सुबह से पगली की तरह घूम रही है सुमनी की माँ, एक छन भी चैन से नही बैठती। दिमाग में जइसे आंधी तूफान बह रहा है उसके,और वह उसी आंधी में इधर से उधर फ़टे कपडे की तरह उड़ रही है।
कॉलेज से दुर्गापूजा की छुट्टी में घर आई सुमनी ने सुबह बर्तन धोते धोते बातों बातों में ही बताया कि कॉलेज में लड़के सिटी मारते रहते हैं और लड़कियों को परेशान करते रहते हैं। एक तो बिना बाप भाई की लड़की और ऊपर से दूर देश, माँ का कलेजा कांपे कैसे नहीं? सुमनी की माँ सोच सोच के पागल हुई जा रही है। सुमनी की पढाई बन्द हो नही सकती है क्योंकि उसकी पढाई ही तो सुमनी की माँ के जीवन का एकलौता सपना है।पर ऐसे माहौल में अब कॉलेज में दोबारा भेजने की हिम्मत नही हो रही है।
सुमनी की माँ की आँखों में तैर रहा है सत्रह साल पहले का वह दिन, जब उसके दरवाजे पर खड़े हजारों लोग एक साथ भारत माता की जय और शहीद राजिंदर जादो अमर रहें का नारा लगा रहे थे। कारगिल की लड़ाई में शहीद हुए थे सुमनी के पापा, उनके संघाती बताये थे कि चौदह दुश्मन को मार के मरे थे राजिंदर जादो। हप्ते भर बाद जब उनकी लाश आई तो पुरे जवार में कोई लंगड़ा लुल्हा भी नही बचा था जो उनको देखने उनके दुआर पर न आया हो। गांव के जमींदार रामदुलारे सिंघ जब मरे थे तब भी उतनी भीड़ नही हुई थी जितनी भीड़ सुमनी के पापा के लाश के पीछे चली थी। छाती पीट कर रोती सुमनी की माँ को चुप कराती उसकी देयादिन बोली थी- चुप हो जा छोटकी, देखती नहीं राजा की मउअत मरा है तेरा मरद। अरे इस दुनिया में तो रोज हजारों लाखों लोग मरते हैं पर कितनों के लिए तो एक कुकुर भी नही रोता, तेरे मरद के लिए तो पूरा देश रो रहा है। उसके लिए तो बिसनू भगवान खुद अपना रथ भेजे होंगे। रो के उसका परलोक न बिगाड़ सुमनी की माँ, हँस के बिदा कर अपने राजा को.........
हँस तो नही पायी, पर पूरी श्रद्धा से अपने राजा को बिदा किया था चार साल पहले बियह के आई सुमनी की माँ ने। हजारों की चिल्लाती भीड़ गवाह थी कि सचमुच आज उसका मरद राजा हो गया था और वह रानी। बाप की मौत का मतलब क्या होता है इससे अनजान तीन साल की सुमन लोगों के साथ कूद कूद के चिल्ला रही थी- अमर रहें.... अमर रहें....
पति की अर्थी के साथ अपना सिन्होरा देते समय उसे लगा जैसे उसने अपना सब कुछ दे दिया हो, वह बेटी को छाती से लगा कर चिल्ला उठी।
सुमनी का बाप उसकी माँ के कलेजे में अमर हो कर बस गया था।
उस दिन से आज तक सचमुच एक सैनिक की बिधवा की तरह जीती आई है सुमनी की माँ। सुमनी के पापा की लाश के पीछे लगने वाले नारों का सच तो साल भर में ही समझ गयी थी वह, जब पड़ोस की एक शादी में उसे दूल्हे को परिछने नही दिया गया था। आखिर बिधवा थी वह। बिधवा किसी सैनिक की हो या किसी भिखमंगे की, बिधवा तो बिधवा ही होती है। उसे किसी शुभ काम में जाने का अधिकार कहाँ... अमर रहें के नारे कितने झूठे थे यह खूब समझ गयी थी वह, पर कभी मन में कोई मैल नही रखा उसने...
घरेलु झगडे में उसको राजा की रानी बताने वाली देयादिन ने ही उसका बाल पकड़ कर कई बार मारा, उसके पति को गांव का गौरव बताने वाले लोगों ने उसे बिधवा होने के कारण कई बार दस औरतों के बीच से अलग हटाया, बेटे की शहादत पर मिडिया वाले साहेब के सामने सीना चौड़ा करने वाले ससुर ने उसे हजारों बार अपने बेटे की मौत की जिम्मेवार ठहराया, उसकी सास ने उसे अभागन और कुलटा कहा, पर वह कभी बिचलित नही हुई। उसके लिए तो बस सुमनी के पापा की याद और सुमनी, यही अपने थे।
सुमनी के जन्म के बाद जब उसका बाप छुट्टी में आया था तो कहता था- बेटी को तो डाकदर बनाना है।
उसके मरने के बाद सुमनी की माँ भले ही दुनिया जहान को भूल गयी पर बेटी को डाकदर बनाने का पति का सपना एक छन के लिए भी उसके दिमाग से नही निकला। सुमनी के बाबूजी के मरने के बाद सरकार से जो दस लाख रुपया मिला था उसके लिए परिवार में हल्ला होता रह गया पर उसने किसी को एक चवन्नी नही दी। और अब उसी पैसे की बदौलत सुमनी मुरादाबाद के कॉलेज में डागदरी पढ़ रही थी।
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दिन भर चिन्ता में घुलती रही सुमनी की माँ शाम को बेटी का सर सहलाती हुई बोली- न हो तो पढाई छोड़ दे बेटी, आखिर इज्जत आबरू से बढ़ कर कोई चीज तो है नहीं। और अगर तेरे करम में डागदर बनना लिखा होता तो भगवान क्या तेरे बाप को उठा ही लेते।
सुमनी ने बड़ी बड़ी आँखों से देख कर कहा- अरे पागल हो गयी क्या माँ, भला इन छोटी छोटी बातों से डर कर कोई पढाई छोड़ देता है?
- पर बेटी, तू नही जानती दुनिया बड़ी ख़राब है, कमजोर के लिए सब काल होते हैं।
- भक माँ! अमर शहीद राजेन्द्र यादव की बेटी इतनी भी कमजोर नही कि कोई उसका कुछ बिगाड़ दे। ये सीटी मारने वाले तो कुछ डरपोंक लडकें है, इनमे तो इतनी भी हिम्मत नही कि किसी लड़की से बात भी कर सकें। इनके डर से भला पढाई छोडूंगी? मुझे पापा का सपना पूरा करना है माँ।
बेटी की बातों से थोडी हिम्मत बढ़ी सुमनी की माँ की, वह कुछ सोचती हुई उदास सी बोली- पता नही कैसा है यह देश! देश के लिए सीमा पर जान देने वाले सैनिक की बेटी को परेशान करने वाले भी खुद को मरद कहते हैं।
सुमनी ठठा के हँस पड़ी, बोली- अरे तुम नही जानती माँ, सब झूठे हैं। दिन भर फेसबुक वाट्सअप पर क्रांति की बाते करते हैं सब, सुन के लगता है जैसे देश की सबसे ज्यादा चिंता इन्ही को है। छोडो जाने दो......
सुमनी उठ के चली गयी। उसकी माँ ने आकाश की और देख कर हाथ जोड़ा- देख रहे हो न, बिल्कुल तुमपर ही गयी है। इसकी रच्छा करना सुमनी के पापा.........
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।