बसंत ऋतु के पाँचवाँ दिन....बसंत पंचमी एगो अइसन पर्व ह जवना के आध्यात्मिक लौकिक दूनों स्तर पर महत्व बा

Update: 2018-01-22 08:18 GMT
अइसन लोकश्रुति ह...कि ब्रह्मा जी सृष्टि के रचना कइके ओकरा के जीवंत कइल भुला गइल रहनी।
        फेर अपना कमंडल से जल छिरिक के प्राणीमात्र में सरस्वती के प्रभाव से स्वर आ हवा पानी में तरंग पैदा कइनी। सरस्वती महाशक्ति में से एगो मानल जाली। ज्ञान आ कला के देवी। जीवन में चेतना प्राण लियावे वाली देवी। 
       अज्ञान के आवरण हटा के ज्ञान देवे वाली...।.दुःख संसार के सच ना ह। अज्ञान के कारण मये कष्ट बा...अइसन सिद्ध मंत्रद्रष्टा ऋषि लोग कहले बा।

         बसंत ऋतु के पाँचवाँ दिन....बसंत पंचमी एगो अइसन पर्व ह जवना के आध्यात्मिक लौकिक दूनों स्तर पर महत्व बा।
     पूरा प्रकृति ठंडा के संकोच से उबर के नया रंग में रंगा जाले। किसिम किसिम के फूल खिलेला। गेहूँ के फसल तैयार होत रहेला। गेहूँ के बालि भूँजि के गूर मिला के परसादी बनेला...। 
      मये ऋतुफल के भोग लागेला सरस्वती माई के। आजु के दिन से अबीर रंग खेले के शुरुआत हो जाला। फगुआ के ताल भी ठोका जाला।

        हमनी के संस्कृति संस्कार में हर चीज के एगो पारलौकिक संबंध होखेला। कामदेव के भी पूजा होखेला। होली पहिले मदनोत्सव भी कहात रहे। काम के संस्कारित रूप ह....संगीत गीत कला।

     पुरुआ परिवार सगरे समाज के भोजपुरिया भयवदी के खातिर मंगलकामना करत बा।

      सभे सुखी रहो... सभे निरोग रहो... सभे...अच्छाई के राह पर रहो। 
    जय सरस्वती माई... जय भोजपुरी माता।


वेद प्रकाश मिश्रा

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