चंदौली के साहित्यकार : चतुष्टयी और पंचवाणी

उत्तर प्रदेश का पूर्वांचल अपने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक वैभव के लिए प्रसिद्ध रहा है। इसी धरा पर स्थित चंदौली जिला साहित्यिक दृष्टि से भी एक विशिष्ट पहचान रखता है। काशी की परंपरा से पोषित यह क्षेत्र हिंदी और भोजपुरी साहित्य की समृद्ध धारा में अपना अनूठा योगदान देता रहा है।
चंदौली की साहित्यिक चतुष्टयी
शिवप्रसाद सिंह (उपन्यासकार)
जन्म: 19 अगस्त 1928, जलालपुर (चंदौली)
प्रमुख कृतियाँ: नीला चाँद, गली आगे मुड़ती है, वैश्विक गाँव
विशेषता: काशी और पूर्वांचल की सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को उपन्यासों में जीवंत किया।
नामवर सिंह (आलोचक)
जन्म: 28 जुलाई 1926, जीयनपुर (चंदौली)
प्रमुख कृतियाँ: कविता के नए प्रतिमान, दूसरी परंपरा की खोज
विशेषता: हिंदी आलोचना को वैश्विक स्तर तक प्रतिष्ठित किया; आलोचना को संवाद और चिंतन का रूप दिया।
काशीनाथ सिंह (कहानीकार)
जन्म: 1 जनवरी 1937, जीयनपुर (चंदौली)
प्रमुख कृतियाँ: काशी का अस्सी, रेहन पर रग्घू
विशेषता: बनारस की लोकसंस्कृति, व्यंग्य और आम आदमी के संघर्ष को साहित्य में स्वर दिया।
गोलेन्द्र पटेल (कवि)
जन्म: 5 अगस्त 1999, चंदौली
प्रमुख कृतियाँ: दुःख दर्शन, कल्कि, नारी (महाकाव्य), अंबेडकरगाथापद
विशेषता: बहुजन चेतना, स्त्री-विमर्श और लोकतांत्रिक संघर्ष को कविता का घोषणापत्र बनाया।
चंदौली की साहित्यिक पंचवाणी
रामजियावन दास ‘बावला’ (भोजपुरी कवि)
जन्म: 1 जून 1922, भीषमपुर (चंदौली)
प्रमुख कृतियाँ: राम केवट प्रसंग, गीत मंजरी
विशेषता: “भोजपुरी का तुलसीदास” कहे जाने वाले बावला ने लोकधुन और व्यंग्य से भोजपुरी कविता को जन-जन तक पहुँचाया।
शिवप्रसाद सिंह → कथा साहित्य में काशी व पूर्वांचल का यथार्थ।
नामवर सिंह → आलोचना को नई वैचारिक दिशा।
काशीनाथ सिंह → लोकसंस्कृति और संघर्षशील जीवन का यथार्थ।
गोलेन्द्र पटेल → बहुजन समाज और समकालीन प्रतिरोध का स्वर।
रामजियावन दास ‘बावला’ → भोजपुरी साहित्य में लोकजीवन का प्रामाणिक चित्रण।
चंदौली की “चतुष्टयी” और “पंचवाणी” केवल स्थानीय साहित्यकारों का समूह नहीं, बल्कि भारतीय साहित्य की गौरवपूर्ण परंपरा के सशक्त स्तंभ हैं। इन रचनाकारों ने साहित्य को समाज का दर्पण ही नहीं, बल्कि परिवर्तन का साधन भी बनाया। उनकी रचनाओं में आज भी यथार्थ, करुणा और प्रतिरोध की ज्वाला उतनी ही प्रखर है।
लेखक : अर्जुन पटेल