नवीन के बाबूजी के एक ही सपना रहे की नवीन बड़का इंजिनियर बनस और जब उ दसवी में जिला में पहिला स्थान ले अयिले त उनका बाबूजी के आपन सपना साकार होत मालूम भईल. चाह के भी आर्थिक परेशानी के वजह से नवीन के उहाँ के इंटर खातिर इलाहाबाद ना भेज पवनी. ग्यारहवी में फिर से वोही स्कूल में दाखिला हो गईल. क्लास बढला और जिला टॉप कईला के वजह से नवीन पर बाबूजी के कास करायी कम हो गईल. नवीन के भी अब रूचि बदलत रहे. रोज समाचार पत्र पढस और वोइमे खिलाडी कुल के फोटो देखस त मन करे की खिलाडी ही बन जाई. इंजिनियर के त ना नाम ही छपे ना फोटो. दसवी पास भईला के ख़ुशी में उनकर बाबूजी उनके फुटबॉल खरीद के देले रहनी, पर वोइमे आगे बढे के कवनो ज्यादा उम्मीद ना लउके. कुछ दिन क्रिकेट भी खेले के कोशिश कईले पर महंगा खेल और साथी कुल के अरुचि भईला के वजह से ज्यादा दिन ना चल पावल. अब उ कवनो नया सस्ता खेल के तलाश में रहले जवन की उनकर नामी खिलाडी बने के सपना के साकार क सकित.
फिर उ दिन आ भी गईल. पेपर में विश्वविजेता ब्रिज टीम के फोटो और खिलाडी कुल के नाम छपल रहे. भारत के नामे विश्व विजेता के ख़िताब से उनका बड़ा गर्व के अनुभूति भईल तथा साथ ही ब्रिज के खेल के बारे में जाने के उत्सुकता भी. घरे आके डिक्सनरी देखले त ब्रिज के अर्थ देखके उनके विश्वास ना भईल. इ त ताश के खेल के ही कहल जाला. एकर भी वर्ल्ड कप होला इ जानकर उनका बड़ा ही आश्चर्य और ख़ुशी भईल. जयादा गहराई से सोचले त इ सबसे आसन और सस्ता खेल लागल. साथ ही आपन सपना साकार लेत प्रतीत भईल. पैसा के भी कवनो दिक्कत ना रहे ना खिलाडी कुल के ही. पूरा गाव ही ताश के खिलाडी कुल से भरल रहे. जेतना खिलाडी ओतना ताश के गड्डी. दिन में सौकड़ो बार फेटईला के वावजूद भी कई कई साल तक ताश के पत्ता ना फाटे ऐ वजह से आर्थिक समस्या के सवाल ही ना रहे. पर नवीन के त ताश खेले ना आवे और खेल में ढेर सारा विविधता रहे. कुल मिलाके एगो गुरु के जरुरत रहे जे उनके माहिर खिलाडी बने के सारा गुण सिखा सके. गुरु के ध्यान आवते जय मंगल काका के चेहरा नवीन के आँख के सामने आ गईल. उनका से जयादा आदर्श गुरु केहू ना हो सकत रहे. जयमंगल काका साक्षात द्रोणाचार्य के अवतार नजर आवे लगले.
जयमंगल काका गाव ही नाही पूरा जवार के ताश के सबका बड़का खिलाडी रहले. सबेरे ६ बजे जयमंगल बो काकी के चूल्हा पर चाय चढ़े और दुवार पर ताश के मंडली बैठ जाऊ. फिर देर रात तक ताश के खेल अनवरत चले. गमछी बिछा के तमाम तरह के चाल और पैतरा फेकाऊ. खिलाडी लोग आपन पूरा ताकत लगा देऊ लोग पर जीत वोही टीम के होखे जैमे जयमंगल काका रहस. जयमंगल काका के चुनौती देबे पडोस के गावन से भी लोग आवे पर अब तक केहू के सफलता ना मिलल रहे. ताश के खेल में उ एतना उस्ताद कैसे भईले अयिपे अलग अलग राय रहे. पर ज्यादा लोग के कहनाम रहे की उनके इ खेल कलकत्ता में कवनो महान जादूगर सिखवले रहे, एही वजह से त उनकर हार ना होखे कभी. वैसे त काका के ताश के सब खेल आवे पर उनका किहा सिर्फ मनोरंजन वाला ही खेल होखे. ताश से होखे वाला जुआ के उ सख्त खिलाफ रहले. केतना लोग जुआ सीखे खातिर पैसा के भी लालच दिहल पर काका सबके चहेट देहले. ताश के खेल के नापसंद कईला के वावजूद जयमंगल काका के नवीन पसंद करस. वही उनका बाबूजी के राय एकर उलट रहे. उ गाव के लोग के निकम्मेपन खातिर काका के ही जिम्मेदार मानस. जयमंगल काका भी नवीन के बाबूजी के सोच से अवगत रहले और उनका से बच के ही रहस. जब कभी दुनु जाना के आमना सामने होखे त उनकर बाबूजी उनके गाव के सारा बुराई खातिर परोक्ष रूप से जिम्मेदार ठहरावास. उनका नजर में अगर जयमंगल काका गाव में ना रहते त गाव में कवनो समस्या ही ना पैदा होईत. जयमंगल काका, नवीन के बाबूजी से उम्र में उ छोट रहले और जबभी उनका से सामना होखे, खिसक लेस. उनकर बाबूजी चाहे जवन सोचस पर नवीन के नजर में त अब जयमंगल काका और उनकर टोली उ महान खिलाडी रहे लोग, जेकर प्रतिभा गाव में रहला के वजह से दब गईल रहे नात विश्वविजेता के उ कप त काका के हाथ में ही रहित और गाव के लोग उनका के कन्धा पे उठा के पूरा जवार घुमायित.
शाम के स्कूल से लौटत वक्त उ उनकर चेला बने के पक्का निर्णय क लेहले पर मन में संशय रहे की जयमंगल काका उनके आपन शार्गिद बनयिहे की ना. नवीन के बाबूजी के डर से काका थरथर कापस. पर शायद माई के कहला पर बात बन जाईत, जयमंगल बो काकी उनका माई के सखी रहली. वैसे भी बाबूजी के पता चलला के चांस ही कहा रहे. जयमंगल काका के घर कोना में रहे और बाबूजी शायद ही कभी वोने जाई. नवीन माई से बात करे के निर्णय लेहले.
"माई हमके ताश सीखे के बा?" नवीन आपन कुरता के बटन खोलत कहले.
"तहार दिमाग त ठीक बा. पढ़े लिखे के उम्र में तू ताश सिखब. अब तू जुवारी बनब" नवीन के माई खिसिया के कहली.
"ताश मने जुवा ही ना होला. इ एगो विश्वस्तरीय खेल ह पर जानकारी के आभाव में लोग एके ख़राब बुझेला."
"तहके इ के बतावल ह."
"इ देख पेपर मे. इ खेल के खिलाडी कुल के केतना इज्जत बा." नवीन अपना साथे ले आईल पेपर के देखावत कहले.
"छोड़ इ फालतू के बात और पढाई पर ध्यान लगाव. अगर तहरा बाबूजी के पता चली त बसवाडी के जेतना बास बा उ सब तहरा पीठ पर तूर दिहे. हमके भी नैहर भेज दिहे." माई समझावत कहली. पेपर के चित्र के उनका ऊपर कवनो असर ना भईल रहे.
पर नवीन के मन में कवनो भय ना भईल.
"चाहे जवन होखे पर हम ताश सिखेब. अगर तू ना चलबू कहे त हम ऐ बेरा से खाना ना खाएब." नवीन आपन एकमात्र पर कभी ना फेल होखेवाला अस्त्र चला देहले.
"तहरा जवन मन करे तवन कर पर हम इ उम्र में नैहर जाके ना बैठब." माई नवीन के जिद के आगे ना झुकली और अन्दर चल गईली.
तबे उनकर सबसे खास संघतिया कलुवा फूटबाल खेले खातिर बोलावे आ गईल. नवीन ओके फूटबाल देके पढाई के बहाना बना देहले. कलुवा फुटबाल लेके चल गईल और उ घर में जाके आपन भूख हड़ताल चालू क देहले. उनका पूरा उम्मीद रहे की माई उनका जिद पर झुक जयिहे और भईल भी उहे. नवीन के २४ घंटा के भूख हड़ताल के असर भईल, सारा खतरा के अनदेखा क के, अगिला दिने उनकर माई उनके लेके जयमंगल काका के घरे पहुच गईली. काका के टीम जमल रहे. काकी उनका माई के गोड छुवली और काका के भी नवीन के देख के गर्व के अनुभूति भईल. बाबूजी की नजर में उ गाव के छटुवा रहले और अइसन आदमी किहा अगर जिला के सबसे मेधावी छात्र आवे एकरा ले बड़का सम्मान का हो सकेला. बड़ा गर्मजोशी से उ अन्दर ले जाके अपना पास चौकी पर बैठवले. पर माई के बात सुनके त उ चौकी से उछल पडले.
"तहार दिमाग त ठीक बा भाई बो." उ अपना भय पर काबू करत कहले "जब रामायण भाई के पता चली त, तहरा साथे हमरो बोखार उतार दिहे."
"रउवा नाहके चिंता करतानी. उनका पता ही ना चली. राउर घर एकदम कोना में बा और नवीन के बाबूजी एने कहा आवेनी." नवीन के माई उनकर समझावल बात दुहरा देहली.
"गाव देहात में नीमन बात एक बार छिप भी जाऊ पर बाउर बात ना छिपेला. हम इनके ताश नईखी सिखा सकत." जयमंगल काका साफ़ ना क देहले. उनका बात से साफ़ रहे की उहो ताश खेलल नीमन ना बुझस भले दिन भर वोइमे लपेटाईल रहस. नवीन के काका पर बड़ा खीस बरल और मायूसी भईल. एतना बडहन खिलाडी हो गईले पर खेल के महानता के बारे में ना जनले. जब उहे खेल के सम्मान ना दिहे त और लोग का खाक सम्मान दी.
पर उनकर माई हार ना मनली. उ काका के अनुनय विनय जारी रखली. लेकिन काका हा बोले के नाम ही ना लेस.
काकी से अपना सखी के दुःख ना सहायिल.
"अगर रउवा नवीन के ताश ना सिखाएब त आज से एइजा ताश ना होई. जेतना राउर तशेडी बा लोग सबके झाड़ू से मार के खदेरेब." सुप्रीम कोर्ट के आदेश काकी सुना देहली और फिर एके ना माने के काका के त सवाल ही ना रहे. सहमती में उ आपन मुड़ी हिला देहले और उनका हां पर जवन ख़ुशी नवीन के मिलल ओके दुनिया के पूरा दौलत देके भी ना खरीदल जा सकत रहे.
ताश के क्लास में नवीन के दाखिला अगिला दिने तय भईल पर उ जिद क के रूक गईले. नियम ना सही कम से कम पत्ता के जानकारी त आज हो जाईत. उनकर माई चल गईली और जयमंगल काका उनके लेके बाहर अपना टीम के पास आयिले और सबके इ समाचार सुनवले. केहू के काका के बात पर विश्वास ना भईल. नवीन जइसन लईका ताश खेली इ त कल्पना से परे रहे. पर जब नवीन काका के बगल में बैठ गईले त सबके विश्वास भईल और साथ ही परम आनद भी. एगो शराबी के साथे अगर शराबी पिए त ओके कवनो फर्क ना पड़ी पर जब एगो इज्जतदार आदमी बैठ जाऊ त फिर ओ आनंद के वर्णन नइखे कईल जा सकत. ओकरा साथे पीके सब कलंक धुल जाला. नवीन के साथे ताश खेलला के मतलब की गाव में अब उ ताना ना मिली ना केहू निकम्मा कही. कुछ लोग जे नवीन के बाबूजी से इर्ष्या करे उ लोग नवीन के तशेडी बनला से भी खुश रहे साथ ही कुछ लोग के नवीन के ताश खेले के क्षमता पर भी संदेह रहे. जयमंगल काका नवीन के ताश खेले के बात कही ना बतावे के सबके कसम खियवले और अब नवीन के इत्मिनान हो गईल की इ बात बाबूजी के पता ना चली. जेतना एगो चोर के दूसरा चोर के ईमानदारी पर भरोसा होला ओतना एगो इमानदार के दूसरा इमानदार के ऊपर नइखे हो सकत. एगो शराबी दूसरा शराबी के राज केहू दूसरा से कह देले होखे अइसन कभी सुने में आईल बा का. इ सब दुर्बलता और दुष्टता त शरीफ और शराफत के ढ़ोंग करेवाला लोग में ही होला.
नवीन के बाबूजी ६ बजे घरे आई, उ पौने छः बजे निकल गईले. जयमंगल काका से मांग के एगो ताश के गड्डी भी लिययिले ताकि जल्दी जल्दी पत्ता के पहचान हो सके. ओइदीन के बाकी के समय ताश के पत्ता पहचानत और बड़का खिलाडी बने के सपना बुनत में गईल.
अगिला दिने नवीन के स्कूल में मन ना लागे और बार बार मन करे की कब भाग के जयमंगल काका के दुवार पर पहुच जास. बार बार घंटी के इन्तजार करस और अइसन लगे के स्कूल के घडी धीमा हो गईल बा.
कभी लागे की चतुर्गुनवा चपरासी आलस के वजह से देरी करता और घंटी समय से नइखे लगावत. बार बार मन में आवे के चल के ओके दू थपरा देस पर ओकर भारी भरकम शरीर याद आवते इ इच्छा भाग जाऊ.
आखिर उनकर इन्तजार के घडी ख़तम भईल और छुट्टी के घंटी लागल. बिना संघतिया कुल के इन्तजार कईले उ साइकिल लेके निकल गईले. आज उनकर साइकिल के स्पीड रोज से दूना रहे. आधा घंटा के दूरी पन्द्रह मिनट में तय हो गईल. घरे पहुच के हाल्दी हाल्दी खाना खईले और ताश के गड्डी लेके तईयार हो गईले. तबे कलुवा आ गईल फुटबाल खेले खातिर बुलावे. उ कलुवा से वापस पढाई के बहाना बना के ओके गेना दे देहले और साथ ही हिदायत की उ गेना अपना पास ही रखे. पढाई के लोड के वजह से अब उ कुछ दिन तक गेना ना खेलिहे. कलुवा के थोडा अफ़सोस त भईल पर साथ में बिना पैसा खर्चा कईले फुटबॉल के मालिक बनके ख़ुशी भी. उ गेना लेके चल गईल. बिना समय गववले उ जयमंगल काका के दुवार पर पहुच गईले. खेल जमल रहे. काका और बाकी खिलाडी लोग उनके गर्मजोशी से स्वागत कईल लोग. नवीन अपना गुरु के चरणस्पर्श क के अपना ये नया जीवन के शुरुआत कईले. काका आपन पत्ता दूसरा जना के देके नवीन के ताश के ज्ञान दिहल चालू क देहले. वैसे त ताश के बहुत सारा खेल रहे पर उनका गाव में मुख्यतः तिन तरह के ही खेल होखे. ट्वेंटी नाइन, छकौड़ी और दहला पकड़. छकौड़ी में जहा छः लोग एक साथे खेल सकत रहे वही बाकी दुनु में चार लोग पर सबसे लोकप्रिय वोहिमे दहलापकड़ ही रहे. छकौड़ी में जहा रोमांच के कमी रहे त ट्वेंटी नाइन में बेईमानी ज्यादा होखे. खिलाडी लोग इशारेबाजी क के खेल के बाजी पलट देऊ ए वजह से दहला पकड़ ही जयादा होखे. इशारा के गुन्जायिश एमे भी रहे पर काका साफ़ कह देले रहले की केहू अगर गलती करत पकडाई त फिर उ वोइजा ना खेल पाई. कुछ लोग के निकाल बाहर भी कईले और फिर तबसे बेईमानी ना होखे.
दहलापकड़ के नियम समझे में नवीन के पन्द्रह मिनट लागल और फिर काका आपन टीम में बैठ गईले खेले. उनका हिसाब से नवीन के मैच में उतारे से पहिले थोडा खेल के देखल जरूरी रहे. खाली नियम जान के केहू बड़का खिलाडी थोड़े बन सकत रहे. नवीन गुरु के बात सहर्ष स्वीकार क लेहले और काका के बगल में बैठ गईले.
नवीन के ताश खेलल गाव में एगो नया अध्याय के शुरुआत रहे और जब कवनो नया काम होला त उलट पुलट भी होला. जवन काका कभी गाव में ना हर्ले आज हार के कगार पर पहुच गईले. दुगो दहला विपक्षी दल
पहिले ही जीत गईल रहे और अब दिनुवा अइसन चाल चललस की काका के दहला बचला के कवनो उपाय ना रहे. का करस कुछु समझ में ना आवत रहे. बरसो के कमायिल इज्जत आज जात रहे और दिनुवा बार बार अपना मोछ पर ताव देत रहे की आज इनकर बादशाहत हम तूर देहनी. काका बार बार गमछी से पसीना पोछ्स पर उनकर नजर वो चल पर ना जाऊ जैसे की उनकर दहला बच जाई.
"काका पत्ती फेकी." दिनुवा के पार्टनर भगेलू कहले " आखिर आज रउवा के हमनी के हरायिये के दम लेहनी जा."
काका मन मसोस के एगो पत्ता निकलले पर नवीन उ पत्ता छीन लेहले.
"रुकी काका हम चलतानी." नवीन कहके दुसर पत्ता काका के हाथ से लेके फेक देहले.
इ का हो गईल. दिनुवा, भगेलुवा दुनु हक्काबक्का रह गईल सन. मैच जीत से हार में पलट गईल.
शिवचरना और खुद काका के विश्वास ना भईल की खेल के बाजी ऐसे भी पलटल जा सकेला. एगो सोलह साल के लड़का एतना बिलक्षण बुधी वाला हो सकेला विश्वास ना होखे. आज नवीन उनकर बरसो के इज्जत बचा के पहिला दिन ही गुरु के ऋण चूका देहले और नया इतिहास रचाए से भी. काका उनके अक्वारी में भर लेहले.
"आज हम गर्व से कहतानी की नवका जयमंगल तिवारी के जनम हो गईल बा. पूरा भारत में नवीन से बढ़के ताश के खिलाडी ना होई." काका कहले.
काका के तारीफ से नवीन के आँख में आँसू आ गईल. अब उनका विश्वास हो गईल पेपर में उनकर फोटो और नाम दुनु छपी. अगर क्रिकेट के खेल में तेंदुलकर सोलस साल के उम्र में देश में धमाल मचवले रहले त उहो ताश में आज गाव में हलचल पैदा क देहले. काका के साथी लोग भी नवीन के जमके तारीफ कईल लोग और नवीन एगो विश्विजेता के समान ही वोइजा से गईले.
अब रोज शाम के नवीन काका के दुवार पर डेढ़ घंटा ताश खेलस. मन त उठे के ना करे पर बाबूजी के डर से उठे के पड़े. मन भी पढाई में ना लागे और रातदिन ताश के पत्ता और चारू दहला ही आँख के सामने रहे.
ताश के विश्वविजेता बने के सपना कही पीछे छूटे लागल और अब उ एकर नशेडी बन गईले.
स्कूल में गुरूजी लोग भी उनकरा में तबदीली महसूस कईल लोग पर कवनो शक ना भईल. उनके उ लोग पुरनका परिणाम के याद कराके जयादा से ज्यादा मेहनत करे के सिख देऊ लोग जवना के उ एक कान से सुनके दूसरा कान से निकाल देस. उनकर फूटबाल अब स्थायी रूप से कलुवा के पास ही रहे.
नवीन के चाहे जवन सोच रहे पर जयमंगल काका के इ बात की गाव में बाउर बात ना छिपेला एकदम सच निकलल. धीरे धीरे उनका सारा संघतिया और गाव के लोग के उनका ताश के खेल के बारे में पता चल गईल. उनका के देख के लोग कानाफूसी करे और उनकर रास्ता से भटकला पे दुःख जतावे लोग. जवना नवीन के उदहारण देत देत लोग के मुह ना दुखाऊ, अब लोग उनके देखे ना चाहे. नवीन के संघतिया कुल के नवीन के खेले ना अयिला के बहुत ज्यादा अफ़सोस ना रहे. फूटबाल त उ पहिलेहि कलुवा के दे देले रहले.
"सराहल पूत खायी में जाला." एक दिन ताश के खेल से लौटत समय उनके देखके चौधारयींन सोमारी बो चाची से कहली " देख कहा से कहा पहुच गईले."
"सही बात बा रौतायिन. रामायण बाबू के मुह में करिखा पोते खातिर पैदा भईल बाड़े इ. अइसन औलाद से त बेऔलाद भईल ठीक बा. केतना नाम रहल ह इनकर जवार में सब चूल्हा में गईल."
नवीन के खीस त बहुत बरल और साथ ही ओ लोग के अज्ञानता पर दुःख भी भईल की ताश जइसन महान खेल के इ लोग हेह दृष्टि से देखता लोग. मन में सोचले की जहिया पेपर में हमार नाव और फोटो छपी तहिया ए लोग के खुदे जबाब मिल जाई. उ चुपचाप चल गईले.
देखते देखत चार महिना के समय निकल गईल और अब इ जवार भर में मानल बात हो गईल की नवीन जइसन बड़का दहलापकड़ के खिलाडी दुसर नइखे.
एक दिन शाम के ताश के खेल ना भईल. काका और काकी कवनो जरूरी काम से कही चल गईल रहे लोग. मजबूरी में नवीन समय बितावे खातिर फूटबाल खेले पहुच गईले. जबसे ताश के क्लास में दाखिला लेले रहले तबसे एको बार फील्ड में ना गईल रहले ना अपना गेना के शकल ही देखले रहले. पर इ का फील्ड में त कवनो लडिका कुल के पता ही ना रहे. कहा गईल सन. कुछ ही दूरी पर पंडीजी के बारी से खूब आवाज आवत रहे. उ ओनिये बढ़ गईले. लगे पहुचले त कलुवा लउक गईल और गाव के और लईका कुल. उ कुल ओल्हा पाती खेलत रहल सन. फिर उनकर नजर कलुवा के गाय पर पडल. उ कुछु चबात रहे. घास त ना रहे. लगे जाके देखले त उनकर फूटबाल रहे. अब त उनका खीस के कवनो सीमा ना रहे. केहू के आँख और केहू के लकड़ी, जवन फूटबाल उनका ओतना प्रिय रहे, जवना के उनकर बाबूजी केतना साल रिरियायिला के बाद खरीदले रहनी, ओकर कलुवा के नजर में कवनो महत्व ही ना रहे. उनकर ख़ास संघतिया रहे, एही वजह से त ओके उ आपन कीमती चीज सौप देले रहले नात देहात में केहू केहू के आपन बोखार ले ना देला.
उनके देखके सब लईका उनका लगे आ गईल सन. कलुवा के त कठया मार देले रहे. ओकरा बिना कुछु बोले के मौका देहले, खूब बेइज्जत कईले और फूटबाल लेके चल अयिले. कहल जाला की जब सबसे गहरा संघतिया अगर दुश्मन बन जाऊ त फिर उ गेहुवन साप से भी खतरनाक होला. कलुवा आज के अपमान के बदला लेवे के ठान लेहलस.
अगिला दिन से ताश के खेल फिर शुरू हो गईल. फिर कुछ दिन बाद छमाही परीक्षा शुरू हो गईल. जब परीक्षा के नतीजा आईल त सब लड़का कुल बता दिहल गईल नवीन के छोड़ के. प्रधानाचार्य उनका बाबूजी के आवे के कह देहले. वैसे इ कवनो नया बात ना रहे, नवीन हमेशा ही कक्षा में अव्वल आवस और उनकर बाबूजी आके गर्व से उनकर रिजल्ट ली और उनका भविष्य के बारे में प्रधानाचार्य और गुरूजी लोग से लम्बा चर्चा होखे . उनका कवनो शक सुबहा ना भईल. रात में बाबूजी के कहके निश्चिन्त हो गईले.
अगिला दिने नवीन के रिजल्ट देख के त उनका बाबूजी के होश ही उड़ गईल. नब्बे से सीधे पचास प्रतिशत पे आ गईल रहले. ना उनका विश्वास होखे ना स्कूल के मास्टर लोग के. रिजल्ट लेके उ आज वोही स्पीड से अयिले जवना स्पीड से नवीन रोज ताश खेले खातिर आवस. घर पहुच के साइकिल दुवार पर ही पटक देहले और लाठी लेके फील्ड में दौड़ गईले. नवीन के संघतिया पास ही बारी में ओल्हा पाती खेलत मिल गईल सन और फिर कलुवा के उ अवसर मिलिए गईल जवना के ताक में उ रहे. नवीन के ताश के खिलाडी बने के पूरा कहानी उ मिर्च मसाला लेके बतवलस. अब त नवीन के बाबूजी के क्रोध के कल्पना कईल मुश्किल रहे. वोइजा से उ जयमंगल काका के घर की ओरदउड़ले. दूर से ही उनके देख के काका के एगो चेला सचेत कईलस. फिर का सारा खिलाडी और नवीन जान लेके भागल लोग. काका घर में घुस के दरवाजा बंद क लेहले.
" निकल जयमंगला बाहर निकल." नवीन के बाबूजी दहडले " आज तोर मूडी फोर के रहेब. पूरा गाव के त ते बर्बाद कयिये देले रहले ह, अब हमरे घर बाकी रहल ह का. हमरा ना पता रहल ह की ते हमसे दुश्मनी के एंगा बदला लेबे."
काका थर थर कापत रहले और साथ ही हनुमान चालीसा के जाप करत रहले. अपना मलिकायिन की ओर बार बार क्रोध से देखस की एही दिन खातिर तू बेचैन रहलू. हम त मना क देले रहनी ताश सिखावे से.
कुछ ही देर में पूरा गाव इकठ्ठा हो गईल. लोग समझा बुझा के हार गईल पर नवीन के बाबूजी वोइजा से हेट के तैयार ना रहनी. लाठी लेके चबूतरा पर बैठ गईनी. रात के आठ बजे ले जब जयमंगल काका घर से बाहर ना निकलले त उहा के वापस लौट गईनी.
पर उम्मीद के विपरीत घर पहुच के नवीन के बाबूजी एकदम शांत हो गईनी. उनका माई के भी एक शब्द ना कहनी, नैहर भेजल त दूर के बात बा. जिदगी में एतना बड़ा ठेस कभी ना पहुचल रहे. आज सारा सपना टूट गईल रहे. ठन्डी के दिन रहे. नवीन के नौ बजे रात तक पता ना रहे. अब सबके चिंता भईल.
नवीन के माई रोवे लगली और बहिन कुल अडोश पडोश में सारा घर खोज आईल लोग पर नवीन के कही पता ना रहे. फिर उनकर बाबूजी गावै के सारा बाग़ बगयिचा खोज आयिले पर उनकर कही पता ना चलल. घर आके उहो रोवासा हो गईले. कहा खोजल जाऊ कुछ समझ में ना आवे.
तबे नवीन के बड दीदी लकड़ी उतारे छत पर गईली पर इ का, नवीन त छत पर ही सुतल रहले. शायद जाड़ा में केहू छत पर ना आई इ सोच के उ एईजा लुका गईल रहले. उ चिल्ला के माई के सूचना देहली. माई के साथे बाबूजी भी दौडल अयिले. नवीन आँख बंद कईले बाबूजी के लाठी गिरला के इन्तजार में कला सधले रहले.
"इ त सूत गईल बाड़े." बाबूजी उनके छूके कहनी " पूरा शरीर ठंढ से पाला हो गईल बा."
"राउर हाथ जोड्तानी मारेब मत." माई कहली.
"तू का हमके जल्लाद समझे लू. हमका अपना लईका से मोह ना रखेनी. हमू ओतने मानेनी जेतना तू पर हमरा इनका भविष्य के भी फिकर बा. जिंदगी भर क्लर्क के नौकरी कईनी और लोग के झिडकी सुननी. उहे झिडकी हमरा बेटा के ना सुने के पड़े ऐ वजह से एतना कास करायी करत रहनी ह. इ उमर में लड़का कुल के सही गलत के समझ कम होला और भटकला के चांस ज्यादा. तू खुदे देख ल ढील छोडला के परिणाम." कहत कहत नवीन के बाबूजी के आँख से झर झर लोर बहे लागल. नवीन के अपना गलती के अहसास भईल. उ सचमुच अपना लक्ष्य से भटक गईल रहले.
"बाबूजी हमके माफ़ क दी. हम भटक गईल रहनी ह" कहके नवीन बाबूजी के गोड पकड़ लेहले. बाबूजी उनके उठा के सीना से लगा लिहनी.
अगिला दिने जयमंगल काका के दुवार पर एको तशेडी के पता ना रहे. शाम के नवीन फुटबॉल लेके ओनिये से निकलले त काका के असोरा के नजारा देख के उनका अपना आँख पर विश्वास ना भईल. काका गाव के छोट बच्चा कुल के बईठा के क ख ग घ पढ़ावत रहले.
फिल्ड में गाव के लड़का कुल गर्मजोशी से नवीन के स्वागत कईल सन. केतना दिन से फूटबाल ना खेलले रहल सन. कलुवा दूर एगो कोना में खड़ा रहे. नवीन ओके फूटबाल खेलयिहे एकर सवाले ना रहे. पर नवीन के मन में कलुवा के प्रति अहसान के भाव रहे. दुश्मनी से ही सही पर कलुवा उनका बाबूजी के ताश के बात बता के उनके भटकल रास्ता से वापस लियायिल रहे. उ जाके कलुवा के पकड लेहले और दुनु दोस्त के सारा गिला शिकवा मीट गईल.
आज ये घटना के कई साल बीत गईल बा और नवीन के बाबूजी के सपना सच हो गईल बा. नवीन बड़का इंजीनियर बन गईल बाड़े पर बाबूजी के कास करायी और बात बात पर सिख चालू बा. आज भी नविन आपन बात मनवावे खातिर उहे अश्त्र चलावे ले माई के सामने जवन पहिले चलावस. जयमंगल काका त अब दुनिया में नईखन पर उनकर पढवाल कइगो लईका आज अच्छा पोस्ट पर बाड़ सन. नविन जब भी उनका घर के तरफ से गुजरेले त दहला पकड़ के खेल और बाबूजी के लाठी दुनू याद पर जाला.
धनंजय तिवारी