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मार्गशीर्ष में सोमवार–पंचमी का दिव्य संगम — भाग्य परिवर्तन और शिव–शक्ति कृपा का सर्वोच्च अवसर

मार्गशीर्ष में सोमवार–पंचमी का दिव्य संगम — भाग्य परिवर्तन और शिव–शक्ति कृपा का सर्वोच्च अवसर
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✍️ विजय तिवारी

आध्यात्मिक ऊर्जा, साधना और ईश-कृपा का अद्वितीय अवसर

वेदों और पुराणों में मार्गशीर्ष मास को जप, तप, व्रत, दान और साधना का श्रेष्ठतम काल माना गया है।

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा—

“मासानां मार्गशीर्षोऽहम्”

अर्थात— मासों में मैं मार्गशीर्ष हूँ।

इस पवित्र समय में की गई पूजा, ध्यान और संकल्प अन्य समयों के मुकाबले अनेक गुना अधिक फलदायी होते हैं।

आज का दिन और अधिक विशेष इसलिए है क्योंकि चतुर्थी तिथि संध्या 4:03 तक रहने के पश्चात कृष्ण पंचमी का आरम्भ हुआ, और साथ ही सोमवार का उज्ज्वल संयोग उपस्थित है।

शास्त्रों में इस दिव्य मिलन को शिव–शक्ति कृपा–योग कहा गया है, जो मनोकामना सिद्धि, पाप-नाश, सौभाग्य वृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का सर्वोत्तम समय माना जाता है।

शिव–पार्वती पूजन का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

पौराणिक मान्यता है कि माता पार्वती ने कठोर तप कर सोमवार के दिन ही भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया, और पंचमी तिथि पर उनका दिव्य विवाह संपन्न हुआ।

इसीलिए सोमवार–पंचमी का संयोग असाधारण पुण्यदायी माना गया है।

यह दिन विशेष रूप से शुभ है—

दांपत्य-सुख व वैवाहिक बाधा निवारण

प्रेम, सौहार्द और संबंधों में मधुरता

संकट, भय, रोग और ऋण मुक्ति

व्यापार, नौकरी और आर्थिक उन्नति

पारिवारिक कल्याण और कुल–उद्धार

साहस, संयम और आध्यात्मिक शक्ति प्राप्ति

शास्त्रों में कहा गया है—

“शिव-पूजनात् कुलोद्धारः”

अर्थात— शिव-आराधना केवल उपासक ही नहीं, बल्कि पूरे वंश को कल्याण प्रदान करती है।

सोमवार–पंचमी की पौराणिक कथा :

प्राचीन काल में एक नगर में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। जीवन अत्यंत संघर्षपूर्ण था, परंतु उसकी पत्नी धार्मिक और पतिव्रता स्त्री थी। दोनों भगवान शंकर के परम भक्त थे और सोमवार तथा पंचमी तिथि पर व्रत रखा करते थे।

एक समय ऐसा आया कि घर में एक दाना भी भोजन का शेष न रहा। भूख और दुःख से व्याकुल ब्राह्मण ने निराश होकर कहा—

“शायद मेरा भाग्य ही ऐसा है।”

पत्नी ने धैर्य देकर कहा—

“आज सोमवार–पंचमी का पवित्र योग है, हम आज भी व्रत रखेंगे और पूर्ण विश्वास से शिव–पार्वती की आराधना करेंगे। प्रभु अवश्य सहायता करेंगे।”

दोनों ने निर्जला व्रत किया, संध्या में दीप जलाकर कथा सुनाई। तभी एक साधु द्वार पर आया और बोला—

“हे ब्राह्मण, क्या मुझे भोजन मिल सकता है?”

घर में कुछ न होने पर भी ब्राह्मणी ने कहा—

“अतिथि देवता होते हैं, चाहे हमारे पास कुछ भी न हो।”

वह उधार आटा लाई, रोटी बनाई और साधु को प्रेमपूर्वक खिलाया।

साधु प्रसन्न होकर बोला—

“तुम्हारी सेवा, श्रद्धा और शिव–पंचमी व्रत से मैं अत्यंत आनंदित हूँ। तुम्हारी दरिद्रता अब समाप्त होगी।”

यह कहकर साधु अदृश्य हो गया।

अगले ही दिन उनकी कुटिया के बाहर सोने–चांदी से भरे घड़े और अन्न के पात्र प्रकट हुए। तब उन्हें अनुभव हुआ कि स्वयं भगवान शिव साधु रूप में आए थे।

उस दिन से उनके जीवन में सुख–समृद्धि भर गई, और वे आजीवन सोमवार–पंचमी व्रत का पालन करते रहे।

दिव्य पूजा-विधि -

प्रातः स्नान कर पूजा-स्थान शुद्ध करें

शिवलिंग पर जल, दूध, पंचामृत, बेलपत्र, धतूरा, चंदन, पुष्प चढ़ाएँ

माता पार्वती को रोली, सिंदूर, लाल पुष्प और सुहाग सामग्री अर्पित करें

ॐ नमः शिवाय या महामृत्युंजय मंत्र जप 108 बार

रात्रि में दीप प्रज्वलित कर आरती, कथा-पाठ, शिव स्तुति/शिव चालीसा

प्रभावी मंत्र :

महामृत्युंजय मंत्र -

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

संकल्प मंत्र

ॐ गौरीशंकराय नमः ॥

विशेष संकल्प -

“हे गौरी–शंकर, इस पावन सोमवार–पंचमी संगम की शक्ति से

मेरे जीवन, परिवार और संबंधों में शांति, सुख, स्वास्थ्य, समृद्धि और सौभाग्य का प्रकाश बना रहे।

सभी दुख, रोग, भय और संकट समाप्त हों,

और धर्म–पथ पर दृढ़ संकल्प की प्राप्ति हो।”

दिव्य संदेश -

श्रद्धा और निष्ठा से किया गया प्रयास कभी व्यर्थ नहीं जाता

धैर्य और तप असंभव को संभव बना देते हैं

शिव–पार्वती की कृपा से जीवन में संतुलन, सफलता और प्रकाश स्थापित होता है

आज का सोमवार + पंचमी + मार्गशीर्ष का दुर्लभ संयोग केवल एक तिथि नहीं,

बल्कि भाग्य परिवर्तन और आध्यात्मिक उन्नति का अप्रतिम अवसर है।

कहा गया है—

ऐसे संयोग बार-बार नहीं आते।

जो आज सच्चे मन से शिव–पार्वती की अराधना करता है,

उसके जीवन में सुख, शक्ति, सौभाग्य और सफलता स्थायी रूप से प्रवेश करती है।

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