"मिश्रा जी !,आप कभी घर चाय पर भी नहीं बुलाते ।"
जब भी शुक्ला जी हमसे मिलते तो यही वाक्य बोला करते थे ।अब मैं उन्हें कैसे बताउं कि मेरे यहाँ दुध उपलब्ध नहीं है।एक दिन बाजार घुमते हुए मैंने एक जनरल स्टोर पर बच्चों को पानी में मिलाकर पिलाने वाला सैरेलेक दुध का डिब्बा देखा । सोचा कि यही खरीद लेता हूँ और शुक्ला जी को कल चाय पर आमंत्रित भी कर देता हूँ ।
-"देखना बेटा शानू दुध का डिब्बा न चट कर जाये । शुक्ला जी आयेंगे चाय पीने ।"
अपनी पत्नी को यह निर्देश देकर मैं अपने घर से शुक्ला जी के घर उनको आमंत्रित करने के लिए चल दिया ।
फिर शुक्ला जी को लेकर जैसे ही अपने घर पहुंचा मेरा बेटा शानू दरवाजे पर उस सैरेलेक दुध के डिब्बे को फुटबॉल बना कर खेल रहा था ।
नीरज मिश्रा
बलिया ।