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अबोध बालिकाओं का उत्पीड़न और चुप्पी साधे समाज

अबोध बालिकाओं का उत्पीड़न और चुप्पी साधे समाज
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जब मैं किसी अबोध बालिका के साथ दुराचार, अत्याचार और तत्पश्चात हत्या की घटना देखता, सुनता या पढ़ता हूँ, तो खुद के पुरुष होने पर ग्लानि होने लगती है। दुख के अथाह सागर के डूब जाता हूँ, कभी कभी पुरुषों के इस राक्षसी प्रवृत्ति पर घृणा होने लगती है। बार बार इस मन में यही विचार आता है कि कहां चला गया वह भाव और भावना, जिसके वशीभूत होकर लोग उम्र के अनुसार स्त्री को बहन, बेटी, बहु, माँ, चाची मानते रहें । उनके साथ तदनुरूप व्यवहार करते रहे । अपने घर की लड़कियों को नही, पास पड़ोस हिनाही, पूरे गांव या कस्बे की औरतों के बारे में उनकी यही सोच रही, यही व्यवहार रहा । उम्र के अनुरूप सबके लिए सभी लड़कियां बेटी हुआ करती थी। लेकिन आज उनकी निगाहों में हवस दिखाई देती है। चाहे पांच साल की अबोध बाला हो, या 95 साल की बुढ़िया, सभी को पुरुष कामुकता की ही नजर से देखता है।

इस समय मैं कोरोना - पर्यावरण जागरूकता अभियान शहीद सम्मान सायकिल यात्रा पर हूँ । पिछले दिनों में संभल जिले के चंदौसी में था । वहां एक 8 साल की लड़की को ऐसे ही एक भेड़िये ने मौत की नींद सुला दिया। पूरी रात वह 8 वर्षीय बालिका उसके कब्जे में रही। उसके माता पिता पागलों की तरह उसे खोजते रहे। पुलिस में भी अपनी अबोध बालिका की शिकायत की। वह भी तलाश करती रही, लेकिन वह नही मिली। जिसकी आठ वर्षीय बेटी गायब हो गई हो, उसे नींद कैसे आती। उसके घर के पास ही एक ऐसा प्लाट है, जिसमे खूब घास, झाड़ झंखाड़ उग आए थे । रात के तीन बजे अपनी बेटी की तलाश में उसे काट रहा था कि कहीं, कोई उसे मार कर उसमें तो नही फेंक दिया है। कीड़े मकोड़े, सांप, बिच्छू का खौफ भी उसमें नही था। तभी सबको सोता जान वह नर पिचास उस अबोध बालिका की हत्या कर के उसकी लाश को बोरी में भरकर उसे फेकने जा रहा था। उस बोरी के ऊपर से उसने घास लाद रखी थी, जिससे वह दिखाई न पड़े। सबको सोता जान वह नर पिचास जैसे आगे बढ़ा, उसके पिता को साइकिल चलने की आहट हुई। उसने देखा तो पड़ोस में रहने वाला वह नर पिचास, जिसे वह बेटा कह कर पुकारता था। घास में बोरी छुपा कर ले जा रहा था। वह झाड़ियों और उसके काटों की परवाह किये बगैर दौड़ा, और घास पकड़ने की कोशिश की, तो बोरी सरक गई। उसने बोरी का मुंह खोला, तो उसमें उसकी अबोध बेटी की लाश थी। तभी उनकी माँ भी दौड़ती आई, अपनी बेटी की लाश देखते ही चिंघाड़ मार कर रोने लगी। उसकी रोने की आवाज सुन कर पास पड़ोस के भी लोग जग गए। उसने सायकिल छोड़ कर भागने का प्रयास किया। लेकिन लोगों ने पकड़ लिया । तभी किसी ने 112 नंबर पर डायल करके इसकी सूचना पुलिस को दे दी। थोड़ी देर बाद पुलिस भी आई और उसे पकड़ कर थाने ले गई ।

जिस बाप की अबोध बालिका को इस दरिंदे ने शिकार बनाया, वह बेहद गरीब है। मेहनत मजदूरी करके किसी तरह से अपने परिवार को पाल रहा था । बातचीत करने पर पता चला कि पहले वह हरियाणा में कहीं मजदूरी करता था, लॉक डाउन के कारण वह घर आ गया था। यहां भी वह रोज कहीं न कहीं काम की तलाश में जाता। कभी काम मिलता, कभी नही मिलता। बड़ी मुश्किल से परिवार का गुजारा हो रहा था। अगर प्रधानमंत्री अनाज योजना के तहत उसे गेहूं चावल न मिलता, तो शायद यह परिवार भूख से कब का दम तोड़ चुका होता। इतना गरीब था। उसकी गरीबी और सीधेपन के कारण उस बालिका की जो मेडिकल रिपोर्ट आई है, उसे भी उसने प्रभावित कर दिया है। मेडिकल में लड़की से रेप की पुष्टि नही हुई है । बस चंदौसी की जनता के मन मे एक ही शंका उठ रही है, इसी बात की चर्चा हो रही है कि अगर उसने बच्ची के साथ जोर जबरदस्ती नही की, तो फिर अपने घर मे छिपाया क्यों और हत्या क्यों की ? उसके माता पिता तो बेसुध पड़े है।

चंदौसी की एक खासियत यह देखने को मिली कि यहां के समाजसेवी इकट्ठा हुए, उन्होंने पुलिस से न्याय की अपील की और रुपये पैसे से मदद करके उस अबोध बालिका का अंतिम संस्कार कराया। उसके मा बाप की हालत देख कर भी उनका मन द्रवित हुआ। कई समाजसेवी उसकी मदद को आगे रहे हैंकई समाजसेवियों से मेरी बात हुई, लोग अपनी हैसियत के मुताबिक पैसे इकट्ठा कर रहे हैं, एक दो दिन में ही उसकी अच्छी खासी आर्थिक मदद भी हो जाएगी ।

चंदौसी के मसले में यहां के समाजसेवी लोगों ने तो मदद की, हर तरह से उसकी मदद आगे करने को तैयार भी हैं । लेकिन कोई राजनीतिक दल आगे नही आया। न ऐसे संगठन ही दिखाई पड़े, जो छोटी छोटी घटनाओं पर सोशल मीडिया पर अपनी फोटो चेपते रहते हैं । जो कुछ किया पुलिस ने किया। पुलिस की इस मसले में संवेदनशीलता काफी सराहनीय है।

मेरा यह कहना है कि यह काम पुलिस का नही है कि वही ऐसे नर पिशाचों के खिलाफ कार्रवाई करे। समाज को भी जागृत होना पड़ेगा। समाज को ऐसे प्रदूषण से बचाने के लिए आगे आना होगा। और ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार करना पड़ेगा। उनका हुक्का पानी बंद करना पड़ेगा। कोशिश यह भी करना पड़ेगा, की कोई भी ऐसे नर पिशाचों से अपनी लड़की का विवाह नही कर। सरकार की भी सिर्फ विधि सम्मत सजा देकर ही चुप नही बैठना होगा, बल्कि ऐसे लोगों को किसी भी नौकरी या सरकारी योजना का लाभ न मिले, ऐसी बंदिश लगानी पड़ेगी । अगर सम्भव हो सरकार और समाज दोनो को और कड़े कदम उठाने पड़ेंगे।

इतना ही नही समाज को एक बार फिर चरित्र सम्पन्न समाज निर्माण के लिए अपनी दृष्टि बदलना पड़ेगा। बहु, बेटी, माँ, भाभी माँ, चाची काकी का भाव फिर से युवाओं में उत्पन्न हो, इसके लिए प्राचीन मापदंडों के अनुसार प्रशिक्षित करना पड़ेगा। अन्यथा ऐसे नर पिशाचों की संख्या बढ़ती जाएगी और समाज कलुषित बना रहेगा। कामुकता अगर इसी तरह हावी रहेगी तो किसी की बहन, बेटी, बहू सुरक्षित नही रह पाएगी । ऐसे भेड़िये उन्हें अपना शिकार बनाते रहेंगे और मौत के घाट उतारते रहेंगे।

इसलिए समाज, पुलिस प्रशासन, न्यायालय और सरकारों सभी को एक साथ प्रयास करना चाहिये। जिससे हमारे समाज की भारतीयता बनी रहे।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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