मैं प्रधानमंत्री जी के सम्पूर्ण स्वच्छता मिशन का तहेदिल से सम्मान करता हूँ । मुझे ऑफिस के लिये दस बजे निकलना होता है लेकिन अगर कूड़े वाली नही आई हो तो दस पांच मिनट इंतजार करके कूड़ा फिक्स डिपॉजिट करवा के ही निकलता हूँ । वैसे तो मैं ola share का प्रयोग करता हूँ लेकिन कभी कभार मेरे अंदर बैठा हुआ व्यापारी मेरे पत्रकार को पटककर छाती पर चढ़ बैठता है और मैं ऑटो पकड़कर दस बीस रुपये बचाने के लिये बेचैन हो उठता हूँ ।
रविवार की सुबह मेरे साथ ऐसी दुर्घटना घटी जिसने मेरे रोंगटे खड़े कर दिए । मैं कूड़े वाली को देखने गेट से बाहर निकला , अंदर व्यापारी पत्रकार के ऊपर चढ़ बैठा था । बगल वाले घर के निवासी एक विशालकाय काले व्यक्ति अपनी मोटरसाइकिल पर बैठे हुये थे । मैंने कूड़े वाली के विषय में पूछा तो उन्होंने कहा आज नही दिखी । तभी मेरे अंदर का व्यापारी बोल पड़ा "भैया ये पार्क रोड के लिये ऑटो कहाँ से मिलेगा?" उन्होंने कहा चौराहे पर । फिर सहृदयता का परिचय देते हुये उन्होंने प्रस्ताव रखा कि आप चलिये मैं छोड़ देता हूँ वहां तक ।
दोस्तों , हम सभी जीवन के मोर्चे पर उस कबूतरों के दल जैसे हैं जो दिन-रात रटते तो हैं कि 'शिकारी आएगा , जाल बिछाएगा , दाना डालेगा , हम न खाएंगे न फंसेंगे'... किन्तु ये रटते रटते हम उसी शिकारी का दाना चुगकर बिछाये जाल में जा फंसते हैं । जब मैं उनका अनुग्रह स्वीकार कर रहा था तब मुझे नही पता था कि मैं चक्रव्यूह के उस पहले द्वार में प्रवेश कर रहा हूँ जिसका भेदन करने की क्षमता अभी मानवमात्र के लिये पहेली समान है । उन्होंने मेरे बढ़े हुये पेट पर चिंता जताई , मुझे लगा कि पीछे बैठने पर मेरे पेट से उन्हें असुविधा हो रही होगी अतः प्राणायाम विधि से मैंने सांसे रोककर अपना शरीर सिकोड़कर तीन चौथाई कर लिया । किन्तु वो यहीं नही रुके , उन्होंने कहा "चार महीने पहले आपने मुझे देखा था?" मैं कैसे बताता कि अभी चार दिन तो हुये मुझे आये! उन महामना के प्रथम दर्शन मुझे आज ही मिले थे । उन्होंने बताया कि "आप से भी ज्यादा पेट था मेरा!" हकीकतन वो झूठ बोल रहे थे , आज भी अगर कोई निष्पक्ष अंपायरिंग करने वाला हो तो यही कहेगा कि वो ही प्रथम वरीयता के मोटे हैं ।
खैर , चौराहे के पास उन्होंने एक मकान के सामने गाड़ी रोकी और मुझे कहा कि अंदर चलिये । वहां चार और लोग बैठे थे जिनकी आंखें मुझे देखते ही शिकारी बिल्ली की तरह चमक उठीं । मुझे एक मशीन पर किसी मुर्गे की तरह रखकर तौला गया , लंबाई नापी गयी , फिर लंबाई चौड़ाई मोटाई का माप लिखा गया । मुझे लगा कि मेरा आयतन और धारिता निकाली जाएगी लेकिन उस प्रयोग के बाद मुझे पता चला कि मैं 22 किलो ओवरवेट हूँ और मेरे शरीर के भीतरी अंग 35 नही बल्कि 58 साल की उम्र के हो चले हैं । मेरी रीढ़ की हड्डी में नीचे से ऊपर की तरफ एक सनसनाहट दौड़ चली ।
फिर मुझे एक पेय पिलाया गया और कहा गया कि इस पेय को पीने के बाद आप दिनभर कुछ नही खाओगे । उसके बाद न्यूट्रिशन विज्ञान की एक उबाऊ क्लास चली और मुझे बताया गया कि रोज वही पेय पीकर मुझे रहना होगा , एक एप्पल और रात में दो रोटी खानी पड़ेगी तथा शराब एवम मांसाहार का त्याग करना होगा । उदाहरण स्वरूप एक 65 साल के व्यक्ति की तरफ इशारा किया गया जो कि मेरे अपहरणकर्ता के पिता थे "इन्हें देखिये , इस उम्र में इनके चेहरे पर कितनी चमक है!" ये सच है कि उन काले बुजुर्ग में एक चमक थी लेकिन वो चमक तो कोयले के ढेलों में भी होती है ... वो कौन सा पेय पीते होंगे ।
जब मैंने इस निस्वार्थ सेवा का मूल्य पूछा तो बताया गया कि दो सौ रुपये । अंदर व्यापारी पत्रकार के सीने पर ही बैठा था , चक्कर खाने लगा । मैनें अच्छे होटलों में स्टे किया है , खाया है । एक होटल में पानी की बोतल अस्सी रुपये की थी ... तथापि मैनें इतना महंगा पेय कभी नही पिया था (पेग की बात नही कर रहा)। मैंने मुस्कुराकर अगले दिन सुबह आने के वादे के साथ विदा ली और ऑफिस को निकल गया । सोमवार के दिन सुबह फोन आने लगे । मेरे दरवाजे पर खटखट हुई । बाहर निकला तो पड़ोसी पिता पुत्र जिनके चेहरे पर चमक है , खड़े मिले । उनके होंठ कानों तक फैले थे और चौंसठ दांत दिखाई दे रहे थे । मैं बहाना बनाकर भाग निकला ।
जब रात में मैं घर लौटा तो कर रुकते ही धड़ाक से पड़ोस के फ्लैट का दरवाजा खुला और मेरे पड़ोसी ने धूर्तता भरी हंसी हंसते हुये कहा - "हे हे हे! काफी लेट हो गया । सुबह तैयार रहियेगा ।' मंगलवार की सुबह मैंने फोन बंद कर लिया और घर में ऐसे छिपा रहा जैसे कि घर में कोई हो ही न । फिर मौका ताड़कर मैं मुंह पर गमछा लपेटकर ऑफिस के लिये पैदल ही घर से भाग निकला । रात को लौटते समय मैंने टैक्सी मोड़ पर ही छोड़ दी और अपने ही घर में चोरों की तरह दाखिल हो गया ।
कल बुधवार को मैं अपनी खिड़की से छिपकर देख रहा था , कई जोड़ी आंखें मेरे घर के गेट की सुराखों से कुछ ढूंढने का प्रयास कर रही हैं । रात को मैनें बारह बजे स्वप्न देखा जिसमे मेरे पड़ोसी का पूरा परिवार मुझे दबोचकर जमीन पर गिराए हुये मुझे एक दिव्य पेय पिला रहा है ।
आज का दिन आर पार की लड़ाई का है मितरों ! दोनों पक्ष की रणनीति तैयार है । पड़ोसी पिता पुत्र ही नही बल्कि सास-बहू भी बालकनी के मोर्चे पर डटी हुई हैं । आज एक बुरका खरीद लूंगा, समस्या बस ये है कि लेडीज सैंडल मेरे नाप की आएगी नही ... लेकिन फिक्र की कोई बात नही आजकल लड़कियां भी मर्दाने स्पोर्ट्स शूज पहनती हैं ।
याचना नही अब रण होगा !
अतुल शुक्ल
गोरखपुर