संकष्टहरण चतुर्थी :- (निरंजन मनमाडकर)

संकष्टहरण चतुर्थी व्रत और उसका विधान
ईश्वर उवाच!
श्रावणे बहुले पक्षे चतुर्थ्यां मुनिसत्तम |
व्रतं संकष्टहरणं सर्वकामफलप्रदम् ||
ईश्वरने कहा!
हे मुनिसत्तम! श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को सभी वाञ्छित फल प्रदान करनेवाला संकष्टहरण नामक व्रत करना चाहिए!
(नोट:- दक्षिण भारत में अभी श्रावण मास ही चल रहा)
व्रत विधान!
चतुर्थी के दिन प्रातःकालमें उठकर दन्तावधान कर, काले तीलोंसे युक्त जलमें स्नान करना चाहिए!
नित्य आह्निक सेवा समापन कर संकल्प करना चाहिए...
ग्राह्यं व्रतमिदं पुण्यं संकष्टहरणं शुभम् |
निराहारोऽस्मि देवेश यावच्चन्द्रोदयो भवेत् ||
भोक्ष्यामि पूजयित्वा त्वां सङ्कष्टात्तारयस्व माम् ||
हे देवेश! आज मैं चन्द्रोदय होने तक निराहार रहूँगा और रात्रि काल में आपकी पूजा कर भोजन करूंगा,
प्रभु आप मेरी संकटोसे रक्षा करें!!!!!
यहापर सुवर्ण प्रतिमा निर्माण करने का विधान है तथा धनाभाव में आप मृण्मयी यानी की माटीकी मूर्ती या प्रतिमा बना सकते है, किंतु वित्तशाठ्य कंजूषी नही करनी चाहिए!
वित्तशाठ्यं न कर्तव्यं कृते कार्यं विनश्यति!
कारण वित्तशाठ्य करनेसे किया हुआ कार्य नष्ट हो जाता है!
यहापर विशेष रूपसे चाँदी या तांबे की मूर्ती बनाने की भी छूंट दी गयी है!
रम्य वेदीकें उपर अष्टदल कमल का निर्माण करे, तदुपरान्त स्मार्त वैदिक पद्धतीसे कलशस्थापना करें!
पूर्णपात्र के उपर धान्योंके आसनपर भगवान गणेशजी की स्थापना करें!
स्वशाखानुसार वैदिक षोडशोपचार या तांत्रिक विधान से पूजा करनी चाहिए!
दश मोदक जो तीलनिर्मीत हो उनका भोग लगाना चाहिए! उनमेंसें पाँच मोदक का दान करना चाहिए!
ब्राह्मण देवता की पूजा कर मोदक तथा भोजन एवं दक्षिणा अर्पण करनी चाहिए!
उन्हे गणेशरूप जानकर प्रणाम करें एवं प्रार्थना करें!
विप्रवर्य नमस्तुभ्यं मोदकांस्ते ददाम्यहम् |
सफलान्पञ्चसङ्ख्याकान्देव दक्षिणया युताम् ||
आपदुद्धरणार्थाय गृहाण द्विजसत्तम |
अबद्धमतिरिक्तं वा द्रव्यहीनं मया कृतम् ||
तत्सर्वं पूर्णतां यातु विप्ररूप गणेश्वर ||
हे विप्रवर्य! आपको नमस्कार है!
हे देव! मैं आपको फल तथा दक्षिणायुक्त पाँच मोदक प्रदान करता हूँ!
हे द्विजसत्तम! मेरे विपत्ती नाश हेतु आप इसे स्वीकार करें!
हे विप्ररूप गणेशजी! मेरे कर्म में जो भी न्यूनता तथा अधिकता एवं कृपणता हुई हो! उसे आपके आशीर्वाद से पूर्णता प्राप्त हो!
तत्पश्चात ब्राह्मण भोजन कराएं!
यहापर और विशेष रूपसे मोदक बनाने की विधि कही है, पके हुए मूंग, तील, घी एवं नारियलकी गरींसहित गुढ से मोदक अर्पण करना चाहिए!
रात्री काल में चन्द्रोदय पश्चात चंद्रमा को अर्घ्य प्रदान करना चाहिए!
क्षीरसागरसम्भूत सुधारूप निशाकर |
गृहाणर्घ्यं मया दत्तं गणेश प्रीतिवर्धन ||
इस विधानके करने से भगवान गणपती जी की कृपा प्राप्त होती है! वे वाञ्छित फल प्रदान करते है!
विद्यार्थी को विद्या, धनार्थी को धन, पुत्रार्थी को पुत्र की प्राप्ती होती है!
रोगी रोगमुक्त हो जाता है, कार्यकी सिद्धि चाहने वाला अपने कार्यको साध लेता है! मोक्षार्थी को गती प्राप्त होती है! वर्तमान काल में उपस्थित सभी आपदाओंसे रक्षण होता है!
व्याकुल चित्त तथा चिन्ताग्रस्त एवं जिनको अपने प्रियजनोंसे वियोग हुआ है उनके दुःखों के निवारण हेतू यह व्रत करना चाहिए!
सभी मनोकामना एवं संपत्ती हेतू यह व्रत करें!
पूजने च जपे चैव मन्त्रं ते कथयाम्यहम् |
हे सनत्कुमार! अब मैं तुम्हे पूजा एवं जप हेतू मन्त्र का उद्धार कहता हूँ!
तारोत्तरं नमः शब्दं हेरम्बं मदमोदितम् |
चतुर्थ्यन्तं प्रशस्तं च संकष्टस्य निवारणम् ||
स्वाहान्तं च वदेन्मन्त्रमेकविंशतिवर्णकम् |||
तार - ॐ प्रणव
नमः - नमः
हेरम्ब - हेरम्ब
मदमोदितम् - चतुर्थ्यन्तं - मदमोदिताय
संकष्टस्य - - - - - संकष्टस्य
निवारणम् - निवारणाय
स्वाहा (चूँकी स्वाहा के पूर्व स्थान में निवारण शब्द आता है अतः यह चतुर्थ्यन्त प्रयोग निवारणाय हुआ)
ॐ नमः हेरम्बाय मदमोदिताय संकष्टस्य निवारणाय स्वाहा -
यदि विभक्ती रूप की गिनती न करें तो यह २१ अक्षरोंका मन्त्र हो जाता है!
इस मन्त्र का जादासे जादा जप करना चाहिए!
गणेश पूजा में दशदिक्पालोंकी भी पूजा करनी चाहिए!
गणेशजी के निम्नलिखित नामों से इक्कीस दूर्वा दल अर्पण करने चाहिए!
ततो दूर्वाङ्कुरान् गृह्णन्नेभिर्नामपदैः पृथक् |
पूजयेद् गणनाथं च तानि नामानि मे श्रृणु ||
गणाधिप नमस्तेऽस्तु उमापुत्राऽघनाशन |
एकदन्तेभवक्त्रेति तथा मूषकवाहन ||
विनायकेशपुत्रेति सर्वसिद्धिप्रदायक |
विघ्नराज स्कन्दगुरो सर्वसंकटनाशन ||
लम्बोदर गणाध्यक्ष गौर्यङ्गमलसम्भव |
धूमकेतो भालचन्द्र सिन्दूरासुरमर्दन ||
विद्यानिधान विकट शूर्पकर्णेति चैव हि |
पूजयेद् गणपं चैवमेकविंशतिनामभिः ||
ॐ गणाधिपाय नमः
ॐ उमापुत्राय नमः
ॐ अघनाशनाय नमः
ॐ एकदन्ताय नमः
ॐ इभवक्त्राय नमः
ॐ मूषकवाहनाय नमः
ॐ विनायकाय नमः
ॐ ईशपुत्राय नमः
ॐ सर्वसिद्धिप्रदायकाय नमः
ॐ विघ्नराजाय नमः
ॐ स्कन्दगुरवे नमः
ॐ सर्वसंकटनाशनाय नमः
ॐ लम्बोदराय नमः
ॐ गणाध्यक्षाय नमः
ॐ गौर्यङ्गमलसम्भवाय नमः
ॐ धूमकेतवे नमः
ॐ भालचन्द्राय नमः
ॐ सिन्दूरासुरमर्दनाय नमः
ॐ विद्यानिधयेनमः/विद्यानिधानाय नमः
ॐ विकटाय नमः
ॐ शूर्पकर्णाय नमः
तत्पश्चात भगवान गणपती गणेश की भक्तिभाव से प्रार्थना किजिए!
विघ्नराज नमस्तेऽस्तु उमापुत्राऽघनाशन |
यदुद्दिश्य कृतं मेऽद्य यथाशक्तिप्रपूजनम् ||
तेन तुष्टो ममाद्याशु ह्रत्स्थान्कामान्प्रपूरय |
विघ्नान्नाशय मे सर्वान्विविधोपस्थितान्प्रभो |
त्वत्प्रसादेन कार्याणि सर्वाणीह करोम्यहम् ||
शत्रूणां बुद्धिनाशं च मित्राणामुदयं कुरू ||
तत्पश्चात एकसौआठ १०८ आहुती दे कर हवन करना चाहिए!
सात सात मोदकोंका वायन दान करना है!
और पुण्यदायिनी व्रत कथा का श्रवण करना चाहिए एवं तत्पश्चात रोहिणीपती चंद्रमा को अर्घ्य देना है!
क्षीरोदार्णवसम्भूत अत्रिगोत्रसमुद्भव |
गृहाणर्घ्यं मया दत्तं रोहिण्याः सहितःशशिन् ||
तत्पश्चात ब्राह्मण भोजन एवं सुवासिनी भोजन कराएं!
इस प्रकार यह व्रत चार मास करें पाँचवे मास में उद्यापन करें!
उद्यापन मे सुवर्ण प्रतिमा का निर्माण तथा पूजन, दान का विधान है!
बाकी सबकुछ पुण्याहवाचन से पूर्णाहुती तक सभी क्रियांए पूर्ववत होगी!
विघ्नेश्वरः प्रीयताम्.......! ऐसा कहकर कर्म समर्पण करें!
भगवान कहते है
पूर्वकाल में स्कंद के जाने से, मेरी आज्ञा से पार्वतीने इस व्रत को चार महिने तक किया था! पाँचवे महिने के उद्यापन के पश्चात कुमार की प्राप्ती होगयी थी!
समुद्रपानकें समय अगस्त्य जी ने इस व्रत को तीन मास किया और सिद्धि प्राप्त की थी!
दमयन्तीने छह महिनों तक इस व्रत को किया था और अपने पती को पुनः प्राप्त किया था!
जब चित्रलेखा अनिरुद्ध को बाणासुर के नगरी में ले गई थी तब पुत्रशोकसे व्याकुल प्रद्युम्न को माता रूक्मिणी जी ने इस व्रत का विधान कहा था और भगवान विघ्नेश्वर की कृपासे प्रद्युम्न की युद्ध विजय होकर पुत्र एवं पुत्रवधूको द्वारका वापस ले आएं थें!
इस प्रकार अनेक देवताओं ने तथा असुरोंने भी इस व्रत का आचरण किया था!
कुछ भक्तोंने केवल सप्तग्रास का आहार कर उपवास का त्याग किया था जिससे भगवान गणेश अती प्रसन्न हुए एवं मनोवाञ्छित वर प्रदान किया!
इस व्रत की आवश्यक बाते
१)उपवास - शारीरिक व मानसिक
२)मंत्र जप
३)षोडशोपचार पूजा या तांत्रिक पूजा
४)हवनम्
५)अन्नदान तथा वायन दान
तत्पश्चात आप इसमे स्तोत्र पाठ, सहस्रनामार्चना, अथर्वशीर्षम् पाठ, ब्रह्मणस्पतिसूक्तम् पाठ!
दूर्वा अर्चन
शमीपत्र अर्चना
मन्दारपुष्प अर्चना
सिंदूर पूजा
सहस्र मोदक याग आदि विधानोंसे भगवान गणेश को संतुष्ट कर सकते है!
इति श्रीस्कन्दपुराणे श्रावणमास माहात्म्ये चतुर्थीव्रतकथनं नाम द्वाविंशोध्यायः......
ॐ नमश्चण्डिकायै
©निरंजन मनमाडकर पुणे महाराष्ट्र
मंगलमूर्ती मोरया..........
गणपती बाप्पा मोरया...........
जय गणेश