द रीयल केरला स्टोरी -- केरल की असली कहानी

(आलेख : एम ए बेबी, अनुवाद : संजय पराते)
1 नवंबर 2025 को, केरल ने इतिहास रच दिया। वह भारत का एकमात्र और दुनिया का दूसरा ऐसा राज्य बन गया, जिसने अत्यधिक गरीबी का उन्मूलन कर दिया है। एलडीएफ सरकार के 21 मई 2021 को पुनः सत्ता में आई थी। उसी दिन हुई अपनी पहली कैबिनेट बैठक में अत्यधिक गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम (एक्सट्रीम पावर्टी एरेडिकेशन प्रोग्राम -- ईपीईपी) की घोषणा की गई थी।यह आने के बाद से इस दिशा में साढ़े चार सालों तक चले प्रयासों का परिणाम है।
लाभार्थियों की पहचान के लिए किए गए सर्वेक्षण में 1,032 स्थानीय स्वशासन संस्थाओं के 64,006 परिवारों के 1,03,099 लोगों को अत्यधिक गरीब पाया गया था। इस मूल सूची से उन्हें हटा दिया गया था, जिनकी बाद में मृत्यु हो गई थी, या जो दूसरे राज्यों में चले गए थे, या जिन्हें सूक्ष्म-योजना (माइक्रो-प्लान) की आवश्यकता नहीं रही और जिनके नाम दो बार शामिल थे। शेष सभी लोगों को आवश्यकतानुसार दस्तावेज़, भूमि, आवास, भोजन, स्वास्थ्य सेवा, कौशल विकास, उद्यमिता सहायता आदि प्रदान करके अत्यधिक गरीबी से बाहर निकाला गया है।
बहरहाल, विशुद्ध राजनीतिक रूप से संकीर्ण मानसिकता के कारण, विपक्ष ने केरल को अत्यधिक गरीबी से मुक्त घोषित करने के लिए बुलाए गए विशेष विधानसभा सत्र से बहिर्गमन कर दिया। उन्होंने इसके लिए अपनाई गई कार्यप्रणाली पर निराधार प्रश्न उठाए हैं और यहाँ तक कहा है कि केरल में अभी भी अत्यधिक गरीब लोग पाए जा सकते हैं। कुछ नेकनीयत वाले व्यक्ति और संगठन भी विपक्ष के इस राजनीतिक दिखावे के बहकावे में आ गए हैं। इसलिए, केरल के 70वें स्थापना (पिरवी) दिवस पर की गई इस घोषणा से पहले की प्रक्रिया पर गौर करना ज़रूरी है।
केरल में ईपीईपी (अत्यधिक गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम) का नेतृत्व स्थानीय स्वशासन संस्थाओं ने किया है। केरल में 941 ग्राम पंचायतें, 87 नगर पालिकाएँ और 6 नगर निगम हैं ; कुल 1034 स्थानीय स्वशासन संस्थाएं हैं।जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है, 1,032 स्थानीय स्वशासन संस्थाओं (एलएसजीआई) में अत्यधिक गरीब परिवारों की पहचान की गई थी, यह लगभग 100 प्रतिशत है। केरल के स्थानीय स्वशासन संस्थाओं में से लगभग 41 प्रतिशत पर कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ का शासन है, जो राज्य में सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले एलडीएफ का विपक्षी दल है। अत्यधिक गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम (ईपीईपी) को यूडीएफ द्वारा संचालित स्थानीय स्वशासन संस्थाओं (एलएसजीआई) द्वारा भी पूरे मन से लागू किया गया, जिनमें से कुछ ने तो सीपीआई (एम) के सदस्य, स्थानीय स्वशासन विभाग (एलएसजीडी) के मंत्री को अपने-अपने स्थानीय निकायों को अत्यधिक गरीबी मुक्त घोषित करने के लिए आमंत्रित भी किया था। अत्यधिक गरीबी उन्मूलन में अपने स्वयं के स्थानीय निकायों के अनुकरणीय प्रदर्शन को नजरअंदाज करके ही केरल में विपक्ष अब अवैज्ञानिक चिंताओं को व्यक्त कर रहा है।
केरल के विपक्ष के नेता ने सरकार द्वारा इस घोषणा की पूर्व संध्या पर सवाल उठाए थे, जबकि अत्यधिक गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम (ईपीईपी) साढ़े चार साल से चल रहा है। इतने लंबे समय के दौरान, विपक्ष के नेता या उनके राजनीतिक समर्थकों में से किसी ने, एक बार भी ईपीईपी के क्रियान्वयन के बारे में कोई चिंता या सुझाव नहीं जताया। 2023 में प्रकाशित अंतरिम रिपोर्ट और पिछले चार वर्षों की सभी आर्थिक समीक्षाओं जैसे दस्तावेज़ों में ईपीईपी की प्रगति का विस्तृत विवरण दिया गया है। फिर भी, जो लोग अब इस पर आपत्ति जता रहे हैं, उन्होंने कभी इस पर गौर करने और ईपीईपी के ठोस क्रियान्वयन पर अपनी राय देने की ज़हमत नहीं उठाई। यही कारण है कि केरल के लोग उनकी वर्तमान चिंताओं के सही होने पर संदेह कर रहे हैं।
बहरहाल, गरीबी और अत्यधिक गरीबी से जुड़ी आम जनता की एक चिंता का समाधान करना ज़रूरी है। गरीब वे लोग हैं, जो अपनी रोज़मर्रा की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष करते हैं। उनकी मज़दूरी घर के बुनियादी खर्चों के लिए मुश्किल से भी पर्याप्त नहीं होती, जिससे वे एक अच्छा घर बनाने या उसकी मरम्मत करने में भी असमर्थ हो जाते हैं। ऐसे लोग भी हैं, जिनके पास बुनियादी सुविधाएँ तो हैं, लेकिन एक स्थिर आय का अभाव है, जिससे उनके लिए जीवनयापन एक चुनौती बन जाता है। वे गरीब हैं और उनके लिए गरीबी उन्मूलन योजनाएँ बनाई जाती हैं। सरकारें वार्षिक योजना निर्माण के दौरान ही उन्हें आवास और आजीविका के अवसर प्रदान करती हैं।
लोगों का एक और समूह है, जिनके लिए ज़िंदा रहना भी नामुमकिन है, जो काम करने में असमर्थ हैं, जो काम करने में तो सक्षम हैं, लेकिन घर पर बिस्तर पर पड़े आश्रितों की देखभाल करने के लिए मजबूर हैं, जो अपनी ज़रूरतें दूसरों को बताने में असमर्थ हैं, जो ग्राम सभाओं से भी अनजान हैं या उनमें शामिल नहीं हो पाते, और जो लाभ के लिए चुने जाने पर भी, उन लाभों को प्राप्त करने के लिए ज़रूरी दस्तावेज़ पेश नहीं कर सकते। ये बेहद गरीब लोग हैं, जिनका बाहरी मदद के बिना गुज़ारा असंभव है।
केरल के ईपीईपी के एक लाभार्थी का उदाहरण इसे और स्पष्ट करता है। शिवकुमार, जो कभी खाड़ी देशों में काम करते थे, घर लौटने पर अखबार बाँटने का काम करने लगे। मधुमेह की जटिलताओं के कारण उनकी उँगलियों के कुछ हिस्से काटने पड़े। उनके दोनों पैर घुटनों के नीचे से काटने पड़े, जिससे वे काम करने में असमर्थ हो गए। वे अपने दसवीं कक्षा में पढ़ने वाले बेटे के साथ एक स्वयंसेवी संस्था द्वारा दिए गए एक कमरे में रहते थे। उनके तीन बार के भोजन में सुबह खरीदी गई रोटी शामिल थी।
शिवकुमार ने अंतर्जातीय विवाह किया था, इसलिए उन्हें अपने रिश्तेदारों से कोई सहारा नहीं मिला। जब उनकी पत्नी, जो कई बीमारियों से पीड़ित थीं, की देखभाल करना संभव नहीं रहा, तो उन्हें मजबूरन उन्हें अपने मायके वापस भेजना पड़ा। इस तरह वे अपने बेटे के साथ उस छोटे से कमरे में अकेले रहने लगे। स्कूल के बाद, उनका बेटा एक फूलों की दुकान पर माला बनाने का काम करता था, और उस मामूली कमाई से वे अपना खाना और स्कूल का खर्च चलाते थे।
शिवकुमार और उनके परिवार के लिए बनाई गई सूक्ष्म-योजना के तहत उन्हें ज़मीन, घर और इलाज व शिक्षा के लिए आर्थिक मदद दी गई। लड़के ने दसवीं और बारहवीं दोनों कक्षाएँ अच्छे अंकों से पास कीं। उसकी माँ घर लौट आई हैं और उन्हें एक सिलाई मशीन दी गई है। इस तरह, शिवकुमार का परिवार आत्महत्या के कगार से वापस आकर सम्मान की ज़िंदगी जीने लगा। वे केरल के उन हज़ारों परिवारों में से एक हैं, जिन्हें अच्छी ज़िंदगी जीने का दुबारा मौका मिला है।
लोकतंत्र तभी सार्थक होता है, जब सरकार समाज में ऐसे व्यक्तियों के अस्तित्व को पहचाने और उनकी देखभाल करे। यह तभी पूर्णता प्राप्त करता है, जब यह उन मूक, अदृश्य अल्पसंख्यकों तक पहुँचता है, जो अपनी बात नहीं कह सकते। केरल की एलडीएफ सरकार निश्चित रूप से ईपीईपी को लागू करके बेजुबानों को आवाज़ देने और लोकतंत्र को और अधिक सार्थक बनाने का प्रयास कर रही थी। यही बात केरल के अत्यधिक गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम (ईपीईपी) को अलग बनाती है!
एक ऐसे देश में, जहाँ दशकों से एक संरचनात्मक गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम लागू हैं, केरल की राज्य सरकार को उन लोगों तक पहुँचने के लिए विशेष प्रयास करने पड़े, जो हर प्रशासनिक ख़ुर्दबीन से बच गए थे, यानी सबसे असहाय व्यक्ति, जिन्हें सभी मौजूदा तंत्रों ने नज़रअंदाज़ कर दिया था। ऐसा करने के लिए, एलडीएफ सरकार ने अपने प्रशासनिक तंत्र से औपचारिक सीमाओं से परे जाकर सबसे हाशिए पर पड़े लोगों को खोजने और उनकी ज़रूरतों को पूरा करने का आग्रह किया था। इस प्रक्रिया में, राजनीतिक नेतृत्व, सिविल सेवा, जनप्रतिनिधियों और समग्र रूप से सार्वजनिक जीवन में एक नई संस्कृति का उदय और विकास हुआ।
क्या समय के साथ अत्यधिक गरीबी फिर से उभरकर सामने नहीं आएगी? ऐसा हो सकता है, और इसीलिए केरल की एलडीएफ सरकार ने पहले ही ईपीईपी 2.0 लागू करने का संकेत दे दिया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आने वाली पीढ़ियों के लिए अत्यधिक गरीबी पर नज़र रखने और उसे दूर करने के लिए एक सतत प्रक्रिया लागू रहे। इसे साकार करने के लिए सरकार और नागरिक समाज, दोनों को मिलकर काम करना होगा।
इससे यह भी सुनिश्चित होगा कि व्यापक रूप से प्रसारित समाचार पत्रों में छपे कुछ गरीब लोगों के छिटपुट मामलों पर भी ध्यान दिया जाए। लेकिन चाहे जो भी हो, माकपा के नेतृत्व वाली एलडीएफ सरकार में अत्यधिक गरीबी उन्मूलन में केरल की इस अद्वितीय उपलब्धि को कम करके नहीं आंका जा सकता।
(लेखक माकपा के महासचिव और राज्यसभा के पूर्व सांसद हैं। अनुवादक अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं। संपर्क : 94242-31650)




