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सम्बधों के प्रति शिवपाल की संवेदनशीलता और 2022 के चुनाव पर उसका प्रभाव

सम्बधों के प्रति शिवपाल की संवेदनशीलता और 2022 के चुनाव पर उसका प्रभाव
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उत्तर प्रदेश की राजनीति में एकमात्र ऐसे नेता शिवपाल सिंह यादव है। जो अपने संबंधों के प्रति सदैव संवेदनशील रहे है। चाहे वे संबंध परिवारीजनों के प्रति रहे हों, चाहे वे संबंध राजनीतिक जनों के साथ रहे हों । दोनो प्रकार के संबंधों के प्रति सम्वेदनशीलता का एक मापदंड निर्धारित किया है । अमूमन देखने मे यह आता है कि जो लोग सेवाभावी राजनीति करते हैं, उनका परिवार तबाह हो जाता है और जो लोग परिवार को श्रेय देते हैं, वे राजनीतिक क्षेत्र में विकास नही कर पाएं । लेकिन शिवपाल सिंह यादव एकमात्र ऐसे नेता हैं, जिन्होंने राजनीति और परिवार के बीच मे समन्वय स्थापित किया । दोनों स्तरों की अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते रहे। संयुक्त परिवार में पले बढ़े शिवपाल को रिश्तों की अहमियत मालूम थी। संयुक्त परिवार ने उनकी चेतना को विस्तार दिया है । जिसका बहुत कुछ श्रेय समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह को भी जाता है । मुलायम सिंह के निर्देशन में उन्होंने पारिवारिक और राजनीतिक दोनो उत्तरदायित्वों का निर्वहन करना सीखा। घर के बाहर हो या भीतर संबंधों को कैसे जीतें हैं, यह नेता जी से सीखा । साथ ही बाहरी लोगों से कैसे संबंध बनाते हैं, कैसे उसे आजीवन निभाते हैं, यह भी नेताजी से ही सीखा। सिर्फ सीखा ही नही, उसे अपने आचरण में उतारा भी ।

इसी कारण प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के संस्थापक अध्यक्ष शिवपाल सिंह संयुक्त परिवार की परंपरा का निर्वहन करते हुए चाहे अपने पुत्र का लालन पालन हो या अखिलेश का, दोनों में कभी विभेद नही किया । उन्होंने अपनी पत्नी सरला को इस बात के लिए तस्दीक किया कि अखिलेश के लालन पालन में कोई कमी नही होना चाहिए। इसका एक कारण यह भी था कि मुलायम सिंह ने अपने परिवार के साथ कभी विभेद नही किया। सबके समान विकास के लिए प्रयत्नशील रहे । उनके इसी विचार का प्रभाव है कि पारिवारिक स्तर पर राजनीति में भागीदारी करने वाला सबसे बड़ा परिवार बन गया है । मुलायम सिंह यादव की एक ही भावना रही कि उनके परिवार के प्रत्येक सदस्य के मन मे सेवा भावना जरूर आये। इसके लिए उन्होंने प्रयास किया । चूंकि राजनीति में मुलायम सिंह एक प्रतिष्ठित नेता है, इसी कारण परिवार के प्रत्येक सदस्य ने उनके राजनीतिक संबंधों का उपयोग करते हुए सेवा शुरू की । इस कारण उनकी लोकप्रियता बढ़ी और न चाहते हुए भी उन्हें परिवार के तमाम सदस्यों को राजनीति में लाना पड़ा ।

जहां तक प्रसपा प्रमुख शिवपाल सिंह की बात है, अपनी कर्तव्यनिष्ठा और भातृत्व प्रेम की वजह से वे चाहे परिवार हो या राजनीति, मुलायम सिंह की जरूरत बन गए । इसी कारण मुलायम सिंह यादव ने परिवार और पार्टी के उत्तरदायित्वों को सौंप कर निश्चिंत हो जाया करते थे और नेताजी के सौंपे हर कार्य को तन मन से पूरा करने का प्रयास करते रहे । उस कार्य को पूरा करने के लिए चाहे जितना कष्ट सहना पड़े, पीछे हटने की बात तो दूर कभी उफ तक नही किया। मुलायम सिंह के साथ समर्पण की भावना के साथ काम करते करते वे संगठन के महारथी हो । इतना ही नही, मुलायम सिंह के साथ रहते हुए उन्होंने व्यक्तियों की पहचान का गुण विकसित किया । इसी कारण जिस व्यक्ति के साथ कुछ मिनट वे गुजार लेते। उससे चंद बात कर लेते, इतने में ही पहचान जाते कि इसके आंतरिक गुण क्या हैं ? अपनी इसी विशेषता के कारण वे संगठन में नेता की खूबी और सामर्थ्य के अनुसार उसे पद आवंटित करते। और वह मनोनीत पदाधिकारी भी अपने राजनीतिक कर्मों का सुचारू रूप से संपादन व क्रियान्वयन करता। शिवपाल की यह भी विशेषता रही है कि जिसे भी वे संगठन में जिम्मेदारी सौंपते, उससे समय समय पर चर्चा करते रहते । कोई कठिनाई तो नही, पूछते रहते और उनकी कोशिश यही रहती कि उसके मार्ग की हर कठिनाई दूर हो, जिससे वह संगठन के सभी उत्तरदायित्वों को पूरा करते हुए पार्टी को जनता के बीच मे लोकप्रिय बनाएं । यहां भी वे अपने पार्टी के नेताओं, पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के साथ बड़ी संवेदनशीलता के साथ संबंधों का निर्वाह करते हुए देखे जा सकते हैं ।

उनकी यह भावना सिर्फ बाहरी नही रही, बल्कि मुलायम सिंह और अपने भतीजे अखिलेश के साथ रही । वे नेताजी को सिर्फ अपना बड़ा भाई नही मानते थे, बल्कि उन्हें अपना राजनीतिक गुरु भी मानते है। उनके इसी भाव से अनुप्राणित हो, मुलायम सिंह ने उन्हें हर दांव पेंच में पारंगत कर दिया। इसी कारण जब अखिलेश और शिवपाल के बीच मनमुटाव हुआ, तो वे हर हालत में शिवपाल को पार्टी में रखना चाह रहे थे । उसका एक और कारण था कि मुलायम सिंह ने कभी इसकी कल्पना नही की थी कि शिवपाल, अखिलेश और प्रोफेसर राम गोपाल के बीच इतना मनमुटाव बढ़ जाएगा कि वे पार्टी से अलग हो जाएंगे। अपने इसी उद्दात विचार के कारण उन्होंने शिवपाल, प्रोफेसर राम गोपाल और अखिलेश में उनकी काबिलियत और नैसर्गिक गुणों के आधार पर राजनीतिक मूल्यों का रोपण और उसका विकास किया। कहने का तात्पर्य यह है कि अगर मुलायम सिंह को समझना है तो आपको शिवपाल, प्रोफेसर रामगोपाल और अखिलेश को एकसाथ रख कर देखना होगा। प्रोफेसर राम गोपाल समाजवादी विचारधारा के पोषक बने। शिवपाल संगठन और संबंधों की निभाने की संवेदनशीलता के महारथी बने और अखिलेश विकासवादी सोच और सरकार के प्रतीक बने ।अगर हम तीनों का तुलानात्मक अध्ययन करें तो यह बात साफ हो जाती है कि अखिलेश से अच्छी सरकार इनमे से और कोई नही चला सकता। प्रोफेसर राम गोपाल के अतिरिक्त इनमे से कोई दूसरा समाजवादी विचारधारा की व्याख्या नही कर सकता और शिवपाल के अलावा संगठन का महारथी शेष दोनों नही हो सकते।

लेकिन पिछले तीन वर्ष पूर्व जो हुआ, सबने देखा,सुना और पढ़ा। मैं उस विषय पर नही जाना चाहता । बस एक बात कहना चाहता हूं कि मनभेद होने के बाद भी एक दूसरे के प्रति उनकी संवेदनाएं मरी नही । अपने वक्तव्यों में दोनों ने हमेशा यही कहा कि परिवार के स्तर पर हम लोगों के बीच कोई मतभेद नही है । पूरा परिवार एक है। तर त्योहार पर सभी एक मंच पर दिखे भी । लेकिन आलोचकों ने उसमें भी अपने मतलब का ही भाव खोजा और लिखा । लेकिन मेरा मानना है कि शिवपाल और अखिलेश दोनो के हृदयों के सागर सूखे नही । नियंत्रित जरूर हो गए । इसी कारण उनके एक होने की संभावना से कभी किसी ने इनकार नही किया। सभी एक हो जाएं, इसका प्रयास भी मुलायम सिंह के स्तर से लगातार किया जा रहा था। वे दोनों को यही समझाते रहे कि तुम दोनों एक दूसरे का नुकसान मत करना । लेकिन शिवपाल द्वारा नई पार्टी बनाने का असर दिखा। हालांकि शिवपाल ने अपने समथकों से भी यह नही कहा कि सपा को वोट मत दो । हां, यह भी बात सही है कि अलग पार्टी का मुखिया होने के कारण सपा उम्मीदवारो को वोट भी देने को नही कहा । परिणाम नकारात्मक आया । इस कारण हार के छीटे शिवपाल पर भी पड़े। खैर अखिलेश ने एक सकारात्मक कदम उठाया । उन्होंने शिवपाल सिंह को सपा का ही विधायक मानते हुए, उनकी सदस्यता को रद्द करने की याचिका वापस ले ली । इसका एक सकारात्मक प्रभाव पड़ा। शिवपाल सिंह की ओर से सकारात्मक प्रतिक्रिया हुई । शिवपाल और अखिलेश दोनों ने 2022 के चुनाव में साथ मिल कर चुनाव लड़ने की भी सार्वजनिक मंचों से एक बार नही, कई बार घोषणा हुई । शिवपाल ने अखिलेश को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार माना, जिसकी घोषणा वे पहले भी करते रहे। शिवपाल और अखिलेश के बीच प्रेम को इस आधार पर भी जाना जा सकता है कि नई पार्टी बनने के वाद भी उन्होंने कभी खुद को या अपने बेटे अंकुर को मुख्यमंत्री के रूप में घोषित नही किया । हमेशा अखिलेश का ही नाम लेते रहे। हमेशा यही कहते रहे कि 2022 में अखिलेश को ही मुख्यमंत्री बनाना उनका लक्ष्य है ।

खैर जो भी कुछ हुआ, उस पर विचार न करके मैं विषयगत संदर्भ पर आता हूँ । दोनो ओर से रिश्ते सामान्य होने के बाद शिवपाल सिंह ने अपनी प्रवक्ताओं की कमेटी भंग कर दी। क्योंकि उस कमेटी में सपा और अखिलेश से निजी खुन्नस रखने वाले लोग भी थे। इसके बाद नई लिस्ट जारी की। जिसमें ऐसे लोगों को ही प्रश्रय दिया गया, अखिलेश और सपा के विरोधी नही हैं और साथ ही उन्हें तस्दीक भी किया गया कि वे सपा और अखिलेश संबंधित सवाल अगर मीडिया द्वारा किये जायें, तो ऐसा उत्तर कभी नही देना है, जिससे एका प्रभावित हो । संबंधों के पर्याय शिवपाल यादव इस समय अखिलेश और सपा के संबंध में हर एक एक कदम फूंक फूंक कर रख रहे है । साथ ही अपने पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी अनुशासन में रखे हुए है । उसका असर जमीन पर भी दिखाई दे रहा है । इस समय मैं कोरेना पर्यावरण जागरूकता अभियान शहीद सम्मान यात्रा के तहत भ्रमण कर रहा हूँ , जिसमे इसे महसूस भी कर रहा हूँ । मतदाताओं के बीच इसे लेकर खुशी जाहिर की जा रही है । इससे 2022 में अखिलेश के मुख्यमंत्री बनने की प्रायिकता में भी इजाफा हुआ है ।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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