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सरकार और पुलिस की नाकामियों का परिणाम : फिर से फलता फूलता अपहरण उद्योग

सरकार और पुलिस की नाकामियों का परिणाम : फिर से फलता फूलता अपहरण उद्योग
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अभी हाल में ही विकास दुबे द्वारा 8 पुलिसकर्मियों की निर्मम हत्या के कारण हफ्तों सुर्खियों में रहे उत्तर प्रदेश एक बार फिर अपहरण और हत्या के कारण सुर्खियों में है । कानपुर के संजीत यादव का एक महीने पूर्व अपहरण कर लिया जाता है । तीस लाख की फिरौती की मांग होती है । पुलिस कार्रवाई का हवाला देती रहती है । अंत मे पुलिसकर्मियों की उपस्थिति में पुल के ऊपर से तीस लाख रुपये फेके जाते हैं। इस समय पुलिस घेराबंदी करने बजाय पुल के ऊपर मौजूद रहती है । और रुपये लेकर अपराधी फुर्र हो जाते है । पुलिस हाथ मलती रह जाती है । संजीत के परिजन ही नही जनता भी अवाक रह जाती है । लेकिन इस खबर को मीडिया पर प्रमुखता से दिखाए जाने और सोशल मीडिया पर अभियान चलाए जाने के बाद पुलिस जागती है । और जिन अपराधियों का एक महीने से सुराग नही लगा पाई थी, उन्हें चंद घंटों में गिरफ्तार कर लेती है । और उन अपहरण कर्ताओं ने यह स्वीकार किया कि उन्होंने आज ही संजीत यादव की हत्या करके शव पांडु नदी में फेंक दिया । शव की तलाश अभी जारी है । पुलिस द्वारा एक महीने तक हीलाहवाली और फिर एकाएक उनकी गिरफ्तारी की वजह से पुलिस की मिलीभगत पर संदेह और पुख्ता हो जाता है ।

अभी संजीत का खून और परिजनों के आंसू सूख भी नही पाए कि बहराइच में एक बीड़ी व्यवसायी के छह वर्षीय पुत्र का अपहरण कर लिया गया और एक करोड़ की फिरौती मांगी गई । इससे उत्तर प्रदेश की जनता के बीच एक बार फिर यह चर्चा होने लगी कि उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा एक अपहरण के मुद्दे पर डीजीपी को तलब करके जिस तरह कार्रवाई की गई थी। उससे ऐसे अपराधियों के बीच भय बना और अपहरण की घटनाएं न के बराबर होने लगी । अगर इसके बाद कभी कोई इस प्रकार की घटना हुई, तो सरकार के सख्त रुख के कारण पुलिस ने त्वरित कार्रवाई की । जिससे कोई हिमाक़त नही कर सका ।

आज से बीस तीस साल पहले उत्तर प्रदेश में अपहरण एक उद्योग के रूप में प्रतिस्थापित हो गया था । पास में बीहड़ होने के कारण उन्हें पकड़ रखने और छुपाने में सफलता भी मिलती थी। उस दौरान बीहड़ में डकैतों का बोलबाला था । लेकिन सपा सरकार के दौरान विशेष काम्बिंग अभियान चला कर डकैतों का सफाया कर दिया गया । जिससे अपहरण उद्योग की कमर टूट गई और मध्य उत्तर प्रदेश के लोग अमन चैन से रहने लगे ।

चम्बल और जालौन के बीहड़ों में रहने वाले डाकुओं को किसी अमीर आदमी के बच्चों की पकड़ करना डकैती डालने से ज्यादा आसान लगा । और वे डकैती छोड़ कर इसी दिशा में उन्मुख हो गए । उस समय जब अपहरण उद्योग अपने चरम पर था। किसान रात में अपने खेतों पर पानी लगाने भी नही जाता था । क्योंकि तत्कालीन डकैत सिर्फ धनाढ्य लोगों की ही नही, किसानों की भी पकड़ करने लगे थे । और उनसे पैसा भले न मिले, उनसे अनाज की मांग करके ही संतुष्ट हो जाते थे । बीहड़ की ओर से आने जाने वाले रास्ते शाम को सूने हो जाते थे। उस समय लोगों के मन इतना खौफ था कि कहीं आने जाने का काम दिन में ही निपटा लिया करते थे । दिन हो या रात कोई भी प्राइवेट वाहनों में बैठना पसंद नही करता था। क्योंकि प्राइवेट वाहनों में बिठा कर कई लोगों का अपहरण कर लिया गया था । इतना ही नही, कई सफेदपोश लोग भी इस व्यवसाय में शामिल हो गए थे । जो बीहड़ के आसपास के नगरों, उपनगरों में किराए पर छद्म नामों के साथ रहते और किसी धनाढ्य व्यक्ति के बच्चे को मौका पाते ही उठा ले जाते और उसे डकैतों को सौंप कर फिरौती मिलने पर एक निश्चित रकम प्राप्त काट लेते थे । इस तरह के कई प्रकरणों का जब खुलासा हुआ तो बीहड़ के आसपास के लोग किसी भी अपरिचित आदमी को शक की नजर से देखते और हमेशा उससे दूरी बना कर रखते और किसी भी हालत में उसे अपने बच्चे के नजदीक नही आने देते । अपहरण उद्योग जब अपने चरम पर था। तब बच्चे क्या? बूढ़े क्या ? जवान क्या? सभी लोग बाहर निकलने के बाद भयभीत रहते । एक दूसरे को शक की निगाह से देखते । और बड़ी सावधानी से एक दूसरे से व्यवहार करते ।

लेकिन अपहरण के कारण अपनी होती किरकिरी के कारण सरकार और पुलिस प्रशासन दोनो हरकत में आये, और इसे नेस्तनाबूद करने के लिए जाल बिछाया और इस उद्योग में लगी एक एक मछली को पकड़ते गए । उन्हें सजा दिलाते गए और अ त में बीहड़ों से डकैतों का उन्मूलन करने में भी सफलता प्राप्त की । जिसके बाद मध्य उत्तर प्रदेश के लोग निर्भय होकर रहने लगे। लेकिन कानपुर के संजीत यादव का एक महीने पूर्व अपहरण और उसकी हत्या तथा बहराइच के एक बीड़ी व्यवसायी के पुत्र का अपहरण और एक करोड़ की फिरौती की मांग के बाद ऐसा प्रतीत हो रहा है कि उत्तर प्रदेश में यह उद्योग फिर से फैलने लगा है । एक बात तो सच है कि भारत मे बिना पुलिस संरक्षण के कोई अपराध नही पनप सकता है । चाहे पुलिस संरक्षण दे, उसकी तरफ से आंख मुद ले, एक ही बात है । उनकी शह पर ही अपराधी तमाम वारदातों को अंजाम देते है। संजीत यादव अपहरण और हत्याकांड मे जो अपराधी पुलिस ने पकड़ें हैं, वे नई उम्र केलमम

लड़के हैं । यानी नई उम्र के लड़को की नई पौध जो जरायम की दुनिया मे पनप रही है। उसे अपहरण और फिरौती का काम आसान लग रहा है। हालांकि यह काम इतना आसान नही है। मीडिया की सक्रियता के कारण ऐसे अपराधों को बहुत समय तक छिपाया नही जा सकता है । पुलिस और सरकार भी बहुत देर तक निष्क्रिय नही रह सकती है । सोशल मीडिया की वजह से ऐसी घटनाओं के बाद तो विरोधी दलों के कार्यकर्ता संगठित होकर सरकार और पुलिस प्रशासन के खिलाफ अभियान चलाने लगते हैं । जिसके कारण सरकार और पुलिस प्रशासन दोनों को प्रभावी कदम उठाना पड़ता है ।

एक बात यह भी सही है कि जैसी सरकार होती है। उसके मुख्यमंत्री की मंशा होती है । उसके नेताओं का आचरण होता है, उसी के अनुरूप पुलिस की कार्यशैली भी परिवर्तित होती रहती है । उत्तर प्रदेश की जनता ने भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस की सरकारों के दौरान महसूस किया है । हर सरकार के दौरान पुलिस का रूप अलग अलग दिखाई पड़ता है । पुलिस तो वही रहती है, जो किसी सरकार में बेहद चुस्त दिखाई पड़ती है और किसी सरकार में सुस्त हो जाती है । किसी सरकार में नेताओं के रहमोकरम पर चलती है, उनके दिशा निर्देश पर एफआईआर तक दर्ज करती है । और उनकी इच्छानुसार आरोपियों से व्यवहार करती है ।

पुलिस वही रहती है, पर कभी अपराध बढ़ जाते हैं और कभी उसकी सक्रियता से अपराधी दुम दबाकर अपनी बिलों में दुबके रहते हैं । और कभी अपने माकूल माहौल जान ताबड़तोड़ घटनाओं को अंजाम देते हैं ।

लेकिन मैं अपने मूल विषय पर आते हुए उत्तर प्रदेश की सरकार और पुलिस से एक ही बात कहना चाहता हूं कि दशकों तक के कठिन परिश्रम और काबिंग कर जिस अपहरण उद्योग को नेस्तनाबूद किया था। ऐसे में जब अपहरण करने वाले अपराधी फिर से सर उठा रहे हैं, तो उनके साथ सख्ती से पैश आकर, उनके खिलाफ ताबड़तोड़ कार्रवाई कर उनके मंसूबों पर पानी फेर देना चाहिए। जिससे अपहरण जैसी घटनाओं को अंजाम देने के पूर्व सिहर उठे ।

प्रदेश के हर नागरिक को सुरक्षा और भयमुक्त वातावरण देना सरकार और पुलिस प्रशासन दोनों का नैतिक ही नही, अनिवार्य दायित्व है । इसलिये संजीत यादव के अपहरणकर्ताओं और हत्यारो को कड़ी से कड़ी सजा दिलाये तथा बहराइच अपहरण कांड के बच्चे को जिंदा छुड़ाने के साथ अपहरणकर्ताओं को गिरफ्तार कर उन्हें जेल की सलाखों के पीछे भेजना चाहिए । जिससे अपहरण और फिरौती फिर जरायम दुनिया मे एक बार फिर उद्योग का रूप न ले ।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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