आलोक पाण्डेय का मिजाज मस्त है। इतने खुश हैं कि सुबह से चौदह बार खा चुके हैं। पंद्रहवीं बार जब उन्होंने अर्धांगिनी से खाना माँगा, तो पिनकी हुई देवी ने कहा- घर में सिवाय बेलन और झाड़ू के और कुछ खाने लायक नहीं बचा, कहो तो वही दे दूँ?
पर आलोक पाण्डेय को आज ऐसी वक्रोक्तियों से भी कोई भय नहीं, वे जैसे हवा में उड़ रहे हैं। वे इतने खुश हैं, जितने शुशील मोदी नितीश और लालू का गठबंधन टूटने पर नहीं हुए। ख़ुशी के मारे कभी हनी सिंह का गीत बजा कर भरतनाट्यम करने का प्रयास करते हैं, तो कभी भीमसेन जोशी के गाये मालकौंस पर ब्रेक डांस करते हैं। सुबह से शाम हो आई पर उन्होंने अब तक अपने बारहमासी खजुअट को हाथ तक नहीं लगाया, जैसे वे अपनी सारी पीड़ा भूल गए हैं। कभी गाते हैं, कभी नाचते हैं, कभी मुस्कुराते हुए पत्नी का पैर छू कर कहते हैं- परनाम डार्लिंग, आई वांट टू मैरी विथ बबिता, विल यु गिभ मी द परमिशन?
पर जाने क्या सोच कर अर्धांगिनी चुप ही रह जा रही हैं।
असल में आलोक पाण्डेय की इस भीषण ख़ुशी का राज यह है कि दो दिन पहले सिद्धार्थ प्रियदर्शी ने फोन कर के बताया, कि मैंने बबिता पति बीडियो को मुंबई में देखा है। अब आलोक के लिए इससे बेहतर समय और कब आता, सो उन्होंने तड़ाक से डॉ नित्यानंद शुक्ला को फोन कर के बलिया बुलाया और बबिता से मिलने के मंसूबे बांधने लगे।
कहते हैं, प्रेम मनुष्य को गदहा बना देता है। आलोक के चक्कर में बीडियो के हाथ से दो-दो बार, सौ-सौ कोड़ा खा चुके नित्यानंद तीसरी बार भी बबिता की बहन से मिलने के लिए बेचैन हो उठे, और बलिया का टिकस कटा लिया। पत्नी ने एकाएक गांव जाने का कारण पूछा तो डॉक्टर ने घबड़ाया सा मुह बना कर कहा- मेरे बचपन के मित्र की किडनी में फ्रेक्चर हुआ है। उसी की फिजियोथेरेपी करनी है। पत्नी ने भी जाने क्या सोच कर परमिशन दे दिया।
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शाम का समय है, डॉ शुक्ला आलोक पाण्डेय के घर पहुँच चुके हैं। दोनों ने मिल कर ढाई किलो रसगुल्ला गपक लिया है, और अब बबिता के घर निकलने की तैयारी में हैं। डॉ शुक्ला बार बार आलोक से कहते हैं- जल्दी निकलिए न भइया, दुकाहें मन कर रहा है कि फुर्र से उड़ के चहुँप जाएँ, पर आलोक अभी सजने में व्यस्त हैं। आधे घण्टे के बाद जब आलोक घर से निकलते हैं, तो उनको देख कर डॉ शुक्ल की आँखे फट जाती हैं। हरे रंग का कुरता, पैर से एक बिता छोटा पैजामा, कंधे पर आसामी गमछा, आँख में बरेली का सूरमा और माथे पर जालीदार टोपी। नित्यानंद बिहार की जनता की तरह भकुआ के कहते हैं- ई कवन भेख है देवता?
आलोक पाण्डेय मुस्किया के कहते हैं, चलो चलो, ज्यादा जानने का कोशिश जन करो।
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एक घण्टे बाद जब आलोक पाण्डेय की कार बबिता जी के दरवाजे पर रुकी, तो आलोक का चेहरा ऐसे चमक रहा था जैसे हज करने आये हों। गाड़ी से उतर कर उन्होंने डोरबेल को ऐसे दबाया जैसे बीडियो का टेंटुआ दबा रहे हों। लगातार बेल दबाते रहने पर आधे मिनट के बाद हरी साड़ी में लिपटी बबिता ने निकलते ही कहा- कौन है बे? अबे उंगलियां टूट गईं है क्या जो घण्टी से हट नहीं रहीं? जा हमें कोई पंचर नहीं बनवाना।
आलोक पाण्डेय ने रोनी सूरत बना कर कहा- अरे तनि ध्यान से देखो बबिता, हम पंचर बनाने वाले नहीं हैं, हम आलोक नु हैं।
बबिता ने ध्यान से देखने के बाद आश्चर्य से कहा- आलोक जी? अरे यह क्या भेख बना लिए महाराज?
आलोक ने मुस्किया के, और अपनी आवाज को हद दर्जे तक रोमांटिक बना के कहा- लाल सलाम कामरेड।
बबिता ने आश्चर्य से ही कहा- अरे वो सब तो ठीक, पर यह भेष कैसा बना लिए? अलकायदा जोआइन कर लिए का?
आलोक ने अपनी आवाज को करुण बना कर कहा- मैं तो बस यही बताना चाहता हूँ कि यदि अब भी तुमने मुझसे बेरुखी दिखाई तो मैं इस्लाम स्वीकार कर लूंगा।
बबिता मुस्किया उठी। उसने आलोक का हाथ पकड़ा और खींचते हुए घर में ले गयी।पांच मिनट में उनके आगे ढाई-पौने तीन किलो मिठाईयां पड़ी थीं, और दोनों भकाभक भकोस रहे थे। नित्यानंद ने पचास रसगुल्ले खाने के बाद आलोक के कान में पूछा- भइया, बबिता जी की बहन नहीं दिख रही? तनिक पूछिये न।
आलोक मुस्किया उठे। उन्होंने बबिता से पूछा- और बबिता, बीडियो साहब मुंबई से कब वापस लौट रहे हैं?
बबिता ने चकित होते हुए कहा- हांय? वे मुंबई कब गये? उन्हें तो आज रोमियो स्क्वायर्ड का हेड बनाया गया है। वे तो बलिया में ही हैं।
एकाएक आलोक और नित्यानंद को ऐसा लगा जैसे उनका पेट डाइरेक्ट हो जायेगा। आलोक ने कांपते हुए नित्यानंद की तरफ देखा तो नित्यानंद भड़क उठे। बोले- मैं पहले ही कहता था कि इस दुष्ट मुम्बइया के चक्कर में न पड़िये, यह कम्बख्त हमारी जान लेने पर तुला हुआ है।
आलोक उनकी बात को अनसुना करते हुए झट से उठे और कमरे से बाहर निकलने लगे, तभी उन्हें बीडियो का स्वर सुनाई दिया-" बबिता, कहाँ हो डार्लिंग? आओ यह मिठाई ले जाओ। मुझे आज रोमियो स्क्वायर्ड का हेड बनाया गया है, तुम देखो मैं किस तरह शहर के मजनुओं का पाकिस्तान सुजाता हूँ।"
बोलते बोलते बीडियो कमरे में घुसा, और अद्भुत भेषधारी आलोक को देखते ही जैसे जड़ हो गया। एक मिनट तक टकाटक देखने के बाद जब उसने आलोक को पहचाना तो राक्षसों की तरह हँसने लगा। डेढ़ मिनट तक लगातार हँसने के बाद उसकी मुद्रा बदली और उसने गरज कर कहा- क्यों बे मास्टर, तू अब तक नहीं सुधरा? ठहर जा तू, बड़े अच्छे समय पर पकड़ में आया है। आज तुझसे ही पुनिया बनाते हैं।
फिर उसने डॉ शुक्ला की तरफ देख कर कहा- और तू रे, तु तो वही डाकदर है न? अबे तुझे शर्म नहीं आती का बे? यह मास्टर तो चलो है ही लालू, पर तू कब से नितीश हो गया?
डॉ शुक्ला ने गिड़गिड़ाते हुए कहा- मालिक, हमका छोड़ द्यो।
बीडियो ने गरज कर कहा- अबे रोमियो स्क्वायर्ड के हेड की बीबी को ही लाइन मारते हो, और कहते हो कि छोड़ दें। ठैर जा तु...
बीडियो ने एक नजर अपने पीछे घुमाई, और पल भर में ही चार मुस्टंडे आ कर दोनों को सेंकने लगे। आलोक जी को तो खैर आदत थी, पर डॉ शुक्ला के पाकिस्तान पर जब लट्ठ पड़ते थे, तो वे हवा में उड़ उड़ जाते थे। आलोक लट्ठ पड़ने पर एक परिपक्व पिटउर की तरह सुर में आह आह कर रहे थे, पर डॉ शुक्ला बेताले की तरह हुई हुई हुई हुई कर उठते थे। दोनों की करुण चीत्कार से कमरा गूंज उठा था, तभी बबिता ने अंदर से आवाज लगाई- डार्लिंग, आलोक जी को तनिक धीरे धीरे पिटवावो, उन्हें गाड़ी चला कर घर भी जाना है। बीडियो ने जवानों की तरफ नजर घुमाई, उन्होंने आलोक को छोड़ दिया और सभी डॉ शुक्ला पर भिड़ गये।
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आधे घण्टे बाद दोनों घर लौट रहे थे। आलोक ने नित्य से कहा- क्यों डॉक्टर, बबिता के दिल में सचमुच मेरे लिए प्यार है। देखा, कैसे मुझे धीरे धीरे पीटने को कह रही थी। डॉ ने आलोक को ऐसे देखा जैसे हाथ में बन्दुक होती तो पूरी मैगजीन खाली कर देते।
कुछ देर बाद आलोज ने फिर कहा- इस हरामखोर सिद्धार्थवा का हमने क्या बिगाड़ा है जो बार बार हमें मौत के मुह में ढकेल रहा है।
डॉ शुक्ला कराहते हुए बोले- दुष्ट की राब्ता फ्लॉफ हो गयी न, उसी का गुस्सा निकाल रहा है।
आलोक ने फिर कहा- तुम तो मार खा कर कुछ ज्यादा ही उछल रहे थे नित्य, पर मुझे कोई खास फर्क नहीं पड़ा।
नित्य ने कहा- आप महान नेता हैं।
दोनों जब घर पहुँचे तो श्रीमति नीतू पाण्डेय दरवाजे पर ही खड़ी थीं। उन्होंने मुस्कुरा कर कहा- मिस्टर पाण्डेय, इफ यु स्टिल वांट टू मैरी विथ बबिता, देन यु कैन...
आलोक को जाने क्यों पत्नी पर शक हुआ। उन्होंने आँख गड़ा कर उनकी ओर देखा तो वे मुस्कुरा उठीं, और बोलीं- सिद्धार्थ ने आप दोनों का चरित्र बताने के लिए हमें बता कर यह खेल खेला था। खैर आपका तो जो हुआ वह हुआ, पर नित्य बाबू को खुशबू फिजियोथेरेपी करने के लिए खोज रही है। फोन पर कह रही थी कि आपके किडनी का फ्रेक्चर दूर कर के ही मानेगी।
ताजा खबर यह है कि डॉ शुक्ला आजकल क्लिनिक में ही सो रहे हैं, घर जाने की हिम्मत नहीं हो रही।
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।