पुतिन के भोज-निमंत्रण पर सियासी घमासान : शशि थरूर को बुलावा, राहुल-खरगे को दरकिनार करने पर कांग्रेस का सवाल
रिपोर्ट : विजय तिवारी
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा के दौरान राष्ट्रपति भवन में आयोजित भव्य राज्य-भोज को लेकर देश की राजनीति में बड़ा विवाद भड़क उठा है। इस भोज में कांग्रेस सांसद और संसद की विदेश मामलों की स्थायी समिति के अध्यक्ष शशि थरूर को आमंत्रण भेजा गया, लेकिन विपक्ष के दोनों शीर्ष नेताओं — लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे — को सूची से बाहर रखा गया। इसी चयनात्मक निर्णय ने तीखी प्रतिक्रियाओं और गंभीर सवालों को जन्म दिया है।
कांग्रेस का सवाल : लोकतांत्रिक शिष्टाचार और संवैधानिक मर्यादा कहाँ गई?
कांग्रेस ने इस कदम को लोकतांत्रिक परंपराओं के खिलाफ करार देते हुए कड़ी नाराजगी जताई है।
पार्टी का तर्क है कि किसी भी राजकीय कार्यक्रम में विपक्ष की भूमिका सिर्फ औपचारिकता नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक व्यवस्था का अनिवार्य स्तंभ है।
कांग्रेस नेतृत्व ने आरोप लगाया कि सरकार ऐसे अवसरों पर जानबूझकर विपक्ष की आवाज़ को हाशिये पर धकेल रही है, ताकि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर राजनीतिक विरोध की उपस्थिति न दिखे।
पार्टी प्रवक्ताओं ने इसे “राजनीतिक बदले की भावना” और “संकीर्ण मनोवृत्ति” बताते हुए कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय और विदेश मंत्रालय को पारदर्शी मानदंडों के आधार पर सूची तैयार करनी चाहिए थी।
कांग्रेस के अनुसार यह न केवल शिष्टाचार का उल्लंघन है, बल्कि देश की लोकतांत्रिक गरिमा को भी चोट पहुँचाता है।
शशि थरूर का जवाब : संवैधानिक दायित्व के आधार पर भेजा गया निमंत्रण
शशि थरूर ने इस विवाद में अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि उन्हें यह निमंत्रण उनकी संवैधानिक भूमिका — संसद की विदेश मामलों की स्थायी समिति के अध्यक्ष — होने के आधार पर मिला है।
उनके अनुसार, समिति प्रमुख के तौर पर ऐसे राजकीय आयोजनों में भागीदारी लंबे समय से स्थापित संसदीय परंपरा का हिस्सा है।
थरूर ने यह भी कहा कि उनकी उपस्थिति राजकीय और कूटनीतिक गरिमा के अनुरूप है और किसी भी तरह से पार्टी राजनीति से जुड़ा निर्णय नहीं है।
उन्होंने आशा व्यक्त की कि भविष्य में भी ऐसे आयोजनों में व्यापक राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
सियासी संकेत और संभावित संदेश
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह विवाद महज एक भोज निमंत्रण का नहीं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में ध्रुवीकरण की गहराती रेखाओं का प्रतीक है।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की छवि आमतौर पर एक लोकतांत्रिक और विविध राजनीतिक विचारधाराओं वाले राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत की जाती है। ऐसे में विपक्ष को दरकिनार करना राजनीतिक औदात्य (magnanimity) की कमी भी दर्शा सकता है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि विपक्ष की शीर्ष नेतृत्व की मौजूदगी गायब रहती है, तो यह संदेश जाता है कि विदेश नीति और कूटनीति को सरकारी नियंत्रण के दायरे में सीमित किया जा रहा है — जबकि यह दोनों सदनों की संयुक्त जिम्मेदारी होती है।
रणनीतिक पृष्ठभूमि : संवेदनशील समय में उभरा विवाद
पुतिन की भारत यात्रा उस दौर में हो रही है जब भारत-रूस संबंधों में नए रणनीतिक समीकरण बन रहे हैं, जिनमें रक्षा सौदे, ऊर्जा आयात, अंतरिक्ष सहयोग और व्यापार विस्तार प्रमुख विषय हैं।
ऐसे में कांग्रेस का प्रश्न है कि जब राष्ट्रहित के मुद्दों पर चर्चा और सहयोग हो रहे हैं, तो राष्ट्रीय विपक्ष को संवाद से बाहर रखना समझ से परे है।
भोज से बड़ा बन गया विवाद
राजकीय भोज को लेकर शुरू हुई यह बहस अब संसद से लेकर मीडिया और राजनीतिक गलियारों तक चर्चा का मुख्य विषय बन चुकी है।
विवाद बढ़ने के बाद अब सबकी निगाह इस बात पर टिकी है कि क्या सरकार या राष्ट्रपति भवन कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण जारी करेगा, या यह मामला राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के बीच लंबा खिंचता रहेगा।
आगे की दिशा
यह प्रकरण न केवल राजनीतिक शिष्टाचार पर सवाल उठाता है, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों और राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व की पुनः समीक्षा की मांग भी सामने लाता है।