टिगड़ीम टिगड़ीम टीड़ीक टिड़ीक...
नाच का ढोलकहिया ताल मिला रहा है। जुगों बाद गांव में नाच आया है। दस पन्द्रह साल पहले तक गांव-जवार में तिरहुतिया नाच का बोलबाला हुआ करता था। अगर किसी बारात में नाच न जाये तो गांव वालों का एक ही स्वर होता था- "साफ बेदीन है हो.. नाच भी नहीं लाया सब"
पर अब तो जुग ही बदल गया।
शाम से ही गांव में गहमा-गहमी है। जवार के सारे बूढ़ों में गजब का उत्साह है। बूढ़े रामजनम महतो से अब चला नहीं जाता सो उदास पड़े थे, पर शाम को ही चनेसर का लइका कमलेसवा आ कर कह गया- निस्ख़ातिर रहो बाबा, हम तुमको नाच देखाने ले चलेंगे। कमलेश के किरकेट खेलने की आदत के चलते रामजनम महतो उससे चिढ़े रहते थे, और देखते ही गाली देने लगते थे। आज उसका हाथ पकड़ कर नाच देखने जाते समय मुस्कुरा कर पूछते हैं- इस्कूल रोज जाते हो न बेटा?
रमजान मियां बो की अपने पतोह से कभी नहीं पटती, सो सास पतोह दोनो अलग अलग गोल में आईं हैं।
नाच इस्टाट हो गया है। असंख्य बूढ़ी आंखें इस्टेज की ओर टुकुर टुकुर ताक रही हैं, जैसे नाच में अपने पुराने दिन जोह रही हों।
नाच जम गया है। सारे कलाकार एक साथ सुरसती माता का सुमिरन गा रहे हैं।
उधर महिलाओं में खुदुर बुदूर शुरू हुआ है। रजमतिया की माई को ठेल कर ढाह दिया है किसी ने, बुढ़िया गरज रही है- कवना भतरकाटी के देह में ढेर काबू हुआ रे, सामने आओ मार के तोरा जवानी का थाह लगा देते हैं। बुढ़िया का शक तिलेशरा बो पर है, अंदाज लगा के एगो कटाह गारी फेंकती है- अरबीन सिंघ का कमाई खा के ढेर खून हो गया है देह में तो तनी सामने आ के क्यों नहीं लड़ती है रे राणी...
थोड़ी ही दूर मरद वाला साइड में अरबीन सिंघ भी बैठे हैं, उनको चिढ़ाने लिए आलोक पाण्डे टिभोली फेकते हैं- परनाम भाई! अरबीन सिंघ चिढ़ कर कहते हैं- ऐ खबरदार... करबs खेला?
नाच वाला गोरका लउण्डा अब फिल्मी गीत गाता है- झिलमिल सितारों आ आंगन होगा...
उधर मरदाना वाला साइड में पीछे खड़े नीरज मिसिर आगे बैठी आरतिया की ओर देख के बुदबुदाते हैं- कब होगा ए बरम बाबा...
नाच के अलॉन्सर के हाथ मे बीसटकिया नोट और पर्ची मिला है। उ पढ़ता है- "आलोक बाबा भेपर लाइट वाले की तरफ से बीस रुपया का इलाम... किसी भी शुभ अवसर पर सराध खाने के लिए सम्पर्क करें।" आलोक बाबा के पास कोई भेपर लाइट नहीं। सब जानते हैं कि उनका हर्निया बढ़ गया है, उसी को छोकड़ों ने भेपर लाइट नाम दिया है। पूरा सामियाना खिलखिला उठा है।
नचनिया मटक के कह रहा है- इस साहेबान का मैं तहे-दिल से सुकुरिया अदा करती हूं...
आलोक पांडे खड़े हो कर गरज रहे हैं- कौन सरवा दिया रे पैसा? रे कवना के बाप के सराध में खाये हैं रे हम? रै तोरा नानी से बियाह करो, दिखायें हम भेपर लाइट??? आलोक बाबा जितना ही गरजते हैं, लोग उतना ही खिलखिला उठते हैं। लोगों की हँसी उनको भी हँसा देती है, वे भी मुस्कुरा कर कह उठते हैं- हँस लs सन सरवा...
उधर पीछे खड़ा नीरज मिसिरवा अब भी अरतिया की ओर टुकुर टुकुर ताक रहा है, कि कब अरतिया यहां से निकले तो...
नाच में पाठ शुरू होने वाला है। कलाकार सब अपना अपना डरेस पहिन रहा है, तबतक ढोलकहिया मास्टर निरगुन गा रहे हैं-
काहें माया में भुलाइल बाड़s तोता हो.... खोंता छोड़ के जाए के परीsss
निरगुन उदास कर देता है। रामायन मिसिर एक उदास मुस्कान छोड़ते हुए कहते हैं- कसs हो रामजनम, खोंता छोड़हीं के पड़ी! ना... रामजनम महतो की आंखे भर आयी हैं। कहते हैं- कब तक खोंता मे अझुराये रहेंगे पण्डित, सब खेल तो खेल चुके...
नाच में 'पाठ' शुरू हो गया है। रानी सारंगा और सदाबृच्छ की कथा... कई जन्मों की प्रेमकहानी... अब शामियाने में कोई चोंय-चांय भी नहीं कर रहा, सब एकटक मंच की ओर निहार रहे हैं। आगे बैठी अरतिया सकुचाते हुए उठ कर अकेली घर की ओर चल पड़ी है। किसी का उधर ध्यान नहीं, पर नीरज मिसिर भी डेग बढ़ा कर बढ़ चले हैं। बाजार से बाहर तनिक एकांत अंधेरे में धीरे से आवाज देते हैं- ए आरती, रुको न..
आरती मुस्कुरा कर कहती है- आपको भी चैन नहीं है का जी? अभी चार दिन पहिले ही न हमारे बड़का बाबूजी आपको धोये थे। हम आपको देखे तभी बूझ गए कि आप मिले बिना मानेंगे नहीं, जभी निकल आये।
नीरज मुस्कुराते हैं- तुमको देख लिए तो सब दरद ओरा गया आरती, बाकिर तुम्हारा बड़का बाबूजी बड़ी गोंय गोंय मारता है ससुरा...
उधर नाच में सदाबिरिछ रानी सारंगा से कह रहा है-
तोहरे कारनवा हो रनिया, राज पाट तेजनी होsss
तेज देहनी सकल जहान जीsss...
नीरज मिसिर आरती का हाथ पकड़ कर मुस्कुरा उठे हैं। आरती देखती है- नीरज के साथ साथ आकास की सब जोन्ही मुस्कुरा उठी है। खेत मुस्कुरा रहे हैं, सड़क मुस्कुरा रही है, दूर खड़ा पीपल का पेंड़ मुस्कुरा रहा है, सारी धरती मुस्कुरा रही है। आरती डर कर नीरज का हाथ पकड़ लेती है, तुम जादू जानते हो का पण्डित??
नीरज कहते हैं- जादू तो तुम्हारी आँखों मे है आरती, उसी में तो फंस के जियान हुए हैं हम...
दस मिनट बाद आरती नाच में अपने जगह पर पहुँची तो सुमनी ने टोका- कहाँ गयी थी रे?
आरती ने डरा हुआ मुह बना कर कहा- अरे दादा हो! हम तो घर जा रहे थे, पर पुल के पास बुझाया कि कवनो पिचाश खड़ा है। डर के मारे हमारा तो जान निकल गया, किसी तरह जान बचा के भागे हैं।
सुमनी ने मुह बना कर कहा- अरे रहने दे! खूब चिन्हती हूँ तुम्हारे बरमपिचाश को...
दोनों मुस्कुरा उठी हैं।
मंच पर रानी सारंगा और सदाबिरिछ गले मिल रहे हैं, पाठ खत्म हो गया।
लाठी के सहारे उठते रमजान मियां रामायन मिसिर से कहते हैं- कुछ भी कहिये पंडीजी, नाच का मजा टीबी सिनेमा में कहाँ....
पूरे नाच में लेखक ने बस इतना देखा है, कि मण्डली में एक भी युवक कलाकार नहीं। सब चालीस के पार हैं। मतलब साफ है, अब कोई नचनिया बनना नहीं चाहता। सम्भव है अगले दस सालों बाद नाच का नाम भी नहीं रह जायेगा।
युग बदल रहा है। अब अर्धनग्न लड़कियों का नाच देखने का फैशन है, कौन देखे लवण्डा का नाच...
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।