मारकंडेय, अति प्रसन्नता के साथ बड़े बाबू के कार्यालय में दाखिल हुआ। कॉलेज का सबसे छटा लड़का जिसके बारे में मशहूर था - न भूतो, न भविष्यतो, अर्थात वैसा बदमाश लड़का उस कॉलेज में ना आज तक आया था ना आगे आएगा, जिसको देखते ही छात्र क्या, अध्यापको की धिग्गी बध जाती थी वो आज सबसे प्यार से मिलके आ रहा था।
उसके देखकर ही बड़े बाबू के चेहरे पर घृणा के भाव आ गए जिसे उन्होंने जल्दी से छिपाया। अब उनके रिटायरमेंट का ये आखरी हफ्ता था। वे कोई नया बखेड़ा नहीं खड़ा करना चाहते थे। अपने काम और व्यवहार से उन्होंने कॉलेज और इस इलाके में बहुत ही मान सम्मान अर्जित किया था जिसे मारकंडेय ने एक पल में नेस्तनाबूंद कर दिया था। बात भी बहुत पुरानी नहीं थी। मारकंडेय किसी छात्र को लेकर उनके पास tc के लिए आया था और दबाव डालके काम करवाना चाहता था। उन्होंने मना कर दिया। फिर थोड़ी बहस हुई और उसके बाद उसने सारे लाज लिहाज को तज कर अपने दोस्तों के साथ उनकी पिटाई कर दी। कॉलेज के बाकी लोगो ने जैसे तैसे कर उनको बचाया पर मारकंडेय को जबाब देने की हिम्मत किसी में नहीं थी। उस दिन के बाद से उनका कोई दिन ऐसा नहीं गुजरा हो जब मार्कण्डेय का चेहरा उनकी आँखों के सामने एक बार न आया हो। बरसो की कमाई इज्जत को मार्कंडेय ने बेमोल खरीद लिया था।
आज मार्कंडेय को अपने ऑफिस में देख, मन ही मन वे सशंकित हो गए कि अब क्या लेने आया है। कहीं फिर से तो किसी बात पे लड़ने नहीं आ गया। मन में तमाम तरह की शंकाओ ने जन्म ले लिया। पर उनकी सभी शंकाएनिर्मूल साबित हुयी जब उसने आगे बढ़के बड़े बाबू के पैर छुए और वक्त जाया किये बगैर बताया कि उसे चरित्र प्रमाण पत्र चाहिए। उसकी नौकरी सेना में हो गयी थी। नौकरी ज्वाइन करने के लिए वो आवश्यक था।
पांच मिनट में बड़े बाबू ने उसे चरित्र प्रमाण पत्र बना के दे दिया। एक नजर उसने प्रमाणपत्र पर डाली। प्रमाण पत्र अंग्रेजी में था। उसने कारण पूछा तो बड़े बाबू ने सेना में अंग्रेजी के चलन की बात कहके संतुष्ट कर दिया।
एक सप्ताह बाद वह अपना चरित्र प्रमाण पत्र लेके सेना के अधिकारी के सामने था और अधिकारी चरित्र प्रमाणपत्र पढके आश्चर्यचकित था - ऐसा प्रमाण पत्र आज तक नहीं देखा था देखा था - उसमें लिखा था - प्रमाणित किया जाता है कि श्रीमान मारकंडेय का आचरण बेहद ही घटिया और अशोभनीय रहा है और ये किसी भी बिभाग में काम करने के लिए उपयुक्त नहीं है।
अधिकारी ने उसे घृणा से देखा और फिर उसे कारण बताकर वापस भेज दिया।
हमेशा लोगो के चरित्र से खेलने वाले को आज चरित्र की असली कीमत मालूम हुयी थी।
धनंजय तिवारी