अखिलेश के आह्वान को सपा नेताओं ने बनाया मजाक

जहां तक मैं जान पाया हूं, भारत के हर राजनीतिक दल के मुखिया की भावना बहुत ही नेक होती है । वह राजनीति द्वारा देश और अपने प्रदेश के विकास के साथ आम जन मानस का अधिकतम कल्याण करना चाहता है । अगर वह विपक्ष में है, तो सत्ता प्राप्त करने और चुनाव जीतने के लिए कारगर रणनीति भी बनाता है । लेकिन उस रणनीति की सफलता असफलता उसके क्षेत्रीय नेताओं और कार्यकर्ताओं पर निर्भर करती है । अगर वह अपने नेता के निर्देश अनुरूप चुनावी रणनीति को व्यवहारिक जामा पहनाने में कामयाब होता है, तो चुनाव में पार्टी उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित होती है । अगर वह सिर्फ बातों से पेट भरने लगता है । दिखावा करने लगता है, तो जीती बाजी भी वह राजनीतिक दल हार जाता है ।
ऐसा ही कुछ हाल समाजवादी पार्टी का दिखाई दे रहा है । उसके नेता अखिलेश यादव 2022 के चुनाव को लेकर संजीदा है। लगातार लोगों से विचार विमर्श कर रणनीति भी बना रहे हैं। लेकिन 2022 की सत्ता की बात करने वाला उनका कार्यकर्ता और नेता सिर्फ आपस मे बातें करके या सोशल मीडिया पर दो लाइन लिख कर सत्ता प्राप्त कर लेना चाहता है । सपा कार्यकर्ता सिर्फ दिखावा करता दिखाई दे रहा है । जनता के बीच मे तो छोड़िए, वह कहां उठ बैठ रहा है, इसका भी पता बड़ी मुश्किल से लग पाता है । सत्ता के समय गुलजार रहने वाले सपा कार्यालय वीरान पड़े हुए हैं । न तो नेता दिखाई दे रहा है, न ही उसके कार्यकर्ता। हर सपा कार्यालय पर स्थाई रूप से निवास करने वाला वेतनभोगी कर्मचारी सफाई भी तभी करता है, जब उसे सूचना मिलती है कि सपा जिलाध्यक्ष आज कार्यालय आने वाले हैं । अधिकांश सपा जिला अध्यक्ष सप्ताह में एक या दो दिन ही अपने कार्यालयों पर घंटे दो घंटे के लिए अपने समर्थकों के साथ उपस्थित होते हैं और चाय पानी करके चलता बनते हैं । किसान और मजदूर सहित सभी लोग तमाम समस्याओं से जूझ रहे हैं । लेकिन जब वे सपा कार्यालय की तरफ जाते हैं, तो कार्यालय पर बड़ा सा ताला लटका हुआ मिलता है । अगर खुला भी होता है, तो जिलाध्यक्ष ही नदारद होते हैं । ऐसे में जनता अपना दुख दर्द कहे तो कहे किससे । इसके विपरीत तमाम गलत नीतियों के कारण भी सत्ता दल के कार्यकर्ता और नेता सहित आरएसएस के लोग टहलते मिलते हैं । हर तरफ से निराश लोग उन्हीं के पास पहुचते हैं और अपनी समस्या का समाधान कराते हैं।
मुझे बड़ा आश्चर्य होता है कि जिस जिला अध्यक्ष पद पाने के लिए वह एड़ी चोटी की ताकत लगाता है, वही पद मिलने के बाद इतना निष्क्रिय कैसे हो जाता है ? ऐसे में जब अखिलेश यादव संगठन का पुनर्गठन करके अपनी चुनावी टीम तैयार कर रहे हों, और वह टीम क्षेत्र में जाने की बात कौन करे, कार्यालय पर भी बैठना उचित नही समझ रही है । फिर चुनावी वैतरणी कैसे पार होगी ।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए वातावरण तैयार करने के लिए एक आह्वान पत्र लिखवाया। उसके हर बिंदु पर खुद चिंतन मनन करके उसे अंतिम रूप दिया । उसमें हर उस तथ्य को शामिल किया गया, जो जनता का मानस बदल सकते थे । उसमें उन तथ्यों को समाहित किया गया, जो जनता के संज्ञान में हैं। उसमें उन तथ्यों को भी शामिल किया गया, जो उसकी बदहाली के लिए जिम्मेदार हैं । उसमें वह कमिटमेंट भी किया गया, जो जनता की परेशानियों को दूर करके उसके सपनों को पूरा कर सकते हों । यह आह्वान पत्र समाजवादी पार्टी के प्रदेश कार्यालय द्वारा सभी जिला अध्यक्षों को भेजा गया ।
लेकिन सभी सपा जिला अध्यक्षों द्वारा इसे भी साधारण प्रक्रिया के रूप में लिया गया । सपा जिला कार्यालय सचिव द्वारा वाट्सएप ग्रुप में या सपा जिलाध्यक्ष द्वारा इसे कार्यालय से ले जाने के लिए कहा गया। कुछ बड़े नेताओं के यहां किसी कार्यकर्ता के द्वारा भिजवा दिया गया । लेते देते समय एंड्रॉयड मोबाइल फोन से फोटो खींची गई और सोशल मीडिया पर डाल दी गई । जनता के बीच मे बांटने के बजाय यह नेताओं और कार्यकर्ताओं की जेब और बैठक की शोभा बन कर रह गया। प्रदेश कार्यालय द्वारा प्रति विधानसभा क्षेत्र के हिसाब से कम से कम तीन हजार और अधिकतम पांच हजार आह्वान पत्र भेजे गए । जो विधानसभा के हिसाब से बहुत कम है । उत्तर प्रदेश में हर विधानसभा के छोटे बड़े नेताओं कार्यकर्ताओं की गणना करें, तो हर विधानसभा में इतने नेता घूमते हुए मिल जाएंगे । उस हिसाब से यह परिपत्र कम हैं । अगर हर विधानसभा के जीते और हारे ग्राम प्रधानों की भी गणना कर लें, और उन्हें 10-10 प्रति भी दें तो वह भी पूरा नही पड़ेगा । कई जिलों में जहां विशेष ध्यान दिया गया है, वहां 10 - 10 प्रति हर प्रधान को दी गई है । इतनी कम संख्या में होने के कारण ग्राम प्रधान ने भी दो तीन अपनी जेब मे डाल ली और दो दो अपने बहुत खास लोगों को दे दिए । उसने भी लेते देते एंड्रायड फोन से फोटो खिंचवाई और सोशल मीडिया पर डालने के साथ जिलाध्यक्ष के वाट्सएप पर भी भेज दिया । इस तरह से भी आह्वान पत्र का वितरण हो गया । सोशल मीडिया का जमाना हो के के कारण आह्वान पत्र की चर्चा हुई। गांव वालों को पता चला कि अखिलेश यादव ने आह्वान पत्र भेजे हैं । उन्होंने जब अपने परिचित सपा नेताओं से मांगा, तो उसे नही मिला । इस प्रकार आह्वान पत्र गावों में बंटा नही। कस्बों में बंटा नही । केवल नेताओं, ग्राम प्रधानों की जेबों और बैठकों की शोभा बन कर रह गए। जिन नेताओं के घरों में छोटे बच्चे हैं वे आह्वान पत्र की जहाज बना कर खेल डाले। इस प्रकार उनकी बैठकों से भी नदारद हो गए ।
मुझे बड़ा आश्चर्य होता है कि वे अखिलेश यादव की भावनाओं और रणनीति का भी अंदाजा नही लगा पा रहे हैं । 2022 में खुद द्वारा निर्धारित 351 के लक्ष्य के लिए बहुत ही विचार विमर्श करके रणनीति बना रहे हैं, उसे क्रियान्वयन के लिए उसे मूर्त रूप दे रहे हैं । वहीं दूसरी ओर उनके कार्यकर्ता और नेता उनके सपनों पर पानी फेरते नजर आ रहे हैं । समाजवादी पार्टी का जिला अध्यक्ष, पदाधिकारी, नेतागण इतने भी गरीब नही हैं कि एक एक नेता दस दस कलर फोटोकॉपी करवाने की हैसियत न रखता हो । जय जय अखिलेश यादव का नारा लगाने वाले और उनकी तरह कुर्ता पायजामा और जूता पहनने की नकल करने वाले भी एक भी फोटोकॉपी करवा कर न बांटी, न बंटवाई ।
अखिलेश द्वारा अपनी विशेष रणनीति के तहत भेजे गए आह्वान पत्र अगर पूरे प्रदेश में एक एक घर मे वितरित किये गए होते, तो इसमें दो राय नही कि मानसिक रूप से ही सही एक वातावरण की निर्मिति होती । जनता के बीच चिंतन मनन होता । वाद विवाद और संवाद होता । प्रतिक्रिया स्वरूप ही सही, जनता की ओर से कुछ नए तथ्य निकल कर आते । जिसका स्थानीय और प्रादेशिक स्तर पर समाधान निकाला जाता । पर ऐसा कुछ नही हुआ । अखिलेश की रणनीति पर उनकी ही जय जय करने वाले कार्यकर्ताओं , नेताओं ने पानी फेर दिया । अखिलेश यादव द्वारा इतना पैसा और दिमाग खर्च करने के बाद भी समाजवादी पार्टी जहां थी, वही और उसी अवस्था मे खड़ी दिखाई रह गई ।
समाजवादी पार्टी और उसके नेताओं के मन मे यह बात घर कर गई है कि योगी सरकार की विफलताओं का उन्हें फायदा मिलेगा। उन्हें यह नही मालूम है कि किसी भी सत्ता के प्रति जो आक्रोश होता है, उससे केवल वातावरण की निर्मिति होती है । चुनाव जीता नही जाता था । चुनाव जीतने के लिए उस वातावरण का फायदा उठाते हुए मेहनत करना पड़ता है । इसलिये उन्हें अपने अपने क्षेत्रों में घर घर घूम कर उस वातावरण को अपने पक्ष में करना चाहिए । समाजवादी पार्टी को यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि कोरेना संकट काल मे मुफ्त का गेहूं चावल और एक किलो चना उठाने वाले उनके अपने समाजवादी वोटर भी हैं । वे उनके साथ रहेंगे कि 2022 में उनमे से भी कुछ भाजपा के पक्ष में मतदान कर आएंगे ।
जब ऐसी विषम परिस्थिति हो, फिर आह्वान पत्र के साथ इस प्रकार का रवैया कहाँ तक उचित है । ऐसे समय मे तो दुगुने उत्साह से काम करने की जरूरत है । ऐसे समय में जब सभाएं सम्भव नही है । मास्क लगाकर, दो गज दूरी का पालन करते हुए एक एक व्यक्ति से चर्चा करने की जरूरत है । ऐसे समय मे समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता कहीं फोटोकॉपी कराने में 10 रुपये खर्च न हो जाएं, इसकी चिंता करते फिर रहे हैं । जो आह्वान पत्र जनता के जेब मे होना चाहिये, खुद की जेबों रखे हुए फिर रहे हैं । ऐसे समय मे जब उसे दस लोगो को पढ़ कर सुनाना चाहिए, उसे जेब मे छुपाये फिर रहे हैं ।
अगर यही स्थिति रही, तो फिर चाहे कितने आह्वान अखिलेश की तरफ से क्यों न हो, चाहे कितनी फुलप्रूफ रणनीति क्यों न बनाएं, उस पर पानी फिरना लाजिमी है । कम से कम अपने नेता की मजाक नही बनाना चाहिए । इतना तो किया जा सकता है ।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट