" रखवनी (राखी) "

Update: 2017-08-07 06:14 GMT
खेत से लौट के जब अनंत के माई और उनकर दीदी अनन्या आईल लोग त अनंत खटिया पर ना रहले. फजीरे उठे के त उ आदि ना रहले ए वजह से उनका माई के तनी चिंता भईल पर इ सोच के की सबेरे के समय बा कही शौच खातिर चल गईल होईहे, उ अपना काम में लाग गईली. रखवनी के त्यौहार भईला के वजह से आज काम भी ज्यादा रहे पर अनन्या के मन में शुबहा होखे लागल. उनका अनन्त के धमकी रह रह के याद आवे लागल. कही सही में उ कवनो गलत कदम त ना उठा लेहलस. त्यौहार के सारा ख़ुशी फुर हो गईल और अनंत के जल्दी से जल्दी घर वापसी में ध्यान लाग गईल. उ अबे ले माई के अनंत के धमकी के बारे में ना बतवले रहली. माई बेमरिया और कमजोर दिल के रहली. कही सदमा से कुछ हो ना जाऊ ए वजह से उ अकसर अनंत के गलती छिपा देस.

एक घंटा बीत गईल पर अनंत वापस ना आयिले. अब लगभग इ तय हो गईल रहे की अनंत गाव में ना रहले काहे से की अनन्या पूरा गाव माई से लुका के खोज आईल रहली. काम से फुर्सत पाके माई के भी वापस धियान अनन्त पर आ गईल. कुछ देर में अनंत के बाबूजी के भी पता चल गईल और फिर धीरे धीरे पूरा गाव के. सब लोग दोहरा के अनंत के खोजल लोग पर उ ना मिलले और फिर उनका घर में रोवन पीटन चालू हो गईल. रह रह के उनकर माई बाबूजी के कोसस की सयान लईका के पिटला के का जरुररत रहल ह. अनंत के बाबूजी अपराधी के तरह चुपचाप सिर झुका के सब सुनत रहले और मन में अफ़सोस भी होखे की काहे लईका पे हाथ उठौवी. कही कुछ क ली त फिर त उनकर पूरा दुनिया ही उजड़ जाई.

 "चाची रउवा रोई मत. अनंत ठीक से बाड़े. उ अपना मामा किहा गईल बाड़े" कुछ समय बाद अनंत के संघतिया सुबशवा आके कहलस.

"तोरा कैसे पता बा?" " ते कैसे जानतारे?"" कईगो ए तरह के सवाल लोग वोइसे एक साथे पूछल.

 "उ हमके बनकटा स्टेशन मिलल रहले ह. उहे कहले ह" उ साफ़ झूठ बोललस जबकि सच्चाई त इ रहे की अनंत के उ खुदे छोड़े बनकटा स्टेशन तक गईल रहे और जब ट्रेन बनकटा से खुल गईल तब उ आईल. उनका घर छोड़ के भागे के योजना उ पहिले ही से जानत रहे और अनंत के कहला पर ही उ इ बात बतावत रहे. अनंत के गाव से मैरवा स्टेशन ४ km पूरब में रहे जबकि बनकटा ६ km पश्चिम. पर गाव के ज्यादा लोग मैरवा से ही ट्रेन पकडे. अक्सरहा मैरवा से बनकटा पहुचे में ही ट्रेन के एक डेढ़ घंटा लाग जाऊ. मैरवा में धरायिला के डर रहे. एही से उ बनकटा से ट्रेन पकडले.

"तू काहे ना रोकल ह?" अनंत के बाबूजी पूछले.

"हमके का मालूम की उ घर से कोहना के जात बाड़े. बस एतना कहुवे की मामा किहा गोरखपुर जातानी. हमके त घरे आके मालूम भईल ह" फिर एगो झूठ बोललस.

अनंत मामा किहा गईल बाड़े जानके उनका माई और दीदी बाबूजी के जान में जान आईल तथा गाव के लोग के भी चैन भईल पर केहू के दिमाग में इ सवाल ना आईल की सुबशवा ओतना सवेरे स्टेशन पर का करत रहल ह. धीरे धीरे गाव के लोग के भीड़ छट गईल और अनंत घर में रह गईल सन्नाटा, दुःख और निराशा. रखवनी के त्यौहार त बिगड़ ही गईल रहे. माई के अब कुछ बनावे के इच्छा ना रहे और अनन्या के लोर रोकले ना रोकाउ. बार बार मन में अफ़सोस होखे की उ काहे ना अनंत के वोही समय मना लेहली जब उ धमकी देले रहले. जवना बहिन के भाई खातिर प्रेम के मिसाल पूरा गाव में दियायु, उहे आज भाई बहन के सबसे बढहन और पावन त्यौहार पे अपना भाई के राखी ना बाध सकत रहली. आज अनन्या से बढ़ के अभागी केहू ना हो सकत रहे उनका बार बार इहे लागे. बचपन से लेके आजतक कभी अइसन ना भईल रहे की उ अपना भाई के राखी ना बंधले होखस.

जहा एने पूरा परिवार शोक में डूबल रहे, अनंत के खुशी छिपले ना छिपाऊ. विजयी भईला के घमंड से उनकर सर उठल रहे. सेटलवा में बैठले त घर छोडला के तनिको अफ़सोस ना रहे. दीदी की मुरझायिल चेहरा के कल्पना क के खूब आनंदित होखस और सोचस की आज देखतानी केकरा के राखी बन्धिहे. आज उनके हमार महत्व समझ में आई. जबले गाड़ी बनकटा स्टेशन से ना खुलल रहे तबले मन में बार बार भय होखे की कही केहू देख लिहल त वापस घरे जाए के पड़ी और दीदी के सबक सिखावे के योजना खटाई में पड़ जाई. साथ ही माई और घर के अन्य लोग के परेशान भईला से तनी चिंता भी रहे. पर जब सुबशवा बनकटा से वापस गईल त उनकर सब चिंता गायब हो गईल तथा इत्मीनान भी हो गईल की उनका गोरखपुर गईला के समाचार घरे मिल जाई.

ट्रेन जैसे जैसे रफ़्तार पकड़त गईल, पिछला कुछ दिन के सगरी बात उनका दिमाग से फिर से ताजा हो गईल.

उनका परिवार में कुल जमा चार जना रहे लोग- माई, बाबूजी, दीदी और उ. उनकर दीदी के उम्र एकयिस साल रहे जबकि उ तेरह साल के रहले. उनकर बाबूजी हाई स्कूल में क्लर्क रहनी और आर्थिक स्थिति कवनो बहुत बढ़िया ना रहे. बाबूजी के तनख्वाह के ज्यादा पईसा माई के इलाज में चल जाऊ और जवन कुछ बचे उ सब परिवार के बाकि जिम्मेदारी खातिर कम पड़े ऊपर से दीदी के शादी भी सर पर रहे. उनका परिवार में पईसा के भले कमी रहे पर खुशहाली के तनिको कमी ना रहे. पूरा परिवार जवन रहे वोइमे ही संतुष्ट और खुश रहे. छोट भईला के वजह से उ सबके दुलरुवा रहले. जेतना भखौती उनकर माई बाबूजी बेटा खातिर कईले रहे लोग ओकरा से ज्यादा अनन्या भाई खातिर मंगले रहली. पाच साल के उमर से ही जब गाव के और लईकी कुल के अपना भाई के रखवनी बांधस देखस त रोवाई फूट पड़े और घर में जाके लुका जास. उ केहू के रखवनी ना बांधस. उनका मन में खाली एक ही इच्छा होखे की भगवान चाहे उनकर सारा खिलौना लेलेस पर एगो भाई दे देस. तीन साल के प्रार्थना के बाद अनंत के जन्म भईल और फिर त अनन्या के दुनिया के सबसे बड़का खजाना मिल गईल. अब उ बी. ए. अंतिम साल में रहली जबकि अनंत ए साल आठवी में गईल रहले. लड़की भईला के वावजूद उ जेतना ध्यान अनंत के रखस ओकर मुकाबला लईका लोग भी ना क पावे. एक बार वीरेंदरा अनंत के एक चांटा मार देले रहे जवना के बदला में अनन्या ओकरा के अइसन कुहली की ओइदीन के बाद उनका डर से गाव के लड़का लोग अनंत से ना अझुराव.

सातवी में अनंत जब स्कूल में पहिला स्थान ले अयिले त खुश होखे बाबूजी उनका खातिर फूटबाल खरीद के लिययिनी. उहा के कहनाम रहे की फूटबाल के खेल से शारीरिक और मानसिक दुनु विकास होखे. उनका गाव में फूटबाल के खेल बहुत पहले से होखे. उनका फूटबाल से पहिले केदारवा और निकेश्वा दुनु मिलके फुटबॉल खरीदले रहल सन. जहा गाव के बाकी लडिका कुल से खेले के शुल्क दू दू रुपया लेले रहलसन, अनंत और सुबशवा से पाच पाच रुपया वसूलल सन. ओ दुनु के ए लोग से ना पटे और एही वजह से ज्यादा पईसा लेले रहल सन. पिछला दू माह से खेल बंद रहे काहे से की फूटबाल के चेपी चेपी उड़ गईल रहे.

अनंत के फूटबाल से सबसे ज्यादा ख़ुशी सुबशवा के भईल. केदारवा और निकेश्वा ए दुनु जाना के बहुत नीचा देखवले रहल सन. अब ए लोग के बारी रहे.

"तह लोग के अगर फूटबाल खेले के बात पाच पाच रुपया देबे के पड़ी." जैसे ही फुटबॉल अयिला के समाचार पाके केदारवा और निकेश्वा फील्ड में अयिल सन, सुबशवा कहलस.

"पाच रुपया..." उ दुनु आश्चर्य से कहल सन.

"हां" सुबशवा घमंड से कहलस.

उ दुनु वापस चल गईल सन. बाकी लड़का कुल टीम बाट के खेले लगल सन. ओकनी पर दू रुपया के शुल्क लागल रहे. अब रोज उ दुनु आवसन और निराश होक लौट जा सन काहे से सुबशवा अनंत के अपना दोस्ती के कसम दे देले रहे की बिना पाच रुपया लेहले ओ लोग के नइखे खेलावे के. एक हफ्ता के बाद केदारवा और निकेश्वा पैसा देबे खातिर तैयार हो गईल सन पर एक हफ्ता के मोहलत मंगल सन जवना पर की अनंत राजी हो गईले हालांकि सुबशवा इशारा से ही सचेत कईलस की एकनी पर भरोसा कईल ठीक नइखे. उ सुबशवा के बात के अनसुना क देहले.

राखी के त्यौहार सामने रहे और हर साल राखी में दीदी खातिर कपडा खरीदाऊ. राखी के बदला में अनंत उहे उपहार दीदी के देस. राखी से ठीक तीन दिन पहिले माई उनके और दीदी के लेके मैरवा बाजार करे गईली. फूटबाल खरीदला के वजह से बाबूजी के पईसा के शकिस्ती रहे और सिर्फ पन्द्रह रुपया ही जुट पावल रहले.

ए साल बाजार में राखी के खास सलवार समीज आईल रहे. ओके देखते दीदी के मन मचल गईल. कई बार हाथ में लेके अलट पलट के देखली. कपडा से इ त अंदाजा हो गईल रहे की इ महंगा बा. माई उनका मन के बात समझ गईली और दाम पूछली. पर दाम सुनके त ओ तीनो जाना के मुह कुम्हला गईल. ओकर दाम पैतीस रुपया रहे. ओ लोग के पास त सिर्फ पन्द्रह रुपया ही रहे. दुकानदार किशोरवा अन्दर के बात समझ गईल. उ जान पहचान के ही रहे.

"पईसा कम होखे त बाद में दे देब. इ बड़ा नीमन कपडा बा. बबुनी पे बड़ा फबी."

"नाही जाए दी सेठ जी."" अनन्या कहली " "हमके दुसर कपडा देखाई. तनी हलुक."

"अरे इ बहुत बढ़िया चीज बा. चली रउवा तीस दे दी. राखी स्पेशल आईल बा इ. रखवनी रोज रोज थोड़े आई." उ कहलस.

माई अनन्या के तरफ देखली और इशारा में ही अनन्या साफ़ मना क देहली. बाबूजी के साफ़ हिदायत रहे की कभी और कही से उधार नइखे लेबे के, भले भूखे ही काहे ना सूते के पड़े. अनंत मायूसी से सब कुछ देखत समझत रहले. बार बार मन सोचस की काश उनका लगे एतना पैसा रहित त आज दीदी के इ मुरझायिल चेहरा ना देखे के पड़ी. कुछ देर सोचत सोचत उनका याद पडल की आज त गाव के लईका कुल के फूटबाल खेले के पयिसा देबे के आज आखिरी दिन बा. हिसाब लगवले त कुल मिला के तीस रुपया होत रहे. मन ही मन गिल

हो गईले. फिर सोचले की अबे कुछु ना बताएब. पईसा लेके खुदे आएब और इ कपडा खरीदेब. आज तक दीदी के अपना लग से कुछु ना देहनी जबकि दीदी कही से भी खाली हाथ ना आवेली. हमेशा कुछ ना कुछ उनका खातिर जरूर लियावेली. राखी के दिन जब दीदी के इ देब त उनका ख़ुशी के ठिकाना ना रही.

एतना देर में एगो पन्द्रह रुपया के कपडा माई और दीदी पसंद क लेले रहे लोग. पैसा देके उ लोग कपडा लिहल

और घरे वापस लौट गईल.

शाम के फील्ड में केदारवा और निकेश्वा के छोड़ के बाकी लईका कुल पईसा दे देहल सन. कुल मिलाके बीस रुपया जमा हो गईल रहे. उ दुनु एक दिन के और मोहलत मंगलसन. अनंत के खीस त बरल पर उ एक दिन के मोहलत दे देहले. अबे उनका लगे दू दिन के समय और रहे. रखवनी दू दिन बाद रहे. पईसा काल्ह मिलला पर उनका लगे एक दिन बचत रहे. परसों जाके कपडा खरीद लेते और फिर ओकरा अगिला दिने रखवनी रहे.

           अगिला दिने सबेरे से उनकर ध्यान पईसा पर ही रहे और ओकरा इन्तजार में एक घंटा पहिले ही फील्ड पहुच गईले. बीस रुपया उनका बगली में ही रहे. पर इ का केदरवा और निकेश्वा के त कवनो अता पता ही ना रहे. एक घंटा बीत गईल पर उ फील्ड में ना आईल सन. कुछ देर बाद लक्ष्मीकांता आके बतवलस की उ दुनु त मंदिर के पीछे जुआ खेलतार सन.

उनका बड़ा क्रोध आईल. सुबशवा के लेके उ मंदिर पहुच गईले पर उ दुनु निर्लज्ज त पईसा देबे से साफ़ मना क देहल सन. अनंत के त दिन में ही तारा नजर आवेलागल. सामने दीदी के मुरझायिल चेहरा और माई के बेबसी याद आ गईल. याद आवे लागल की ओ कपडा के लेके दीदी के चेहरा पर केतना प्रसन्नता झलकत रहे. अब कवानिगा उ कपडा खरीदिहे. कर्जा लेबे के त सवाल ही ना रहे. अब उनका संकल्प के का होई. सुबशवा भी बार बार आँख देखावे की हमार कहना ना मानके ए धोखेबाज कुल पे भरोसा कईल अब भोग.

उ काफी देर तक जडवत रहले. मन में द्वन्द चलत रहे. उनका दस रुपया के जरुरत रहे और जुवा सामने होत रहे. बीस के तीस करे के इहे एकमात्र रास्ता रहे. अगर जुवा में हार भी हो जाऊ त कवनो बात नइखे. इ बीस रुपया कवना काम के जब दीदी के कपडा ही ना खरीदायी. पर अब उ जुवा खेलिहे. बचपन से जवन सिख घर से मिलल रहे ओके भुला दिहे. गाव में समाज में उनकर कम उम्र में ही एतना आदर रहे जबकि जुवा खेलेवाला के त लोग घृणा से देखे. गाव में उ छटूवा रहल सन. त का उ समाज में अपना के गिरा दिहे. एक तरफ अच्छा बुरा के कशमकश त दूसरा तरफ दीदी के सूट लेके चेहरा के ख़ुशी. काफी देर तक मन में लडाई चलल पर अंत में दीदी के प्यार खातिर अच्छाई हार गईल और बुराई जीतल. उ जुवा खेले के तय क लिहले. वैसे भी उनका जुवा रोज कहा खेले के रहे. आज दस रुपया जीत गईला के बाद त एने से कभी भुला के भी ना गुजरेब, उ तय क लेहले. सुबशवा के कोना में ले जाके पूरा बात समझवाले और उहो आपन सहमती दे देहलस. उनका बात के उ कहा काटे.

"तू जुवा खेलब?" केदारवा के त विश्वास ही ना भईल जब उ दू रुपया के सिक्का निकाल के खेले के देहले .

" "हूँ."" अनंत अपना झेप के दबा के कहले.

केहू आगे सवाल ना कईल और जुवा चालू हो गईल.

चोर रोज चोरी करेला पर ना पकडाला, डाकू रोज डाका डालेला पर ना पकडाला, पर जब एगो मजबूर आदमी कवनो गलत काम करेला त उ जरूर धराला. अनंत के साथे भी उहे भईल. दीदी के सहेली किरनी मंदिर से लौटत समय उनके देख लेहलस. पहिले त ओके विश्वास ही न भईल पर आँख के देखल भी कैसे झूठ हो सकेला. उ जाके दीदी से कह देहलस और फिर दीदी दौड़त अईली. अनंत जैसे ही पैसा फेकले दीदी उनकर हाथ पकड़ लेहली. अनंत के त सिट्टीपिट्टी गुम हो गईल. जुवा खेलत पकड़ा जयिहे एकर त लेशमात्र भी शंका ना रहे.

दीदी उनके घसीटत घरे ले अयिली. रास्ता में कुछु बोले चहले पर उ उनकर बात ना सुनली. सारा रास्ता अनंत के इहे डर रहे की अगर दीदी बाबूजी के बता दिहे तब त उनका मार से दयिब भी ना बचा सकत रहले. पर मन में इ भरोसा भी रहे की दीदी घरे कुछु ना कहिये. माई के ममता एक बार कठोर हो जाऊ पर दीदी त भुला के भी उनके कभी कुछ कड़ा ना बोलली. आज तक उ उनकर कवनो गलती घरे नईखी बतवले फिर आज काहे बतायिहे.

घरे पहुचते ही अनंत के इ विश्वास टूट गईल. दीदी बाबूजी से जुवा खेले के बात कह दिहली. बाबूजी त खीस से बरगां गईनी. जुवा उनकर लईका खेली इ त गलती से भी ना सोचल जा सकत रहे. अनंत के बिना कुछ बोले के मौका दिहले धुनाई चालू क दिहनी. उहा में पिटाई के जबाब में उ बस माई रे, दादा रे ही कह पवले. उनका के बचावे केहू ना आईल और जब बाबूजी के इत्मिनान हो गईल की मन भर भोजन दिया गईल बा तब उहा के थमनी.

बाबूजी से मार खाईल कवनो नया बात ना रहे, माई के चुप रहल भी कवनो नया बात ना रहे पर दीदी के चुप्पी, इ त एकदम नया और अप्रत्याशित रहे. एहू से बड़का अचम्भा रहे की अनंत के आज खुद अनन्या पिटववले रहली. गाव में भी सुनके केहू इ ना पतियायित.

दीदी के ए कृत्य से अनंत के दुःख के साथे ए बात के गुस्सा रहे की उ एक बार भी उनकर जुवा खेले के वजह ना जनली ह. उनका ख़ुशी खातिर उ अइसन गलती कईले रहले और उ तनी जाने के सोचली तक ना. आज उनकर दीदी से प्यार के भ्रम टूट गईल. खीस आदमी के अज्ञानी बना देला और इ बात आज अनंत पर चरितार्थ होत रहे. अब उनका दीदी के सारा प्यार ढोंग लागत रहे.

दीदी त उनके सजा दियवा देले रहली पर उ सजा पाके का चुप रहिये. एकदम नाही. दीदी से बदला लियाई. परसों रखवनी बा और एकरा ले बढ़िया अवसर कहा मिली. जब उ राखी में हमके ना पयिहे त उनकर नया कपडा पहिने के सारा ख़ुशी गायब हो जाई. उ तय क लेहले की राखी में मामा किहा भाग जाएब.

" "बड़ा नीमन कयिलू ह. तहरा करेजा के ठंढक मिलल ह ना."" अनंत अन्दर जाके दीदी से व्यंग्य कसले " "एहू से बड़का मजा रखवनी के दिने आई.""

" "का मतलब?""

" "मतलब रखवनी के पता चल जाई. वैसे तू वोइदीन अपना के नया भाई खोज ल त ज्यादा बढ़िया रही.""

अनन्या के अब कुछ शक भईल.

" "तू हमार बात सुन."" उ समझावत कहली पर अनंत उनकर बात ना सुनके बाहर भाग गईले. रात से लेके अगिला दिन तक अनन्या कई बार अनंत से बात करे के कोशिश कईली पर उ उनकर जबाब ना देस. शाम के गेना खेले फील्ड में पहुचले त घर से भागल पक्का हो गईल रहे. सुबशवा के बतवले त उ ए योजना के विरोध कईलस पर जब उ दीदी के सबक सिखावे के बात कहले त उ मान गईल. ओकरा भी बड़ा क्रोध रहे की जवना दीदी खातिर ओकर संघतिया जुवा खेले पर मजबूर हो गईल ओके एतना बेरहमी से पिटववली. होत भिन्सहरा भाग के सेटलवा पकडे के तय हो गईल.

चैन पुल्लिंग से जब ट्रेन के कराहत सिटी दू तिन बार बाजल तब अनंत वापस वर्तमान में आ गईले. बाहर झकले त ट्रेन नोनापार पार करत रहे. एकर मतलब केहू नोनापार में छूट गईल रहे और ओके चढ़ावे खातिर ट्रेन के चैन खिचायिल रहे. गनीमत रहे की ट्रेन जल्दिये खुल गईल नात वोइजा ट्रेन रुकला के कवनो समय सीमा ना रहे. वैसे त रेलवे के समय सारिणी के अनुसार स्टापेज दू मिनट के रहे पर अगर केहू खाना खात रहे, चाय पियत रहे, मैदान करत रहे या गाई भईस दुहत रहे, जले काम निपट ना जाऊ, ट्रेन के इन्तजार करे के पड़े.

सेटलवा आठ बजे भटनी पहुचल और अनंत के भूख लाग गईल रहे. बनकटा स्टेशन के खाईल एगो पाँव रोटी और चाय केतना रोकित. उ स्टेशन पर उतर गईले खाए खातिर. ट्रेन पन्द्रह मिनट रुके ए वजह से छुटला के टेंशन ना रहे.

कुछु कीने से पहिले सोचले की एक बार पईसा देखली. पर्स निकालत समय बगली से एगो मोड़ल कागज के पन्ना निचे गिर गईल. पर उ त कवनो पन्ना ना रखके रहले. पन्ना उठा के ओके खोलले.

इ त दीदी के राइटिंग रहे. उत्सुकता और बढ़ गईल. खाए के बात भुला के उ पढ़े लगले.

 "प्रिय बाबू,

हम जानतनी की तू हमसे रुसल बाड़. माई बाबूजी के मार के तहरा कवनो माख ना होला पर दीदी अइसन करिहे इ तहके बर्दाश्त नइखे होत. पर हमु मजबूर रहनी ह. पहिले के तहार सारा गलती अइसन रहली सन जवना पर की पर्दा डालल जा सकत रहे, ए वजह से हम पर्दा डलनी पर इ त गलती ना होखे अपराध रहल ह. अपराध के शुरू में ही सजा मिल जाऊ त उ कभी ना बढ़ेला नात फिर उ बड़ा बन जाला और फिर ओके रोकल असंभव होला. अपराध चाहे मजबूरी में कईल जाऊ या शौक से उ अपराध ही होला. ओकर कारन ढूंढल व्यर्थ होला. बहुत सारा अपराध पहली बार मजबूरी में ही कईल जाला पर बाद में उ पेशा या शौक बन जाला. शराबी पहिला बार शराब शौक से पियेला और फिर शौक लत बन जाना. चोर पहिला बार चोरी मजबूरी में करेला पर बाद में इ पेशा बन जाला.

हमके नइखे मालूम की तू जुवा मजबूरी में खेलल रहल ह या शौक से पर हमरा समझ से तहरा लगे कवनो मजबूरी नइखे. आज गलत रास्ता पर पडल कदम के अगर सख्ती से ना रोकल जाऊ त उ बार बार ओही रास्ता पर जाई. एही वजह से हम आज तहरा गलती पर पर्दा ना डालनी ह. हम तःके कैसे बताई की बाबूजी के एक एक डंडा पर हम हजारन आंसू रोवनी ह.    

 हम जानेली की तू बड़ा जिद्दी हउव और तू जवन एक बार ठान लेल उ पूरा करेले. ए बेरी राखी के तू हमसे शायद राखी ना बन्ध्वयिब. इ हमार खातिर मौत के सजा से कम ना होई पर फिरभी हमरा इ मौत मंजूर बा पर केहू हमरा भाई के जुवारी कहे इ हरगिज मंजूर नइखे. होखे सके त हमके माफ़ क दिह."

तहार दीदी."

अंतिम लाइन पढ़त पढ़त आँख में लोर आ गईल.

पत्र पर तारीख परसों के रहे. मतलब की इ चिठ्ठी दीदी शाम के पिटाई के बाद लिख के रखले रहली.

अनंत के सारा गुस्सा गायब हो गईल. बचपन से लेके अबतक दीदी के दुलार याद आवे लागल. कैसे दीदी खुद अपना इच्छा के गला घोट के उनका खातिर हमेशा कुछ न कुछ लेके आवस. घर में भी कवनो अच्छा चीज बने त पहिले ज्यादा से ज्यादा उनका के खियावस. उनका सलामती खातिर साल में केतना ही बरत रखस- भैया दूज, बहुरा, पीडिया. एक साल त बहुरा में पोखरा में डूबत डूबत बचली पर तबो आपन बरत ना तोडली. एतना प्यार दुनिया में के करी. दीदी सही ही त लिखले बाड़ी. जुवा खेलल कवनो मजबूरी त ना रहल ह. अगर पईसा कम पड़ गईल ह त घरे जाके उ कपडा वापस क के और इ पईसा मिलाके उ कपडा खरीदा जाईत खाली सरप्राइज ही न, ना रहित. अगर कपडा नहियो खरीदायित त कुछु ना बिगडित पर जुवारी के ठप्पा लागला से जवन जगहसाई और बेइज्जती होईत ओके त भरपाई दस जनम में भी ना होईत. एक बार इज्जत गईल त वापस ना आयित. पूरा गाव के लोग केतना सम्मान से उनका और पूरा परिवार के देखेला. इ बात उ पहिले काहे ना सोचले ह. अब उनका बाबूजी के मार के कवनो माख ना रहे ना दीदी से शिकायत.

घडी पे नजर डलले त साढ़े आठ होत रहे. सेटलवा जाए के सिटी बजावत रहे और फिर धीरे धीरे सरके लागल पर अनंत अपना जगह से ना उठले. आधा घंटा में मौर्या आवत रहे. मने साढ़े नौ तक मैरवा पहुच जयिते और फिर दस, साढ़े दस ले घरे. भूख कबके गायब हो गईल रहे.

नौ बजे मौर्या आईल और उ बिना टिकट लेहले वोइमे बईठ गईले. मन में इहे इच्छा रहे की इ उड़ के जल्दी पहुच जाऊ. संयोग ठीक रहे की t.t.e. से भेट ना भईल.

मौर्या ठीक साढ़े नौ बजे मैरवा पंहुचा देहलस. स्टेशन से बाहर निकलले त किशोर सेठ के दुकान खुल गईल रहे और उहे सूट टंगल रहे जवना के ख़रीदे के उ सोचले रहले. जेब में हाथ डलले त सतरह रुपया बचल रहे. दू रुपया ट्रेन के टिकट में खर्च भईल रहे और एक रुपया बनकटा में चाय और पावरोटी खायिला में. मन में आईल की चल के एक बार सूट के दाम पूछी का, कही कम हो गईल होई पर फिर सोचले की कम भो होखे सतरह रुपया थोड़े भईल होई.

 "बाबू सूट ले जाए के बा का? एक पिस बचल बा. चाही त सताईस में देब."" उनका के दूर से ही सोचत देख किशोरवा आवाज लगवलस.

"नाही हमरा लगे ओतना पईसा नइखे."" अनंत बेबसी से कहले.

 "अच्छा बोहनी के टाइम बा, चल पच्चिश ही देद."

 "हमरा लगे त सतरहे रुपया बा. अगर देबे के बा त बोल अन्दर आई." अनंत नाउम्मीदी से कहले.

"काहे मजाक करतार बाबू. पैतीस के सूट पच्चीस में देतानी. अब ऐसे कम ना होई."

"ठीक बा जाए द." अनंत मायूसी से कहले और दूसरा तरफ मुड गईले.

मुश्किल से उ दस कदम आगे गईल होईहे की किशोरवा आवाज देहलस.

"अच्छा आव लेल. त्यौहार के चीज बा. एगो कपडा में नाहीये कमयेब त का बिगड़ी पर तहार मन त रह जाई."

अनंत के त विश्वास ना होत रहे की सूट किशोरवा सतरह में ही देता. पर जब पैक क के देहलस त यकीन भईल. आज लागत रहे की दुनिया के सबसे महंगा चीज बा उनका लगे. फर्लांग भरत उ मैरवा से गाव की ओर बढ्ले. रास्ता में पडोसी गाव के एगो साइकिल वाला मिल गईल. दस मिनट में गावे पहुच गईले.

  असोरा में माई बाबूजी और दीदी मुह लटका के बैठल रहे लोग. दीदी उनके दूर से ही देख के चिल्लायिली और दौडली " "माई ! बाबू आ गईले.""

उ दुवार पे जाके अनंत के अकवारी में भर लेहली. अनंत के मुह से कवनो शब्द ना निकलल बस उ हाथ के कपडा दीदी के थमा देहले. वोइदीन वाला सूट देखके अनन्या के लोर झर झर बहे लागल और अनंत के भी. लोर के साथे सारा गिला शिकवा भी बह गईल. भाई बहिन के प्यार देख के माई बाबूजी के आँख भी नम हो गईल. फिर अनंत जुवा खेलला से लेके आज तक के सारा बात बतवले. अनन्या के भाईप्रेम के चर्चा पूरा गाव करे पर आज अनन्या के छोट भाई के सामने आपन प्रेम बौना लागत रहे.

 आज ए घटना के पच्चीस साल बीत गईल बा और माई बाबूजी ए दुनिया में नइखे लोग पर अनन्या और अनंत के प्रेम ओतना ही गहरा बा. अनन्या अब दिल्ली में रहेली जबकि अनंत गाव में ही बस गईल बाड़े पर हर रखवनी में यात उ दिल्ली जाले या अनन्या गावे आवेली. पर भाई बहिन के प्रेम से दू आदमी के शिकायत रहेला- एगो अनन्या के पती और दुसर अनंत के पत्नी. दुनु जाना के एकही शिकायत रहेला की भले ही वो लोग के सब बात ना बतावल जाऊ पर दुनु भाई बहिन हर दुःख सुख एक दूसरा से जरूर बतीयावेला.


धनंजय तिवारी

Similar News

गुलाब!