कल्पना कीजिये यदि आप किसी को तहे दिल से प्यार करते हैं,उसके साथ कुछ वक्त बिताना चाहते हैं,हर वो चीज करना चाहते हैं जिसको करने का आनंद सिर्फ कल्पना करके या स्वप्न देखकर ही मिल सकता है ।मगर यदि आपकी कल्पना यथार्थ में तब्दील हो जाये तो सोचिए आपको पृथ्वीलोक में ही जन्नत का एहसास हो जायजा ।ऐसा ही सौभाग्य आलोक पांडेय जी को मिला । शाहरूख खान महाराज का डायलॉग है न कि यदि किसी चीज को सिद्दत से चाहो तो कायनात आपको उससे मिलाने की कोशिश करता है ।बबीता को आलोक पाण्डेय जी ने दिल से चाहा था जब वो दोनो लंगटू बाबा इंटर कॉलेज में एक साथ वर्ग नवीं में एडमिशन लिये थे ।और इंटरमीडिएट तक दोनो का प्रेम परवान चढ़ गया । दोनो के प्रेम प्रसंग के चर्चे पूरे स्कूल में होने लगे । धीरे-धीरे यह खबर जंगल की आग की तरह पूरे गांव मे फैल गया ।मगर जैसे ही यह खबर बबीता जी के घर वालों को मिली ,बबीता जी के पिता श्री झुलन ठाकुर ने इसकी शिकायत आलोक पांडेय के पिता जी कर दी।तब क्या था ? बबीता की पढ़ाई इंटर के बाद बंद हो गयी । और पांडेय जी इलाहाबाद सिविल सर्विसेज की तैयारी करने चले गये । दोनो का दिल एक दूसरे के लिए अक्सर धड़कता रहता था । करीब दो दशक बाद दोनो की मुलाकात बखोरन पुर रेलवे स्टेशन पर हो गया ।एक दूसरे को देखकर दोनो की आँखे गंगा गंगा यमुना हो गयीं । पांडेय जी का तो रो रोकर नाक से बहेरा नाला तक बहने लगा था ।आँसू पोछते हुए बबीता जी बोली, -"मैं तो बहुत दिनों बाद अचानक आपको देखकर पहचान ही नही पायी।सर के बाल कैसे उड़ गये?"
पांडेय जी, -"उ का है कि इलाहाबाद का क्लाइमेट ही ऐसा है कि जो यहां रह जाता है उसके सर पर बाल ही बचता है ।"
अब ये बात अपनी प्रेमिका को आलोक जी कैसे बताएं कि उससे प्यार करने के जुर्म के सजा के तौर पर पूरे एक साल अपने चार गाय और दो भैंस का गोबर खैंची मे फेकना पड़ा था।ट्रेन की सीटी ने दोनो प्रेमी -प्रेमिका का ध्यान भंग कर दिया।चलती ट्रेन में जो ही डिब्बा सामने नजर आया उसमें तेजी से दोनो दौड़ कर पकड़ लिये ।
-"अरे इ तो ए सी कोच है!"
पांडेय जी का मुंह लालू यादव के चारा घोटाले केस की तरह खुल गया ।
बबीता जी बोली ,"क्या हुआ? "।
-"देखो न बातों बातों में टिकट लेना भूल गया ।"
पांडेय जी अपना मुंह गिरवच के पतई की तरह बनाते हुए बोले ।तभी "टिकट! टिकट !टिकट के आवाज सुनते ही आलो
नीरज मिश्रा
बलिया