नागरिक परिक्रमा (संजय पराते की राजनैतिक टिप्पणियां)

1. पिटाई का लोकतंत्र!
मध्यप्रदेश में डबल इंजन की सरकार है, क्योंकि केंद्र का इंजन भी राज्य के इंजन से जुड़ जाता है। अधिकांश जिलों में ट्रिपल इंजन की सरकार है, क्योंकि ये दोनों इंजन जिलों में स्थानीय निकायों और ग्राम पंचायतों के भाजपाई इंजन से जुड़ जाते हैं। जिस रेल में तीन-तीन इंजन लगे हो, उसकी मजबूती और ताकत का अंदाजा कोई भी सहज लगा सकता है। लेकिन यह भी सच है कि यदि पटरियां ही सड़ी-गली हो, तो ये इंजन भी काम नहीं आते।
मध्यप्रदेश में ऐसा ही हो रहा है। पूरे राज्य के कलेक्टर और अधिकारी भाजपाई नेताओं से परेशान हैं। परेशानी की असली वजह यही है कि आम जनता ने जिन लोगों को विधायिका का काम सौंपा है, उसे करने के बजाए वे कार्यपालिका के काम में दिलचस्पी लेने लगे हैं। भाजपा के विधायकों और सांसदों की विधायिका में कोई दिलचस्पी नहीं है। होती, तो संसद और विधानसभा में उनकी उपस्थिति का अहसास आम जनता को होता। विधायिका में उनकी दिलचस्पी होती, तो आम जनता के मुद्दों और उनकी समस्याओं पर संसद और विधानसभा में घमासान होता। दिलचस्पी होती, तो भ्रष्ट अफसर नपते नजर आते। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है। पुल टूट रहे हैं, सड़कें बह रही हैं, न खाने योग्य मध्यान्ह भोजन बच्चों को परोसा जा रहा है, शराब के नशे में ही शिक्षक स्कूल में झूम रहे हैं, आंगनबाड़ी भवन ढह रहे हैं, दलित-आदिवासियों पर मूता जा रहा है, जिंदों को कागजों में दफनाकर जमीन हड़पी जा रही है, मृत कर्मचारियों की भी पेंशन बनाकर हड़पा जा रहा है, लेकिन किसी भी मामले में किसी पर भी कोई कार्यवाही नहीं। यह हाल शिवराज सिंह चौहान के जमाने में था, तो मोहन यादव के समय भी है। मुख्यमंत्री आते-जाते रहते हैं, समस्याएं वहीं की वहीं रह जाती है, बल्कि और ज्यादा गंभीर हो जाती है।
हाल ही में भिंड के कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव को भाजपा विधायक नरेंद्र सिंह कुशवाहा ने पीट दिया। ये तो सुरक्षा बल के जवान थे, जिन्होंने कलेक्टर को बचा लिया। ये सुरक्षा बल आम जनता को भले ही सुरक्षा न दे पाए, अपने हुक्मरान की सुरक्षा में जरूर मुस्तैद रहते है। कहते है कि कलेक्टर और विधायक दोनों ने एक दूसरे को "चोर" कहा, और ऊपर के किसी बड़े चोर, जो इस जिले के प्रभारी मंत्री बताए जाते हैं, के हस्तक्षेप के बाद नीचे के दोनों चोरों में समझौता हुआ। अभी तक संविधान के अनुसार, मुख्यमंत्री और उसके मंत्रिमंडल सदस्य ही शासन के कर्ता-धर्ता माने जाते हैं, फिर जिलों में प्रभारी मंत्री कहां से पैदा हुआ और उसका अधिकार क्षेत्र क्या है, यह तो सत्ताधारी भाजपा ही बता सकती है। लेकिन तय मानिए कि शासन और प्रशासन नाम की किसी चिड़िया के ऊपर कोई और बैठा है, जिसकी इतनी औकात है कि विधायिका और कार्यपालिका के दो चोरों का मेलमिलाप करा सकें।
लेकिन विधायिका के हाथों कार्यपालिका के पिटने की यह कोई पहली घटना नहीं है और न आखिरी होगी। इससे पहले ग्वालियर में आईएएस निगमायुक्त भी सत्तारूढ़ भाजपा के छुटभैये नेताओं के हाथों पिट चुके हैं। इससे पहले शिवपुरी जिले के एसपी का भी यही हाल हुआ, लेकिन यहां पराक्रम भाजपा विधायक प्रीतम लोधी ने दिखाया था। देवास में भाजपा विधायक के बेटे ने ही आधी रात को पुलिस के सामने एक मंदिर के दरवाजे खुलवा दिए थे। भगवान की नींद में खलल डलते देखकर भी पुलिस की नींद नहीं टूटी थी।
भाजपा राज के शासन की ये चंद बानगियां हैं। यदि नौकरशाही ही विधायिका और उसके गुर्गों से पिट रही है, तो आम जनता की रक्षा कौन करेगा? वैसे, भाजपा राज में अब आम जनता भी नागरिक ही कहां रही? चुनाव आयोग के जरिए आज भाजपा उस जनता से ही नागरिकता के प्रमाणपत्र मांग रही है, जिसने उसे चुना है। जिस जनता ने भाजपा को चुना है, उसके पास नागरिकता का कोई प्रमाणपत्र भी नहीं है, कागज का एक टुकड़ा भी नहीं, जिसे दिखाकर वह दावे से कह सके कि वह भारत का नागरिक है। जो भारत का नागरिक नहीं है, उसे भारत में रहने का अधिकार ही नहीं है। जिसे भारत में रहने का अधिकार ही नहीं है, वह निश्चित ही घुसपैठिया है। जो घुसपैठिया है, उसे तो भारत से बाहर करना ही होगा। भाजपा इन तमाम झंझटों और कानूनी पचड़ों से बचना चाहती है। वह नागरिकों को प्रजा बना देना चाहती है और खुद दयालु राजा बन जाना चाहती है। अब यह राजा की दया पर निर्भर है कि कौन-सी प्रजा उसके राज में रहे और किसे इस राज से बाहर करना है। इस मामले में वह कोई भेदभाव भी नहीं करना चाहती। उसका साफ सिद्धांत है : हिंदू हिंदू यहां रहे ; बाकी यहां से चले जाएं या फिर हिंदुओं के दास बन जाएं। बन गया संघ के सौंवे साल में उसके सपनों का 'हिंदू राष्ट्र!' इसके पहले प्रधानमंत्री ने लाल किले पर चढ़कर संघी गिरोह की गौरव गाथा से पूरी दुनिया को परिचित करा ही दिया है। है कोई माई का लाल, जो कहे कि उन्होंने झूठ बोला है! जिस सावरकर और गोडसे को महात्मा गांधी-नेहरू-आंबेडकर राज में कोई पूछता नहीं था, संघी गिरोह के हिंदू राष्ट्र में अब उनको पूजा जायेगा। जो इस पूजा में शामिल नहीं होंगे, उनको इस पवित्र भूमि में रहने का भी अधिकार नहीं होगा।
मध्यप्रदेश में भाजपा कई सालों से सत्ता में है, तो प्रशासन चलाने का अधिकार भी अब उसी को मिलना चाहिए। मोहन राज में अब मध्यप्रदेश में भाजपा ही प्रशासन है, तो जनता को भी भाजपाई होना पड़ेगा। न कांग्रेसी होंगे, न कम्युनिस्ट, न तिरंगा चलेगा, न लाल। चारों तरफ भगवा ही भगवा होगा, भाजपा ही भाजपा होगी। चहुं दिशाओं में अंधभक्त फैले होंगे, जो हर क्षण, हर पल, रात-दिन, साल भर लोकतंत्र की मजबूती का गुणगान करेंगे। अधिकारी और प्रजा इन अंधभक्तों से जितना ज्यादा पिटेंगे, उनकी जितनी ज्यादा मॉब लिंचिंग होगी, लोकतंत्र उतना ही ज्यादा मजबूत होगा। जितनी जोर से, शोर से मोदीजी के जैकारे लगेंगे, लोकतंत्र उतना ही ज्यादा मजबूत होगा। नेहरू को भूलना और भागवत-मोदी को जपना लोकतंत्र की मजबूती की पहली
शर्त है।
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2. और अब निशाने पर परांजोय गुहा ठाकुरता
देश की निर्भीक, निष्पक्ष और स्वतंत्र पत्रकारिता के क्षेत्र में पारंजॉय गुहा ठाकुरता एक जाना पहचाना नाम है। वे लगभग 50 वर्षों से पत्रकारिता कर रहे हैं और प्रिंट, प्रसारण, और डिजिटल मीडिया में कई संगठनों के लिए काम कर चुके हैं। भारत सरकार के प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) द्वारा भी पिछले 35 वर्षों से अधिक समय से उनको मान्यता प्राप्त है। वे पिछले 15 वर्षों से फ्रीलांसर के रूप में काम कर रहे हैं। इसके अलावा, वे एक लेखक हैं, प्रकाशक हैं, वृत्तचित्र फिल्म निर्माता हैं, संगीत वीडियो निर्माता हैं और अपने उल्लेखनीय कामों के कारण बहुतों के लिए शिक्षक भी हैं।
अपने पत्रकारीय जीवन में ठाकुरता कॉरपोरेटों, विशेषकर अडानी ग्रुप की कंपनियों द्वारा किए गए भ्रष्टाचार और गड़बड़ियों के खिलाफ काफी मुखर हैं। इस संबंध में उन्होंने काफी तथ्यात्मक, विश्लेषणात्मक और संतुलित रिपोर्टिंग की है, जो बौद्धिक उत्तेजना पैदा करती है। उनकी ऐसी रिपोर्टिंग की पत्रकारिता जगत में और पाठकों के बीच काफी चर्चा होती है।
स्वाभाविक है कि अडानी समूह उनसे नाराज और खफा है। नैतिकता तो यह कहती है कि यदि परांजोय गुहा ठाकुरता ने अडानी की कंपनियों के खिलाफ कुछ तथ्य पेश किए हैं, तो अडानी समूह शालीनता से उसका खंडन करता, कुछ ऐसे तथ्य पेश करता, जिससे उसकी सच्चाई और ईमानदारी सामने आती और ठाकुरता की गलतियां। लेकिन सभी जानते हैं कि अडानी सहित सभी कॉरपोरेटों का नैतिकता से कोई लेना-देना नहीं है। उनकी नैतिकता हमारे देश और हमारी पृथ्वी की प्राकृतिक संपदा को लूटकर 'अनैतिक ढंग से कमाया गया मुनाफा' भर है। इसलिए वे ऐसी किसी नैतिकता के चक्कर में नहीं पड़ते, जिसे आम जनता 'नैतिकता' समझती है। उनकी नैतिकता सिर्फ यही कहती है कि उनके मुनाफे पर चोट करने वाली स्वतंत्र पत्रकारिता का मुंह बंद कर दिया जाएं या गला घोंट दिया जाएं। उनकी इस कोशिश को सफल बनाने के लिए राज्य और केंद्र की सरकारें, पुलिस और न्यायपालिका तत्पर ही रहती है।
अडानी के खिलाफ कलम चलाने के जुर्म में अब परांजोय गुहा ठाकुरता उनके निशाने पर है। उनके खिलाफ अभी तक अडानी समूह ने अब तक देश के विभिन्न राज्यों में मानहानि के 7 मुकदमे कायम किए हैं। इन मुकदमों में से एक में 6 सितंबर, 2025 को नई दिल्ली के रोहिणी कोर्ट ने अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड द्वारा दायर किए गए एक मानहानि मुकदमे में, उनका पक्ष सुने बिना ही, उनके खिलाफ एकतरफा अंतरिम निषेधाज्ञा पारित किया है। उनके साथ उनके सहयोगी चार अन्य स्वतंत्र पत्रकारों को भी इस मुकदमे में प्रतिवादी बनाया गया हैं, जिन्होंने समय-समय पर एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हुए लेख और वीडियो तैयार किए हैं।
पिछले 11 सालों से मोदी राज में जो चल रहा है, उस चलन के अनुसार अब अडानी और कॉर्पोरेट ही हमारे देश के माई-बाप हैं, उनका आर्थिक हित ही भारत का हित है। जो इस चलन के खिलाफ जायेगा, उसे पक्के तौर पर 'भारत विरोधी' के रूप में प्रचारित किया जाता है। इसी चलन को आगे बढ़ाते हुए अडानी ने ठाकुरता पर आरोप लगाया है कि वे "भारत-विरोधी हितों के साथ संरेखित" हैं और उसके प्रोजेक्ट्स को "गलत उद्देश्यों के साथ बाधित" किया है। अदालत का एकपक्षीय ढंग से ठाकुरता के खिलाफ निषेधाज्ञा पारित करना यह दिखाता है कि अदालत भी अडानी से इतनी प्रभावित है कि तथ्यों की तह में जाने की उसने भी कोई जरूरत नहीं समझी है। इससे सहज समझा जा सकता है कि हमारी न्याय प्रणाली पतनशीलता के किस दौर से गुजर रही है।
बहरहाल, ठाकुरता ने अडानी के आरोपों का न केवल खंडन किया है, बल्कि उसे झूठा, निराधार और अपमानजनक भी बताया है और कहा है कि उनके द्वारा दिए गए सभी बयान न केवल सत्य और सटीक हैं, बल्कि हमेशा जनहित में रहे हैं। उन्होंने अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड द्वारा उनके खिलाफ दायर किए गए मानहानि के दावों का पुरजोर विरोध करने का इरादा जताया है।
यह समय पत्रकारिता पर हो रहे हमलों के खिलाफ खड़े होने का समय है। देश के स्वाधीनता आंदोलन में पत्रकारों और पत्रकारिता की बहुत बड़ी भूमिका रही है। हमारे हर स्वाधीनता संग्राम सेनानी ने उपनिवेशवाद विरोधी पत्रकारिता का दायित्व बखूबी निभाया है। यह पत्रकारिता भारतीयों की विरासत है और उनके खून में है। इस पत्रकारिता पर हमला हमारी आजादी के मूल्यों पर हमला है। इस हमले का मुकाबला करके ही देश की आजादी को बचाया जा सकता है। इसलिए, हम सबको ठाकुरता के साथ उनके समर्थन में पूरी एकजुटता से खड़े होने की जरूरत है।
(टिप्पणीकार अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं। संपर्क : 94242-31650)