यह सत्य घटना एक गांव के बहुत प्रतिष्ठित पंडित जी से जुड़ी है। पंडित जी जब एक वर्ष के थे उसी समय उनके पिता का असामयिक निधन हो गया। पंडित जी के माता के ऊपर तो जैसे वज्रपात हो गया। ईश्वर ने सब छीन लिया केवल पंडित जी उनके जिन्दा रहने का कारण व सहारा बने। बहुत तकलीफों और अभाव में पंडित जी का लालन-पालन किया उनकी माँ ने।
समय बिता पंडित जी सयाने हुए विवाह हुआ, बाल-बच्चेदार हुये। परिवार की खोई प्रतिष्ठा को स्थापित किये। आर्थिक और सामाजिक स्तर पर मजबूत हुए। उनकी माँ भी, अब सारा दुख भुलाकर परिवार और बच्चों में लग गयीं।
पंडित जी के चार पुत्र हुए किन्तु दुर्भाग्य से उनका दूसरे न.का पुत्र बेहद उदंड और असंस्कारी प्रवृति का हो गया। आये दिन उसकी शिकायतें गांव-जवार से आने लगीं। मार-पीट, झगड़े-झंटे की घटनाएँ आम हो गयीं। धीरे-धीरे लड़के की उद्दंडता परिवार में भी दिखने लगीं। वह कभी अपनी पत्नी को मार देता कभी मां पर हाथ छोड़ देता, पंडित जी से भी हाथापाई पर उतर जाता घर की सम्पतियों को नुकसान पहुंचा देता किन्तु पंडित जी पुत्र-मोह में उसकी गलतियों को नजरअंदाज करके यह संतोष करते कि शायद भविष्य में सुधर जाये। उसकी बेजा मांगों को भी पूरा कर देते कि शायद इसी से बला कुछ दिन टल जाये लेकिन लड़के के अन्दर सुधार के कोई लक्षण न थे घर का माहौल दिन प्रति दिन और दूषित होता चला गया।
एक दिन पंडित जी बाहर बरामदे में बैठे थे और लड़के ने बवाल काटना शुरू किया घर में तोड-फोड़ के साथ अपनी पत्नी को पीटने लगा। उसकी पत्नी को मार खाते देखकर उसकी दादी उसको छुड़ाने के लिये बीच-बचाव में आ गयीं। लेकिन लड़के पर तो जैसे खून सवार था उसने आवेश में आकर अपनी दादी पर हाथ छोड़ दिया और जब पंडित जी ने अपनी मां की चीख सुनी तो वह बिल्कुल शून्य में चले गये। पंडित जी का मातृप्रेम, प्रेम के क्रम में सबसे ऊपर स्थान ले लिया और वह पुत्रमोह से मुक्त होकर, उन्होंने अपने ही बेटे को गोली मार दी। लेकिन पंडित जी को अपने इस फैसले को लेकर न ही कोई ग्लानि थी और न ही अपराधबोध.......
उन्होंने चीख कर कहा कि इसने मेरी मां को क्यों मारा!!...घर में तांडव करता,भाईयों पर गुस्सा उतारता यहाँ तक कि मुझपे जुल्म करता तो शायद मै इसे माफ कर देता! मगर इसने मेरी माँ पर कैसे हाथ उठाया ? इसे क्या पता कि मेरी माँ ने कितनी तकलीफों से मुझे पाला है। उसके भी नाज-नखरे उठाए। पूरे परिवार को बनाने में उसने अपनी अस्मिता भी होम कर दी।
घटना के बाद पूरा गाँव पंडित जी के समर्थन में खड़ा हो गया, एक भी व्यक्ति नहीं मिला जो पंडित जी का विरोध करे। पुत्र-हंता होने के बाद भी पंडित जी उतने ही सम्मानित हैं लोगों का उनके प्रति वही व्यवहार है जो पहले था। वास्तव में उनके लड़के ने अपनी उदण्डता के सीमाओं का अतिक्रमण किया उसने अपराध की उस कृत्य को अंजाम दिया जहाँ पर क्षमा का कोई स्थान ही नहीं। उसने वह अक्षम्य अपराध कर दिया जहाँ पर त्वरित न्याय नहीं होता तो शायद पंडित जी अपने आप को भी माफ नहीं कर पाते।
कहने की जरूरत नहीं कि यह घटना काफी हद तक कश्मीर के हालात से इत्तेफाक रखती है। कश्मीर के हालात और वहाँ के लोगों की उद्दण्डता अब अक्षम्य है। वहाँ की उपद्रवी जनता उस सीमा का अतिक्रमण कर रही है,जहाँ गोली चला देने वाले को अपराधबोध नहीं होना चाहिए, क्योंकि माँ के शर्त पर हमें कुछ नहीं सुनना। आखिर यह कि तुम्हारी उद्दण्डता की एक सीमा है जिसके भीतर ही तुम्हें जीवन का अधिकार है..........
रिवेश