कॉलेज के दिनों में हम सभी दोस्त कभी कभी बस यूंही तफरी मारने निकल जाते। करीब आठ-दस लड़के, सभी छह फुट के आसपास। बिंदास, मस्त, बदमाश और साथ ही शरीफ। जिस दिन हम क्लास गोल करते, पूरी क्लास ही कैंसल कर दी जाती।
मुझे बनारस आये साल होने को आया पर कभी विश्वनाथ मंदिर नहीं गया था। एक दिन प्लान बना कि हो आया जाए। फिर जाने क्या हुआ कि पुराने बाबा विश्वनाथ की जगह विश्वनाथ टेंपल चल पड़े हम। श्रद्धा हो तो पुराने विश्वनाथ मंदिर में भी आपको अच्छा लगेगा, पर इतनी भीड़ होती है वहां कि ढंग से दर्शन भी नहीं होते। बीएचयू के VT में ऐसा नहीं है। विशाल मंदिर, मंदिर के बाहर भरपूर जगह, मंदिर के अंदर ठंडा संगमरमर, और विशाल खिड़कियां। बाहर 40 डिग्री तापमान भी हो तो भी आप अंदर बिना AC के सुकून से बैठे-बैठे घण्टों बिता सकते हैं। कानफोड़ू फिल्मी धुनों पर बजने वाले डिजिटल भक्ति संगीत की जगह, सुमधुर और कर्णप्रिय शास्त्रीय संगीत सुनाई देता है यहां।
हालांकि उस समय मैं नास्तिक हुआ करता था पर मुझे वास्तव में वह वातावरण बहुत अच्छा लगा। दोस्त कुछ ग्रुप में बंट गए थे। मैं और अक्षत एक तरफ अधलेटे थे कि एक विदेशी आया और हमारे पास बैठ गया। स्पेन का था, खूब बातें हुईं। अगर बात करने का मन हो तो भाषा अड़चन नहीं बनती। वो हमसे हमारी संस्कृति के बारे में सवाल करता, हम अपनी सामर्थ्य अनुसार जवाब देते। प्रसन्न मन विदा हुआ हमसे।
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होली के दिनों में घर पर रहना पसंद करता हूँ, हुड़दंग पसन्द नहीं। पर उस साल मित्रों ने खींच ही लिया। पूरा बनारस बाइक से रौंद दिया गया। अंतिम स्टॉपेज दशाश्वमेध घाट। कहते हैं यहां दस अश्वमेध यज्ञ हुए थे। यहां रोज ही सुबह और शाम को भव्य आरती होती है। होली की दोपहर गजब ही नजारा था। होली की मस्ती में डूबे बनारसियों से बेहतर आपको कुछ नहीं दिख सकता। बात-बात पर इतनी हँसी, कि जिंदगी भर का कोटा पूरा हो जाये। लिखकर बताना सम्भव नहीं।
एक श्रीमान पूरे शिव के गेटअप में थे। सर पर जूड़ा, हाथ में डमरू बंधा त्रिशूल, गले में ढेरों मालाएं, मतलब साक्षात शिव का रूप। फिर कुछ लड़के उसके पास गए और सेल्फी ली। फिर कुछ और लोग गए, उन्होंने भी सेल्फी ली। फिर तो इतने लोग उस शिव के साथ सेल्फी लेने को आतुर हो गए कि अगला हाथ जोड़ने लगा, पैर पड़ने लगा, बोलता, "जाए द भाय, अरे छोड़ा मरदे, अरे हम्मे नहीं खिंचानी सेल्फी, अरे छोड़िये भई"। गाली दिए जा रहा था और लोग थे कि उस पर लदे जा रहे थे।
ये तो खैर हँसने वाली बात थी, पर हमें गुस्सा कुछ दूसरी चीजों पर आया। बनारस विदेशी टूरिस्टों को बहुत आकर्षित करता है। उनमें भी सारनाथ की वजह से बुद्धिस्ट जापानियों की संख्या ज्यादा होती है। वे सारनाथ से बनारस के दूसरे छोर, घाट भी आते हैं। हुआ कुछ यूं कि कुछ लड़के एक जोड़े के पास पहुंच गए और हैप्पी होली बोल पहले तो उन्हें गुलाल से सराबोर किया और फिर उनके गले लगे। महिला से गले लगने को ज्यादा आतुर थे सब। शुरू में कर्टसी थी, पर फिर अति होने लगी। कोई कितनों से गले मिलेगा, वे जाना चाह रहे थे पर दो ने पुरुष को पकड़ रखा था और बाकियों ने लड़की को घेर लिया। कोई गाल में, तो कोई पीठ में, तो कोई हाथ में रंग लगा रहा था।
हम कब तक बर्दाश्त करते। उन दोनों बेचारों को छुड़ाया और लफंगों को पीट दिया। उन जापानियों से झुक-झुक कर माफी मांगी और उन्हें उनके लॉज तक छोड़कर आये।
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छठ चल रहा है। मेरे घर में तो खैर नहीं मनाया जाता, पर मेरे परिवार की कई स्त्रियां बिहार से हैं। वे पूरी श्रद्धा से मनाती हैं। उत्तरांचल में वैसे सिर्फ चार जिलों में यूपी-बिहारी समुदाय रहता है पर इस बार पूरे प्रदेश में सार्वजनिक छुट्टी थी कल।
कल सोशल मीडिया एक साहित्यकार के पीछे पड़ा था, और उचित ही था। मैं व्यस्त था, अन्यथा कुछ तो लिखा ही होता। दिन भर की थकान से चूर जब रात सोने बिस्तर पर लेटा तो लाउडस्पीकर के अनियंत्रित शोर ने मुझे पूरी रात जगाए रखा। साथ में मेरी एक साल की बच्ची भी 2 बजे तक उठी रही।
छठ में मेरी पूरी आस्था है। हालांकि गाने पसन्द नहीं, पर नफरत भी नहीं, और भोजपुरी तो मेरी मातृभाषा है। पर जब रात में 'बीड़ी जलइले, जिगर से पिया' और 'बेबी डॉल मे सोने दी' जैसे कालजयी गानों की धुन पर भोजपुरी भक्ति गीत कानों पर अत्याचार करते हैं तो दिमाग का फ्यूज उड़ जाता है। मन करता हैं कि सबका सर तोड़ दूँ या अपना ही सर पटक लूँ।
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इन कानफोड़ू गानों से लोग गाना बजाने वालों को दोष नहीं देंगे, विदेशी लड़की के कपड़े फाड़ने वालों को दोषी नहीं माना जायेगा क्योंकि उतना कोई नहीं सोचता, दोष तुरन्त 'छठ' और 'होली' जैसे पवित्र त्योहारों को दे दिया जाएगा। आपकी पीढ़ियों में ये भर दिया जाएगा कि ये त्योहार बस शोर, उच्श्रृंखलता और अश्लीलता पैदा करते हैं। मनन कीजिये कि इसका असली दोषी कौन होगा?
मुझे बीएचयू के विश्वनाथ मंदिर की वो दोपहर आजतक याद है जिसने एक नास्तिक के मन को संतोष से भर दिया था।
बाकी,
मस्त रहें, मर्यादित रहें, महादेव सबका भला करें।
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अजीत प्रताप सिंह
वाराणसी