ममता, तेजस्वी व अखिलेश को एक तीर से निपटाने की मोदी रणनीति

स्थितियाँ अनुकूल हों,या प्रतिकूल; राजनीति करना हर नेता का पुनीत कर्तव्य है । चाहे सामान्य हालात हों, या कोरेना जैसी महामारी का संक्रमण काल, राजनेता सेवा इस प्रकार करेगा, जिसका उसे राजनीतिक लाभ मिले । मैंने देखा कि जब किसी नेता के क्षेत्र में कोई दिवंगत हो जाता है, तो वह उसके अन्त्येष्टि से लेकर तेरहवी तक जितने भी कार्यक्रम होते हैं, सभी में शामिल होता है । अपनी संवेदनाए प्रकट करता है । वहाँ जाकर नेता कोई संबंध नहीं जोड़ना चाहता है। अपितु यह दिखाता है कि वह अपने क्षेत्र की जनता के हर सुख-दुख में साथ है । जिसका फायदा उसे चुनाव के समय मिलता है । यानि अगर कोई अन्त्येष्टि कार्यक्रम में शामिल होता है, तो वह भी उसकी राजनीति का ही एक हिस्सा होता है ।
इसी आधार पर कोरेना महामारी के समय में केंद्र और प्रदेश सरकार द्वारा जो सेवा कार्यक्रम किए जा रहे हैं। कोरेना संक्रमित लोगों का इलाज किया जा रहा है, गरीबों के लिए मुफ्त अनाज वितरण योजना चलाई जा रही है, या उनके खाते में पैसे डाले जा रहे हैं। उसका लाभ उनको आगामी चुनाव में मिलना एक आम बात है। आने वाले समय में बिहार और पश्चिमी बंगाल में चुनाव होने वाले हैं। उत्तर प्रदेश भाजपा के लिए हमेशा महत्त्वपूर्ण रहा है। इसी कारण देश प्रधानमंत्री गुजरात से यहाँ आकर चुनाव लड़ते हैं। उनकी उत्तर प्रदेश से उम्मीदवारी का व्यापक प्रभाव पड़ता है। और विपक्ष और क्षेत्रीय पार्टियों के तमाम गठबंधन के बावजूद भाजपा को अधिकांश सीटों पर जीत मिलती है । कोरेना महामारी के समय में जो मुफ्त अन्न योजना चलाई जा रही है, उसका इन तीनों राज्यों की राजनीति पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा, इसमें दो मत नहीं है।
अपनी साफ-सुथरी छवि और विकासवादी सोच के कारण समाजवादी पार्टी और उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव उनके सामने हमेशा एक चुनौती के रूप में प्रस्तुत होते हैं। जिन्हें शिकस्त देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को खुद कमान संभालनी पड़ती है । कोरेना महामारी के दौरान अपने कर्तव्य और सेवा द्वारा प्रधामन्त्री नरेंद्र मोदी अखिलेश यादव के काकस को सीमित करना चाहते हैं। समाजवादी पार्टी का मूल वोटर मध्यम और गरीब वर्ग ही है। उसके भरण पोषण के केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही मुफ्त अन्न योजना और खाते में सीधे भेजी जाने वाली आर्थिक मदद से इस गरीब वर्ग की सोच में मोदी और योगी के प्रति एक सकारात्मक सोच उत्पन्न हो रही है। अपनी चर्चाओं के दौरान मुझे ऐसा लगता है कि इस समय देश के 82 करोड़ से अधिक, जिन लोगों को मुफ्त अनाज योजना का लाभ मिल रहा है, उनका झुकाव भाजपा की तरफ अधिक हो रहा है ।
यही हाल बिहार का भी है । बिहार में राष्ट्रीय जनता दल और उसके नेता लालू प्रसाद यादव के पास वहाँ की जनता का एक विशेष आकर्षण पाया जाता है । उनके पुत्र तेजस्वी यादव की जमीनी और गरीबों को समर्पित राजनीति की वजह से उन्हें यहाँ की सरकार को अक्षुण्य रखने के लिए हर विधानसभा चुनाव में काफी मेहनत करना पड़ता है । प्रवासी मजदूरों के आने के बाद वहाँ की स्थिति और दयनीय हो गई है। ऐसे में देश के प्रधानमंत्री द्वारा मुफ्त अनाज योजना के तहत पाँच महीने के लिए मुफ्त अनाज योजना का विस्तार करने के लाभ वहाँ होने वाले चुनाव में अवश्य मिलेगा । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने सम्बोधन में दो बार छट महापर्व का नाम लिया, जिससे बिहार में अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में उसका लाभ मिल सके ।
यही हाल पश्चिमी बंगाल का है । वहाँ की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का मूल वोटर या समर्थक बेहद गरीब है। कोरेना महामारी के दौरान उसके भूखे मरने की नौबत आई है । ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित मुफ्त अन्न योजना उसके लिए वरदान है। आज वह वहाँ की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ जरूर खड़ा है, लेकिन वह चुनाव के समय में खड़ा रहेगा, इसमें संदेह है । भाजपा और आरएसएस की संयुक्त रणनीति से हजारो लोग पाला बदलने को तैयार रहेंगे । प्रधानमंत्री की इस चाल पर ममता बनर्जी की भी दृष्टि है, इस कारण वह भी अपने वोटरों को रोकने का भरसक प्रयास कर रही हैं। लेकिन इसके बावजूद यह तय है, भाजपा का जनाधार पश्चिमी बंगाल में भी बढ़ेगा। हो सकता है, वह सरकार बनाने में भी सफल हो जाए ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश के 80 करोड़ गरीबों को नवंबर तक मुफ्त अनाज देने वाली योजना प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना का राजनीतिक लाभ भारतीय जनता पार्टी को स्वत: मिलेगा । इसके तहत देश के 80 करोड़ से ज्यादा गरीबों को हर महीने 5 किलो गेहूं या चावल और 1 किलो दाल मुफ्त दी जाएगी । मुफ्त अनाज देने की योजना को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए 5 महीने के लिए सरकार 90 हजार करोड़ रुपए खर्च करने का प्रावधान किया है । इसके तहत केंद्र सरकार तीन महीने मुफ्त राशन वितरित करने में 60 हजार करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है ।
एक राष्ट्र एक राशन कार्ड व्यवस्था के तहत वह देश में जहां रह रहा है, वहाँ अपने हिस्से का राशन ले सकता है । सरकार यह मान कर चलती है कि एक परिवार में कम से कम पाँच सदस्य होते हैं। इसलिए एक राशन कार्ड पर उसे 25 किलोग्राम गेहूं या चावल और एक किलो चना देना है। इस आधार पर राशन की व्यवस्था करती है । इस योजना की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरेना महामारी से प्रभावित गरीबों के कल्याण के लिए शुरू किया गया था । इसकी पूरक योजना के रूप में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज का प्रावधान किया गया है । इसके लिए 1.70 लाख करोड़ रुपए की व्यवस्था की गई है ।
इसके साथ - साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के नेतृत्व और निर्देशन में वर्चुअल रैली का अभियान भी चल रहा है। जिसमें 72 हजार से अधिक एलईडी का उपयोग करके जनता से संपर्क साधा जा रहा है। अभी तक भाजपा तीन वर्चुअल रैली कर चुकी है । इन रैलियों के मध्यम से भाजपा देश की जनता को यह बताने का प्रयास कर रही है कि वह आज की विषम परिस्थितियों में भी वह जनता के साथ खड़ी है । एक तरफ वह मुफ्त अनाज योजना के मध्यम से देश के 82 करोड़ से अधिक लोगों के खाने का इंतजाम कर रही है, वहीं दूसरी ओर वह चीन और पाकिस्तान सीमा पर बड़ी मुस्तैदी के साथ उन्हें जवाब दे रही है । इससे वर्चुअल रैली कर चुनावी अभियान चला रही भाजपा को सीधा लाभ मिलेगा ।
मुफ्त अनाज योजना कार्यक्रम को पाँच महीने आगे बढ़ाने पर मेरे मन में स्वत: जिज्ञासा उठी की, पिछले तीन महीने से मुफ्त अनाज बाँट रही केंद्र सरकार के पास अनाज का पर्याप्त भंडार है भी, या वह सिर्फ शिगूफ़ा छोड़ रही है। जब मैंने एफसीआई की वेबसाइट पर जाकर इसकी जांच की तो पाया कि 30 मार्च को डिपार्टमेंट ऑफ फूड एंड डिस्ट्रीब्यूशन, भारत सरकार ने एक आदेश निर्गत किया था। जिसके अनुसार केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत देशभर के 80.95 करोड़ गरीब लोगों को 3 महीने तक 5 किलो गेहूं या चावल और 1 किलो दाल मुफ्त देने की व्यवस्था की थी । इसी आदेश में उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 15.20 करोड़ और बिहार के लिए 8.57 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज मिलेगा, जो सम्पूर्ण देश में वितरित होने वाले मुफ्त अनाज का 10% हिस्सा है । प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत अप्रैल से जून के तीन महीनों के लिए 74.05 करोड़ मूल्य का 37.02 लाख मीट्रिक टन अनाज (93%) लोगों को दिया गया। मई में इसका लाभ 91% को और जून में 71% को मिला। अप्रैल से जून तक 4.40 लाख मीट्रिक टन दाल बांटी जा चुकी है। इससे मैं आश्वस्त हुआ कि फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया की वेबसाइट के अनुसार भारत सरकार के पास पर्याप्त मात्रा में अनाज उपलब्ध है । इस समय सरकार के पास 832.69 लाख मीट्रिक टन अनाज है। जिसमें 274.44 लाख मीट्रिक टन चावल, 558.25 लाख मीट्रिक टन गेहूं और 8.76 लाख मीट्रिक टन दालें स्टॉक हैं। जिसमें 3.77 लाख मीट्रिक टन अरहर दाल, 1.14 लाख मीट्रिक टन मूंग दाल, 2.28 लाख मीट्रिक टन उड़द दाल, 1.30 लाख मीट्रिक टन चना दाल और 0.27 लाख मीट्रिक टन मसूर दाल है।
इससे के बात तो साफ हो गई है कि कोरेना महामारी, भारत चीन सीमा विवाद, पाकिस्तान द्वारा भेजे जा रहे आतंकवादियों का उन्मूलन का जिस तरह से प्रयास किया जा रहा है, उसका लाभ उसे आगामी प्रदेशों में होने वाले चुनावो में भी स्वत: मिलेगा। फिर भाजपा और उसके नेता इसमें माहिर भी हैं। वे हर प्रकरण को इस प्रकार प्रस्तुत करते हैं, जिससे जनता को अपने पक्ष में मोड़ा जा सके और अपने पक्ष में वोट भी डलवाए जाएँ । देश की राजनीति में पहली बार यह देखने को मिल रहा है कि सरकार के प्रति तमाम जन उद्वेग के बाद भी सरकार और आरएसएस के लोग किसी न किसी रूप में जनता के बीच में बने रहते हैं। कभी वे किसी योजना के मध्यम से और कभी लोगों से संवाद करने के लिए । उनकी इस क्रिया से जनता के अंदर विक्षोभ को न केवल दबाया जाता है, अपितु उन्हें सफलतापूर्वक अपने पक्ष में बनाए रखा जाता है ।
इससे एक बात तो तय है कि इन तीनों प्रदेशों के प्रभावी दलों के सामने यह चुनौती है कि किस तरह वे मुफ्त अनाज वितरण और खाते में भेजे जा रहे पैसे के प्रभाव को कम कर सकेंगे । अगर कम कर सके तो उनका अस्तित्व बचेगा, नहीं तो सिर्फ गाड़ियों में झण्डा लगाने तक उनकी राजनीति बचेगी ।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट