लुटे पिटे से जब दोनों बाप बेटी थाने में घुसे तो दरोगा साहब कुर्सी के पीछे सर टिकाये और टेबल पर रखी जनशिकायत की फाइलों पर जूता समेत पैर रख कर सो रहे थे। बाप ने डरते डरते आवाज दी, सर...
दरोगा साहब गहरी नींद में थे, उधर से कोई जवाब नही आया।
बाप ने अबकी तनिक जोर से आवाज लगाई तो वे भड़क कर उठे और दांत पीसते हुए बोले- क्या है?
- जी सर, एक एफ आई आर दर्ज करानी है।
दरोगा ने आँखे मीचते हुए कहा- क्यों, कौन सा पहाड़ टूट गया?
- सर उसने मेरी बेटी का बलात्कार किया है।
हैं....? दारोग़ा साहब तनिक उछल पड़े। उन्होंने ध्यान से लड़की की ओर देखा और बुदबुदाते हुए बोले- किसने कर दिया? उसको जानती हो?
- सर गांव का ही लड़का हैं। स्कूल जाते समय मुझे रोज रास्ते में परेशान करता था, आज स्कूल से वापस आ रही थी तो.... लड़की अब दुपट्टे से मुह ढांप कर रोने लगी थी।
दारोग़ा ने कुछ देर सोचा और बाप से कहा- रिपोर्ट लिखा कर क्या करोगे? क्या मिल जायेगा?
- सर उन गुंडों को उनके किये की सजा मिलनी ही चाहिए। उन्हें कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए।
- और जो तुम्हारी इज्जत का फालूदा बनेगा उसका क्या? मेरी मानों तो चुप रहो, केस वेस मत करो बड़ी बदनामी होगी। बेटी का मामला है, बाद में उससे शादी कौन करेगा?
-अरे कैसी बातें कर रहे हैं सर, मेरी बेटी का बलात्कार हुआ है, कैसे चुप रह जाऊं मैं? आप अपना काम करिये और मेरा केस दर्ज करिये।
-अरे केस तुम्हारे कहने से दर्ज हो जायेगा क्या? आराम से समझाने पर बात समझ में नही आती है क्या? क्या सबूत है तुम्हारे पास कि उसने तुम्हारी बेटी के साथ बलात्कार ही किया है?
बाप कुछ बोलता इससे पहले पीछे से सिपाही जी बोल पड़े, अरे सब खेल है सर! आज कल की लड़कियां ब्वायफ़्रेंड बनाती फिरती हैं। राय से सब कुछ करती फिरेंगी और तनिक बात बिगड़ जाय तो थाने में रेप का केस करने चली आती हैं। भगाइए सर इनको....
दारोग़ा ने बात आगे बढ़ाई- सुन लिया। बेटी के चक्कर में न पड़ो, ये आजकल की लड़कियों के चोंचले तुम न समझोगे। समझदार आदमी हो, घर जाओ।
बाप ने फिर आवाज लगाई, सर हमारे ऊपर दया कीजिये, हमारा केस लिख लीजिये। सोचिये अगर आप की बेटी होती तब.......
-अबे दिमाग ख़राब है क्या बे तेरा? हमारी बेटी का नाम लिया तो गांड में डंडा डाल देंगे हरामखोर। जा नही लिखता तेरा केस, जो ऊंखाड़ना है उंखाड़ ले।
बाप बेटी की हिम्मत टूट गयी थी। वे सर झुकाये धीरे धीरे थाने से बाहर निकल आये।
×××××××××××××××××××××××××××××
उन्हें याद आया, चुनाव के दिनों में एक नेताजी जनता के हितों के लिए जान दे देने की बात कर रहे थे। उन्हें यह भी याद आया कि नेता पुलिस को अपनी जेब में, और कभी कभी तो अपने जूते की नोक पर रखते हैं। उन्हें उम्मीद की किरण दिखी, और दोनों बाप बेटी उसी उम्मीद की किरण का पीछा करते करते नेता जी के बंगले में उनके सामने पहुच गये। नेता जी ने पूछा- क्या बात है?
-जी हमारा बलात्कार हुआ है?
नेताजी भौचक होते हुए बोले- हमारा मतलब?
- जी हुआ तो मेरी बेटी के साथ है, पर अब लगता है जैसे हम सब की इज्जत लूटी गयी हो।
कुछ देर तक सोच कर नेता जी बोले- आपका नाम क्या है, मेरा मतलब आपकी जाति...
- जी भूमिहार हूँ।
- और वह गुंडा?
- जी वह मुसलमान है।
- देखिये बाबू साहेब आप तो घर के आदमी ठहरे, इस केस में कुछ है नही। होगा कुछ नहीं उल्टे पूरी दुनिया के सामने नाक कटेगी। मेरी मानिये तो बात ख़त्म कीजिये। अपने ही हाथों अपनी पगड़ी उछालना ठीक नही है।
- लेकिन नेताजी उसने मेरी बेटी की जिंदगी बर्बाद कर दी है, आप हमारा साथ दें तो उस दरिंदे को सजा मिल जायेगी।
- ओहो, आप बात समझ नही रहे। इस केस में कोई दम नहीं। आप दलित वगैरह होते तो कोई और बात होती। ऊपर से वह मुसलमान है। अगर मैं आपके साथ खड़ा हो कर ज्यादा शोर सराबा मचाऊंगा तो पार्टी भी मेरे खिलाफ हो जायेगी और अगले चुनाव में टिकट भी नही मिलेगा। आप जानते ही हैं कि अल्पसंख्यकों की बात में कोई जल्दी टांग नही अड़ाता। मेरी मानिये तो........
कुछ देर में दोनों बाप बेटी उस बंगले के बाहर सड़क पर खड़े थे।
××××××××××××××××××××××××××××
वापस घर की और लौटते बाप की नजर शहर के सबसे लोकप्रिय अख़बार के दफ्तर पर पड़ी, कुछ ही देर में दोनों अपने थके क़दमों के साथ दफ्तर के अंदर थे।
पता नहीं वह किस पद का पत्रकार था जिसने पूछा- क्या बात है सर?
-जी इस देश का बलात्कार हुआ है, क्या आप हमारी मदद करेंगे?
- क्या मतलब?
-जी मेरी बेटी के साथ मेरे पड़ोस के ही एक दरिंदे ने बलात्कार किया। मैं मदद के लिए दर दर भटक चूका। इसी बीच दो बार वह मुझे रास्ते में बेख़ौफ़ घूमता दिख चूका। क्या यह इस देश का बलात्कार नहीं?
- आपने केस दर्ज कराया?
- गया था थाने, मुझे समझा कर वापस भेज दिया गया।
- क्या आप दलित हैं?
-नहीं।
- अल्पसंख्यक?
- नहीं।
- फिर तो सवर्ण हैं। आपकी कोई मदद नही करेगा सर, खुद कुछ कर सकते हों तो करिये। हम भी कुछ नही कर सकते।
- पर आपलोग तो पत्रकार हैं, आप लोग ही तो हमारी आखिरी उम्मीद हैं। आप हमारी मदद करें तो हम उस दरिंदे को सजा दिलवा सकते हैं। प्लीज हमारी मदद कीजिये ना। बाप के हाथ जाने कैसे जुड़ गए थे।
- आप समझने की कोशिश कीजिये सर,पत्रकारिता का वह दौर कबका गुजर गया। हम सब भी किसी के नौकर हैं,अपने मालिक की इच्छा के गुलाम। हमे आपके साथ पूरी हमदर्दी है पर...............
कुछ देर में वे फिर सड़क पर खड़े थे।
×××××××××××××××××××××××××××××
घर पर बेटी से आँख चुराने का बार बार प्रयास करता बाप अंदर ही अंदर मर रहा था। अचानक बेटी ने कहा- पापा मैं अभी आ रही हूँ।
बाप ने सर झुकाये ही पूछा- कहाँ से बेटा?
- अफरोज के घर से।
भौंचक बाप ने सर उठा कर देखा और समझना चाहा, तब तक बेटी हाथ में एक बोतल लेकर निकल पड़ी थी। बाप ने आवाज लगाई- बेटा अकेले मत जाओ।
बेटी ने जाने किस आवाज में जवाब दिया- अब कुछ नही होगा पापा, आप निश्चिन्त रहिये।
अफरोज के घर का दरवाजा उसी ने खोला। इससे पहले कि वह कुछ समझता वह एसिड से नहा चूका था। उसकी चिल्लाहट सुन कर उसकी माँ और भाई निकले तो उनके चेहरे पर भी एसिड बरस गया।
उन्हें जलता छोड़ कर बेटी घर लौट आई।
बाप बेटी घंटे भर के भीतर फिर थाने में थे।
×××××××××××××××××××××××××××××
अगले दिन कोर्ट में कटघरे के अंदर खड़ी बेटी से जज पूछ रहा था- आपको कानून अपने हाथ में लेने की क्या जरूरत थी?
- जज साहब, क्या आपको लगता है कि आपका कानून मुझे न्याय दिला पाता?
जज थोडा झिझके, बोले- हम मानते हैं कि कुछ केसेज में कानून से अपराधी छूट जाते हैं पर....
- कुछ केसेज में नही जज साहब, आपके कानून में इतनी सामर्थ्य नही कि वह किसी कमजोर को न्याय दिला सके, यह आप भी जानते हैं।
- फिर भी आपको सिस्टम पर विश्वास रखना चाहिए था।
- मैं पुरे सिस्टम के आगे घूम चुकी हूँ जज साहब। पुलिस, नेता से लेकर लोकतंत्र के कथित चौथे खम्भे तक। कमजोर का साथ कोई नही देता।
- जो भी हो, आपको तीन लोगों को एसिड से जला कर मारने के केस का सामना करना होगा।
लड़की मुस्कुराई, कहा- जिस कानून के पास रोज हजारों लड़कियों से होते बलात्कार को रोकने की सामर्थ्य नहीं, ना ही अपराधी को दंड देने का बल हो, उसके पास मुझ पर केस चलाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं।
लड़की ने पास खड़े पिता के हाथ से बोतल लिया और बोली- मैं जा रही हूँ, मेरे पास कोई आया तो उसके ऊपर एसिड फेंक दूंगी। आप चाहें तो पुलिस को मेरे ऊपर गोली चलाने का आदेश दे सकते हैं।
लड़की कठघरे से निकली और कोर्ट से निकल गयी। पुलिस उसे पकड़ने का प्रयास करती पर जाने क्यों कचहरी के सारे लोग उसके पीछे दीवाल की तरह खड़े हो गए थे।
उसी रात को बाप बेटी शहर छोड़ कर चले गए। इससे ज्यादा लड़ने की हिम्मत नही थी उनके पास। वे इस देश के आम बाप-बेटी थे।
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।