"दादा"

Update: 2017-11-08 06:39 GMT
शीर्षक पढते ही आपके जेहन में दो तरह के दादा लोगो का नाम आएगा- एक तो वो दादा जो घर में सबसे बुजुर्ग, सबके पूजनीय, आदरणीय और बच्चो के अतिप्रिय होते है और उनका नाम लेते वक्त स्वतः ही आप नाम के साथ जी लगा देते है. दुसरे दादा वो होते है जिनका पहला नाम दमदार होता है और पीछे लगा दादा उनकी शान में चार चाँद लगाता है जैसे - कल्लू दादा, बिल्लू दादा, शंकर दादा, लम्बू दादा, छोटू दादा वगैरह वगैरह. अभी मै इस दूसरी प्रजाति के अति विशिष्ट दादाओ का जिक्र कर रहा हूँ जिनसे हर शरीफ आदमी दूर भागता है. रेहड़ी वाले, खोमचे वाले, दूकान वाले दूर से ही साष्टांग होके प्रणाम करते है पर मन ही मन सौकड़ो गाली देते है. हर गाँव, मोहल्ले में एक दादा होता ही है जो सबका नहीं तो कम से कम कुछ लोगो का आदर्श होता है, जिसे देखकर वो लोग भी दादा बनने के सपने देखते है. कुछ लोग स्वाभाव वश दादा बन जाते है तो कुछ परिस्थति वश पर दोनों को प्रमाणपत्र तभी मिलता है जब चट्टी- चौराहे पर उनकी एक बार पिटाई हो जाए और बिना किसी अपराध के भी एक दो बार जेल की सैर कर आये. उसके बाद उन्हें दादा होने का आधिकारिक प्रमाणपत्र मिल जाता और दादागिरी करने का लाइसेंस भी.
तो अब आते हैं मुद्दे की बात पर. कल शाम को मेरी मुलाकात अपने इलाके के एक्स दादा से हो गई और तभी मुझे ये लेख लिखने की प्रेरणा मिली. तो हुआ यूं कि मै एक कार्य वश उनके मोहल्ले में जा पंहुचा. मुझे जोरो की भूख लगी थी और सामने केले का ठेला दिख गया. केला वाला पीछे मुह घुमा के बात कर रहा था . मैंने पूछा भैया केला कैसे दिए और जबाब देने के लिए केले वाले ने जब चेहरा घुमाया तो मै देखके दंग रह गया. अरे ये तो अपने गाँव जवार के एक्स दादा, हरखू दादा थे. मै इस लिए आश्चर्यकित नहीं था कि वो केला बेच रहे थे क्योकि जयादातर दादा लोग की जब दादागिरी फेल होती है तो कोई केला बेचता है, कोई सब्जी, कोई सिक्यूरिटी गौर्ड बनता है. मैंने जहा तक सुना था की वो मुंबई में सिक्यूरिटी एजेंसी चलाते है. दादा अपने ज़माने में कोई पिद्दी से वाले दादा नहीं थे. यूं कहे कि पूरे इलाके के उनकी तूती बोलती थी और उन्होंने अपना साम्राज्य खुद खड़ा किया था. चमचो बेलचो के दम पर नहीं. साढ़े छः फीट का दैत्य्कार शरीर और बिना जिम गए ही 8 पैक वाली बॉडी. देखते ही सामने वाले की धिग्गी बध जाती थी. उनके परर्सोनाल्टी को देख कर लगता था कि कोई साहब शुबा है. ऐसे आदमी को केला बेचते देखकर मै भौचक्क था.
"तू कहा से हो राजू एने?" मेरे कुछ पूछने से पहले उन्होंने ने ही सवाल दाग दिया.
"हरखू दादा आप" मैंने अपने जज्बात को सँभालते हुवे पूछा.
"क्या करे भाई. पढाई लिखाई तो कुछ किये नहीं. जवानी दादागिरी में चली गयी और फिर शादी के बाद बाल बच्चो की परवरिश. अब काम करने के लिए कुछ करना तो पड़ेगा. ऊपर से केस फौदारी के वजह से पुलिस ने जीना मुश्किल कर दिया था" उन्होंने झेपते हुवे कहा.
"नहीं. आपने बहुत अच्छा किया गाँव छोड़कर. काम कोई छोटा बड़ा नहीं होता है. हजारो लोग केला बेचकर ही यहाँ करोडपति बन गए."
"अच्छा ये सब छोडो और लो बैठ कर केले खाओ." उन्होंने अपना स्टूल साइड में बढ़ा दिया और साथ में एक दर्जन केले मेरी तरफ बढ़ा दिए. थोड़ी बहुत ना नाकुर करने के बाद मै केले खाने लगा. जोरो की भूख लगी थी.
"इधर कैसे?" उन्होंने कुछ देर बाद दुबारा वही सवाल दुहराया.
"क्या करे भैया मेरे बैंक का एक ग्राहक लोन लेके नहीं चुका रहा है. उसका लोन मैंने ही पास किया था सो बैंक ने लोन वसूलने की जिम्मेदारी मुझ पर दी है. अगर लोन जमा नहीं हुआ तो मेरी नौकरी चली जाएगी."
"ये बात. तुम चिंता मत करो. सिर्फ लोन लेने वाले का नाम बताओ. मै उसे अभी बुलवाता हूँ."
हरखू दादा के सभानूभूति भरे बोल सुनके मुझे राहत और ख़ुशी होई. कुछ भी हो जाए पर हम up बिहार वालो का अपने गाव जवार वालो की सहायता करना उनके डीएनए में ही है. मैंने उसका नाम बता दिया.
"अरे उसको लोन देने के लिए किसने बोला था. वो तो यहाँ का दादा है. उसका यही धंधा है. बैंक से पैसा लेके नहीं चुकाने का. उससे पैसा वसूलना असंभव है." हरखू दादा चिंता से बोले.
मेरे मुह का केला मुह में ही रह गया. ना उगला जा रहा था ना निगला. सामने बैंक से बर्खास्ती का लेटर दिखने लगा.
"क्या हुआ" मेरे थोबड़े पर बारह बजा देख उन्होंने पूछा.
"होगा क्या. बस मै बेरोजगार हो जाउगा." मैंने बैठी आवाज में कहा.
"तुम चिंता मत करो" उन्होंने अपनी मूछे ऐठते हुवे कहा "तुम्हारे बैंक के पैसे मिल जायेगे. मेरे रहते उसकी मजाल की वो तुम्हारे पैसे न दे."
फिर उन्होंने पीछे अपने एक चेला को लोन लेने वाले दादा को बुला कर लाने का आदेश दिया और फिर ग्राहकों को निपटाने में लग गए.
मुझे हरखू दादा के आश्वाशन पे भरोसा नहीं था. अपने गाँव जवार में दादा होना और प्रभाव होना अलग बात है पर परदेस में भला कोई दूसरा दादा उनकी क्यों सुनेगा. वैसे जिस तेवर से दादा ने उसको आदेश दिया था, उनके पुराने दादागिरी के भाव स्पस्ट दिख रहे थे. अंग्रेजी में कहते है कि- bad habits die hard" ( बुरी आदते आसानी से नहीं जाती)
कुछ देर बाद हरखू दादा का भेजा दूत अकेले वापस आ गया.
"दादा उसने आने से मना कर दिया. अभी वो पाटिल के अड्डे पर जुआ खेल रहा है" उसने एक सांस में कहा और दादा का चेहरा क्रोध से तमतमा गया.
"मेरी बिल्ली और मेरे को मयाऊ. तुम दूकान संभालो मै अभी आता हूँ." दादा ने कहा और मुझे पीछे आने को कहा. ऐसे छ्टे गुंडे के अड्डे पर जाने से मै काप रहा था. दादा ने इत्मीनान दिलाया और मै पीछे पीछे चल दिया. मरता क्या ना करता. मेरे पास दूसरा रास्ता भी तो नहीं था.
थोड़ी देर बाद हम लोग अड्डे पर पहुच गए और जैसे ही दादा अन्दर घुसे सारे जुवारी उठकर उनको सलाम ठोकने लगे. हरखू दादा को देखकर लोंन वाले ग्राहक की सिट्टी पिट्टी गुम. इसके पहले की वो कुछ बोलता दादा ने आगे बढ़कर एक घुस्सा जड़ दिया और बेचारा चित्त होकर उनके पैर पकड़ लिया.
"दादा गलती हो गयी"
"मेरे भाई का पैसा क्यों नहीं चुका रहा है? दादा उसी तेवर में बोले.
"मुझे नहीं मालूम था की ये आपका भाई है दादा. आई शपथ! मै पूरा पैसा चुका दूंगा" उसने कान पकड़ते हुवे कहा.
दादा ने मेरी तरफ देखा. कहा तो कुछ नहीं पर मन में कह रहे थे की तुम नाहक परेशां हो रहे थे. दादा हमेशा दादा ही होता है.
मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था. मैंने आज तक अपने पूरे जीवन किसी दादा का सम्मान नहीं किया था पर आजसे हरखू दादा मेरे लिए पूजनीय, सम्मानीय और अविस्मर्णीय हो गए थे. सभी दादा दिल से बुरे नहीं होते है- रास्ते में लौटते वक्त मै यही सोच रहा था.


धनंजय तिवारी

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