सतभामा, रुकमिनी खेल सगरो देखत रहलीं
आँचरा ओढ़ाइ भीतर भवन लइली भँवरी।
अजगुत पति के दुरगति दिन रात करे,
ओ के का खियाईं, का पियाईं, कहाँ का करीं।।
के हो तहार स्वामी, अनुगामिनी हऊ तूँ जेकर
संकर, भोलेनाथ-सा ऊ के, का ह बम लहरी।
हँसलस ठठा के नत-बिनत हो सँका के बोलल
हउवन ऊ लबार उनके गउरा हम ठहरी।।
रसतर रहे वाला का बसुधा रसातल भेजी
कूदिहन जो भूँइ पर त धूरियो ना उड़ीहें।
एतना जानत बाड़ू तबो उनुके के मानत बाड़ू
चुप्पा काहें मरलू हमनिन प जग हँसइहें।।
पुरुष के जाति अंतिम क्रोध ओकर घाति ह
नाहीं जो चुपाईंं त अईंठा के मरि जइहें।
कहली तब रुकमिनी तनि फेर, रार बेसहऽ
देखल जाव ओपर अब हरि जी का करिहें।
सह पा के उड़ल भँवरा, बल पा के भँवरी एने
दूनो जाके एगहि पुहुप प बइठलें।
अलिनी अगराइल तनि अलि तरनाइल मनि
सखि भुनभुनाइल बनि ऊ तनले अइँठलें।
लड़े लागल तिरिया कुसल कला कलहप्रिया
सत्तम से सुर फुर दे पंचम हो गइलें।
चरन प्रहार से धरा धूरि में मिलाइ देब,
मिला दे जो, सुनऽते भृंगराज जी परइलें।
प्रभु पतराखीं पति जाति प परल बा बिपत
कूद जो तूँ ऊफर परु, कहि देले बिया भँवरी।
हमरा बूझाते नइखे, आपन आन सूझाते नइखे
रँउवे अब जानीं के के धरीं रँउवा का करीं।
एतना सुनत कान्ह धइलें गरुन के ध्यान
आग्या दीहीं नाथ कहिं हमसे का ना सँपरी।
सुनु खगपति कूदिहन जब भुँई भृंगपति
जल में डूबा दीऽह तूँ ई दुअरिका नगरी।।
सुनत बचन भृंगराज उड़ल भँवरी ओर
दाऊ खगनायक देखि, छीरसागर सिधरलन।
सावधान उरगारि नील जलज बदन निहारि
सर्वेस पार्थ के दे रानि सोरह सहस पठवलन।
आठ पटरानी पाहि पाहि नाथ कहे लगलीं
ओहि समय पद प्रहार बियाधि के आ लगलन।
डूबली दुअरिका हो जल जले लंका नियर
तबे से समुंदर में भँवर पड़े लगलन।
एकबार प्रेम से बोलिए श्रीवृंदावन बिहारी लाल की जय!
आलोक पाण्डेय
बलिया उत्तरप्रदेश