-"आइये पांण्डेय जी! थोड़ा खैनी खिलाईये ।क्या आप भी सरकारी स्कूल के बच्चों को सुधारने मे लगे हैं ।"
धरम पाण्डेय ने सुधीर वर्मा के तरफ अपने दाहिने हाथ के अंगूठे को बांये हाथ के हथेली पर रगड़ने का इशारा करते हुए कहा ।
-"सर घंटी लग चुकी है और वर्ग सप्तम में मेरा पीरियड है । और आपको बता दूं कि मैं ये सब नहीं सेवन करता ।"
।यह जवाब देकर सुधीर वर्मा जैसे ही चाक डस्टर लेके स्टाफ रूम से बाहर जाने के लिए अपना कदम बढाये ।धरम पांडेय व्यंग्य बोलते हुए अट्टहास किये-" लगता है आज सब विद्यार्थी को कलक्टर ही बना देंगे क्या? हहहहहहहहह।"
सुधीर पांडेय को गुस्सा आ गया ।किताब डस्टर और चाॅक बेंच पर रखते हुए बोले ,
-"सर सरकारी नौकरी का यह मतलब नहीं कि आप विद्यार्थीयों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किजिए।सरकार आपको पैसा पढ़ाने के लिए देती है न कि आराम फरमाने और गप करने के लिए ।माना कि ये गरीब विद्यार्थी धनाभाव के कारण फीस नही जमा करते मगर ये अपना बहुमूल्य समय तो दे रहे हैं?इनके भविष्य से खिलवाड़ करने का हक आपको नहीं है । कोई प्राईवेट काम हो या सरकारी हमे अपने कर्तव्य पथ से विमुख नहीं होना चाहिए ।आप ही जैसे कामचोरों की वजह से पूरी शिक्षा प्रणाली ही बदनाम हो गई है ।"
बहुत दिनों से धरम पांडेय के कटाक्ष से तंग आ चुके सुधीर वर्मा आज अपने फुल फार्म मे थे ।
धरम पाण्डेय शर्म से अपना सर नीचे झुका कर सब चुपचाप सुन रहे थे ।
सुधीर वर्मा का नव चयन दो महिना पहले ही हुआ था ।इससे पहले वह अंगरेजी माध्यम विद्यालय में पठन-पाठन का कार्य कर रहे थे ।कुछ नया करने का जज्बा उनमें सरकारी विद्यालय में ज्वाइन करने वाले दिन से ही परिलक्षित हो रहा था ।जबकि धरम पाण्डेय के रिटायर होने में दो साल ही बचे थे । विद्यालय में शिक्षा व्यवस्था को लेकर अक्सर वाद - विवाद होता रहता था ।बस यूं कहिए पुरानी पीढ़ी एवं नये पीढ़ी के कार्य तरीकों में संघर्ष था ।
नीरज मिश्रा
बलिया( उत्तर प्रदेश )।