जीपीएसनामा की कहानी का कोई पात्र काल्पनिक नहीं है। या फिर ये भी कह सकते हैं कि यह कोई कहानी ही नहीं है। यह असल जिंदगी कि कड़वी सच्चाई है। वैसे भी मेरा मानना रहा है कि असल जिंदगी से बढ़कर कोई कहानी नहीं होती है। तो आज की कहानी के नायक मेरे रूममेट तिवारी जी हैं।
जनसंचार में दीक्षित-प्रशिक्षित होने की वजह से सीधे किसी भी घटना के वैश्विक प्रभावों का वे विवेचन करते हैं। पूरी दुनिया का भूगोल तिवारी जी को जुबानी याद है। वितयनाम युद्ध, खाड़ी युद्ध, अरब युद्ध, वैश्विक आतंकवाद और बिहार की राजनीति को लेकर उनकी टिप्पणी मजेदार होती है।
विश्वविद्यालय कैंपस और कैंपस से बाहर सभी के प्रति उनका व्यवहार साधु-प्रवृति का है। कैंपस के प्रति उनका अनुराग इस हद तक है कि वे इसके जिक्र मात्र से भावुक हो जाते हैं।
वे एक हंसमुख, सदाबहार शख्सियत हैं जिनके साथ दो साल तक मैं रूममेट रहा। इन दो सालों में कभी भी महसूस नहीं हुआ कि वे मेरे अपने नहीं हैं। मुझे कभी भी रूम की साफ-सफाई को लेकर कोई चिंता नहीं हुई। मैं देर से सो कर उठता और रोज कमरा व्यवस्थित मिलता।
सनद रहे कि जीपीएच के ज्यादातर कमरे का माहौल अस्त-व्यस्त रहता है। तिवारी जी दो घंटे से अधिक कभी बैठ नहीं सकते हैं... गमछी बाँधा और शिव कुमार की चाय दुकान पर हाजिर यहां मन नहीं लगा तो गोरस और अगर वहां भी मन नहीं लगा तो सीधे काफ्का कैफेटेरिया में... मस्तमौला तिवारी बाबा उपाख्य 'बुढ़ऊ' किसी भी बात का लोड नहीं लेते हैं...
मुझे याद है, एमफिल प्रथम छमाही के प्रश्नपत्र में पूछा गया था कि 'चर' से आपका क्या अभिप्राय है?
तिवारी जी ने बड़े मनोयोग से इस सवाल का जवाब देते हुए लिखा कि 'चर' दो तरह के होते हैं, गोचर चर और अगोचर चर। गोचर चर के प्रभाव को वैदिक उपायों के माध्यम से नियंत्रित कर दिया जा सकता है, अगोचर चर के लिए ज्योतिष रत्नों को धारण करना पड़ता है। इसके अलावा चर के सहचारणी 'चरी' होती है। 'चरी' के उदाहरण के तौर पर बजरा, बरसीन, दूब, खर को देखा जा सकता है...
जब प्रथम छमाही का परीक्षा परिणाम आया तो उपर्युक्त प्रश्न पत्र में तिवारी जी को बैक लग गया था। तिवारी जी थोड़े परेशान थे, मैं पूछा 'का भइल हऽ काहें परेशान बाड़ऽ...'
ए भाई का बताई, हमके बैक कइसे लाग गइल हऽ, बुझाते नइखे!
अच्छा, कवनो बात नइखे चल के तोहार कॉपी देख लिहल जाई...
अगले दिन हम शोध के मूल आधार पाठ्यक्रम पढ़ाने वालेे शिक्षक के पास तिवारी जी कि कॉपी को जब देखा तो चर के फेरे में हमारा भी दिमाग 'चरचरा' गया...
देवेंद्र नाथ तिवारी