मेरठ में स्थापना उनकी इसी रणनीति की ओर इशारा करती है। कई ऐसे बलवा हुए हैं, जिसमें समाजवादी पार्टी का मूल वोटर माना जाने वाला मुसलमान प्रभावित होगा। जब उसके खिलाफ कारर्वाई होगी और अभिकरण बन जाने की वजह से न तो समाजवादी पार्टी आंदोलन कर सकेगी और न ही अखिलेश यादव कोई ट्वीट या बयान दे सकेंगे। ऐसे में बड़ा घातक संदेश उनके मूल वोटरों में जायेगा।
समाजवादी पार्टी के तेजतर्रार माने जाने वाले नेता आजम खान, उनकी विधायक पत्नी और बेटे को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस प्रकार अपने चक्रव्यूह का शिकार बनाया कि समाजवादी पार्टी कोई आंदोलन भी नहीं कर सकी। आज पूरा परिवार जेल की चहारदीवारी में पैबस्त है। वही हाल इस अभियोग के गठन के बाद होने वाला है। यह एक ऐसा ब्रह्मास्त्र है, जिसकी काट क्या होगी ? उससे काबिल ब्रह्मास्त्र अखिलेश यादव को तलाशना पड़ेगा। नही तो योगी का यह ब्रह्मास्त्र जब मोदी के वाणी रूपी धनुष पर टंकार करेगा, तो समाजवादी पार्टी की बड़ी से बड़ी रणनीति पस्त हो जाएगी।
इसलिए कोरोना और अभिकरण की जद से दूर रह कर कैसे अपनी रणनीति को कामयाब बनाया जाए, हम जैसे जमीनी ज्ञान रखने वालों के साथ महीनों बैठ कर रणनीति तैयार करना पड़ेगा। क्योंकि भाजपा पर न तो कोरोना का प्रभाव है, न विपक्षी दलों की कोई खलल । वे अपना बूथ मजबूत करते मेरी यात्रा में मुझसे टकराते हैं ।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट