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श्री पंचदेवता कवचम्

श्री पंचदेवता कवचम्
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ॐ गणेशोअग्रतः पातु, सर्वविघ्न विनाशकः ।

सिद्धिदः सर्वकर्मेषु, सर्वत्र विजयी भवेत् ॥१ ॥

भगवान गणेश अग्रभाग से रक्षा करें, जो सभी विघ्नों का नाश करने वाले और सभी कार्यों में सिद्धि देने वाले हैं, जिससे साधक हर स्थान पर विजयी हो।

मध्यमे विष्णुरव्यग्रो, लक्ष्म्या सहित एव च ।

धनं धान्यं च मे देहि, सर्वसम्पत्समन्वितम् ॥२॥

मध्य दिशा से भगवान विष्णु, लक्ष्मी सहित, मेरी रक्षा करें और मुझे धन-धान्य तथा सभी प्रकार की समृद्धि प्रदान करें।

पार्श्वयोः पार्वती देवी, शङ्करेण समन्विता ।

सर्वरोगभयं हत्वा, सुखं मे दत्तुमर्हति ॥३॥

दोनों पार्श्व से माता पार्वती, भगवान शंकर सहित, सभी रोग और भय का नाश करके मुझे सुख प्रदान करें।

प्रतीचे सूर्यदेवश्च, रश्मिमण्डलभास्कर।

अन्धकारं विनिर्जित्य, ज्ञानदीपं प्रज्वालयेत् ॥४॥

पश्चिम दिशा से सूर्यदेव, अपनी किरणों के तेज से अंधकार का नाश कर ज्ञान का दीप प्रज्वलित करें।

दक्षिणे च महादेवी, चामुण्डा शत्रुनाशिनी ।

दुष्टदैत्यमदान्हत्वा, भक्तपालनतत्परा ॥५॥

दक्षिण दिशा से महादेवी चामुण्डा मेरी रक्षा करें, जो शत्रुओं और दुष्ट दैत्यों का संहार करके भक्तों की रक्षा करती हैं।

ईशाने ईश्वरो रक्षेत्, त्रिनेत्री नीललोहित ।

कालाग्निरुद्रनाम्ना च, पापसङ्घ दहत्वयम् ॥६॥

ईशान कोण से त्रिनेत्रधारी नीललोहित भगवान ईश्वर रक्षा करें, जो कालाग्नि रूप में मेरे सभी पापों को भस्म कर दें।

ऊर्ध्वं ब्रह्मा च मे पातु, वेदशास्त्रविशारदः ।

सर्वविद्यां प्रयच्छेत, पुण्यमार्ग प्रकाशयेत् ॥७॥

ऊपर से भगवान ब्रह्मा मेरी रक्षा करें, जो वेद-शास्त्रों के ज्ञाता हैं, वे मुझे सभी विद्या दें और पुण्य के मार्ग को प्रकाशित करें।

अधस्ताच्छेषनागश्च, धराधारणतत्पर।

मम स्थैर्यं च सन्तोषं, सर्वदा दातुमर्हति ॥८ ॥

नीचे से शेषनाग रक्षा करें, जो धरती को संभालने वाले हैं, वे मुझे स्थिरता और संतोष प्रदान करें।

पञ्चदेवतया युक्तं, कवचं पुण्यवर्धनम् ।

यः पठेत्स श्रद्धाभक्त्या, सर्वत्र जयमाप्नुयात् ॥९॥

जो श्रद्धा और भक्ति से इस पंचदेवता कवच का पाठ करता है, वह हर स्थान पर विजय प्राप्त करता है और पुण्य में वृद्धि होती है।

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