कार्तिक मास की कथा

इस समय कार्तिक मास चल रहा है, जो कि हिंदू कैलेंडर का आठवां महीना है. यह महीना धार्मिक दृष्टि से बेहद खास माना गया है, क्योंकि इस महीने में जगत के पालनहार भगवान विष्णु निद्रा योग से जागते हैं. धर्म शास्त्रों में कार्तिक मास को सबसे श्रेष्ठ महीना कहा गया है. पुराणों के अनुसार, कार्तिक मास में स्नान, दान, दीपदान, तुलसी पूजन का विशेष महत्व माना जाता है. इसके अलावा, कार्तिक मास में कथा का पाठ करना बहुत ही लाभदायी माना गया है. वैसे तो कार्तिक मास में हर दिन कई अलग-अलग कथाएं पढ़ी जाती हैं, लेकिन एक कथा ऐसी है जिसे अगर आप इस महीने में रोजाना पढ़ते हैं, तो आपके जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाएंगे. ऐसे में आइए पढ़ते हैं कार्तिक मास की कथा विस्तार से.
कार्तिक मास की कथा
कार्तिक मास की पौराणिक कथा के अनुसार, एक गांव में बुढ़िया रहती थी, जो कार्तिक का व्रत किया करती थी. उसके व्रत खोलने के समय भगवान श्री कृष्ण स्वयं आते और एक कटोरा खिचड़ी रखकर चले जाते थे. उस बुढ़िया के पड़ोस में एक औरत यह देखकर जलती थी कि इसका कोई नहीं है फिर भी इसे खाने के लिए खिचड़ी मिल जाती है. एक दिन वह बुढ़िया कार्तिक महीने का स्नान करने गंगा गई और उसके पीछे से भगवान कृष्ण खिचड़ी रख गए. जब पड़ोसन ने देखा कि अभी बुढ़िया घर पर नहीं है, तो वह कटोरे की खीर उठाकर बाहर फेंक आई.
जब कार्तिक स्नान करके बुढ़िया अपने घर वापस आई तो उसे खिचड़ी का कटोरा नहीं मिला, जिससे वह भूखी ही रह गई. वह बुढ़िया बार-बार एक ही बात कहती कि मेरी खिचड़ी कहां गई और मेरा खिचड़ी का कटोरा कहां गया. बुढ़िया की पड़ोसन ने जहां खिचड़ी फेंकी थी, वहां एक पौधा निकल आया जिसमें दो फूल खिल गए.
एक बार राजा उस बुढ़िया के घर के पास से गुजरा, तो उसकी नजर उन दो फूलों पर पड़ी और वह उन्हें तोड़कर घर ले आया. राजा ने वह फूल रानी को दिए, जिन्हें सूंघने मात्र से रानी गर्भवती हो गई. कुछ समय बाद रानी ने दो पुत्रों को जन्म दिया. जब वे दोनों पुत्र बड़े हो गए, तो वह किसी से भी बोलते नहीं थे लेकिन जब वह दोनों शिकार पर जाते तो रास्ते में उन्हें वही बुढ़िया मिलती, जो अभी भी यही कहा करती कि मेरी खिचड़ी और मेरा कटोरा कहां गया? बुढ़िया की बात सुनकर हर बार वह दोनों एक ही जवाब देते कि हम ही तेरी खिचड़ी हैं और हम ही तेरा बेला (कटोरा) हैं.
एक बार जब राजा के कानों में यह बात पड़ी, तो उसे आश्चर्य हुआ कि दोनों लड़के किसी से नहीं बोलते, लेकिन यह बुढ़िया से कैसे बात करते हैं. तब राजा ने बुढ़िया को राजमहल बुलवाया और कहा कि हमारे दोनों पुत्र किसी से बात नहीं करते लेकिन ये तुमसे कैसे बोलते हैं? तब बुढ़िया ने कहा कि महाराज मुझे नहीं पता कि ये कैसे मुझसे बोलते हैं. मैं तो सिर्फ कार्तिक मास का व्रत किया करती थी और भगवान कृष्ण मुझे खिचड़ी का कटोरा भरकर दे जाते थे.
लेकिन जब मैं कार्तिक स्नान करके घर वापस आई तो मुझे न तो वहां खिचड़ी मिली और न ही कटोरा. तब मैं कहने लगी कि कहां गई मेरी खिचड़ी और कहां गया मेरा कटोरा? तब इन दोनों लड़कों ने मेरी बात सुनी तो ये कहने लगे कि तुम्हारी पड़ोसन ने तुम्हारी खिचड़ी फेंक दी थी तो उसके दो फूल बन गए थे और यह फूल राजा तोड़कर ले गया और रानी ने सूंघा तो हम दो लड़को का जन्म हुआ. हमें भगवान कृष्ण ने ही तुम्हारे लिए भेजा है. यह सारी बात सुनकर राजा ने बुढ़िया को महल में ही रहने का आदेश दिया.