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नफरती गैंग को मुंहतोड़ जवाब : हिंदू-मुस्लिम-ईसाइयों का केरल मॉडल!

नफरती गैंग को मुंहतोड़ जवाब : हिंदू-मुस्लिम-ईसाइयों का केरल मॉडल!
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(आलेख : सिद्धार्थ रामू)

कैसे हिंदू-मुस्लिम-ईसाइयों ने एक साथ मिलकर केरल को भारत का सबसे उन्नत प्रदेश बनाया और दुनिया के विकसित देशों के समकक्ष खड़ा कर दिया-केरल मॉडल न केवल भारत ,बल्कि पूरे भारतीय उपहाद्वीप के लिए एक मॉडल है. यह नफ़रती गैंग का दुष्प्रचार है कि हिंदू-मुस्लिम एक साथ सौहार्दपूर्ण तरीक़े से नहीं रह सकते, उन्नत देश या प्रदेश नहीं बना सकते।

क्या केरल की 25 प्रतिशत मुस्लिम आबादी की सर्वोतोन्मुखी उन्नति, करीब 20 प्रतिशत ईसाई आबादी और करीब 50 प्रतिशत हिंदू धर्मावलंबी आबादी की सर्वोतोन्मुखी उन्नति-प्रगति और उन सभी सामूहिक योगदान के बिना ऐसा केरल बन पाता? सहज-स्वाभाविक जवाब है कि नहीं। क्या इन समुदायों के बीच यदि सांप्रदायिक दंगा-फसाद और नफरत का कारोबार चलता रहता तो ऐसा केरल बन पाता? सहज जवाब है कि नहीं। क्या सत्ता में आने वाली सरकारें यदि विभिन्न समुदायों के बीच भेदभाव करतीं, उन्हें आपस में लड़ाती-भिड़ाती रहतीं, उनके बीच दंगे-फसाद कराती रहतीं, तो क्या ऐसा उन्नत-प्रगतिशील केरल बन पाता? सहज जवाब है कि नहीं।

केरल मॉडल इस बात का सबूत है कि हिंदू, मुस्लिम, ईसाई न केवल भाईचारे, सौहार्द, प्रेम और शांति से रह सकते हैं, बल्कि किसी देश-प्रदेश की उन्नति में समान योगदान दे सकते हैं और इस उन्नति, प्रगति , विकास और समृद्धि में समान साझेदारी कर सकते हैं।

योजना आयोग को खत्म कर नरेंद्र मोदी सरकार ने नीति आयोग गठित किया। इसी नीति आयोग की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार केरल में सिर्फ 0.7 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा (इसे अत्यधिक गरीबी भी कहा जाता है) के नीचे हैं। केरल की सरकार ने इन 0.7 प्रतिशत परिवारों के चिन्हित किया और इनकी गरीबी को खत्म करने के लिए विशेष कदम उठाए। इसके नतीजे के तौर अब यह स्थिति है कि केरल में कोई परिवार या व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे नहीं है। इसकी औपचारिक घोषणा केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने की। केरल की इस उपलब्धि को सेलीब्रेट करने के लिए 1 नवंबर को केरल की राजधानी तिरुवनन्तपुरम में आयोजन हुआ।

यदि नीति आयोग के आंकड़ों ( 2021) के आधार पर देखें, तो पूरे भारत में गरीबी रेखा के नीचे 14.96 प्रतिशत लोग हैं। गुजरात में 11.66 प्रतिशत, बिहार में 33.76 प्रतिशत और यूपी में 22.93 प्रतिशत लोग हैं। गरीबी रेखा के इस पैमाने को बहुआयामी गरीबी के रूप में परिभाषित किया गया है। इसमें आर्थिक आय-व्यय नहीं, बल्कि जीवन-स्तर, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी चीजें शामिल होती हैं।

नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार 2021 में केरल में जो 0.7 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे थे, उन्हें गरीबी रेखा के से ऊपर लाने के लिए केरल ने कई सारे उपाय किए। सबसे पहले केरल की सरकार ने ऐसे गरीब परिवारों के चिन्हित किया। इनकी संख्या केरल में 64,006 थी। इसे चिन्हित करने का आधार इन परिवारों के पास उपलब्ध खाद्य सामग्री, स्वास्थ्य, जीविकोपार्जन के साथ आवास को बनाया गया।

इसमें ऐसे परिवार भी थे,जिनके नाम वोटर लिस्ट में नहीं थे, जिनके पास आधार कॉर्ड नहीं था और जिन्हें राशन कार्ड भी नहीं मिला था। ऐसे व्यक्तियों की संख्या 21,263 थी। उसके बाद केरल सरकार ने इन 64,006 परिवारों को गरीबी से बाहर निकालने के लिए हर परिवार के लिए ठोस उपाय अख्तियार किया। 3,913 परिवारों को घर उपलब्ध कराया गया। 1, 338 परिवारों को जमीन उपलब्ध कराई गई। 5,651 परिवारों को टूटे-फूटे घर की मरम्मत के लिए प्रति परिवार 2 लाख रूपए उपलब्ध कराए गए। इस तरह एक परिवार और व्यक्ति को गरीबी रेखा से ऊपर उठाने के लिए अलग-अलग ठोस कदम उठाए गए। इस काम में राज्य सरकार और अन्य सभी स्थानीय निकायों-संस्थाओं पंचायत, जिला परिषद, महापालिका, नगर पालिका आदि ने अपनी-अपनी भूमिका निभाई। इसमें कई स्थानीय निकायों में विपक्षी पार्टियां बहुमत में थीं। उनका उन संस्थाओं पर नियंत्रण था, लेकिन सभी ने मिलकर केरल के हर परिवार और व्यक्ति को गरीबी रेखा से निकाले के पूरी तरह एकजुट होकर काम किया।

केरल की उन्नति-प्रगति आंकड़े

केरल इंसानी उन्नति, प्रगति और समृद्धि में सबकी साझेदारी के मामले में भारत का सबसे उन्नत प्रदेश ही नहीं, बल्कि दुनिया के के सबसे उन्नत विकसित देशों की बराबरी करता है, कुछ से आगे भी है। इन देशों में अमेरिका, पश्चिमी यूरोप, चीन और क्यूबा जैसे देश भी शामिल हैं। इस बात की पुष्टि नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा योजना आयोग की जगह बनाए गये नीति आयोग की 2023-24 की रिपोर्ट भी करती है। नीति आयोग की रिपोर्ट, एसडीजी इंडिया इंडेक्स 2023-24, कहती है कि केरल मानव विकास सूचकांक में भारत का शीर्ष प्रदेश है। नीति आयोग ने केरल को 79 मार्क दिया है, 78 मार्क के साथ तमिलनाडु दूसरे स्थान पर है। बिहार को 57 मार्क दिया गया है। बिहार और केरल के बीच 22 मार्क का अंतर है। इस मार्क में मानव विकास से जुड़े 16 बड़े लक्ष्य शामिल थे। इन 16 बड़े लक्ष्यों में आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण संबंधी लक्ष्य शामिल हैं। सहज-स्वाभाविक सी बात है कि इसमें पोषण का स्तर, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं पहले स्थान पर हैं।

केरल इंसानी उन्नति के पैमाने पर दुनिया के सबसे उन्नत देशों के बराबर है या उनसे आगे है। इसके कुछ सीमित ठोस आंकड़े देखते हैं, जिससे नीति आयोग द्वारा केरल को दिए शीर्ष स्थान की पुष्टि होती है।

साक्षरता की दर

साक्षरता किसी देश या प्रदेश की उन्नति के बुनियादी मानकों में से एक है। नेशनल सर्वे की 2025 की रिपोर्ट के अनुसार केरल की साक्षरता दर 96.2 प्रतिशत है। भारत की कुल औसत साक्षरता दर इस सर्वे के अनुसार 77.7 प्रतिशत है। यूनेस्कों के आंकड़ों के अनुसार विश्व की साक्षरता दर 86.5 प्रतिशत है। आंकडों से साफ है कि केरल की साक्षरता दर भारत की औसत साक्षरता दर से करीब 18 प्रतिशत और विश्व की साक्षरता की औसत साक्षरता दर से करीब 10 प्रतिशत अधिक है।

ये आंकडे कुछ बातें साफ कर देते हैं। पहली तो यह कि जिस प्रदेश में आधी आबादी हिंदू, एक चौथाई मुस्लिम और 20 प्रतिशत ईसाई है, यदि उसमें यदि सबके बीच साक्षरता की दर कमोबेश समान न हो, तो 96.2 प्रतिशत साक्षरता की दर हासिल ही नहीं की जा सकती है।

केरल उन राज्यों में से है, जो उच्च शिक्षा पर सबसे अधिक धन खर्च करते हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया गया है। केरल राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3.46 प्रतिशत शिक्षा के लिए आबंटित करता है। भारत सरकार ने 2025-26 के बजट में 2.5 प्रतिशत खर्च करने का प्रावधान किया है, लेकिन अब तक कभी 1.9 प्रतिशत से अधिक खर्च नहीं किया गया।

जीवन-प्रत्याशा

किसी देश, प्रदेश या समाज में कोई जन्म लेने वाला व्यक्ति कितने वर्षों तक जीवित रहने की संभावना रखता है, यह किसी देश-समाज की उन्नति का एक बड़ा मानक है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के 2023 के आंकड़ों के अनुसार भारत में जीवन प्रत्याशा 72 वर्ष है। केरल में 78. 26 वर्ष है। साफ है कि केरल की जीवन-प्रत्याशा पूरे भारत के औसत से करीब 6 वर्ष अधिक है। केरल पूरे भारत में इस मामले में भी नंबर एक पर है। उत्तर प्रदेश-बिहार की तुलना में देखें, तो केरल में जीवन प्रत्याशा 8 वर्ष अधिक है। 8 वर्ष की जिंदगी अधिक जीना छोटा अंतर नहीं है। विश्व की औसत जीवन-प्रत्याशा 73.1 प्रतिशत है। केरल विश्व के औसत से 5 वर्ष बेहतर स्थिति में है।

जीवन-प्रत्याशा किसी देश, प्रदेश और समाज की उन्नति का एक दूसरा बुनियादी मानक होता है। यह मुख्य रूप से पोषण के स्तर, साफ-सफाई की व्यवस्था, स्वास्थ सेवाओं की उपलब्धता और जीवन जीने के तार्किक-वैज्ञानिक सोच पर निर्भर करता है।

भारत ही नहीं, विश्व की बेहतरीन स्वास्थ सेवा

केरल वह प्रदेश है, जो स्वास्थ्य सेवाओं पर भारत के राष्ट्रीय औसत से 4 गुना अधिक खर्च करता है। केरल प्रति व्यक्ति करीब 1 हजार रूपया स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करता है, जबकि स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रति व्यक्ति खर्च के मामले में पूरे भारत का औसत 250 रूपए से भी कम है।

प्रति 1000 लोगों पर डॉक्टरों की उपलब्धता : केरल में प्रति 1000 व्यक्ति पर 1 डॉक्टर उपलब्ध है। विश्व स्वास्थ्य संगठन इसे सबसे उन्नत अनुपात मानता है। साफ है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जो लक्ष्य दुनिया के लिए निर्धारित किया है, वह केरल पहले ही हासिल कर चुका है। यह संभावना व्यक्त की जा रही है कि भारत 2030 में यह औसत हासिल कर लेगा। विश्व में यह औसत प्रति 1500 लोगों पर 1 डॉक्टर का है। 2025 के आंकड़े बता रहे है भारत में यह औसत वर्तमान समय में 2230 लोगों पर 1 डॉक्टर का है।

नर्सों की उपलब्धता : केरल में नर्सों की उपलब्धता भारत में सबसे बेहतर है। केरल की नर्सें भारत के अन्य विभिन्न हिस्सों में अपनी बेहतरीन सेवाएं प्रदान कर रही हैं। फार्मासिस्ट, लैब तकनीशियन और पैरामेडिकल स्टाफ की बड़ी संख्या में उपस्थिति के बिना आप गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।

अस्पताल, पैथालॉजी, जांच केंद्र और अन्य स्वास्थ्य सेंटर : केरल की स्वास्थ्य व्यवस्था और उसके नतीजे कैसे हैं, इसे सिर्फ एक मामले से जुड़े आंकड़ों में देख सकते हैं कि :

केरल में जन्म लेने वाले 1000 बच्चों में सिर्फ 5 बच्चों की मौत होती है, 995 जीवित बचते हैं, जबकि अमेरिका में 1000 जन्म लेने वाले बच्चों में 5.6 बच्चों की मौत हो जाती है। केरल इस मामले में अमेरिका से भी बेहतर स्थिति में है। भारत में पूरे देश का यह औसत 25 है। मतलब 1000 जन्म लेने वाले बच्चों में 25 बच्चे तुरंत मर जाते हैं।

इस तथ्य-आंकड़े की सबसे बड़ी रेखांकित करने वाली बात है कि 1000 जन्म लेने वाले बच्चों की जीवित रहने या मौत के मामले में केरल में शहर और गांवों के बीच नहीं के बराबर अंतर है। कोई मां शहरी हो या गांव की, उसका प्रसव करीब-करीब समान रूप से सुरक्षित होता है। गांव हो या शहर, बच्चों के जीवित रहने या मरने की संख्या में नहीं के बराबर अंतर है।

सबसे गर्व करने लायक उपलब्धि यह है कि केरल में शहरी क्षेत्रों में करीब 99 प्रतिशत (98.99%) माँएं प्रशिक्षित डॉक्टरों-नर्सों की देख-रेख में किसी न किसी मेडिकल संस्थान में बच्चों को जन्म देती हैं। गांवों की करीब 97 प्रतिशत माँएं प्रशिक्षित डॉक्टर-नर्स की देख-रेख में किसी न किसी मेडिकल संस्थान में बच्चों को जन्म देती हैं।

केरल के शहरों में सिर्फ 0.01 प्रतिशत माँएं परंपरागत तरीके से परिवार या परंपरागत दाई की देख-रेख में बच्चों को जन्म देती हैं। गांवों में सिर्फ 1.37 प्रतिशत माँएं परंपरागत तरीके से परिवार या परंपरागत दाई की देख-रेख में बच्चों को जन्म देती हैं।

केरल की इस स्वास्थ्य सेवा में सरकारी अस्पतालों की भूमिका सबसे बड़ी है। केरल शिक्षा और स्वास्थ्य को सबसे अधिक प्राथमिकता देता है। केरल में सरकारी और प्राइवेट स्वास्थ्य ढांचें में आयुर्वेदिक अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवाओं की एक बड़ी भूमिका है। सभी को पता होगा कि बेहतरीन आयुर्वेदिक स्वास्थ्य सेवा के लिए लोग केरल जाते हैं या केरल के आयुर्वेदिक स्वास्थ्य सेवाओं के उप-केंद्र देश भर में खुले हुए हैं। साफ है कि केरल ने एलोपैथी के साथ पारंपरिक स्वास्थ्य सेवाओं को उन्नत और विस्तृत किया है।

कोविड काल के दौरान केरल भारत ही नहीं, विश्व के लिए एक मॉडल बन गया था। उस समय की स्वास्थ्य मंत्री के. के. शैलजा को दुनिया भर में सराहा गया था।

शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में देश और दुनिया में सर्वश्रेष्ठ मानक कायम करने की अनिवार्य शर्त यह होती है कि उनका क्षेत्रीय विस्तार हो। गांव-कस्बे, शहर और मेट्रो शहर के बीच का फासला बहुत कम हो। यदि शिक्षा केंद्र और स्वास्थ्य सेवाएं किन्हीं कुछ बड़े शहरों-मेट्रो शहरों तक सीमित हैं, तो पूरे प्रदेश के लिए इसे हासिल नहीं किया जा सकता है। केरल में शिक्षा और स्वास्थ्य के केंद्र गांव-गांव और कस्बे-कस्बे तक पहुंचे हुए हैं।

दूसरी बात यह है कि यदि प्राथमिक स्वास्थ केंद्र, द्वितीयक स्वास्थ्य केंद्र, तृतीयक स्वास्थ्य केंद्र गुणवत्तापूर्ण न हों, तो स्वास्थ्य क्षेत्र में ऐसी उपलब्धि हासिल नहीं की जा सकती है। यही बात शिक्षा के मामले में भी लागू होती है। प्राइमरी स्कूल, जूनियर हाईस्कूल, हाईस्कूल और इंटर कॉलेजों के बेहतर और विस्तारित होने पर ही शिक्षा का उन्नत स्तर हासिल किया जा सकता है।

केरल के शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में इतनी बड़ी उन्नति में ईसाई समुदाय के विशेष योगदान रहा है। ईसाई मिशनरियों के खोले स्कूल पूरे देश में उच्चकोटि के होते हैं, यहां तक हिंदी पट्टी के प्राइवेट क्षेत्र के उन स्कूलों में सभी लोग अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं, जो उच्च गुणवत्तापूर्ण शिक्षा अपने बच्चों को देना चाहते हैं। इसी तरह ईसाई मिशनरियों के अस्पतालों की भी पूरे देश में भूरी-भूरी प्रशंसा होती है।

केरल : हिंदी पट्टी के प्रवासी मजदूरों के सम्मानजनक रोजी-रोटी का एक बड़ा केंद्र

गुलाटी इंस्टीट्यूट ऑफ फाइनेंस एंड टैक्सेशन और स्वयंसेवी संगठनों द्वारा एकत्रित हालिया आंकड़े बताते है कि केरल में 31 लाख प्रवासी मजदूर हैं। 3.61 करोड़ की जनसंख्या वाले राज्य में 31 लाख प्रवासी मजदूरों का होना एक बड़ी परिघटना है। यह वैसे ही है, जैसे तीसरी दुनिया के देशों के लोग रोजी-रोटी की तलाश में जान जोखिम में डालकर भी पश्चिमी यूरोप-अमेरिका में जाते हैं।

इन प्रवासी मजदूरों के लिए केरल ने आरामदायक, साफ-सफाई, किचन, शौचालय और अन्य सुविधाओं वाले आवास दिया है, इस योजना का नाम ‘अपना घर’ रखा गया है। इसकी तस्वीरें पिछले दिनों देश भर के अखबारों में आई थीं। केरल सरकार ने इन प्रवासी मजदूरों के लिए 25 हजार का स्वास्थ्य बीमा और 2 लाख का दुर्घटना बीमा उपलब्ध कराया है। करीब 6 लाख मजदूरों को राशन कार्ड उपलब्ध कराया गया है। ये योजनाएं पिछले कुछ वर्षों में शुरू की गई हैं, सभी प्रवासी मजदूरों को इसका लाभ मिल चुका है, ऐसा नहीं है, लेकिन जो रजिस्टर्ड हैं, उनके बड़े हिस्से को यह लाभ मिलना शुरू हो गया है। केरल सरकार ने एक भवन निर्माण और इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में काम करने वाले प्रवासी मजदूरों के लिए गेस्ट ऐप बनाया है, ताकि उनको ये सुविधाएं मिल सकें।

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक, केरल के मजदूरों को औसतन 700 रुपये से अधिक मजदूरी मिलती है। जो पूरे देश में दिहाड़ी कामगरों की मजदूरी से करीब 4 गुना ज्यादा है। मध्य प्रदेश में मजदूरों को सबसे कम 292 रूपये मिलते हैं।

केरल में लोगों का शिक्षा का स्तर और जीवन-स्तर कितना उन्नत है, इसका अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि केरल के लोग कम मजदूरी वाले काम नहीं करते हैं। केरल में ऐसे कामों का बहुलांश हिस्सा प्रवासी मजदूर करते हैं। यह बात बिहार, यूपी और हिंदी पट्टी के राज्यों और निवासियों के लिए शर्मनाक हो सकती है, लेकिन यह सच है कि केरल में अधिकांश कम मजदूरी वाले हाड़तोड़ काम बिहार, यूपी या हिंदी पट्टी के अन्य राज्यों से गये लोग करते हैं। इसका एक ठोस उदाहरण मछली पालन और मछली पकड़ने के कारोबार से लगाया जा सकता है। केरल में यह सेक्टर करीब पूरी तरह मशीनीकृत है, लेकिन इस सेक्टर के भी मजदूरों-मेहनतकशों द्वारा किए जाने वाले कामों का करीब 58 प्रतिशत, विशेषकर बिहार और हिंदी पट्टी के प्रवासी मजदूर करते हैं।

केरल उन प्रदेशों में है, जहां बिहार और हिंदी पट्टी के अन्य मजदूरों को सबसे कम अपमान का सामना करना पड़ता है। महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली और अन्य प्रदेशों में इन प्रवासी मजदूरों के साथ अपमान और मारपीट की घटनाएं अक्सर सामने आती रहती हैं। महाराष्ट्र (मुंबई) में तो ‘भइया’ एक गाली बन गया है, जो हिंदी भाषियों के लिए इस्तेमाल होता है।

'तकनीकी समूह के राष्ट्रीय आयोग’ की रिपोर्ट के अनुसार केरल की कुल जनसंख्या 1 जुलाई 2025 को 3.61 करोड़ है। 2011 की जनगणना के अनुसार केरल में हिंदू 54.7 प्रतिशत, मुस्लिम 26.6 प्रतिशत और ईसाई 18.4 प्रतिशत हैं, शेष अन्य धर्मों के लोग या धर्म न मानने वाले लोग हैं। स्पष्ट है कि केरल में हिंदू, मुस्लिम और ईसाई तीनों का आबादी में अनुपात अच्छा-खासा है। करीब आधे हिंदू हैं, तो एक एक चौथाई मुस्लिम हैं और करीब 20 प्रतिशत ईसाई हैं।

केरल मॉडल इस बात का सबूत है कि हिंदू, मुस्लिम और ईसाई न केवल शांति, सौहार्द, भाईचारे के साथ रह सकते हैं, बल्कि सब मिलकर अपने प्रदेश-देश को न केवल भारत का, बल्कि दुनिया का एक उन्नत प्रदेश बन सकते हैं। नफरती गैंग के इस प्रचार को केरल मॉडल ध्वस्त कर देता है कि हिंदू, मुस्लिम और ईसाई पूरी तरह भाईचारे प्रेम, सौहार्द और शांति के साथ नहीं रह सकते हैं। दरअसल सब लोग एक साथ मिलकर किसी प्रदेश, देश या समाज को उन्नत से उन्नत बना सकते है। ऐसी उन्नति जिसे पाने और जिसमें साझेदारी में सबकी हिस्सेदारी हो।

केरल की उन्नति, प्रगति, समावेशी विकास और इंसान पैमाने पर शीर्ष स्थिति होने के मतलब यह नहीं है कि केरल के समाज में कोई समस्या नहीं, उसके कोई अंतर्विरोध नहीं, उसके सामने कोई चुनौती नहीं है, उन्नत से उन्नत देश या समाज के भी समस्याएं और अंतर्विरोध होते हैं, यहां तक कि क्रांति के बाद बने समाजवादी समाजों की भी समस्याएं और अंतर्विरोध थे। केरल की अपनी समस्याएं और अंतर्विरोध हैं, लेकिन गुणात्मक तौर पर भिन्न स्तर के हैं। यदि केरल आज अपने सामने उपस्थित चुनौतियों, समस्याओं और अंतर्विरोधों को हल करेगा, तो और आगे बढ़ेगा, नहीं हल कर पाएगा, तो गतिरुद्ध होगा या पीछे जाएगा। फिलहाल तो आगे बढ़ रहा है।

सवाल यह है कि ऐसा उन्नत केरल बना कैसे? क्या किसी एक आंदोलन ने बना दिया? क्या किसी एक पार्टी ने बना दिया? क्या किसी एक धार्मिक-सामाजिक समूह ने बना दिया? क्या अकेले सरकारों ने बना दिया? या कुछ एक व्यक्तियों ने बना दिया?

उपरोक्त सवालों का उत्तर यह है कि ऐसा केरल सिर्फ हिंदुओं, या सिर्फ मुसलमानों ने या केवल ईसाइयों ने अकेले नहीं बना दिया। यदि धार्मिक समूह के आधार पर देखें, तो केरल की आबादी के इन तीनों बड़े धार्मिक समूहों ने इस उन्नति-प्रगति और विकास में यदि समान रूप से योगदान न दिया होता, तो ऐसा उन्नत-प्रगतिशील केरल बन ही नहीं सकता था।

इन तथ्यों-तर्कों के बाद भी इस प्रश्न का जवाब अभी अधूरा है कि आखिर इंसानी विकास के सभी पैमानों पर दुनिया के शीर्ष देशों की बराबरी करने वाला और भारत का सबसे शीर्ष प्रदेश आखिर केरल बना कैसे?

इसके जवाब ढूंढ़ने के लिए इतिहास में ज्यादा दूर तक नहीं जाते हैं, सिर्फ आधुनिक इतिहास तक खुद को सीमित रखते हैं, हालांकि इसकी जड़े इसके पीछे अतीत में जाती हैं, क्योंकि केरल का इतिहास ईसा से हजारों सदी पुराना है। लेकिन फिलहाल आधुनिक भारत तक सीमित रखते हैं। आज हम भौगोलिक तौर पर जिस क्षेत्र को केरल प्रदेश के रूप में जानते हैं, उसका गठन 1 नवंबर 1956 को हुआ। इसके पहले केरल का एक बड़ा हिस्सा मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा था। वर्तमान में केरल में समाहित त्रावणकोर रियासत उस समय एक स्वायत्त रियासत थी।

आधुनिक केरल के निर्माण में तीन शक्तियों की सबसे बड़ी भूमिका रही है : वामपंथी आंदोलन, बहुजन आंदोलन और स्वतंत्रता का आंदोलन। केरल में वामपंथी आंदोलन उतना ही पुराना है, जितना कम्युनिस्ट पार्टी का गठन (1925)। केरल में बहुजन आंदोलन संगठित तौर पर कम्युनिस्ट आंदोलन से भी पुराना है। इसकी शुरुआत आयोथी थास के समय से शुरु हो जाती है। केरल में मजबूत वामपंथी आंदोलन, आयोथी थास, पेरियार, आय्यंकली, नारायण गुरु आदि के नेतृत्व में चले बहुजन-दलित आंदोलन ने केरल में कांग्रेस के नेतृत्व में चलने वाले स्वतंत्रता आंदोल के चरित्र को बदलने के लिए बाध्य कर दिया था।

केरल का वामपंथी आंदोलन और उसका उन्नत केरल के निर्माण में योगदान

केरल में वामपंथी आंदोलन कितना मजबूत था, इसका अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि केरल के गठन के एक साल बाद केरल में न केवल पहली सरकार वामपंथियों की ही बनी, बल्कि पूरे भारत में केरल एकमात्र ऐसा प्रदेश था, जहां पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनी। भले ही नेहरू के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने दो साल के अंदर ही नंबूदरीपाद के नेतृत्व वाली इस सरकार को भंग कर दिया। इसका सबसे बड़ा कारण वामपंथी सरकार का क्रांतिकारी भूमि-सुधार का एजेंडा था। उसके बाद लगातार वामपंथी सरकारें एक के बाद एक बनती रहीं। आज भी वहां वामपंथ की ही सरकार है।

केरल में यदि वामपंथ इतना मजबूत रहा है, तो तय है कि इसमें हिंदू, मुस्लिम और ईसाई सबकी भागीदारी थी और है। कम से कम वामपंथी सरकार किसी धर्म विशेष के लोगों के समर्थन नहीं बन सकती है और न ही वामपंथियों का किसी धर्म विशेष के लिए कोई विशेष एजेंडा ही होता है।

वामपंथ की चाहे जितनी कमियां रही हों, चाहे उनकी अन्य बातों के लिए जितनी आलोचना कर लें, लेकिन उनके बारे में यह नहीं कह सकते हैं कि वह एक धर्म के लोगों को दूसरे धर्म के लोगों से लड़ाते हैं और दंगा-फसाद कराते हैं। साफ है कि केरल में वामपंथ धर्मनिपेक्षता के मुद्दे पर हमेशा मजबूती से खड़ा रहा।

दूसरा, वामपंथियों के मेहनतकशों और गरीब-गुरबा लोगों के प्रति प्रतिबद्धता पर आप सवाल नहीं उठा सकते हैं। मैं यहां यह नहीं कह रहा हूं कि केरल के वामपंथियों ने मजदूरों-मेहनतकशों का शोषण-उत्पीड़न खत्म कर दिया, लेकिन मजदूरों-मेहनतकशों के जीवन-स्तर को बेहतर बनाने, उनके बुनियादी अधिकारों और कल्याण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर शायद ही कोई सवाल कर पाए, कम से कम केरल में।

केरल का दलित-बहुजन आंदोलन, जिसने उन्नत और समावेशी केरल के निर्माण में अहम भूमिका निभाई

पर केरल के उन्नति-प्रगति, सर्वोतोन्मुखी विकास और समावेशी समाज की कल्पना आप केरल के बहुजन आंदोलन के बिना कर ही नहीं सकते हैं। केरल में नंबूदरी ब्राह्मणों-नायरों के गठजोड़ ने जैसा क्रूर-जालिम ब्राह्मणवाद केरल के बहुजनों पर लादा था, उसकी तुलना सिर्फ और सिर्फ महाराष्ट्र की ब्राह्मण पेशवाई की क्रूरता और जालिम उत्पीड़न से की जा सकती है। यहां तक कि स्तन ढकने तक के लिए बहुजन-दलित स्त्रियों के लिए कठोर दंड था। यह तय किया गया था कि नंबूदरी ब्राह्मणों-नायरों से गैर-ब्राह्मणों को कितना दूर रहना है, ताकि उनकी छाया भी ब्राह्मणों पर न पड़ने पाए।

केरल का वामपंथी आंदोलन, दलित-बहुजन आंदोलन और ब्रिटिश साम्राज्य विरोधी कांग्रेस के नेतृत्व में चलने वाला आंदोलन के रिश्ते

केरल में इस ब्राह्मणवाद के खिलाफ सबसे तीखा संघर्ष चला। इस संघर्ष ने केरल के वामपंथी आंदोलन और कांग्रेस के नेतृत्व में चलने वाले स्वतंत्रता आंदोलन के चरित्र को गहरे स्तर पर प्रभावित किया। इस आंदोलन ने कांग्रेस और वामपंथ के द्विज-सवर्ण वर्चस्व के चरित्र को काफी बदल दिया। वामपंथी आंदोलन ने ब्राह्मणवाद विरोधी आंदोलन की बहुत सारी मांगों-एजेंडों को अपने भीतर समाहित किया। भले ही उन्होंने इसे ब्राह्मणवाद न कहकर सामंतवाद या कुछ और कहा। इतना ही नहीं, केरल की कांग्रेस को बहुजन आंदोलन के ब्राह्मणवाद विरोधी एजेंडों को काफी हद तक स्वीकार करना पड़ा। 1924 के मंदिर प्रवेश और अस्पृश्यता विरोधी आंदोलन में ईवी रामासामी पेरियार और गांधी एक साथ शामिल हुए थे। अंत में जाकर त्रावणकोर महाराजा को सदियों पुराने मंदिर में दलित-बहुजनों के प्रवेश पर रोक हटानी पड़ी।

जहां वामपंथी आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद विरोधी संघर्षों में चढ़-बढ़कर हिस्सेदारी की, वहीं उन्होंने केरल में सामंवाद विरोधी तीखा संघर्ष भी चलाया। एक ओर ब्राह्मणवाद विरोधी बहुजन-दलित आंदोलन ने वामपंथ को बिना नाम लिए या नाम लेकर बहुजन-दलित आंदोलन के एजेंडों को अपनाने के लिए बाध्य किया, वहीं वामपंथी आंदोलन ने बहुजन आंदोलन को वर्गीय दृष्टि अपनाने के लिए प्रेरित किया। केरल का बहुजन आंदोलन कभी भी सिर्फ मध्यमवर्गीय दायरे तक सीमित नहीं रहा है। वामपंथी और बहुजन आंदोलन ने कांग्रेस को वर्गीय और ब्राह्मणवाद विरोधी दृष्टि और एजेंडा अपनाने के लिए मजबूर किया। केरल में मजबूत नक्सलबाड़ी (एमएल) धाराओं के आंदोलन ने केरल के प्रगतिशील और जनपक्षर चरित्र को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई। इसने एक बड़े दबाव समूह के रूप में काम किया।

दलित-बहुजन आंदोलन, वामपंथी आंदोलन और इन दोनों आंदोलन से गहरे स्तर पर प्रभावित-प्रेरित केरल कांग्रेस के संयुक्त संघर्षों ने केरल के समाज में एक उथल-पुथल ला दिया। केरल की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक-साहित्यिक दुनिया को इन आंदोलनों ने काफी हद तक रूपांतरित कर दिया। मलयालम भाषा का साहित्य, सिनेमा, नाटक और पत्र-पत्रिकाएं और अखबार प्रगतिशीलता और उन्नति का जो मानक कायम करते हैं, जिसके लिए देश दुनिया में सराहे जाते हैं, वह सबकुछ यों ही नहीं हुआ। इन सशक्त आंदोलनों की इसमें बड़ी भूमिका है।

लेख पूरा करने से पहले यहां यह रेखांकित कर लेना जरूरी है कि चाहे बहुजन-दलित आंदोलन हो, चाहे वामपंथी आंदोलन और चाहे कांग्रेस के नेतृत्व में आजादी से पहले और केरल के गठन के बाद चलने वाले संघर्ष हो, सब में केरल के तीनों धार्मिक समुदायों की करीब-करीब समान रूप से हिस्सेदारी-भागीदारी रही है : किसी में कम, किसी में ज्यादा। केरल का वामपंथी आंदोलन धर्मनिपेक्ष था, बल्कि वहां का बहुजन आंदोलन भी पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष था, इन दोनों आंदोलन ने कांग्रेस के हिंदूवादी रूझान को भी नियंत्रित किया। हिंदू ब्राह्मणों के खिलाफ वहां संघर्ष चला, नंबूदूरी ईसाई ब्राह्मणों के खिलाफ संघर्ष चला और चल रहा है। केरल में आरक्षण की जो व्यवस्था हुई, उसमें मुस्लिम, ईसाई सबको जगह मिली। एससी (अनुसूचित जातियों) के आरक्षण के मामले में भी यही हुआ, जबकि पूरे भारत में यह आरक्षण सिर्फ हिंदुओं के बीच के अस्पृश्यों को मिला।

केरल में कांग्रेस का द्विज-हिंदू चरित्र सबसे कम दिखता है, वहां कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता ईसाई या मुस्लिम रहे हैं। एके एंटोनी जैसे नेता ईसाई समुदाय से थे। केरल कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष भी ईसाई समुदाय से हैं।

केरल में हिदुओं के साथ बड़ी संख्या में मुसलमानों और ईसाइयों की उपस्थिति ने नकारात्मक की जगह सकारात्मक भूमिका निभाई। केरल में भाजपा को छोड़कर कोई भी पार्टी धर्म आधारित राजनीति नहीं करती है, ऐसा करके वह वहां राजनीति कर भी नहीं सकती है। यहां तक कि भाजपा भी अपने सबसे पहले घोषित दुश्मन मुसमलानों के खिलाफ जितना जहर उगल ले, लेकिन वह ईसाइयों को अपने साथ करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है, इसका बड़ा कारण केरल की आबादी की धार्मिक संरचना का रूप है।

एक उन्नत-प्रगतिशील, समृद्ध, जनकल्याणकारी, सर्वोतोन्मुखी और सर्व समावेशी केरल राज्य की उपस्थिति इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि विभिन्न धर्मों के लोगों की किसी देश या राज्य में अच्छी-खासी उपस्थित, विभिन्न वैचारिक धाराओं की टकराहट, खान-पान और जीवन-शैली संबंधी विविधता किसी देश या प्रदेश को उन्नत, समृद्ध, जनकल्याणकारी, सर्वसामवेशी और प्रगतिशील बनाने में अवरोध नहीं, बल्कि सहायक होती है। भारत और दुनिया के नफरती गैंग (विशेषकर इस्लामोफोबिया) के शिकार लोगों के सामने केरल एक जीता-जागता सबूत है कि विभिन्न धर्म या उसके अनुयायी किसी देश या प्रदेश की उन्नति में कोई बाधा नहीं होते हैं, बल्कि सहायक होते हैं। देश-समाज या प्रदेश की उन्नति में नफरती गैंग सबसे बड़ी बाधा होते हैं, जिनकी राजनीति का आधार नफरत, दंगा-फसाद और वैमनस्य फैलाना होता है। वह भारत का हिंदुत्वादी नफरती गैंग हो, चाहे वह पाकिस्तान का इस्लामिक नफरती गैंग हो। भारत के नफरती गैंग की निगाहें सर्वसामवेशी केरल पर लगी हुई हैं। वे उसके साझेपन के ताने-बाने, धर्मनिपेक्ष चरित्र, सामाजिक न्याय और उन्नत-प्रगतिशील चरित्र को बिगाड़ने के लिए सब कुछ कर रहे हैं और करते रहेंगे।

(डॉ. सिद्धार्थ रामू लेखक, पत्रकार और अनुवादक हैं।)

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