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भारत चीन सीमा विवाद और महात्मा बुद्ध द्वारा दिए गए समाधान के सूत्र – प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव

भारत चीन सीमा विवाद और महात्मा बुद्ध द्वारा दिए गए समाधान के सूत्र – प्रोफेसर (डॉ.) योगेन्द्र यादव
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(बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष)

आज आषाढ़ पूर्णिमा है । आज के ही दिन महात्मा बुद्ध ने अपने पहले पांच शिष्यों को प्रथम उपदेश देकर धर्म-चक्र प्रवर्तन किया था। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति ने देश को संबोधित कर महात्मा बुद्ध के दिखाये मार्गों पर चल कर आज की विषम परिस्थितियों का सामना करने का संदेश दिया। उन्होने कहा कि भगवान बुद्ध का आठ गुना मार्ग दुनिया के कई समाज और देशों को कल्याण की दिशा में रास्ता दिखाता है। यह करुणा और दया के महत्व को समझाता है। आज दुनिया असाधारण चुनौतियों से लड़ रही है। इन चुनौतियों के लिए, स्थायी समाधान भगवान बुद्ध के आदर्शों से आ सकते हैं। वे अतीत में प्रासंगिक थे। वे वर्तमान में प्रासंगिक हैं और वे भविष्य में प्रासंगिक बने रहेंगे।

एक ओर पूरा विश्व कोरेना महामारी के संकट से गुजर रहा है, वहीं दूसरी ओर चीन और पाकिस्तान भारत की सीमाओं पर अतिक्रमण करने के लिए अपनी फौज जमा कर रखा है । ऐसी परिस्थितियो महात्मा बुद्ध के कौन से विचार फलदायी होगे, इस लेख में उस पर विचार कर रहा हूँ ।

महात्मा बुद्ध के अनुसार किसी भी देश की राजनीतिक और सामरिक शक्ति सामाजिक व्यवस्था पर निर्भर करती है । इसी से संबन्धित एक सवाल महात्मा बुद्ध के पास उस समय आया, जब वे राजगृह के गृधकूट पर्वत पर ठहरे हुए थे । उस समय मगध नरेंश अजातशत्रु वज्जियों पर आक्रमण करना चाहता था । उसने अपने मन में कहा कि चाहे वे कितने शक्तिशाली क्यों न हों ? मैं इन वज्जियों की जड़ खोद डालूँगा, इनका सर्वथा विनाश कर डालूँगा । अपनी इस योजना को मूर्त रूप देने के पूर्व वज्जियों को जब ज्ञात हुआ कि महात्मा बुद्ध इस समय गृधकूट पर्वत पर ठहरे हुए हैं । वहाँ जाकर यह सवाल उन्होने महात्मा बुद्ध के सामने रखा । तब महात्मा बुद्ध ने कहा कि जब तक वज्जिगण प्रजातन्त्र में विश्वास करते हैं और प्रजासत्तात्मक ढंग से रहते हैं, तब तक उनके गणराज्य को कोई खतरा नहीं है । इसके अलावा महात्मा बुद्ध ने युद्ध को हमेशा निषिद्ध बताया है । इस संबंध में उन्होने कहा कि एक आदमी दूसरे की यथेष्ट हानि कर सकता है, लेकिन जिसकी हानि होती है, वह भी फिर दूसरे को हानि पहुंचाता है । जब तक पाप कर्म फल देना आरंभ नहीं करता, तब तक मूर्ख आदमी आनंद मना सकता है । लेकिन जब पाप कर्म फल देता है, तब मूर्ख आदमी दुखी होता है । हत्यारे को हत्यारा मिलता है, जो दूसरों को लड़ाई में हराते हैं, उन्हें हराने वाले मिल जाते हैं। जो दूसरों को गाली देता है, उसे गाली देने वाले मिल जाते हैं ।

महात्मा बुद्ध युद्द के संबंध में आगे अपना विचार इस प्रकार व्यक्त करते हैं – वे कहते हैं कि अगर युद्द में विजय प्राप्त हो जाए तो वह योग्य सिद्ध हो। सीधा-सरल सिद्ध हो। मृदुभाषी सिद्ध हो। कोमल स्वभाव हो। अभिमानी न हो। संतुष्ट रहने वाला हो। बुद्धिमान और योग्य व्यवहार करने वाला हो । और किसी भी स्थिति में ऐसा खराब कार्य न करे, जिसकी बुद्धिमान लोग आलोचना करें ।

महात्मा बुद्ध की युद्ध विषयक बहुत ढेर सारी शिक्षाएं यत्र –तत्र बिखरी हुई हैं। जो आज चीन और पाकिस्तान को सबक सिखाने की दृष्टि से बहुत उपयोगी हैं। लेकिन हम उनकी उपरोक्त युद्ध विषयक शिक्षाओं पर भारत चीन और पाकिस्तान के संदर्भ में चर्चा करेंगे। सबसे पहले हम दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों के संबंध में चर्चा कर लेते हैं । धर्म की दृष्टि से चीन बौद्ध धर्म का अनुयाई माना जाता है। लेकिन भारत चीन सीमा विवाद के समय उसके विस्तारवादी दृष्टिकोण का पता चला है । महात्मा बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं में यह बताया है कि जहां तक संभव हो, युद्ध नहीं करना चाहिए। उन्होने कहा है कि यह युद्ध तभी नही हो सकता है, जब उसके शासक यानि राष्ट्र प्रमुख में मानवीय गुण होंगे। उसकी बुद्धि सकारात्मक होगी । इसी कारण उन्होने कहा कि अगर कोई भी व्यक्ति दूसरे को परेशान करता है, तो भविष्य में जब कभी वह कमजोर होगा, वह व्यक्ति भी उसे परेशान करेगा। अगर उसने उसकी कमजोरी का फायदा उठा कर उसकी जमीन और संपत्ति हड़पी होगी, तो जब वह मजबूत स्थिति में आएगा, तो उसकी जमीन और संपत्ति हड़प लेगा । अगर हम चीन की विसतरवादी नीति पर विचार करें, तो चीन की सीमा विश्व के अन्य 14 देशों के साथ लगती हैं। और एक भी ऐसा देश नहीं है, जिससे उसका सीमा का विवाद नहीं चल रहा हो। या ऐसा कोई उसका पड़ोसी नहीं है, जिसके हजारों वर्ग मीटर जमीन पर उसने बलात कब्जा नहीं किया हो । वहाँ के राष्ट्रपति चिंपिंग की इसी विस्तारवादी नीति के कारण जब भारत उसके इस नीति के खिलाफ खड़ा हुआ, तो उसके सारे पड़ोसी देश भारत की मदद करने को तैयार हो गए । जिसकी कल्पना चीन ने नहीं की थी। लेकिन चीन के राष्ट्रपति जिंपिंग दोगली नीति में विश्वास करता है। वह सामने और दिखाने के लिए तो बातचीत करने का स्वांग रचता है। लेकिन जैसे ही वह अपने प्रतिद्वंदी देश को ढीला पाता है, उस पर आक्रमण कर देता है और ज़मीनों पर कब्जा कर लेता है। गलवान घाटी में जो कुछ हुआ, चीन की इसी प्रवृत्ति का परिचायक है ।

इस तरह से शासक और व्यक्ति दोनों रूपों में जब हम चीन और उसके राष्ट्रपति की गतिविधियों का विश्लेषण करते हैं, तो यह सिद्ध हो जाता है कि दोनों के बीच में जो विवाद है, वह समाप्त हो सकता है, अगर दोनों देश महात्मा बुद्ध की युद्ध विषयक बातों का अनुसरण करें। सिर्फ उनकी शिक्षाओं का ही नहीं, उनके कार्यों का भी अनुसरण करें, तो भी उस समस्या का समाधान निकल सकता है।

जहां तक भारत का सवाल है, उसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सवाल है, अगर भारत चीन संबंध में उनके द्वारा उठाए गए कदमों और लिए गए निर्णयों का अन्वेषण करें तो यह बात साफ हो जाती है, कि वे महात्मा बुद्ध की शिक्षाओ और कार्यों का अक्षरश: पालन कर रहे हैं । अगर न करते, वे भी चीन के राष्ट्रपति चीन की तरह हो जाते, तो अब तक दोनों देशों में युद्ध शुरू हो गया होता । सिर्फ भारत और चीन ही नहीं, यह सभी जानते हैं कि दोनों के बीच समस्या का समाधान युद्ध नहीं है । न्यायोचित बातचीत ही है। अगर चीन चाहता है कि युद्ध न हो, तो उसे अपनी विस्तारवादी नीति का त्याग करना होगा । नहीं तो भारत भी इतना कमजोर नहीं है, जो उसे अपनी जमीन यूं ही दे देगा । वह भी समर्थ है, सशक्त है, उसके पास भी एक जोशीली सेना है, देशप्रेमी सेना है, जो दुश्मन को किसी भी सूरत में धूल चटाने का माद्दा रखती है ।

लेकिन सिर्फ भारत को ही नहीं, सम्पूर्ण विश्व को महात्मा बुद्ध के धर्म चक्र प्रवर्तन से शिक्षा लेकर ऐसे पाँच देशों को लेकर ही शांति नीति का प्रचार करना चाहिए । संयुक्त राष्ट्र संघ को आगे बढ़ कर ऐसी नीति बनानी चाहिए, जिससे कोई देश किसी देश की सीमाओं का अतिक्रमण न कर सके । अपने अहंकार की पूर्ति के लिए दूसरे देशों में आतंकवादी गतिविधियों को न संचालित करे । मानव है, मानव बन कर रहे, राक्षसी काम करके पूरी मानवता को कलंकित न करे । जैसा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लेह में अपनी सेना को संबोधित करते हुए कहा कि यह युग विस्तारवादी युग नहीं है। विकासवादी युग है । विकास का संबंध बुद्धि से होता है, कौशल से होता है, जो महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं का सार है। ऐसे समय में दोनों देशों को बुद्धि का प्रयोग करते हुए अपनी प्रवृत्ति को युद्ध विषयक न बना, विकास विषयक बनाना चाहिए ।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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