सोमवार (29 अप्रैल) को चौथे चरण के लिए 9 राज्यों की 71 सीटों पर वोटिंग होनी है. इनमें उत्तर प्रदेश की 13 सीटें भी शामिल हैं. यहां जहां नॉन-यादव/ओबीसी और नॉन-जाटव/दलित वोटर्स उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला करेंगे. यूपी की इन 13 में से 7 सीटों पर बीजेपी को सपा-बसपा गठबंधन से कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ेगा. 2014 में बीजेपी ने इन सात सीटों में से छह पर कब्जा जमाया था.
यूपी की शाहजहांपुर, खीरी, हरदोई, मिसरिख, उन्नाव, फर्रुखाबाद, इटावा, कन्नौज, कानपुर, अकबरपुर, जालौन, झांसी, हमीरपुर सीटों पर सोमवार को वोटिंग होनी है. सपा-बसपा गठबंधन के बीच बीजेपी के लिए इन सीटों पर काउंटर-पोलराइजेशन (ध्रुवीकरण का जवाब) की पूरी संभावना है.
सपा-बसपा से निपटने के लिए बीजेपी ने काउंटर-पोलराइजेशन का तरीका निकाला है. बीजेपी को निश्चित रूप से नॉन-यादव/ओबीसी और नॉन-जाटव/दलित वोटर्स के सपा-बसपा के खिलाफ एकजुट होने की उम्मीद है.वहीं, सपा-बसपा गठबंधन भी एक बड़े हिस्से वाले पिछड़े-दलित वोटर्स को प्रभावित करने की कोशिश में है. हालांकि, पिछले चुनावी आंकड़ों को देखें तो यह थोड़ा चुनौतीपूर्ण लग रहा है.
अगर पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान सपा और बीएसपी को मिलने वाले वोट पर गौर करें तो शाहजहांपुर, खीरी, हरदोई, मिसरिख, इटावा, झांसी और कन्नौज में बीजेपी की जीत मुश्किल लग रही है. कन्नौज वैसे भी डिंपल यादव की वजह से सपा की झोली में है. पिछली बार डिंपल ने भले ही कम मतों से जीत दर्ज की थी, लेकिन इस बार बसपा के समर्थन से जीत का अंतर बढ़ सकता है.
दूसरी तरफ उन्नाव, फर्रुखाबाद, कानपुर, अकबरपुर, जालौन और हमीरपुर में बीजेपी बेहतर स्थिति में है. ऐसे में अगर सपा और बसपा का समर्थन आधार बना रहता है, तो बीजेपी 2014 के 80 में से 71 सीटों के प्रभावशाली आंकड़े में से चौथे चरण की छह सीटों पर हार सकती है.
यूपी की जिन सीटों पर सोमवार को मतदान होने जा रहा है. उनमें शाहजहांपुर, हरदोई, मिसरिख और इटावा रिजर्व्ड संसदीय क्षेत्र हैं. इन सीटों पर जाति आधारित राजनीति के चलते बीजेपी के लिए पिछले चुनावी आंकड़ों को सुधारना एक चुनौती है. बाकी सीटों पर भी कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है.
पहले बात करते हैं कन्नौज सीट की. सपा-बसपा गठबंधन के लिए इस सीट पर प्रतिष्ठा की लड़ाई है. समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव कन्नौज से प्रत्याशी हैं. जाहिर तौर पर सपा-बसपा इस सीट को बचाना चाहेगी. वहीं, कांग्रेस सलमान खुर्शीद और श्रीप्रकाश जायसवाल के भरोसे फर्रुखाबाद व कानपुर सीट पर जीत की उम्मीद कर रही है. उधर, उन्नाव में बीजेपी के 'कंट्रोवर्सी मैन' कहे जाने वाले साक्षी महाराज मैदान में हैं, जो अपनी सीट बचाने की पूरी कोशिश करेंगे.
जातीय समीकरण और पिछले चुनाव के नतीजों पर गौर करें, तो पता चलता है कि अगर गठबंधन को जीतना है, तो सपा-बसपा दोनों को अपने पारंपरिक जाति आधारित समर्थन को छोड़ना पड़ेगा. अगर दोनों पार्टी ऐसा कर पाती है, तभी 'गठबंधन' की कहानी बड़े स्तर पर लिखी जा सकेगी.
क्या कहते हैं आंकड़े?
यूपी की 13 में से ज्यादातर सीटों पर न तो यादव, ओबीसी वोटर्स पर हावी हैं और न ही दलित वोटर्स पर चमारों का प्रभुत्व है. उदाहरण के लिए, उन्नाव में यादव/अहीर कुल ओबीसी वोट का 8 फीसदी हिस्सा हैं. यहां ओबीसी का एक बड़ा हिस्सा मौर्य, कुशवाहा और शाख्य का है. वहीं, किसान-लोधी कुल ओबीसी वोट का 7 फीसदी हिस्सा शेयर करते हैं.
इसके अलावा उन्नाव में कुल आबादी का 23 फीसदी दलित मतदाता, 14 फीसदी पासी-बहेलिया, 7 फीसदी चमार वोटर्स, 10 फीसदी मुसलमान वोटर्स हैं, जबकि उच्च जाति के हिंदुओं में लगभग 22% मतदाता हैं.
उन्नाव में बीजेपी उम्मीदवार साक्षी महाराज लोध जाति के हैं, जबकि सपा ने ब्राह्मण अरुण शंकर शुक्ला पर दांव लगाया है. वहीं, कांग्रेस ने अनु टंडन को मैदान में उतारा है, जो उच्च जाति से हैं. 2014 के चुनाव में साक्षी महाराज इस सीट से जीते थे. उन्हें 43.17 फीसदी वोट मिले, जबकि सपा-बसपा दोनों सिर्फ 34 फीसदी वोट ही हासिल कर पाई.
अब बात अकबरपुर, खीरी, फर्रुखाबाद, झांसी और हमीरपुर सीट की. इन सभी सीटों पर नॉन-यादव ओबीसी और नॉन-जाटव/दलित वोटर्स बड़ी संख्या में हैं. अकबरपुर में कुल 21 फीसदी ओबीसी वोट में से 7 फीसदी यादव हैं, जबकि कुल 30 फीसदी दलित वोटर्स में से 14 फीसदी हिस्सा चमार वोटर्स का है.
वहीं, खीरी में यादव की कुल 27 फीसदी ओबीसी में अच्छी खासी हिस्सेदारी है. कुर्मी और पटेल की हिस्सेदारी 12 फीसदी है. जबकि, मौर्या, कुशवाहा, सैनी और शाख्य मिलकर 7 फीसदी वोट शेयर करते हैं. इसलिए सपा ने इस सीट पर कुर्मी समुदाय की पूर्वी वर्मा पर भरोसा जताया है. यहां 18 फीसदी मुस्लिम वोटर्स हैं. ऐसे में कांग्रेस ने मुस्लिम कार्ड खेलते हुए पूर्व सांसद जफर अली नकवी पर दांव खेला है. बीजेपी ने फिर से ब्राह्मण कार्ड पर भरोसा जताया है और अजय कुमार मिश्रा को उम्मीदवार बनाया है. यहां मुस्लिम वोट सपा-बसपा गठबंधन के लिए चुनौती हैं.
अब बात फर्रुखाबाद सीट की. यहां कुल 40 फीसदी ओबीसी वोटर्स हैं. इनमें यादव का हिस्सा सिर्फ 10 फीसदी है. मुस्लिम वोटर्स भी 10 फीसदी हैं. चमार वोटर्स की स्थिति थोड़ी अच्छी है. कुल 19 फीसदी दलित वोट का 11 फीसदी हिस्सा चमार वोटर्स का है. बसपा ने इस सीट पर उच्च जाति (सवर्ण) के मनोज अग्रवाल को उतारा है. उनके सामने बीजेपी के मुकेश राजपूत हैं, जो ओबीसी से आते हैं. इसके अलावा कांग्रेस ने इस सीट पर सलमान खुर्शीद को उम्मीदवार बनाया. बसपा इस सीट पर बीजेपी के परंपरागत अपर कास्ट वोट बैंक में सेंध लगाने की उम्मीद में है.
फर्रुखाबाद के बाद अब झांसी सीट का रुख करते हैं. यहां यादव कुल 24 फीसदी ओबीसी वोटर्स का 6 फीसदी हैं. झांसी के पड़ोसी जिले हमीरपुर में कुल 26 फीसदी ओबीसी वोटर्स में यादव की हिस्सेदारी महज 5 फीसदी है. जबकि चमार कुल 24 फीसदी दलित वोटर्स का लगभग आधा हिस्सा हैं. सपा ने हमीरपुर में श्याम सुंदर सिंह यादव पर भरोसा जताया है. बसपा ने इस सीट पर दिलीप कुमार सिंह को उतारा है.
हमीरपुर के बाद अब आते हैं कानपुर शहरी सीट पर. कांग्रेस ने इस सीट पर श्रीप्रकाश जायसवाल पर दांव खेला है. बीजेपी ने इस सीट पर भी ब्राह्मण कार्ड खेलते हुए सत्यदेव पचौरी पर भरोसा जताया है, पचौरी अभी यूपी कैबिनेट में हैं