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भूमाफियाओं के मकड़जाल के आगे विवश दिखती सरकारें

भूमाफियाओं के मकड़जाल के आगे विवश दिखती सरकारें
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केंद्र की हो, या किसी राज्य की, सभी सरकारें ऐसे तत्वों को प्रश्रय नही देना चाहती जिसकी वजह से उनकी छवि धूमिल हो । शरारती और आपराधिक तत्वों पर नकेल कसने के लिए हर सम्भव प्रयास करती है। पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार ने भी ऐसा प्रयास किया। लेकिन उनकी सबसे अधिक किरकिरी इन्हीं भूमाफियाओं की वजह से हुई। उनकी सरकार में भूमाफियाओं ने प्रदेश की जनता को इस तरह लूटा कि लाख विकास और जनोपयोगी कार्य करने के बावजूद प्रदेश की जनता ने उन्हें नकार दिया। तीन सौ प्लस की उम्मीद लगाए हर सपा नेता को 47 सीटों पर समेट दिया। इसमें से अधिकांश विधायक चुनाव के समय घटी कुछ क्षेत्रीय घटनाओं का लाभ पा गए। और वे चुनाव जीत गए। उनकी जीत का यह अर्थ कतई नहीं है कि उनके क्षेत्र में भूमाफिया नही रहे। जनता की इस दुखती रग को भाजपा ने पहचाना और चुनाव के समय अपने भाषणों और जनता से जन संपर्क के दौरान यह कहा कि आप सभी हमारी पार्टी को जिताएं, हम इन भूमाफियाओं के चंगुल से छुड़ाएंगे। जिसका अंदेशा था, वही हुआ । जनता ने प्रदेश के विकास कार्यों को दरकिनार कर भाजपा के पक्ष में मतदान किया। उन्हें जीत की आशा नही थी, लेकिन अप्रत्याशित जीत मिली। पूर्ण बहुमत की सरकार बनी ।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण करने के बाद भूमाफियाओं के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया। उससे भूमाफिया सहमें, लेकिन दो साल बीतते बीतते उन्होंने फिर सरकार को अपने मकड़जाल में उलझा लिया, ऐसा प्रदेश की जनता को एक बार फिर महसूस हो रहा है। ऐसा जरूर है कि भूमाफियाओं के अत्याचार की कहानियां उस तरह से जन मानस में प्रसारित और उद्वेलित नही कर रही हैं, जैसा अखिलेश यादव सरकार में रहा। इसके पीछे यह भी कारण हो सकता है कि इस तरह के कारणों के खिलाफ लोग इसलिए भी मुखर नही हो पा रहे हो, क्योंकि उन्हें भी हद तक आतंकित कर दिया गया हो। हालांकि इस प्रकार के मामलों के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक पोर्टल ही लांच कर रखा है। जिस पर कोई अपनी शिकायत ऑनलाइन आवेदन कर सकता है । इसके बावजूद भूमाफियाओं की गतिविधियां बदस्तूर जारी रहना नए गठजोड़ की ओर संकेत देता है।

भूमाफियाओं के मकडज़ाल का प्रथम दर्शन हर कस्बे, हर नगर, महानगर के बाहर प्रॉपर्टी डीलरों के लगे बोर्डों के माध्यम से होते है। जिसके पास थोड़ा पैसा हो जाता है, वह एक ऑफिस खोल क्षेत्र के कुछ दबंग लड़कों को लेकर इस काम की शुरुआत कर देते हैं। यह प्रॉपर्टी डीलर सिर्फ जमीन खरीदने या बेचने का ही काम नही करते हैं । बल्कि अपने क्षेत्र की सभी विवादास्पद जमीनों पर भी इनकी नजर बनी रहती है। किसी एक पक्ष से संपर्क करके वे इस विवादास्पद जमीन को खरीद लेते हैं और फिर अपना खेल शुरू करते हैं। दूसरे पक्ष को हर तरह से भयभीत करते हैं। पहले चरण में उसे उस जमीन को कोर्ट में उलझाने और केस लड़ने की बात करते हैं। दूसरी ओर बातचीत कर उससे एक मोटी रकम लेकर उस जमीन को छोड़ने की बात करते हैं । इसमें वे पुलिस और वकीलों का भी सहयोग लेते हैं । बदमाश तो उनके साथ होते ही हैं ।

दरअसल भूमाफिया अकेले नही होते हैं। धन या प्लाट का लालच देकर ये अपने क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले थानेदार, दरोगा और पुलिस जवानों को भी अपने साथ मिला लेते हैं। वकीलों का एक दल फीस या पार्टनरशिप के रूप में होता ही है। क्षेत्रीय तहसील के तमाम अधिकारी कर्मचारियों को भी ये अपने पक्ष में मिला लेते हैं। अगर महानगर होता है तो वहां के विकास प्राधिकरण और नगर निगम के अधिकारियों और कर्मचारियों पर भी अपना जादू कर देते हैं । इसके अलावा सत्ता पक्ष के विधायकों, सांसदों को भी अपने पक्ष में मिला लेते हैं । ऐसा भी देखने मे आया कि कई भूमाफियाओं के साथ इन जनप्रतिनिधियों की भागीदारी होती है। इनकी वजह से इन्हें सत्ता का भी सहयोग मिल जाता है। अपने को सत्ताधारी दल का जनप्रतिनिधि होने का रोब दिखा कर वह प्रशासनिक तंत्र और पुलिस अधिकारियों को चुप रहने की हिदायत देता रहता है। जिसकी वजह से प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भूमाफियाओं पर नकेल कसने के प्रयास को धक्का लगता है। कई मसलों में स्थानीय पत्रकारों की भी संलिप्तता पाई जाती है। लेकिन पत्रकारों के अधिकांश मसलों में विज्ञापन का लालच देने के कारण वे चुप रह जाते हैं ।

जो लोग इनके खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश करते हैं। उन्हें पैसे का लालच देकर, धमका कर, पुलिस का सहयोग लेकर डराने धमकाने का प्रयास किया जाता है। अगर वह नही मानता है, तो उस पर अपने बदमाशों या किराए के बदमाशों से हमला करवाया जाता है। उसे जान से मारने की कोशिश की जाती है । बच जाने पर उसके मेडिकल और एफआईआर को भी प्रभावित कर कमतर धाराओं में मुकदमे दर्ज करवाया जाता है, जिससे बदमाश आराम से छूट सके और शिकायतकर्ता में दहशत बनी रहे। ऐसी एक लड़ाई कानपुर नगर के किदवई नगर के पत्रकार पप्पू यादव हैं, जो पिछले बीस सालों से भूमाफियाओं के खिलाफ अभियान छेड़े हुए हैं। उनके मुताबिक उन पर चार बार हमले हो चुके हैं । दो दिन पहले एक बार फिर हमला हुआ। लॉक डाउन होने की वजह से अभी तक तक न मेडिकल हो सका, और न उनकी एफआईआर ही दर्ज की गई। उनसे जब इस संबंध में बात हुई, तो उन्होंने पुलिस पर अपराधियों पर मिलीभगत होने का आरोप लगाया। इतना ही नही, उन्होंने यह भी कहा कि उन पर हमला करने वाले बाप बेटे पुलिस वाले हैं । उनके भाई से उनकी कहासुनी हो रही थी, उसकी सूचना उन्हें वहीं रहने वाली एक औरत ने दी। जब वे अपने भाई को बुलाने के लिए गए,तभी उन लोगों ने उन पर हमला कर दिया। जिसमें उन्हें गंभीर चोट आई। समाचार पत्रों में छपी खबर के अनुसार यह एक सामान्य लड़ाई है। हो सकता है कि इस मारपीट का संबंध किसी भूमाफिया से न हो। अगर सामान्य घटना है, तो एक पत्रकार पर हमला होने की वजह से त्वरित कार्रवाई करना चाहिए।

यह तो उदाहरण है। इस समय मैं कोरोना - पर्यावरण जागरूकता अभियान शहीद सम्मान सायकिल यात्रा कर रहा हूँ। अभी तक कानपुर नगर, कानपुर देहात, औरैया, इटावा, मैनपुरी, कन्नौज, फर्रूखाबाद होते हुए बदायूँ पहुंच चुकी है। लॉक डाउन होने की वजह से दो दिन यात्रा ने बदायूँ में विश्राम किया। आज फिर आगे बढ़ेगी। इन जिलों में भी भूमाफियाओं के मकड़जाल की कहानियां सुनाई पड़ी। लेकिन जनता ने यह भी कहा कि भूमाफियाओं पर लगाम तो लगी हुई है। कल मुझे एक फौजी मिले, जिनका बना हुआ घर तिकड़म करके उसे गिराने पर लगे हैं । मामला कोर्ट में होने के बावजूद भी उनकी आक्रामकता कम बही हुई है। फौजी होने की वजह से पिछले तीन चार सालों से वे मोर्चा ले रहे हैं ।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने की भूमाफियाओं पर फिर से शिकंजा कसने के लिए अभियान चलाना चाहिए। उनकी पार्टी का जो नेता इस प्रकार की गतिविधियों में लगा हो, उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करके प्रदेश में कानून का राज्य है, इसका एहसास है। मुझे खुशी है कि योगी सरकार की सख्ती का असर बदायूँ में देखने को मिल रहा है। जागरूकता अभियान के दौरान यहां की जनता जो आपबीती सुना रही है। वह मुझे आश्चर्य में डाल रही है। यहां की जनता ने बताया कि अंधेरा होते ही वे लूट लिए जाते थे। उनकी गाय बैल खोल लिए जाते थे। उनकी टांगे उनके सामने ही काट दी जाती थी। लेकिन अब ऐसा नही है। वे चैन की नींद सो रहे है। चाहे कितनी रात हो, लोग निर्भय होकर आ जा रहे हैं । उनका यह विश्वास और पुख्ता होगा, अगर भूमाफियाओं पर नकेल थोड़ा और कस दी जाए।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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