कन्या क्या थी, पूरा भूकम्प, नीरज मिश्र उसके भक्त हो गए

Update: 2018-08-06 12:53 GMT

नीरज मिश्र का सौन्दर्य उस कोटि का था जिसे देख कर लड़कियां तो लड़कियां, लड़के तक हाय-हाय करने लगते थे। वे जब चलते तो लगता जैसे कोई मदमत्त गदहा लताड़ मारते हुए चल रहा हो। जब हँसते तो लगता जैसे डेढ़ सौ नृत्यांगनाओं ने मालकौंस के राग पर एक साथ अपनी पायलें खनका दी हों। बड़ी बड़ी और नशीली आँखों को देख कर लगता जैसे किसी बैल को पखेव की जगह डेढ़ बाल्टी ताड़ी पिला दी गयी हो। कमर ऐसी सुराहीदार, कि देखते ही निमोनिया के मरीज को भी प्यास लग जाय। सर उठाते तो गर्दन की नसें कुछ इस तरह तन जातीं जैसे घायल गेहुअन सांप फन काढ़े तन गया हो। माथे पर तिलक लगा कर निकलते तो मुखड़ा कुछ ऐसा लगता जैसे दूध औंटती किसी स्त्री के माथे का सिंदूर पसीने के साथ बह कर दूध में गिर गया हो। कुल मिला कर वे उत्तम पुरुष अर्थात 'थर्ड पर्सन' थे।

स्कूल के दिनों में नीरज मिश्र जब कैम्पस में घुसते तो लड़के-लड़कियों के साथ शिक्षक-शिक्षिकाओं का भी ब्लडप्रेशर एक सौ नब्बे बटा एक सौ दस हो जाता। वे सब की आँखों के केंद्र में होते।

नीरज मिसिर जब दसवीं कक्षा में गए उसी समय कक्षा में एक नई कन्या का प्रवेश हुआ। कन्या क्या थी, पूरा भूकम्प थी। लगभग छह फीट की पुष्ट काया, साँवली रंगत, बड़ी बड़ी लाल आँखे, भूरे घुंघराले बाल, खड़े कान, बलिष्ट बाहुओं पर मछलियां उभरती थीं।

चलती तो जैसे धरती दलक उठती थी। नाम था आरती कुमारी...

ईश्वर जाने उस अद्भुत सुंदरी में कैसा आकर्षण था कि नीरज मिश्र उसके भक्त हो गए। दिन भर उसी की ओर देखते रहते। पहले तो नीरज मिश्र कक्षा की सबसे पिछली बेंच पर बैठते थे, पर अब आरती कुमारी का सानिध्य लाभ लेने के लिए आगे उसके बगल वाली बेंच पर बैठने लगे। जिस नीरज मिश्र को "प्रकाश ऊर्जा का एक रूप है" याद करने में डेढ़ महीने लगे थे, उसी नीरज मिश्र ने आरती कुमारी को इम्प्रेस करने के लिए रात भर में ही न्यूटन के तीनों गति नियमों के साथ साथ 'संवेग संरक्षण का सिद्धांत' तक रट लिया। इतना ही नहीं, बीसवीं सदी का सबसे घातक ट्रान्सलेशन "डाक्टर के आने से पहले रोगी मर चुका था" भी रात भर में रट गए नीरज मिश्र। वे आरती कुमारी का ध्यान आकर्षित करने के लिए कुछ भी करने पर उतारू थे, पर दुर्भाग्य से अबतक सुंदरी ने उनकी ओर दृष्टि न डाली थी।

इसी बीच किसी मित्र के कहने पर उन्होंने सरस सलिल भी पढ़ना प्रारम्भ कर दिया था। मित्र ने बताया था कि सरस सलिल में लड़कियों को रिझाने के अचूक नुस्खे बताए जाते हैं। उन दिनों युवाओं में मिथुना की फिल्मों और सरस सलिल की कहानियों का जबरदस्त क्रेज था। नीरज मिश्र मनोयोग से सरस सलिल का पाँच वक्त पाठ करने लगे, पर महीने भर में भी उन्हें सिवाय अवैध सम्बन्धों की कहानियों के एक भी कारगर नुस्खा नहीं मिला। पुरुषों का एक सामान्य गुण है, वे अवैध सम्बन्ध केवल स्वयं के लिए चाहते हैं, दूसरों के अवैध सम्बन्ध से उन्हें घृणा होती है। नीरज मिश्र को भी सरस सलिल से घृणा होने लगी। हार कर एक दिन उन्होंने सरस सलिल के सम्पादक 'बिसनाथवा' के पास उसकी बहन-मतारी एक करती चिट्ठी लिखी और उसी दिन से सरस सलिल पढ़ना छोड़ दिया।

नीरज मिश्र को आरती कुमारी की ओर गिद्ध दृष्टि गड़ाए डेढ़ महीने हो गए थे पर अबतक कोई लाभ नहीं हुआ था। अचानक एक दिन उन्हें अंतः प्रेरणा हुई कि उन्हें मंगलबार का व्रत करना चाहिए। फिर क्या था, उन्होंने उसी सप्ताह से व्रत प्रारम्भ कर दिया। घरवालों के पूछने पर उन्होंने बताया कि 'पिछले आठ साल से हर बैसाख में उपट जाने वाले कछ-दिनाय' को ठीक करने के लिए पण्डित ने मंगर भूखने को कहा है।

नीरज मिश्र को मंगर भूखते चार मंगर हो गए थे। एक दिन टिफिन के समय नीरज जब विद्यालय की छरदेवाली से सट कर गुमसुम से बैठे थे, तभी उन्होंने देखा- आरती कुमारी उनकी ओर चली आ रही है। नीरज मिश्र का कलेजा कांग्रेस हो गया। उन्हें मंगर व्रत के फल पर पूरा विश्वास था, पर फल प्राप्त करने के समय वे कांप उठे। उनका हृदय आनंद से भर गया। वे आश्वस्त थे कि आरती कुमारी वो तीन मैजिकल वर्ड जरूर बोलेगी, सो वे मन ही मन उत्तर की तैयारी करने लगे। आरती झूमती हुई आयी, थोड़ा सा शरमाई, इधर उधर देखा और तीन की जगह पाँच शब्द बोला- "तनि एगो बीड़ी देबs हो"

नीरज मिश्र भौंचक रह गए। नीरज मिश्र बीड़ी पीते हैं यह बात किसी को पता नहीं थी। वे हकला कर बोले- हम बीड़ी पीते हैं यह आपको कैसे पता है जी?

वह भीषण सुंदरी मुस्कुरा उठी, बोली- आपके होंठों की कालिख बता रही है कि आप पियोर पियक्कड़ हैं। चलिये निकालिये जल्दी से एक सुट्टा मार लें...

नीरज ने जेब से बीड़ी सलाई निकाल कर सुंदरी को अर्पित किया। सुन्दरी ने कब माचिस जलाया, कब बीड़ी सुलगाया और कब खींच लिया यह नीरज देख भी न सके, एक पल के सौवें हिस्से में ही ये तीनों कार्य पूर्ण हो चुके थे। सुन्दरी ने जली हुई बीड़ी का टुकड़ा नीरज को पकड़ाया और कहा- कल भी यहीं मिलिएगा, आप बड़े रसगर आदमी हैं।

उस जली हुई बीड़ी को मुह में ले कर देर तक दम खींचते रहे नीरज मिश्र, आरती के "रसगर" शब्द ने उन्हें घायल कर दिया था।

उस समय देश पर हरदन हल्ली डोडा गौड़ा देवगौड़ा का शासन था, पर नीरज मिश्र के अच्छे दिन आ गए थे। अब वे आरती कुमारी के साथ रोज रहर के खेत मे बैठ कर देर तक बीड़ी पीते। साथ ही साथ परिहास भी चलता, नीरज मिश्र मन ही मन अपने प्रेम के परम लक्ष्य की कल्पना कर मस्त हो जाते। उन्होंने बीड़ी को प्रेम की पहली सीढ़ी मान लिया था।

महीनों बीत गए। नीरज मिश्र की बीड़ी पर चर्चा अनवरत चल रही थी।ऐसे ही एक दिन रहर के खेत मे नीरज मिसिर और आरती कुमारी बीड़ी पी रहे थे कि नीरज को अपनी गर्दन पर कुछ दबाव का अनुभव हुआ। धीरे धीरे यह दबाव बढ़ता जा रहा था। उन्होंने तड़प कर पीछे देखा तो पाया कि कक्षा का सबसे मुस्टंडा लड़का कपिलदेव गर्दन दबोच कर खड़ा था। उसने गरज कर कहा- यह क्या हो रहा है बे?

नीरज मिमिया कर बोले- कुछ भी तो नहीं, हम लोग शांति और सद्भाव के साथ बीड़ी पी रहे हैं।

कपिल गुर्राया- तो इस तरह रहर के खेत में क्यों पी रहे थे बे?

नीरज मिश्र ने तनिक हिम्मत दिखा कर कहा- आपको उससे क्या, हमलोग कहीं पियें। हमलोग तो शांतिपूर्ण तरीके से....

-अबे चुप! तू जानता है यह कौन है? मेरे भइया के साढू के मौसीआउत फूफा की पीतिआउत भतीजी की जिस गांव में शादी हुई है न, उसी गाँव मे इसकी बहन की ननद के पड़ोस वाले देवर की ससुराल है। इस नाते मैं इसका जीजा होता हूँ। तुमने इसकी ओर देखा कैसे बे?

नीरज कुछ बोलते इसके पहले ही दुष्ट ने उन्हें पटक दिया और रहर के सटहा से सटा-सट पीटने लगा। नीरज का सुकोमल शरीर त्राहि त्राहि कर उठा। डंडा गिरने पर उनकी देह नागिन की तरह लहर उठती थी। इधर दुष्ट एक डंडा टूटने पर दूसरा उखाड़ लेता था। उधर आरती कुमारी चुपचाप खड़ी यह सब देख रही थी। लगभग बीस मिनट तक लगातार पीटने के बाद दुष्ट ने कहा- जा! आज छोड़ देता हूँ, पर दुबारा कभी देखा तो....

कपिलदेव ने आरती कुमारी का हाथ पकड़ा और निकलने लगे।

नीरज के शरीर मे बिल्कुल भी शक्ति नहीं बची थी, पर उन्होंने समूचा दम लगा कर कहा- आरती! जब जा ही रही हो तो आओ ना अंतिम बार एक एक दम बीड़ी का लगा लिया जाय।

नीरज के इस अंतिम आग्रह में इतनी करुणा थी कि किसी का भी हृदय पिघल जाता, पर न ही आरती को दया आयी न ही कपिलदेव को। उल्टे कपिल देव ने मुड़ कर उन्हें ऐसे घूरा कि वे सटक गए।

डेढ़ घण्टे तक वहीं पड़े रहे नीरज मिश्र, उनका हृदय विखण्डित हो गया था।

वह दिन था और आज का दिन है, नीरज ने कभी भी बीड़ी को अधरों से नहीं लगाया। हाँ आरती को वे कभी भी भुला न सके।

अब भी रोज पूजा करते समय दस दस देवताओं की आरती गाते हैं नीरज मिश्र ताकि उसका नाम ले सकें....

आज नीरज मिश्र का जन्मदिवश है। आइये उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए प्रार्थना करें...

सर्वेश तिवारी श्रीमुख

गोपालगंज, बिहार।

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