एक बहस तेजबहादुर को अपने पूर्व में मुस्लिमों के खिलाफ नफ़रत से भरे फेसबुक पोस्ट पर माफी मांगनी चाहिए।।
कहा जाता है अगर आपको आपके गलत कामों की जानकारी नही है तो आप राजनीति में कदम रखिये आपके बड़े से बड़े छोटे से छोटे आपके गुनाह आपके सामने होंगे। कुछ ऐसा ही आजकल बीएसएफ के बर्खास्त जवान तेजबहादुर को लेकर चल रहा है। उस मामलें की गहराई में नही जाऊँगा जब बर्खास्त जवान तेजबहादुर ने वीडियो के जरिये जवानों को दिए जाने वाले खाने की आलोचना की थी जिसके बाद उन्हें जांच के बाद बर्खास्तगी झेलनी पड़ी थी जिसके परिणामस्वरूप उन्होने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के खिलाफ में चुनाव लड़ने की इच्छा जताई और पिछले महीनेभर से डोर टू डोर उनका प्रचार बगैर किसी खास सहूलियत के जारी भी था।
हमारे देश की अवाम का स्वभाव है जो जवानों और किसानों के मामलें पर खास भावुक होती है जोकि जरूरी भी है। यहाँ भी एक वर्ग बगैर तेजबहादुर जी से जुड़ाव के उनके समर्थन में लिखने बोलने लगा, अब चलन स्क्रीनशॉटस का जारी हुआ, स्क्रीनशॉटस के मुताबिक तेजबहादुर मुस्लिमों के खिलाफ जहरीली शब्दावली का इस्तेमाल व बीजेपी और उसके सहायक,दलों व संगठन का आँख बंद कर समर्थन कर रहे थे। मौजूदा वक्त में मुस्लिमों के प्रति भर दी गयी नफरत से यह कोई बड़ी बात नही लगती क्योंकि साजिश यह अंतरराष्ट्रीय हो चुकी है,वैसे भी मुस्लिम ही क्या नफरत का कारोबार ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धूमधाम से चल रहा है।
खैर स्क्रीनशॉटस देखकर तेजबहादुर के समर्थन में जाने का इरादा बना रहे खासकर मुस्लिम अब अपना इरादा बदलने लगे साथ ही एक बहस भी छिड़ गई, जो बीजेपी के आंख बंद करके समर्थक थे उन्हें तो कहीं जाना ही नही था जब वो शहीद हेमंत करकरे के मामले पर चुप रहकर साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का समर्थन कर सकते है तो भला वो एक बर्खास्त जवान जोकि उनकी पसंदीदा हुकूमत के कारण ही बर्खास्त हुआ तो उसपर वो क्यो बोलेंगे?
अब तेजबहादुर को दोनो तरफ से समर्थन मिलना बंद हो गया,एक तरफ से तो मिलना ही नही था दूसरे का भी पूरी नासमझी या माहौल से मिली नफरत से गवाने की स्थिति में दिखने लगे।
बेशक यह सही है हमें हमारे जवानों को विशेष सम्मान देना चाहिए,यह भी सही है जवानों को भी आम इंसानों की तरह देखा जाना चाहिए उनसे भी अच्छे बुरे दोनों काम हो सकते है,कोई भी खुद से फैसला लेने से पहले चीज़ों का गहराई से अध्ययन किया जाना चाहिए।
लेकिन मैं समझता हूँ तेजबहादुर को 2016 की कुछ फेसबुक पोस्ट्स के आधार पर नही नकारा जाना चाहिए,बेशक वो बहुत शर्मनाक पोस्ट्स है वो भी देश के जवान होने की जिम्मेदारी पर अधिक शर्मनाक लेकिन यह असर देश के बहुत से लोगों पर है जिन्हें विरासत में या समाज से नफरत मिली है अब जिम्मेदारी हमारी है किस तरह उनकी नफरत को मोहब्बत में तब्दील किया जाए बेशक कुछ को बदलना लगभग नामुमकिन है लेकिन अगर हमें कोई मौका मिले जहां संभावना हो वहाँ से हमें चूकना नही चाहिए।
मैं तेजबहादुर साहब को संसद में देखना चाहता हूँ इसलिए नही वो राजनैतिक तौर पर काबिल है,बेशक बिल्कुल नही होंगे,वैसे भी बहुत से नही होते लेकिन उनको वहाँ देखने की खास वजह वो उम्मीद जो दर्द उन्होंने जवानों के नजदीक से सहे उनको अपने कामों और समझ से दूर कर सकें।
अन्तः व्यक्तिगत राय यही है वक़्त की जरूरत तेजबहादुर का समर्थन है ताकि भविष्य में कोई हुकूमतों से लड़ने से घबराये नही और दूसरी बात पहले की उनकी मानसिकता या उनसे,उनके माहौल से जुड़े लोगों को उनके पहले के ख्यालों पर शर्मिंदा करना है।
मार्टिन फैसल
अध्यक्ष
ख़िदमत ए अवाम युवा समिति